पाठ 186: राजाओं और उनके लोगों का सम्मान
न्यायाधीशों को उन्ही के क्षेत्रों के मामले के विषय में निर्णय लेने के लिए नियुक्त किया गया था। दूसरे महत्वपूर्ण समूह जो सही न्याय कर सकते थे वे स्वयं लोग ही थे। एक समूह के रूप में वे तय कर सकते थे यदि किसी ने परमेश्वर के पवित्र नियमों का उल्लंघन किया है। यदि इस्राएल में एक पुरुष या स्त्री चांद या सूरज या सितारों को दंडवत कर के परमेश्वर कि नज़र में बुरा करते हैं, तो यह एक भयानक अपराध होगा। यह यहोवा के साथ बनाई वाचा तोड़ देता है! यदि वे अन्य मूर्तियों के सामने झुकते हैं, तो यह उतना ही बुरा है जितना कि एक पत्नी अपने पति को धोखा देती है। यह विश्वासघात था! यह व्यभिचार था, लेकिन किसी अन्य इंसान के प्रति नहीं। यह परमेश्वर के विरुद्ध था! एक प्रेमी और उदार परमेश्वर के वाचा का उल्लंघन करना कितना अनुचित और भयानक था!
(व्यवस्था 16:18-20)
यदि इस्राएल के लोगों को मालूम हो कि उन के बीच में एक पुरुष या स्त्री अन्य देवताओं कि पूजा कर रहे हैं, तो कुछ करना चाहिए। उन्हें उस भूमि से किसी भी प्रकार की बुराई को दूर करना होगा। लेकिन पहले उन्हें सुनिश्चित करना होगा की यह सच है या नहीं। उन्हें इसका प्रमाण देना होगा, क्यूंकि एक निर्दोष को दण्ड देना एक भयानक बात होगी। कम से कम दो या तीन लोगों को उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ गवाही देनी होगी। उन्हें उस पाप के गवाह होना पड़ेगा, जिसका मतलब है की उन्होंने उस पाप को स्वयं देखा है। यदि दो से अधिक लोग यह घोषित करते हैं की एक अन्य इस्राएली ने अन्य देवताओं को दंडवत किया है, तो उस व्यक्ति को मार दिया जाएगा। लेकिन जो पहला पत्थरवा करता है वही उसका गवाह होगा। जो कुछ भी वे कहते हैं उन्हें उसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेनी होगी। उन्हें उन परिणामों का एक हिस्सा होना पड़ेगा। फिर दूसरे लोग उसके साथ मिल कर पाथरवा करेंगे ताकि समाज से मूर्ति पूजा की बुराई को मिटाया जा सके।
(व्यवस्था 16: 21-17: 7)।
यदि कोई ऐसी बात जो लोगों के लिए न्याय करना मुश्किल है, तो देश में न्याय लाने के लिए परमेश्वर के पास एक और रास्ता था। उन्हें उस समस्या को मंदिर में याजक के पास लेकर जाना था। अब यह कठिन हो सकता है। एक बार इस्राएली उस देश में प्रवेश कर जाते हैं, तो बहुतों के लिए मंदिर दूर हो जाएगा। यह ज़्यादा आसान होगा कि जो न्यायाधीश पास रहते हैं, वे उस मामले को सुलझा लें। लेकिन यदि एक बड़ी समस्या थी और एक अच्छा और सिद्ध निर्णय नहीं लिया जाता है, तो इस्राएल के लोग उन लोगों के पास जा सकते थे जो मंदिर में परमेश्वर कि उपस्थिति में सेवा करते थे। लेकिन परमेश्वर ने यह भी कहा की यदि कोई एक याजक से न्याय प्राप्त करता है, और वह व्यक्ति उस निर्णय का अनादर और अवमानना करता है, तो उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। एक राष्ट्र कि व्यवस्था के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण था कि जिन अगुवों को परमेश्वर ने स्थापित किया है, उनका सम्मान किया जाये।
(व्यवस्था 17: 8-13)।
जब मूसा मोआब के मैदानों पर उपदेश दे रहा था, यहोवा ने लोगों को बताने के लिए कुछ निर्देश उसे दिए। वह जानता था की एक समय आएगा जब उसका देश एक राजा कि मांग करेगा। परमेश्वर जानता था कि वे एक अवश्य मांगेंगे। वह जानता था की वे अन्य देशों कि तरह एक मानव राजा की मांग करेंगे। अब चाहे यहोवा ही उनका राजा था, जिसने उन्हें मिस्र से निकाला था, वह जानता था कि वे एक दिन दूसरे देशों की तरह होना चाहेंगे। परमेश्वर दयालु है। उसके पास अपने कमज़ोर लोगों के लिए एक महान योजना थी। उसने उन्हें चेतावनी दी की, यदि वे एक राजा कि मांग करते हैं, उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि वे उस राजा को चुनें जिसे परमेश्वर ने उनके लिए निर्धारित किया था।
वे दूसरे देश के विदेशी व्यक्ति को राजा होने के लिए नहीं चुन सकते थे। उसे एक इस्राएली होना अनिवार्य था। परमेश्वर ने इस भविष्य राजा को एक दिलचस्प चेतावनी दी। उसने उससे कहा की वह राजा बनने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता था। इतिहास में बहुत से राजा अपने देशवासियों से ज़्यादा समृद्ध थे। परमेश्वर की वाचा के लोगों के राजा को इस प्रकार नहीं जीना था। परमेश्वर ने उसे चेतावनी दी थी कि वह अपने आप को अमीर बनाने के लिए धन इकट्ठा नहीं करेगा। अपने आप को अमीर बनाने के लिए वह घोड़े इकट्ठा नहीं करेगा या मिस्र देश कि तरह दुश्मन देशों के साथ गठजोड़ नहीं बनाएगा। वह बहुत सारी पत्नियां रखने के लिए विवाह नहीं करेगा।
इसके बजाय, वह परमेश्वर के नियमों का पालन करेगा। वह एक पवित्र व्यक्ति बनने कि कोशिश करेगा। जब वह परमेश्वर के लोगों पर शासन करने के लिए अपनी गद्दी संभालेगा, उसे अपने आप को परमेश्वर के तरीकों को सीखने के लिए, उन नियमों को एक पुस्तक में लिखना होगा। एक राजा के रूप में, उसे वाचा की रक्षा करनी होगी, और उसे जानना बहुत महत्वपूर्ण था। परमेश्वर ने आदेश दिया कि इस भविष्य राजा को रोज़ इन नियमों को पढ़ना होगा। इससे वह परमप्रधान परमेश्वर का आदर करना सीखेगा और उसका भय मानेगा। यह उसे इस विचार से बचाएगा कि वह दूसरे इस्राएलियों से बेहतर था जिनकी उसे रक्षा करनी थी। इससे वह नियमों का पालन कर पाएगा और उनमें कायम रह पाएगा।
जब परमेश्वर लोगों द्वारा अधिकार के लिए सम्मान करने को कहता है, तो वह अधिकारीयों से भी यह अपेक्षा रखता है की वे भी उस सम्मान के योग्य रहें जो उन्हें मिलना है। परमेश्वर ने वादा किया कि यदि इस्राएल के राजा ऐसा करते हैं, तो वह उन्हें कई पीढ़ियों तक दूसरे देशों पर राज करने के लिए उन्हें सशक्त करेगा।