पाठ 191: सातवीं आज्ञा-विवाह का सम्मान

सातवीं आज्ञा दिखाती है कि परमेश्वर के लिए विवाह कितना महत्वपूर्ण है। यह बहुत ही सरल है:

"तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए”

व्यभिचार वो है जब एक पति या पत्नी अपने सम्बन्ध को छोड़ किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाय। परमेश्वर के लिए यह एक महान अपराध है। एक विशेष, निजी दुनिया को एक करने के लिए उसने विवाह के इस विशेष रिश्ते को बनाया थ। और कोई इसमें भागीदार नहीं हो सकता था। दुनिया में नए मनुष्य को लाने के लिए परमेश्वर ने विवाह के इस हिस्से को बनाया। नई आत्माएं लाने के लिए उसने एक पति और पत्नी के बीच के इस प्यार को बनाया। यह अद्भुत और सुंदर है, और जिसे परमेश्वर ने एक जीवन साथी होने के लिए दिया उसके साथ विश्वासघात करना परमेश्वर के विरुद्ध एक गंभीर पाप है।

विवाह के बाद पवित्रता को रखना बहुत महत्वपूर्ण था। विवाह से पहले प्रत्येक इस्राएली परमेश्वर का इंतज़ार करता था की वही उसे एक पति या पत्नी को प्रदान करेगा। कौमार्य परमेश्वर के लिए बहुत ही बेशकीमती है। एक दुल्हन के लिए इसे एक दूल्हे को देना उसका बहुत उत्तम उपहार था। यदि विवाह के बाद यह पता चलता है की स्त्री कुमारिनी नहीं है, तो यह एक गंभीर समस्या हो सकती थी। इसका मतलब है कि वह किसी अन्य पुरुष के साथ रही है। यह एक बहुत बड़ा विश्वासघात था। एक लड़का या लड़की की पवित्रता उसके पति या पत्नी के लिए एक उपहार होता था। यह जानना कि वह किससे विवाह करने जा रहे हैं, यह भी बाद के लिए ही रखा जाता था। यदि विवाह से पहले वे अपना कौमार्य किसी और को दे देते हैं, तो यह समय से पहले अपने पति या पत्नी से विश्वासघात करने के समान है। यह एक प्रकार का व्यभिचार है। 

परमेश्वर जानता था कि मनुष्य कितना पापी है और पूरे देश के लिए पवित्रता कितनी शक्तिशाली रूप से महत्वपूर्ण थी। जब इस्राएलियों ने सातवीं आज्ञा का उल्लंघन किया तो उसने समझाया की क्या किया जाना चाहिए। यदि एक पुरष विवाह करता है और जान लेता है कि वह कुंवारी नहीं है, तो वह उसके माता-पिता के पास जाकर उस पर दोष लगा सकता था। यह एक बहुत गंभीर आरोप था। यदि वह सही था, तो उसकी पत्नी को मृत्युदंड देने के लिए पत्थरवाह किया जा सकता था। माता-पिता के पास उनकी बेटी के कौमार्य को साबित करने का मौका होगा। इस्राएल कि एक परंपरा में, जिस चादर पर वह शादी का जोड़ा पहली रात को सोते हैं, उस चादर को दुल्हन के माता-पिता को दिया जाता था। पहली बार जब एक जोड़ा एक साथ आते हैं, तो दुल्हन के आमतौर पर बहुत खून निकलता है। यह इस बात का प्रमाण था कि किसी दूसरे पुरुष के पास कभी नहीं गई। अपनी बेटी के बचाव में, उसके माता पिता उसकी चादर को उन बुज़ुर्गों के पास लाकर दिखाते हैं जो शहरपनाह पर बैठे होते थे, यह प्रमाण देने के लिए कि उनकी बेटी एक कुंवारी थी। 

यदि एक पुरुष गलत साबित होता है और अपनी पत्नी पर झूठा दोष लगाता है केवल इसीलिए की वह उससे शादी नहीं करना चाहता था, तो यह एक भयानक पाप माना जाता। अपनी दुल्हन पर झूठा दोष लगाकर उसे पथराव कराने का जोखिम परमेश्वर के लिए एक महान अपराध था। बुज़ुर्ग उसे दंड देंगे। उसे अपनी पत्नी के पिता को चांदी के सौ शेकेल का भुगतान करना होगा। यह इस्राएल में एक दिन कि मेहनत दस साल के काम के बराबर थी। जब तक वह जीता है वह अपनी पत्नी को तलाक नहीं दे सकता था। एक पुरुष को अपनी पत्नी पर आरोप लगाने से पहले बहुत सावधानी से सोचना होता था। और माता पिता को भी अपनी बेटी को ऐसे व्यक्ति से संरक्षित करना पड़ता था जो शादी से पहले अच्छा माना गया था। उस चादर का रखना, शायद हमारे लिए यह अजीब लग सकता है, एक लड़की के जीवन और मृत्यु का मामला था। परमेश्वर ने निर्दोषों कि रक्षा के लिए एक रास्ता बनाया था। 

कभी कभी एक लड़की इतनी मासूम नहीं हो सकती है। उसे स्वयं अपने शरीर कि रक्षा करनी होती थी। एक लड़की जिसकी सगाई हो चुकी हो, या जिसका विवाह तय हो चूका हो, उसे अपने कौमार्य को उस पुरुष से बचाना होगा जो यदि उसके शहर में आकर उसके साथ सम्बन्ध बनाना चाहता है। यह उसकी ज़िम्मेदारी थी की वह किसी से मदद मांगे। शहर में लोग भरे हुए हैं, और उसकी मदद कि पुकार सुनी जा सकती है। यदि वह ऐसा नहीं करती है, और यह मालूम होता है की उन्होंने एक दूसरे के साथ संबंध बनाया, तो परमेश्वर के आदेश के अनुसार उन दोनों को पत्थरवाह करके मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। लड़की को इसीलिए पत्थरवाह किया गया क्यूंकि उसने मदद नहीं मांगी और उसे रोकने कि कोशिश नहीं की। उस पुरुष को इसीलिए पत्थरवाह किया गया क्यूंकि उसने किसी अन्य पुरुष की पत्नी के कौमार्य को ले लिया। चाहे उसका विवाह अभी तक नहीं हुआ है, उसका कौमार्य भविष्य में एक अन्य पुरुष का था, और परमेश्वर के लिए यह इतना बहुमूल्य था कि वह उसे चारों ओर से सुरक्षा का एक उच्च नियम लगाएगा। जो शहर से दूर रहते थे और ऐसा पाप होता था, तो उनके लिए परमेश्वर ने अलग नियम दिए थे। कोई एक लड़की कि मदद की पुकार नहीं सुन सकता था, और महिलाओं से ज़्यादा ताकतवर पुरुष होते हैं। उस मामले में, एक लड़की के साथ कुछ बुरा नहीं होगा। दूसरी तरफ, पुरुष को पत्थरवाह द्वारा मौत दी जाती थी। यहोवा ने कहा की यह उसकी प्रकार है जब कोई अपने पड़ोसी पर हमला करके उसकी हत्या करता है। लड़की शिकार है, और परमेश्वर कि नज़र में पूरी तरह से निर्दोष है।

यदि एक पुरुष एक कुंवारी को लेता है और उसका बलात्कार करता है, तो उसे उसके पिता को चांदी के पचास शेकेल का भुगतान करना होगा। उसे उससे विवाह करना होगा, और जब तक वह जीवित रहता है उसे वह तलाक नहीं दे सकता था। यह नियम उन सब लड़कियों को संरक्षित करता था जो उन पुरुषों के बुरे व्यवहार से उन्हें नुकसान पहुंचा सकता था। यह उस राष्ट्र को यह भी सिखाता था की परमेश्वर उन लोगों को बहुमूल्य समझता था जो अपनी पवित्रता की रक्षा करना चाहते थे। 

सोचिये इसके द्वारा एक राष्ट्र को कितनी गरिमा और पवित्रता मिलेगी। परमेश्वर चाहता था की उसके लोग अपने विवाह के लिए अपने तन और मन को शुद्ध रखें। इसलिए उसने सुरक्षा के उच्च सीमाएं निर्धारित करने के लिए इन नियमों को दिया। ये उन अनदेखी दीवारों कि तरह थे जो सब के दिल और दिमाग को सही उद्देश्य के लिए सही स्थान में रखने के लिए बनाये गए थे। कुंवरियां जानती थी कि यदि वे निष्पाप रहती हैं, तो शहर के बुज़ुर्ग उनकी रक्षा करेंगे। पुरुषों के पास उन स्त्रियों के प्रति अच्छा करने के सही कारण थे। इस्राएल के इन सच्चे और साफ़ मानकों से उन्हें अन्य राष्ट्रों के अपमानजनक पापों के सामने महान सम्मान मिलता था। परमेश्वर के लोगों के इस लगातार सिद्धता के कारण उसे महान महिमा मिलती थी।