पाठ 106 : अंतिम आज्ञाएं
अंतिम तीन आज्ञाएं यह सिखाती हैं की परमेश्वर के लोगों का व्यवहार एक दूसरे के साथ कैसा होना चाहिए। सांतवी आज्ञा बताती है कि परमेश्वर चाहता था की विवाह कि वाचा की पवित्रता और अच्छाई का सम्मान हो।
सांतवी आज्ञा: "'तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए'"
यह आज्ञा परमेश्वर के लोगों के विवाह की रक्षा के लिए है। परमेश्वर ने शुरू से मानवजाति को एक बहुत ही विशेष और अनमोल रिश्ते के लिए तैयार किया था। यह एक पुरुष और स्त्री के बीच का रिश्ता था जो कि परमेश्वर ने उनके लिए बनाया था। वे एक आत्मा हो जाते हैं और उनके जीवन एक साथ बन जाते हैं। दोनों के बीच का यह रिश्ता इतना विशेष है कि और कोई इसे नहीं बाट सकता। यह एक गहरे विश्वास की जगह है। और परमेश्वर कुछ अद्भुत करने के लिए उनका उपयोग करता है। वे नई ज़िन्दगी को बनाते हैं। पति और पत्नी के अद्भुत, आवेशपूर्ण प्यार के द्वारा नए मनुष्य पैदा होते हैं।
एक स्त्री के लिए यह एक भयानक बात है कि वह इस प्रेम को उस व्यक्ति के साथ बाटती है जिससे उसका विवाह नहीं हुआ है। यह व्यभिचार कहलाता है। यह एक पुरुष के लिए बहुत शर्मनाक बात है की वह उस प्रेम को जो परमेश्वर ने उसे अपनी पत्नी के साथ बाटने को दिया था वह किसी अन्य महिला को देता है। यह विवाह के उस वाचा को तोड़ देता है जिसे पवित्र और शुद्ध होना चाहिए था। यह वाचा केवल एक पति और पत्नी के बीच नहीं है, यह परमेश्वर और पति और परमेश्वर और पत्नी के बीच है। यह परमेश्वर की आत्मा के साथ के रिश्ते को तोड़ मड़ोड़ देता है। यह एक बहुत ही गंभीर उल्लंघन है, और यह परमेश्वर को अपमानित करता है। यहोवा ने इस्राएल के सभी परिवारों के लिए विवाह किसुंदरता कि रक्षा के लिए इस सशक्त आज्ञा को दिया।
आठवीं आज्ञा: "'तुम्हें चोरी नहीं करनी चाहिए”'
परमेश्वर सब कुछ देखता है और मनुष्य के व्यवहार को समझता है कि वह एक दूसरे के साथ किस प्रकार सम्मान और प्रेम दिखाता है। जो लोग एक साथ रहते हैं और काम करते हैं, उनके लिए चोरी और धोखाधड़ी करना एक भयानक पाप है। यह परमेश्वर के प्रति महान अनादर को दिखाता है, क्यूंकि यह ऐसे दिखता है मानो वह हर पाप को नहीं देख सकता है। और जिस व्यक्ति से चुराया गया है उसका भी अनादर होता है।
सब कुछ परमेश्वर के संप्रभु नियंत्रण में है। उसने प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मिलने वाली चीजों को तैयार किया है। वे उन बातों के स्वयं ज़िम्मेदार हैं और उनका ध्यान भी रखना है। यह उनकी परमेश्वर के प्रति ज़िम्मेदारी है। परमेश्वर ने उन चीज़ों को दिया ताकि आज्ञाकारिता में होके वे उनका उपयोग इच्छानुसार कर सकें। जो चीज़ परमेश्वर ने दी है उसका दुरूपयोग करना ना केवल उस व्यक्ति के प्रति अपमान है जिसे उसके द्वारा धोखा दिया जा रहा है, परन्तु परमेश्वर के विरुद्ध भी है। उन्होंने परमेश्वर के दास को भी लूटा जो इच्छा पूरी करने के लिए वह सेवक था।
नौंवी आज्ञा: "'तुम्हें अपने पड़ोसियों के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए।'”
परमेश्वर कि यह आज्ञा थी की उसके लोग सच बोलें। चाहे वे अमीर हों या गरीब, उन्हें किसी भी कारण से अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठ नहीं बोलना था। यदि कोई निर्दोष है तो परमेश्वर अपनी आज्ञा के अनुसार उसकी रक्षा करेगा अगर उस पर उस गलत काम के लिए आरोप लगाया जाता है जो उसने नहीं किया है। चाहे वे सबसे गरीब हों, या स्वयं मूसा ही हो, उनके काम की सच्चाई ही मायने रखता था। एक बड़ी शख्सियत होना कोई मायने नहीं रखता यदि एक बुरा काम किया गया है। और चाहे एक इस्राएली कितना भी गरीब हो, यदि वह परमेश्वर की इच्छा पर चलता है तो वह संरक्षित किया जाता था। इस्राएल के लोगों को ध्यान रखना था की अदालत में, एक दूसरे के बारे में उन्हें सच बोलना था। कभी कभी यह जानना मुश्किल होता था किकोई झूठ बोल रहा है, परन्तु परमेश्वर जानता है। प्रत्येक इस्राएली जानता था कियदि कोई उनके विरुद्ध झूठ बोल रहा था, तो यहोवा उनके पक्ष में था।
दसवीँ आज्ञा: "'दूसरे लोगों की चीज़ों को लेने की इच्छा तुम्हें नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने पड़ोसी का घर, उसकी पत्नी, उसके सेवक और सेविकाओं, उसकी गायों, उसके गधों को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। तुम्हें किसी की भी चीज़ को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।”'
लालच वह होता है जब आप उस चीज़ को पाना चाहते हैं जो परमेश्वर ने किसी दूसरे को दी हो। परमेश्वर नहीं चाहता था कि उसके लोग एक दूसरे से जलें या लालच करें। परमेश्वर चाहता था कि उसके लोग उसके समान बनें।
परमेश्वर चाहता था किउसके लोग दिल की गहराई से उसकी छवि को प्रतिबिंबित करें। वह उन्हें उन सारी बातों से बचाना चाहता था जो प्रत्येक के हृदय में छिपी होती हैं, जहां कोई देख नहीं सकता था। वह चाहता था की वे अपने विचारों को परमेश्वर की आज्ञाकारिता में दे दें जो एक सच्चा प्रेम है। किसी भी क्षण उन्हें किसी दूसरे की वस्तु के लिए लालच हो, उन्हें आज्ञाकारिता में परमेश्वर को उस इच्छा को समर्पण कर देना है। यदि वे परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन पूरे दिल की गहराई से करते हैं, तो बाहरी कामों को करने में उन्हें कोई समस्या नहीं आएगी। किसी भी परीक्षा में पड़ने वाले पाप में नहीं गिर पाएंगे!
जिस राष्ट्र को परमेश्वर बनाना चाहता था, उसे वह हत्या करने से, व्यभिचार से प्रत्येक विवाह को संरक्षित करना, और किसी की भी संपत्ति को चोरी होने से संरक्षित करना चाहता था। वह प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को झूठ से संरक्षित करना चाहता था। और वह चाहता था कि प्रत्येक इस्राएली और अन्य कोई भी जो उनके प्रति ग़लत इरादा रखता हो, पवित्र रहे।
ऐसे देश कि कल्पना कीजिये जहां सब इन आज्ञाओं का पालन करते हों। ऐसे स्थान की कल्पना कीजिये जहां सब एक दूसरे की रक्षा और उनको सम्मानित करते हों! यह बहुत कुछ स्वर्ग कि तरह होगा! परमेश्वर अपने लोगों को सिखाना चाहता था कि वे वैसी प्रजा बनें जैसी उसने अदन कि वाटिका में उन मनुष्यों को बनाया था। यदि वे इस दिव्य राजा के वाचा के प्रति आज्ञाकारी होते हैं, तो वे पूरी दुनिया को उसकी महिमा को प्रतिबिंबित कर पाएंगे!