पाठ 176 : # 5 पहली आज्ञा के निहितार्थ
वाचा यदि इस्राएलियों की प्रत्येक पीढ़ी के लिए था, तो उन्हें उसे वास्तव में गहराई से समझना ज़रूरी था। सो मूसा दुबारा से दूसरी पीढ़ी को दस आज्ञाएं सिखाने लगा। यह परमेश्वर की पहली पवित्र आज्ञा है;
''‘मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता की पूजा न करो।''' (व्यवस्था 5:। 7)
यह नियम बताता है किउन्हें क्या नहीं करना है। वे यहोवा से ज़्यादा महत्वपूर्ण और किसी चीज़ को या देवता की पूजा नहीं कर सकते थे। वे और बहुत से अद्भुत कार्य कर सकते थे। मूसा उन्हें और बहुत से तरीके सिखाता है जिससे वे अपने जीवन के हर क्षेत्र में पहला स्थान परमेश्वर को दे सकें। ऐसे बहुत से तरीके थे जिनसे वे दिखा सकते थे कि वही सबसे महत्वपूर्ण और आवश्यक था। परमेश्वर इस्राएलियों को इस प्रकार दिखाना चाहता था कि वही उनके दिल में प्रथम था;
"“इस्राएल के लोगो, ध्यान से सुनो! यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक है! और तुम्हें यहोवा, अपने परमेश्वर से अपने सम्पूर्ण हृदय, आत्मा और शक्ति से प्रेम करना चाहिए। इन आदेशों को सदा याद रखो जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। इनकी शिक्षा अपने बच्चों को देने के लिए सावधान रहो। इन आदेशों के बारे में तुम अपने घर में बैठे और सड़क पर घूमते बातें करो। जब तुम लेटो और जब जागो तब इनके बारे में बातें करो। इन आदेशों को लिखो और मेरे उपदेशों को याद रखने में सहायता के लिए अपने हाथों पर इसे बांधो तथा प्रतीक रूप मे अपने ललाट पर धारण करो। अपने घरों के दरवाजों, खम्भों और फाटकों पर इसे लिखो।"(व्यवस्था 6: 4-9)
नियम उन्हें यहोवा के साथ अपने दिल की निजी वैराग्य में रखने के लिए नहीं दिए गए थे। उन्हें अपने परिवारों और दोस्तों के साथ उन्हें बाटना था! उन्हें प्रभु की भलाई में एक साथ आनन्दित रहना था। उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों का यह सम्मान एक साथ महसूस करना था। जो कुछ भी वे करते थे, उन्हें मिल कर के उसे प्रेम दिखाना है और उसके आज्ञाकारी होना है। यहोवा की उपस्थिति में उनके होठों से निकले शब्द भी शुद्ध और पवित्र होने चाहिए!
परमेश्वर ने मूसा को जो दस आज्ञाएं दीं थीं, उनमें से पहला था;
मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता की पूजा न करो।" (व्यवस्था 5: 7)।
उसने कहा कि उन्हें अपने यहोवा को पूरे तन और मन और धन से प्रेम करना है। बदले में, परमेश्वर ने उन्हें महान, अद्भुत आशीर्वाद देने का वादा किया। उसने वादा किया;
"'यहोवा तुम्हरा परमेश्वर तुम्हें उस देश में ले जाएगा जिसके लिए उसने तुम्हारे पूर्वजों—इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने का वचन दिया था। तब वह तुम्हें बड़े और सम्पन्न नगर देगा जिनहें तुमने नहीं बनाया। यहोवा तुम्हें अच्छी चीजों से भरे घर देगा जिन्हें तुमने वहाँ नहीं रखा। यहोवा तुम्हें कुएँ देगा जिन्हें तुमने नहीं खोदा है। यहोवा तुम्हें अंगूर और जैतून के बाग देगा जिन्हें तुमने नहीं लगाया। तुम्हारे खाने के लिए भरपूर होगा। “किन्तु सावधान रहो। यहोवा को मत भूलो जो तुम्हें मिस्र से लाया, जहाँ तुम दास थे।''' (व्यवस्था 6:10-12)।
परमेश्वर ने समझाया किजब इस्राएली उस भूमि को प्राप्त करेंगे तब यह कितना अद्भुत होगा। वे चालीस साल से मरुभूमि में फिर रहे थे। वे तम्बुओं में रहते थे, और वे हमेशा कूच करते रहते थे। उससे पहले चार सौ वर्षों तक, वे मिस्र की भूमि पर, मिस्र में रह रहे थे। यह विदेशी ज़मीन थी। यह उनकी नहीं थी।
उस दौरान, कनानी राष्ट्र वादे के देश में रह रहे थे। वे बड़े घरों और शहरों का निर्माण कर रहे थे। उन्होंने अंगूर के सुन्दर दाख की बारियां लगाईं जिन्हें विकसित होने में कई साल लग जाते थे। उन्होंने जैतून के पेड़ लगाये जो अब पूरी तरह से बढ़ गए थे और खाने के लिए स्वादिष्ट फल दे रहे थे। गेहूँ और जौ के खेतों को उनकी रोटी बनाने के लिए तैयार किये गए थे। इस्राएलियों ने इस सब के लिए कोई मेहनत नहीं की थी, लेकिन क्यूंकि वे परमेश्वर के चुने हुए राष्ट्र थे, वह उन्हें यह सब देने जा रहा था। अपने स्थायी घर में जाने के लिए इस्राएली लोग कितने उत्साहित हो रहे होंगे। वे अचानक मिलने वाले धन, भव्य भूमि, प्रचुर मात्रा में खेतों, और अच्छे शहरों की आशीषों को पाने जा रहे थे। यह सब उन्हें परमेश्वर के बहुतायत प्रेम के द्वारा मिल रहा था। इसके बदले में वह उनसे केवल उनकी आभारी आज्ञाकारिता और विश्वास को चाहता था।
कनानियों का न्याय
यहोवा इस्राएल के राष्ट्र को यह भूमि एक आशीर्वाद के तौर पर देने जा रहा था। लेकिन वह भूमि खाली नहीं थी। वे इतने साल मिट्टी की ईंटों के घरों और शहरों का निर्माण नहीं करेंगे। उन्हें सड़कों और खेतों को बनाने के लिए ज़मीन को समतल नहीं करना होगा। वे खेती करने के लिए कीमती बीजों की तलाश नहीं करेंगे। कनानियों ने इन बातों का ध्यान चार सौ साल पहले ही करके रखा था। परमेश्वर उन्हें एक परिवर्तित जीवन दे रहा था, और वे महान ख़ज़ाने में प्रवेश कर रहे थे!
मूसा को मालूम था किवे भूल सकते थे। वे इस बात पर सोच सकते हैं की क्या वे इस आशीर्वाद के हकदार थे, या फिर उन्होंने स्वयं कमाया है। सो उसने उन्हें आभारी रहने के लिए चेतावनी दी थी। मूसा जानता था कि वे वादे के देश में पहले से मौजूद कनानी जातियों के देवताओं की उपासना करने के लिए परीक्षा में पड़ सकते हैं। जिस परमेश्वर ने उन्हें बचाया था, वे उसे छोड़ उन मूर्तियों पर भरोसा कर सकते हैं। यह कृतज्ञता के विपरीत है! यह विश्वासघात है! परमेश्वर इस्राएलियों को कनानियों द्वारा बने घर और शहर दे रहा था, लेकिन उसने कानन की वेदियों और मूर्तियों को नष्ट करने की आज्ञा दी। परमेश्वर ने उन्हें कनान के सभी लोगों को नष्ट करने की आज्ञा दी। एक को भी जीवित नहीं छोड़ना था।
यह हमारे लिए भयानक लगता है ना? हजारों लोगों की हत्या करना सिर्फ इसलिए कि इस्राएली उनके देश को हड़प सकें! लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बातों को याद रखना है। ये एक साधारण राष्ट्र के लिए साधारण मानव आदेश नहीं थे। ये आकाश और पृथ्वी के निर्माता के आदेश थे। उसी ने कनानियों को बनाया था और उन्हें जीवन दिया था। केवल वही इतिहास पर अधिकार रखता है।
एक और बात याद रखने की ज़रुरत यह है कि परमेश्वर ने कनानियों को कई महान, स्पष्ट चेतावनी दीं थीं। चार सौ साल पहले, इब्राहीम, इसहाक, और याकूब कनानियों के साथ उनके देश में रह रहे थे। उस क्षेत्र के लोग परमेश्वर के परिवार को पहचानते थे। इब्राहीम ने अपने प्रभु के बारे में उन्हें बताया था। परमेश्वर ने सदोम और अमोरा के विनाश के माध्यम से पूरे क्षेत्र में अनैतिकता के विरुद्ध एक महान महाकाव्य चेतावनी भेजी थी। उन्हें इस्राएलियों के आने से पहले चालीस साल दिए गए थे कि वे अपने आप को तैयार कर सकें। सब जानते थे कि किस प्रकार यहोवा ने उन्हें मिस्र से बाहर निकाला है। सब जानते थे कि मरुभूमि में दो लाख लोग रह रहे थे।
फिर भी कनानी गन्दा, अनैतिक जीवन जी रहे थे। उन्होंने उनके देवताओं से कुछ पाने के लिए उनकी मूर्तियों के आगे अपने बच्चों को बलिदान किया था। कनानी के विरुद्ध परमेश्वर का प्रकोप ऊपर तक भर गया था। उन्होंने सीमा से बहुत बाहर पाप किया था। इस मूर्तिपूजक, जानलेवा समूह पर न्याय लाने के लिए वह इस्राएल के राष्ट्र का उपयोग करने जा रहा था। मूसा ने इस सन्देश का प्रचार किया;
"... तुम उन्हें हराओगे। तुम्हें उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए। उनके साथ कोई सन्धि न करो। उन पर दया न करो। उन लोगों में से किसी के साथ विवाह न करो, और उन राष्ट्रों के किसी व्यक्ति के साथ अपने पुत्र और पुत्रियों का विवाह न करो। क्यों? क्योंकि वे लोग तुम्हें परमेश्वर से दूर ले जायेगें, इसलिये तुम्हारे बच्चे दूसरे देवताओं की सेवा करेंगे और यहोवा तुम पर बहुत क्रोधित होगा। वह शीघ्रता से तुम्हें नष्ट कर देगा। “तुम्हें इन राष्ट्रों के साथ यह करना चाहिएः तुम्हें उनकी वेदियाँ नष्ट करनी चाहिए और विशेष पत्थरों को टुकड़ों मे तोड़ डालना चाहिए। उनके अशेरा स्तम्भों को काट डालो और उनकी मूतिर्यों को जला दो! क्यों? क्योंकि तुम यहोवा के अपने लोग हो। तुम योहवा की निज सम्पत्ति हो। संसार के सभी लोगों में से योहवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें विशेष लोग, ऐसे लोग जो उसके अपने हैं, चुना" (व्यवस्था 7: 2a-6)।
यहोवा के तरीके हमेशा सिद्ध और उचित होते हैं। कभी कभी हम नहीं समझ पाते किवह क्या कर रहा है, लेकिन हम उसकी धार्मिकता पर भरोसा कर सकते हैं।
यहोवा नहीं चाहता था कि इस्राएली उन मूर्तियों के लिए अपने बच्चों का बलिदान चढ़ाएं। वह चाहता कि वे अपने बच्चों को उसके रास्तों पर चलायें। वह चाहता था की वे अपने बच्चों को नियमों की सुंदरता में चलायें, ताकि उनके बच्चे भी एक सिद्ध और सम्पूर्ण जीवन जी सकें। उस भूमि से उन दुष्ट राष्ट्रों को भगाना ज़रूरी था ताकि यहोवा एक नए राष्ट्र की शुरुआत कर सके जो परमेश्वर को अपनी धार्मिकता के द्वारा उसका सम्मान कर सकें। यदि पूरा समाज ऐसी अच्छाई के साथ रहता है, तो यह दुनिया में कितना चमकेगा! हर एक देश कितनी स्पष्टता से परमेश्वर की अच्छाई को देख पाएगा!