पाठ 179 : # 8 आज्ञा 3

पहली दो आज्ञाओं ने सिखाया की किस प्रकार उन्हें अपने धर्म और विश्वास के बारे में सोचना है। वे यहोवा के आगे और किसी अन्य देवता किपूजा नहीं कर सकते थे। वे किसी भी मूर्ती किपूजा नहीं कर सकते थे। तीसरी आज्ञा उन्हें यहोवा से प्रेम करना और उसके प्रति वफ़ादार रहना सिखाती है। मूसा ने मोआब के मैदानों पर खड़े होकर यह तीसरी आज्ञा दी;


"यहोवा, अपने परमेश्वर के नाम का उपयोग गलत ढ़ंग से न करो। यदि कोई व्यक्ति उसके नाम का उपयोग गलत ढ़ंग से करता हो तो वह दोषी है और यहोवा उसे निर्दोष नहीं बनाएगा।" (व्यवस्था 5:11) 

 

वाह। यहोवा इतना पवित्र और सिद्ध है, कि उसका नाम व्यर्थ में लेना एक भयानक अपराध है। इंसान की सोच परमेश्वर की महानता को नहीं समझ सकती। हमारी सोच बहुत छोटी है। हमारे दिल भी बहुत छोटे हैं। हम उन बातों किकल्पना नहीं कर सकते जो और अधिक शक्तिशाली हैं, इसीलिए हम नहीं जानते की उन्हें किस आदर और श्रद्धा के साथ मानना है। स्वर्गदूत जिन्होंने परमेश्वर को स्वर्ग के सिंघासन पर बैठे देखा है, उसकी महानता और महिमा को समझते हैं। उन्होंने उसे पूरे ब्रह्मांड को बनाते देखा है और उसके हर अद्भुत काम को देख कर ख़ुशी को प्रकट किया है। मनुष्य हमेशा अपने ही शब्दों का मूल्य समझ नहीं पाता है। कई बार हम अपने शब्दों से परमेश्वर किमहानता के विरुद्ध बोल जाते हैं जो उसके विरुद्ध एक उल्लंघन है। यहोवा अपने बड़े अनुग्रह से, अपनी महानता को सिखा रहा था ताकि वे स्वर्गदूतों के साथ उसकी महिमा का सम्मान कर सकें। इस पृथ्वी पर ऐसा गिरा हुआ जीवन जीने के बजाय, इस्राएलियों को ऐसा जीवन जीना था जैसा स्वर्ग में होता है। 

परमेश्वर के बारे में ऐसा नीच विचार रखना कितना भयानक है। लेकिन दूसरे देवताओं पर विश्वास करना भी एक भयानक बात है। मूसा जब यहोवा के कीमती नाम के बारे में सिखा रहा था, वह उसके नाम के प्रति वफ़ादार रहना इस्राएलियों को सिखा रहा था। उसने चेतावनी दी की इस्राएल से नबी, जो परमेश्वर के परिवार से होंगे, दूसरे देवताओं के नाम लेंगे। वे इस्राएल के लोगों को अन्य मूर्तियों की पूजा करना सिखा सकते थे। वे आकर इस्राएलियों के सपनों को पढ़ सकते हैं। कुछ सपने भविष्य के बारे में हो सकते हैं, और उनमें से कई सच भी हो सकते हैं।वाह, यह बहुत रोमांचक होगा ना? लोग ऐसे नबी पर विश्वास कर सकते हैं जिसके पास ऐसी विशेष शक्ति है। लेकिन यदि ये यहोवा को छोड़ अन्य किसी देवता कि पूजा करने को कहते हैं, तो उन्हें ऐसा नहीं करना है। चाहे उस नबी किभविष्यवाणी सच निकले, उन्हें यहोवा के नाम के प्रति वफ़ादार रहना होगा। वास्तव में, मूसा ने उन से कहा;

 

"... उस व्यक्ति की बातों पर ध्यान मत दो। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारी परीक्षा ले रहा है। वह यह जानना चाहता है कि तुम पूरे हृदय और आत्मा से उस से प्रेम करते हो अथवा नहीं। तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए। तुम्हें उसका सम्मान करना चाहिए। यहोवा के आदेशों का पालन करो और वह करो जो वह कहता है। यहोवा की सेवा करो और उसे कभी न छोड़ो! वह नबी या स्वप्न फल ज्ञाता मार दिया जाना चाहिए। क्यों? क्योंकि वह ही है जो तुमसे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर की आज्ञा मानने से रोक रहा है। यहोवा एक ही है जो तुमको मिस्र से बाहर लाया। उसने तुमको वहाँ की दासता के जीवन से स्वतन्त्र किया। वह व्यक्ति यह कोशिश कर रहा है कि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेश के अनुसार जीवन मत बिताओ। इसलिए अपने लोगों से बुराई को दूर करने के लिए उस व्यक्ति को अवश्य मार डालना चाहिए।"
 (व्यवस्था 13: 3-5) 

 

जीवन और मौत से बढ़ कर परमेश्वर के प्रति उनकी वफ़ादारी अधिक महत्वपूर्ण थी। यह किसी अन्य राष्ट्रों से अलग था। परमेश्वर यहोवा उनका राजा और शासक था। वे उसके द्वारा चुने गए थे, और वे उसकी क़ीमती अमानत थे। इस्राएलियों को पृथ्वी पर उसे प्रतिनिधित्व करना था। उन्हें उच्चतम विशेषाधिकार दिया गया था। लेकिन यहोवा का विश्वासघात करना सबसे बड़ा पाप था। मूसा जब लोगों को ये उच्च और स्पष्ट सत्य को बता रहा था, वह उन्हें दिखा रहा था किऐसे पाप किसज़ा मृत्यु है, और इस भय के कारण अन्य देश के लोग वाचा का सम्मान करेंगे। 

 

मूसा ने कहा किपरमेश्वर के प्रति वफ़ादारी उनके अपने परिवार से पहले होनी चाहिए। यदि उनके परिवार में कोई उनसे ऐसा कराता है, तो ऐसे व्यक्ति को मृत्युदंड मिलना चाहिए। फिर चाहे वह भाई या बेटी या बेटा या पत्नी या उनके करीबी दोस्त क्यूँ न हो। 

 

यहोवा ने इस्राएलियों को आज्ञा दी कि ऐसे दुष्ट व्यक्ति को पत्थरवाह करके मौत की सज़ा देनी होगी। इसका मतलब था की, जब कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उसे लोग पत्थर तब तक मारते रहें जब तक वह मर नहीं जाता। मौत हमेशा से भयानक रही है। परमेश्वर नहीं चाहता था कि मनुष्य इस प्रकार का जीवन जीये। और एक जीवन को ले लेना एक बहुत ही गंभीर बात थी। पथराव करने का मतलब था किजो भी एक दोषी व्यक्ति पर पथराव करता है वह उसकी सज़ा का ज़िम्मेदार होगा। सभी को पाथरवा करने में शामिल होना होगा। तब भी, कोई एक व्यक्ति किसी का जीवन नहीं ले सकता था। प्रत्येक पत्थर परमेश्वर का न्याय था, और पूरा समाज परमेश्वर के आगे इस ज़िम्मेदारी को लेता था। 

 

यदि किसी इस्राएल के शहर के लोग किसी अन्य देवता का नाम लेते हैं, तो उन्हें मृत्युदंड दिया जाता था और उनके शहर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाता था। उस शहर की सब चीज़ों को एकत्र करके परमेश्वर के आगे होमबलि के रूप में जला दिया जाता था। यह लोगों को और उनकी बुराई को साफ़ कर देता था। 

 

ऐसे निर्णय कठोर लग सकते हैं। लेकिन यहोवा इन लोगों को जीवन देना चाहता था, क्यूंकि वह एक पवित्र राष्ट्र की स्थापना करना चाहता था, और अपने लोगों की रक्षा दुष्ट से करने के लिए वह उनके जीवन जो छोटा करने का अधिकार रखता था। मूसा के इन शब्दों में, उसने इस्राएल में सभी को निष्पक्ष चेतावनी दी थी। वह जानता था की मूर्तियों को चुनना मौत को चुनना था। यदि वे दूसरे देवताओं को मानना चाहते थे, तो वे उस भूमि को छोड़ कर जा सकते थे। यदि कोई उस देश में रहना चाहता था और उन आशीषों को पाना चाहता था, तो उसे यहोवा की वाचा के प्रति वफ़ादार रहना होगा। 

 

मृत लोगों के नाम के प्रति भक्ति को ना दिखाना यहोवा के नाम के प्रति वफ़ादारी को दिखाने का यह दूसरा तरीका था। इस्राएली एक जीवित परमेश्वर की सेवा करते थे। वे उसकी क़ीमती अमानत थे। फिर भी कई धर्मों में, परिवार के उन सदस्यों से मदद ली जाती थी जो मर चुके थे। वे मानते थे की उनके मृत रिश्तेदार उनके जीवित सदस्यों के लिए एक छाया की तरह रहते हैं और उनके लिए काम कर सकते हैं। ऐसे अनुष्ठान थे जिनके द्वारा वे मरे हुए व्यक्ति को मदद के लिए वापस ला सकते थे। वे अक्सर जादू करने की कोशिश करते थे, या फिर अपने सिर को मुंडवा देते थे। ये सब वे अपने घरों में गुप्त तरीके से करते थे। लेकिन यहोवा सब कुछ देखता है। वह जानता है की हर समय हर घर में क्या हो रहा है। उसने अपने लोगों को उसके पास आने के तरीके दे दिए थे और वे उसके लिए काफ़ी थे। उनके पास उसका अति पवित्र स्थान, उसका मंदिर था, और उनके पास प्रार्थना थी। फिर क्यूँ एक मृत से मदद लेनी है? वे पवित्र और याजकों का राष्ट्र थे। यहोवा के नाम को आदर देने के लिए, वे मरे हुओं को नहीं ढूंढ सकते थे।