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पाठ 106 : अंतिम आज्ञाएं

अंतिम तीन आज्ञाएं यह सिखाती हैं की परमेश्वर के लोगों का व्यवहार एक दूसरे के साथ कैसा होना चाहिए। सांतवी आज्ञा बताती है कि परमेश्वर चाहता था की विवाह कि वाचा की पवित्रता और अच्छाई का सम्मान हो।

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व्यवस्थाविवरण: वाचा नवीकरण की पुस्तक - मोआब के मैदानों में मूसा और उसके लोग

यहोवा जो इस्राएल का महान राजा है, अपने लोगों का उसने मोआब के मैदानों के लिए नेतृत्व किया। वे वादे के देश की सीमा पर पहुंच गए थे। वे अपनी आँखों से देख सकते थे। यरदन नदी के सामने इस्राएल का डेरा था। नदी के उस पार पहाड़ियों के साथ खुली, सूखी ज़मीन थी।

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पाठ 175 : # 4 दस आज्ञाएं

सीनै पर्वत पर परमेश्वर किआवाज़ को सुनना इस्राएल के लोगों के लिए एक महान पल था। इतिहास में किसी भी देश ने कभी भी परमेश्वर के साथ इस तरह से सामना नहीं किया होगा।यह इसीलिए था क्यूंकि इस्राएल को इतिहास में एक बहुत ही खास भूमिका के लिए चुना गया था।

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पाठ 176 : # 5 पहली आज्ञा के निहितार्थ

वाचा यदि इस्राएलियों की प्रत्येक पीढ़ी के लिए था, तो उन्हें उसे वास्तव में गहराई से समझना ज़रूरी था। सो मूसा दुबारा से दूसरी पीढ़ी को दस आज्ञाएं सिखाने लगा।

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पाठ 177 : # 6 पहली आज्ञा के निहितार्थ

पहला नियम जो यहोवा ने अपने लोगों को दिया वह था की, "तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।" इसका मतलब था की इस्राएली किसी और झूठे देवता किमूर्तियों की पूजा नहीं कर सकते थे। इसका मतलब यह भी था की उन्हें उस भूमि को उन मूर्तिपूजक राष्ट्रों से साफ़ करना था जो सैकड़ों वर्षों से वहां रह रहे थे।

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पाठ 179 : # 8 आज्ञा 3

पहली दो आज्ञाओं ने सिखाया की किस प्रकार उन्हें अपने धर्म और विश्वास के बारे में सोचना है। वे यहोवा के आगे और किसी अन्य देवता किपूजा नहीं कर सकते थे। वे किसी भी मूर्ती किपूजा नहीं कर सकते थे।

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पाठ 180 : # 9 चौथी आज्ञा

इस्राएली हिब्रू की भाषा बोलते थे। हिब्रू में, "सब्त" "आराम करना" या "रोकना" होता है। इसे "जश्न मनाना" भी कहते हैं।

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पाठ 182 : # 11 चौथी आज्ञा: पर्व

इस्राएल के लोगों को यहोवा को सप्ताह का एक दिन देना होता था। यह उनके लिए सब्त का दिन था। साल में एक बार उन्हें यहोवा की उपस्थिति के लिए अपने सभी फसलों और पशुओं के दसवें हिस्से को लाना होता था।

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पाठ 186: राजाओं और उनके लोगों का सम्मान

न्यायाधीशों को उन्ही के क्षेत्रों के मामले के विषय में निर्णय लेने के लिए नियुक्त किया गया था। दूसरे महत्वपूर्ण समूह जो सही न्याय कर सकते थे वे स्वयं लोग ही थे। एक समूह के रूप में वे तय कर सकते थे यदि किसी ने परमेश्वर के पवित्र नियमों का उल्लंघन किया है।

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पाठ 187: भविष्यवक्ताओं का सम्मान

परमेश्वर ने इस्राएल को चुने हुए अगुवे दिए थे। वे लेवी कहलाते थे। इस्राएल के बारह गोत्रा थे। इब्राहीम का पुत्र इसहाक, इसहाक का पुत्र याकूब था जिसके बारह बेटे थे। प्रत्येक पुत्र एक गोत्र का प्रमुख था।

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पाठ 188: छठी आज्ञा-जीवन का सम्मान

मूसा जब अपने लोगों से बात कर रहा था, वह सभी मानव जीवन के मूल्य के बारे में उनसे बात कर रहा था। छठी आज्ञा यह है:

"तुम्हें किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करनी चाहिए”

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पाठ 189: छठी आज्ञा-युद्ध के दौरान जीवन का सम्मान

छठे आज्ञा में, यहोवा ने लोगों को हत्या ना करने कि आज्ञा दी। जब एक व्यक्ति किसी दूसरे की जान लेता है तो वह हत्या कहलाता है। यदि इस्राएली किसी को बिना उद्देश्य मारते हैं, तो फिर कैसे वे युद्ध में जा सकते थे? वादे के देश में जाकर कैसे वे कनानियों के विरुद्ध युद्ध करेंगे?

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पाठ 190: छठी आज्ञा-जीवन का सम्मान

एक इस्राएल के जीवन का सम्मान तब तक महत्वपूर्ण नहीं था जब तक वह जीवित रहता है। वह उनके मरने के बाद भी महत्वपूर्ण था! यदि एक व्यक्ति मृत पाया गया है, और यह स्पष्ट होता है की उसकी हत्या की गई है, तो यह एक भयानक बात थी। यदि इसका कोई न्याय नहीं किया जाता है तो यह उनके लिए अनादर की बात होती, लेकिन कभी कभी एक हत्या का समाधान करना असंभव होता है।

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पाठ 191: सातवीं आज्ञा-विवाह का सम्मान

सातवीं आज्ञा दिखाती है कि परमेश्वर के लिए विवाह कितना महत्वपूर्ण है। यह बहुत ही सरल है:

"तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए”

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पाठ 192: आठवीं आज्ञा-संपत्ति का सम्मान

यहोवा ने अपने लोगों को एक-दूसरे के बीच नैतिक पवित्रता को सिखाने के लिए सांतवी आज्ञा दी। उन्हें अपने कौमार्य की रक्षा विवाह होने तक अपने दिल और दिमाग और शरीर को पवित्र और निर्मल रखना था। आठवीं आज्ञा में, परमेश्वर ने अपने लोगों को एक दूसरे के लिए एक सुरक्षा के रूप में एक मज़बूत, स्वस्थ सीमा दी। यह नियम इस्राएलियों को सिखा रहा था की उन्हें एक दूसरे कि संपत्ति के प्रति कैसा व्यव्हार करना है।

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पाठ 193: नौवीं आज्ञा-सच्चाई से यहोवा का सम्मान, दसवीं आज्ञा-यहोवा का सम्मान हृदय की पवित्रता के साथ करना

चोरी करने के विचार में जोड़ें- व्यवस्था 21-24 को संपत्ति के अधिकार को दिखाने के लिए मूसा के नियमों के लिए दिखाएँ और उन्हें लोगों के झूठ बोलने और न्यायधीश से धोखाधड़ी करने के लिए इस विवान को दिखाएँ।

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पाठ 195: पलायन का विपर्यय - रोग, विनाश, निर्वासन ... दास होने के लिए भी योग्य नहीं

इस्राएल का राष्ट्र फिर से इकट्ठा हुआ। हज़ारों लोगों कि कल्पना कीजिये कि किस प्रकार वे अपने महान अगुवे को खड़े सुन रहे थे। पति, पत्नी, बच्चे, और वे सभी विदेशी जो उनके बीच में रहते थे। मूसा उन्हें वाचा के नियम सुनाता रहा। उसने उन्हें दस आज्ञाओं को याद दिलाया और फिर प्रत्येक आज्ञा का पालन करने के कई तरीके सिखाये।

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पाठ 196: हृदय की सुन्नत के माध्यम से वाचा का नवीकरण

मूसा यरदन के पूर्व, मोआब में इस्राएल के राष्ट्र के सामने खड़ा था। लोगों के लिए अपने अंतिम सन्देश में, उसने देखा की वह राष्ट्र यहोवा की महान सच्चाई और महान विफलता, दोनों से गुज़रेगा।

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पाठ 198: मशाल को पार करना - मूसा से यहोशू को

यहोवा ने, जो इस्राएल का परमेश्वर है, मिस्र से उन सब लोगों को ग़ुलामी से बचाया जिनके साथ उसने सबसे पहले अपनी वाचा को बनाया था। अड़तीस साल बाद, मूसा ने मोआब के मैदानों पर इस्त्राएलियों की अगली पीढ़ी के साथ बात की। पूरा देश यरदन नदी के पास डेरा लगाया हुआ था। दूसरी तरफ वो देश था

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पाठ 200: मूसा देश में प्रवेश नहीं करेगा

जिस दिन परमेश्वर ने मूसा को भविष्य के बारे में इस्राएल के लोगों के लिए गीत को दिया, उसने भविष्य के बारे में मूसा को निर्देश दिए। मूसा अबारीम पर्वत से नबो पर्वत पर गया। वहाँ से, वह कनान देश को और उसकी महिमा को देख पाएगा। मोआब में उस पर्वत से, मूसा पश्चिम की ओर यरदन घाटी में देख पाएगा।

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