पाठ 177 : # 6 पहली आज्ञा के निहितार्थ
पहला नियम जो यहोवा ने अपने लोगों को दिया वह था की, "तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।" इसका मतलब था की इस्राएली किसी और झूठे देवता किमूर्तियों की पूजा नहीं कर सकते थे। इसका मतलब यह भी था की उन्हें उस भूमि को उन मूर्तिपूजक राष्ट्रों से साफ़ करना था जो सैकड़ों वर्षों से वहां रह रहे थे। एक सिद्ध और सच्चे परमेश्वर के होते हुए किसी ऐसी चीज़ की पूजा करने की क्या आवश्यकता थी जिसमें सच्चाई नहीं थी। परमेश्वर ने उन्हें बढ़कर दिया था!
परमेश्वर के महान वाचा के लोगों को यहोवा किवाचा का सम्मान करते हुए जीवन बिताना था। उन्हें उसे अपने पूरे दिल और आत्मा के साथ प्रेम करना था। उन्हें अपने पूरे तन मन से उसके नियमों का पालन करना था। उन्हें इन बातों को अपने बच्चों को सिखाना था और परमेश्वर कि राहों पर चलना था। अपने सभी कामों के द्वारा उन्हें दिखाना था की उनका यहोवा प्रथम था। उन्हें सोचना था की किस प्रकार वे यहोवा के लिए निरंतर, आभारी प्रेम को दिखा सकते थे। और उन्हें उस देश को जीतने के लिए और अपनी वफ़ादारी के लिए उस पर भरोसा करना होगा।
जब परमेश्वर ने इब्राहिम को एक महान राष्ट्र बनाने का वादा किया था, तो वह वादा हमेशा के लिए था। इब्राहीम को केवल विश्वास करना था। वह विश्वास धार्मिकता में गिना गया था। वह निरुपाधिक था। चाहे कुछ भी हो, चाहे इब्राहिम कुछ भी क्यूँ ना करे, यहोवा अपने वादे को पूरा करने जा रहा था। इब्राहीम को यहोवा पर भरोसा करना था, और अपनी वाचा को पूरा करना यहोवा का काम था।
अब एक नयी वाचा मूसा के माध्यम से दी गयी थी, और वह नियम के साथ थी। परमेश्वर इस वाचा के द्वारा इब्राहीम के वंशज को याजकों का राष्ट्र बनाने जा रहा था। यह परमेश्वर के अब्राहम के साथ उसकी वाचा का एक हिस्सा था। लेकिन यह वाचा उस वाचा से भिन्न थी जो इब्राहीम को दी गयी थी। सब से पहले, यह वाचा शाश्वत नहीं थी। यह हमेशा के लिए नहीं रहने वाला था। यह इतिहास में एक विशेष समय के लिए अस्थायी था। एक और अंतर यह था की, दोनों परमेश्वर और इस्राएल के लोगों को एक काम करना था। इस वाचा में कुछ ऐसी चीज़ें थीं जो यहोवा ने अपने बच्चों के लिए करने का वादा किया था। यदि वे उसकी आज्ञा मानते हैं और उससे प्रेम करते हैं, तो वह उनके देश को आशीष देगा और उनके दुश्मनों से उनकी रक्षा करेगा।
इस्राएल के राष्ट्र को भी कुछ करना था। उन्हें नियमों का पालन करना था। वे यदि नियमों का आदर नहीं करते हैं, तो परमेश्वर उन्हें शाप देगा। यदि वे दस आज्ञाओं को नहीं मानते हैं और मूर्तियों के पीछे जाते हैं, तो वह उन्हें उस देश से बाहर निकाल देगा जिस प्रकार उसने कनानियों को निकाला था।
दुख की बात यह है कि, वास्तव में ऐसा ही हुआ था। जब मूसा इस्राएलियों को उपदेश दे रहा था, वह एक भविष्यवाणी दे रहा था। इस्राएल का राष्ट्र परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने पर हमेशा समस्या में पड़ेगा। जब से आदम और हव्वा ने उस वर्जित फल को खाया था, तब से प्रत्येक मानव के अंदर पाप का रोग आ गया है। भविष्य में कई सैकड़ों वर्ष बाद, इस्राएल यहोवा के विरुद्ध हो जाएगा और मूर्तिपूजा करेगा। सो परमेश्वर इस्राएल के राष्ट्र को नष्ट करने के लिए एक सेना भेजेगा। वह अपने लोगों को एक विदेशी देश में भेज देगा जहां वे अन्य देवताओं कि पूजा करेंगे। केवल कुछ ही इस्राएली इस भयानक अनुभव से बच पाएंगे।
थोड़े से लोग जो परमेश्वर की ओर फिरते थे उन्हें अवशेष कहा जाता था। वे परमेश्वर को अपने पूरे दिल और आत्मा से खोजेंगे, और परमेश्वर उनकी सुनेगा। (आप इसके विषय में दानिय्येल की पुस्तक में पढ़ सकते हैं)। परमेश्वर जानता था कि पश्चाताप करने वाले थोड़े हैं, और वह राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए वादे के देश के लिए उन्हें वापस लाएगा। (आप इसके विषय में एज्रा और नहेमायाह की किताबों में पढ़ सकते हैं)। अब्राहम के साथ बनाई अपनी वाचा के कारण, यहोवा उन्हें वापस वादे के देश में लाएगा। भले ही उन्होंने परमेश्वर से प्रेम नहीं किया हो और उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, यहोवा अपने वादे के अनुसार इब्राहिम को एक याजकों का महान राष्ट्र बनाएगा।
यह सब होने से पहले, मूसा ने एक हज़ार साल पहले ही इस्राएल के लोगों को यह चेतावनी दे दी थी। उसने पूरे इतिहास में, उन्हें स्पष्ट कहानी बताई, ताकि वे पाप किओर ना बढ़ें और पश्चाताप करके यहोवा को अपना जीवन दे दें। जब मूसा ने यह संदेश सुनाया, तो वह जानता था कि यह बहुत महत्वपूर्ण था। इस्राएल का राष्ट्र इसे कई बार पढ़ेगा ताकि वे जान सकें कि वे कैसे परमेश्वर को खोज सकते हैं। और वे जानेंगे की क्या होगा यदि वे ऐसा नहीं करते हैं।
मूसा जब मोआब के मैदानों पर यह महान संदेश को दे रहा था, उसने इस्राएलियों को चेतावनी दी कि वे यह ना सोचें की परमेश्वर ने उन्हें उनकी अपनी धार्मिकता के कारण चुना है। मूसा ने उन्हें याद दिलाया कि कितनी बार उन्होंने यहोवा के विरुद्ध विद्रोह किया था। मरुभूमि में उनके सभी विद्रोहों के बावजूद, परमेश्वर ने उन्हें जंगल में मन्ना प्रदान किया। उनके पास भोजन था। उसने उन्हें कपड़े दिए जो कभी फटे नहीं। इसमें उन्हें विनम्र करने के लिए और उनके दिल को जाँचने के लिए उनकी परीक्षण मरुभूमि में की। वह चाहता था कि वे इस बहुमूल्य सबक को सीखें;
"'... तुम जानो कि केवल रोटी ही ऐसी नहीं है जो लोगों को जीवित रखती है। लोगों का जीवन यहोवा के वचन पर आधारित है।'" (व्यवस्था 8:3 b)।
परमेश्वर कि ओर से सब कुछ अच्छा आता है। मनुष्य कि आशा परमेश्वर पर निर्भर करने की होनी चाहिए।
जितने समय इस्राएली मरुभूमि में फिर रहे थे, वे पापी जीवन जी रहे थे। वे परमेश्वर पर निर्भर नहीं कर रहे थे। क्यूंकि वे परमेश्वर के बच्चे थे, उसने उन्हें एक माता पिता कि तरह उन्हें अनुशासित किया। वे धर्मी नहीं थे, लेकिन उनका परमेश्वर था, और उसकी धार्मिकता उनकी धार्मिकता बन गयी।
परमेश्वर ने उन्हें इसीलिए नहीं चुना था क्यूंकि वे ताकतवर और शक्तिशाली थे। एक राष्ट्र के रूप में, वे वास्तव में कमज़ोर और छोटे थे। परमेश्वर ने इस्राएल को इब्राहीम, इसहाक और याकूब को दिए वादे के कारण चुना था। परमेश्वर सिद्ध और पवित्र है, और वह हमेशा अपने वादे को निभाता है। उसने उन्हें अपने बड़े प्रेम और दया के साथ चुना था। उसने उन्हें कनान के राष्ट्र का न्याय और उनकी भूमि से उनकी दुष्टता दूर करने के लिए चुना था। उसके नियमों का पालन करके और उनकी भूमि को लेने के बाद, इस्राएल ने दिखा दिया की यहोवा के सिवाय और कोई अन्य देवता नहीं था।
इस्राएल के लोगों के लिए यह कितना एक अद्भुत सम्मान था! स्वर्ग और पृथ्वी उसका है! मूसा ने मोआब के मैदानों पर इस्त्राएलियों को बताया की;
"'यहोवा तुम्हारे पूर्वजों से बहुत प्रेम करता था। वह उनसे इतना प्रेम करता था कि उनके वंशज, तुमको, उसने अपने लोग बनाया। उसने किसी अन्य राष्ट्र के स्थान पर तुम्हें चुना और आज भी तुम उसके चुने हुये लोग हो.… क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर है। वह देवताओं का परमेश्वर, और ईश्वरों का ईश्वर है। वह महान परमेश्वर है। वह आश्यर्जनक और शक्तिशाली योद्धा है। यहोवा की दृष्टि में सभी मनुष्य बराबर हैं। यहोवा अपने इरादे को बदलने के लए धन नहीं लेता। वह अनाथ बच्चों की सहायता करता है। वह विधवाओं की सहायता करता है। वह हमारे देश में अजनबियों से भी प्रेम करता है। वह उन्हें भोजन और वस्त्र देता है। इसलिए तुम्हें भी इन अजनबियों से प्रेम करना चाहिए। क्यों? क्योंकि तुम स्वयं भी मिस्र में अजनबी थे। तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर का सम्मान करना चाहिए और केवल उसी की उपासना करनी चाहिए। उसे कभी न छोड़ो। जब तुम वचन दो तो केवल उसके नाम का उपयोग करो। तुम्हें एकमात्र यहोवा की प्रशंसा करनी चाहिए। उसने तुम्हारे लिए महान और आश्चर्यजनक काम किया है। इन कामों को तुमने अपनी आँखों से देखा है।'" (व्यवस्था 10:15,17-21)
परमेश्वर चाहता था कि वे उस पर विश्वास करें और उस पर निर्भर करें। वह दूसरे देशों के देवताओं से कितना भिन्न था। दूसरे देशों के लोग मंदिरों में जाकर पैसे देकर अपने देवताओं को रिश्वत देते थे ताकि वे उनके काम कर सकें। यहोवा रिश्वत नहीं लेता था। जैसा मनुष्य चाहता था की हो, उसे वैसा करने के लिए नहीं पटाया जा सकता था। वह हमेशा और केवल सही काम करता है। उसे दूसरे देवताओं कि तरह शरण या भोजन या पैसे कि ज़रूरत नहीं थी। वास्तव में, यहोवा इतना बड़ा है की मनुष्यों का ध्यान रखता था जिन्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता थी। वह विधवा और अनाथ और विदेशियों का ध्यान रखता था। वह कितना एक महान और प्रेमी परमेश्वर था! वे उसकी आज्ञाओं का पालन करके और उसकी सेवा पूरे दिल और आत्मा के साथ करके उसे प्रेम दिखा सकते थे।
क्यूंकि परमेश्वर पवित्र है, वह चाहता था की उसके लोग भी पवित्र लोग हों, और जिन्हें वह चुनता था, यह उनके लिए उसकी प्रतिज्ञा थी;
"इसलिए याद रखो कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर ही एकमात्र परमेश्वर है, और वही विश्वसनीय है! वह अपनी वाचा को पूरा करता है। वह उन सभी लोगों से प्रेम करता तथा उन पर दया करता है जो उससे प्रेम करते और उसके आदेशों का पालन करते हैं। वह हजारों पीढ़ीयों तक प्रेम और दया करता रहता है। किन्तु यहोवा उन लोगों को दण्ड देता है जो उससे घृणा करते हैं। वह उनको नष्ट करेगा। वह उस व्यक्ति को दण्ड देने में देर नहीं करेगा जो उससे घृणा करता है।"(व्यवस्था 7: 9-10)