पाठ 195: पलायन का विपर्यय - रोग, विनाश, निर्वासन ... दास होने के लिए भी योग्य नहीं

इस्राएल का राष्ट्र फिर से इकट्ठा हुआ। हज़ारों लोगों कि कल्पना कीजिये कि किस प्रकार वे अपने महान अगुवे को खड़े सुन रहे थे। पति, पत्नी, बच्चे, और वे सभी विदेशी जो उनके बीच में रहते थे। मूसा उन्हें वाचा के नियम सुनाता रहा। उसने उन्हें दस आज्ञाओं को याद दिलाया और फिर प्रत्येक आज्ञा का पालन करने के कई तरीके सिखाये। माता-पिता का सम्मान करना राजा और याजकों का सम्मान करने के समान था। परमेश्वर के सामने कोई मूर्तियों का ना होना उससे पूरे दिल, आत्मा, मन, और शक्ति के साथ प्रेम करना था।

जब मूसा ने दस आज्ञाओं पर अपने लंबे उपदेश को समाप्त किया, उसने आशीर्वाद और शाप की घोषणा की। फिर उसने उन्हें एलाब पर्वत और गिरिज्जीम की ढलानों पर उन आशीर्वाद और शाप को दोहराने के लिए कहा। 

मूसा जानता था कि परमेश्वर के लोग वफ़ादार रहने के लिए संघर्ष करेंगे। वह उनके आगे उनकी चुनौतियों को जानता था, सो उसने उन्हें सज़ा कि गंभीरता को उन्हें समझाया जो उन्हें वाचा का सम्मान ना करने पर मिल सकती थीं।  

दुष्टता और परमेश्वर को सम्मान देने के बीच का अंतर रात और दिन कि तरह था, और उनका परिणाम भी। वे अपने पवित्र परमेश्वर के भव्य और शालीन प्रेम का अनुभव कर सकता थे, या फिर वे अपने ऊपर उसके भयानक प्रकोप को ला सकते थे। जिस नाहक आशीर्वाद को परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों को दिया था, वह उसे पलट भी सकता था। मिस्र में, यहोवा गुलामी और मौत से इस्त्राएलियों को अपनी शक्ति द्वारा छुटकारा दिला रहा था। उसने मिस्र में फोड़े भेजे, और उनकी फसलों में टिड्डियां और दिन में अँधेरा कर दिया। यदि वे परमेश्वर के वाचा के साथ धोखा करते हैं, तो वे सारी भयानक चीज़ें इस्राएल के राष्ट्र पर उंडेल दी जाएंगी। परमेश्वर रोगों और अकाल को भेजेगा, बारिश धूल में परिवर्तित हो जाएगी और उनके पालतू जानवर मर जाएंगे। 

परमेश्वर वादे के देश के आशीर्वाद को भी पलट देगा। वह उन्हें पहले से वो शहर दे रहा था जहां पहले से ही शहर बसे हुए थे और खेत तैयार थे। वह उन्हें देश को जीतने के लिए शक्ति देगा। उसने दुश्मन को और युद्ध कि भयावहता को उनसे दूर रखने का वादा किया। लेकिन यदि वे परमेश्वर कि वाचा को नहीं रखते हैं, तो वह आशीर्वाद को पूर्ववत करेगा। उनके शत्रु उन पर आक्रमण करेंगे और उनकी महिलाओं और बच्चों को बंदी बना दिया जाएगा। उनके पशुओं को विदेशियों द्वारा मार डाला जाएगा और बिना भुगतान किये उन्हें अपनी ही ज़मीन पर काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा।

परमेश्वर उन्हें एक महान राष्ट्र के निर्माण के लिए एक भूमि दे रहा था, लेकिन यदि वे वाचा का पालन नहीं करते हैं, तो वह वो भी उनसे ले लेगा। वह अपने लोगों को और उनके राजा को दूर भेज देगा। इसके बजाय कि वे सबसे ऊंचा और सबसे सम्मानित राष्ट्र हों, विदेशी राष्ट्र इस्राएलियों के ऊपर चढ़ाई करेंगे। इस्राएली दुनिया की आँखों में नीचे गिरते जाएंगे। 

परमेश्वर ने कहा कि भविष्य में उनके अविश्वास के कारण, वह एक भयंकर और शक्तिशाली राष्ट्र इस्राएल पर हमला करने के लिए भेजेगा। परमेश्वर उन्हें मजबूत, फलते-फूलते शहरों के साथ उन्हें आशीषित करना चाहता था, लेकिन यहोवा के प्रति उनकी निष्ठाहीनता के कारण, वह उनके शहरों कि पराक्रमी दीवारों को गिराने के लिए इस देश को भेजेगा ताकि वे घेराबंदी कर सकें। कई दिनों तक इस्राएली दीवारों के पीछे उस महान सेना के कारण छुपेंगे। वे उस शहर के भोजन को तब तक खाते रहेंगे जब तक कुछ नहीं बचता। जब कुछ खाने के लिए नहीं बचेगा तब उनकी भूख बढ़ेगी। तब माता और पिता इतने मजबूर हो जाएंगे की वे अपने ही बच्चों को खाने लगेंगे। जिन कीमती बच्चों को परमेश्वर अपने याजक राष्ट्र के रूप में बनाना चाहता था, वे उनके भयानक, घृणित पाप का एक स्रोत बन जाएंगे।

उनके प्रति अपने महान प्यार में, परमेश्वर ने इस्राएल को आकाश में जितने तारे हैं उतना उन्हें महान बनाने का वादा किया था। लेकिन यदि वे नियमों का सम्मान नहीं करते हैं, और अन्य देशों कि तरह बुराई और पाप का एक राष्ट्र बन जाते हैं, तो परमेश्वर उन्हें नष्ट करेगा। वह भूमि से उन्हें तितर बितर करेगा। वे दुनिया भर में अलग-अलग स्थानों में बिखर जाएंगे जहां वे उनकी भाषा नहीं बोलते होंगे। वे हमेशा डरेंगे और उनकी हालत बुरी हो जाएगी। वे कभी सुरक्षित या खुश महसूस नहीं करेंगे, और कहीं आराम नहीं मिलेगा। वे वापस गुलामी में अपने आप को बेचना चाहेंगे, लेकिन उनकी हालत इतनी निराशाजनक होगी की कोई उन्हें नहीं लेगा। परमेश्वर ने अपने पराक्रम हाथों से जितना उन्हें मिस्र से बचाया था, वह उतना ही विपरीत हो जाएगा। 

वाह। यह कितना एक लुभावनी और डरावना उपदेश है! जब मूसा उन वाचा के वादों को दोहरा रहा था, वह उन्हें स्मरण दिला रहा था कि दांव पर क्या लगा था। यह वाचा सर्वश्रष्ठ परमेश्वर, जिसने सारी सृष्टि बनाई, और एक राष्ट्र के बीच एक प्रतिबद्धता था कि वे एक दूसरे के प्यार में समर्पित रहें। यह एक उच्चतम विशेषाधिकार था, और यह खतरनाक था! उस परमेश्वर का इंकार करना जिसने उन्हें अपना कहा, उसके प्रति यह एक भीषण पाप था। अंतर किसी एक छोटी सी अच्छी बात और बुरी बात के बीच नहीं था। अंतर जीवन और मृत्यु के बीच था!

कुछ मायनों में, यहोवा अपने लोगों के साथ जो वाचा बना रहा था वह बहुत कुछ विवाह के वाचा कि तरह था। जब एक दूल्हे और दुल्हन की शादी होती है, उनका एक दूसरे से ये वादे करना की वे एक दूसरे को प्यार करते रहेंगे और एक दूसरे की देखभाल करेंगे, बहुत महत्वपूर्ण है। अपने जीवन भर वे इस विशेष और पवित्र वादे को संजोग सकते हैं। लेकिन यदि उनमें से कोई एक फैसला करता है की वह इन वादों को नहीं निभाएगा, तो उस वाचा का कोई मूल्य नहीं रह जाता। यदि एक पति क्रूर बन जाता है या पत्नी किसी दूसरे पुरुष के पास चली जाती है, तो वे वादे विफल हो जाएंगे। परमेश्वर के साथ वाचा में, इस्राएल को कभी इस बात की चिंता नहीं करनी थी की यहोवा उन्हें नाकाम करेगा। वे उसके प्रेम और सामर्थ के लिए उस पर पूरा भरोसा कर सकते थे। वह उन्हें कभी नहीं छोड़ेगा और ना त्यागेगा। लेकिन यदि इस्राएल यहोवा को छोड़ देता है, और वे अन्य देवताओं के पीछे जाते हैं और उसके पवित्र नियमों का पालन नहीं करते हैं, तो वाचा का कोई मूल्य नहीं था। वे बदगुमान थे।