पाठ 190: छठी आज्ञा-जीवन का सम्मान
एक इस्राएल के जीवन का सम्मान तब तक महत्वपूर्ण नहीं था जब तक वह जीवित रहता है। वह उनके मरने के बाद भी महत्वपूर्ण था! यदि एक व्यक्ति मृत पाया गया है, और यह स्पष्ट होता है की उसकी हत्या की गई है, तो यह एक भयानक बात थी। यदि इसका कोई न्याय नहीं किया जाता है तो यह उनके लिए अनादर की बात होती, लेकिन कभी कभी एक हत्या का समाधान करना असंभव होता है। फिर भी एक निर्दोष के खून का प्रायश्चित परमेश्वर के लोगों के बीच से होना चाहिए। सो यहोवा ने अपने लोगों को ऐसा करने के लिए एक रास्ता दिखाया। यदि किसी की हत्या किसी क्षेत्र या जंगल में कर दी गयी है, तो आसपास के शहरों के बुज़ुर्ग और याजक तय करेंगे की वह मृत शरीर कौन से क्षेत्र के पास था। तब वे उस मृत शरीर को पास की नदी में ले जाएंगे जिसे कोई अपनी खेती के लिए इस्तेमाल नहीं कर रहा था। जिस शहर के पास वह शरीर पाया गया, वहां के बुज़ुर्ग एक गाय को उस नदी के पास लेजा कर प्रयाश्चित के लिए उसकी गर्दन को तोड़ कर उसे प्रायश्चित की भेंट के रूप में चढ़ाएंगे। परमेश्वर की वाचा के लोगों के बीच एक महान पाप के लिए यह एक पश्चाताप था। प्रत्येक इस्राएली का मूल्य इतना बड़ा था की उनमें से किसी एक कि भी मृत्यु को अनदेखा नहीं किया जा सकता था।
गाय का बलिदान करने के बाद, याजक यहोवा से उस परिस्थिति के लिए प्रार्थना करेंगे। शहर के बुज़ुर्ग फिर से आकर उस गाय के ऊपर अपने हाथों को धोएंगे। यहोवा ने आदेश दिया कि यह घोषणा करें:
''‘हमने इस व्यक्ति को नहीं मारा और हमने इसका मारा जाना नहीं देखा। यहोवा, इस्राएल के लोगों को क्षमा कर, जिनका तूने उद्धार किया है। अपने लोगों में से किसी निर्दोष व्यक्ति को दोषी न ठहराने दे।’ तब वे हत्या के लिये दोषी नहीं ठहराए जाएंगे।'" (व्यवस्था 21:7b-8)
यदि लोग परमेश्वर कि आज्ञाओं को सावधानी से सम्मानित करते हैं, तो उनके अपराध का प्रायश्चित हो जाएगा। उस व्यक्ति की बेगुनाही और उसका छोटा जीवन उस क्षेत्र के सम्मानित लोगों द्वारा घोषित किया जाएगा। परमेश्वर के लिए यह सब अच्छा और सम्मानित था, और वह इससे प्रसन्न होता है।
यहोवा ने उनके जीवन कि भी रक्षा कि जिन्हें इस्राएली युद्ध में बंदी बनाकर ले आये थे। यदि एक इस्राएली सैनिक युद्ध से लाये बंदियों में से एक खूबसूरत स्त्री को देखता है, तो वह उसे घर लाकर उसे अपनी पत्नी बना सकता है। वह उसकी गुलाम नहीं थी, उसे उससे विवाह करके सम्मान मिला और जीवन भर उसके साथ जीवन बिताने का चुनाव किया। वह उसके साथ तुरंत विवाह नहीं कर सकता था। उसे उसको समय देना था। वह उसके बाल काटेगा, नए वस्त्र देगा और उसके नाखून काटेगा। उसे एक पूरा महीना दिया जाएगा ताकि वह अपने जीवन के इस महान परिवर्तन और अपने माता पिता की जुदाई का शोक कर सके। उसके बाद, वह सैनिक उस स्त्री के पास आ सकता था और उसे अपनी पत्नी बना सकता था। यदि वह निर्णय लेता है की वह उसे अपनी पत्नी नहीं बनाएगा, तो वह उसका अनादर नहीं कर सकता था। वह उसे जाने देगा, लेकिन उसे ग़ुलाम नहीं बना सकता था। इस्राएल की सेनाओं को दुनिया के अन्य सभी देशों से कितना भिन्न होकर रहना था। अन्य देशों कि सेनाएं महिलाओं के साथ बहुत क्रूरता के साथ व्यवहार करते थे, और उनके जीवन का कोई मूल्य नहीं रहता था। लेकिन यहोवा एक दयालु परमेश्वर है, वह कमज़ोरों की रक्षा करता है। वह उन पर क्रोधित होता है जो निर्दोष पर अत्याचार करते हैं।
मूसा के दिनों में, एक से अधिक पत्नी रखना एक आम बात थी। परमेश्वर कि योजना एक पुरुष के लिए केवल एक ही पत्नी कि थी। जब वह एक से अधिक स्त्री रखता है, तो विशेष रूप से बच्चों के लिए समस्याएं पैदा हो जाती हैं। उन दिनों में, एक परिवार की विरासत एक बहुत ही खास तरीके से बच्चों को पारित कर दी जाती थीं। सभी पुत्रों को उनके पिता के मरने के बाद उनकी संपत्ति का एक हिस्सा प्राप्त होता था। लेकिन सबसे बड़े पुत्र को अन्य भाइयों से दुगना प्राप्त होता था। उसके ऊपर पूरे परिवार कि बड़ी जिम्मेदारी भी थी। उसे अपने बच्चों और सभी भाई बहनों के बच्चों कि देखभाल करनी थी। उसे यह सुनिश्चित करना था कि सब की शादी ठीक से हो। उसे उनके बच्चों की भी देखभाल करनी थी। उसे अधिक उत्तराधिकार प्राप्त था, लेकिन उसे अधिक काम भी मिलता था। एक परिवार में पहलौठा होना एक सम्मान कि बात थी।
क्या यदि एक पुरुष दो स्त्रियों से शादी करता है, लेकिन केवल एक ही से प्यार करता है? क्या हो यदि जिससे वह प्रेम नहीं करता है उसके पहलौठा पुत्र है? क्या यदि जिससे वह प्रेम करता है वो चाहे की सारा धन और सम्मान उसके पहलौठे पुत्र को मिले? ऐसे में वह व्यक्ति क्या करेगा? मूसा ने उसके लिए यह आसान बना दिया। उसने इस्राएल के राष्ट्र को बताया की यहोवा ने क्या आज्ञा दी थी। एक व्यक्ति एक पहलौठे पुत्र के होने को नहीं बदल सकता था। इसे केवल परमेश्वर ही ठहराता है, जो यह तय करता है कि किस व्यक्ति को कब पैदा होना है। इंसान को परमेश्वर के समय का सम्मान करना चाहिए और उस बच्चे का आदर करना चाहिए जो पहलौठा है, चाहे उसकी माँ कोई भी हो।