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पाठ 132 : भाग 2

परमेश्वर ने हारून के बाकि के परिवार वालों को शोक मनाने दिया, ताकि वे इन दो पुरुषों को सम्मान दे सकें जिन्होंने ऐसे उच्च क्षण में ऐसी घातक ग़लती की। उन्होंने गंभीरता से उस पवित्र क्षण को नहीं लिया था, और परमेश्वर के वचन की अवहेलना की थी।

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पाठ 134 : शुद्ध और अशुद्ध भाग 2: चर्म रोग और फफूंदी

परमेश्वर शुद्ध और अशुद्ध के विषय में अपने लोगों को और नियम देना चाहता था। उनमें से कुछ चर्म रोग के बारे में थे। त्वचा पर कुछ चमकते और धब्बे खतरनाक थे, और कुछ हानिरहित थे। परमेश्वर ने उनमें अंतर करना लोगों को सिखाया था।

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पाठ 139 : पवित्रता का नियमसंग्रह

प्रायश्चित के दिन के जो निर्देश परमेश्वर ने महायाजक को दिए थे, उन्हें तब तक जारी रखना था जब तक इस्राएल एक राष्ट्र था। यह पवित्र दिन अति पवित्र को इस्राएलियों के पापों से हर साल शुद्ध करता था। परमेश्वर ने जो बलिदान दिए थे वे उन्हें शुद्ध करने के लिए थे क्यूंकि परमेश्वर जानता था किवे पूरी पवित्रता में नहीं रह सकेंगे।

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पाठ 146 : विवाह के संकल्प की पवित्रता में रहना - राहेल का दु: ख और जीत भाग 1

गिनती 5 में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को अपने लोगों के बीच विवाह की पवित्रता की रक्षा के लिए एक आदेश दिया था। इतने सारे लोगों के एक बड़े राष्ट्र में, समस्याओं का होना बाध्य था। विवाह को अलग करने वाली पवित्र दिवार जो प्रत्येक पति और पत्नी को एक दूसरे के प्रति समर्पित रहने के लिए मज़बूत करती है, वह बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकती है।

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पाठ 150

जब से फिरौन ने इस्राएलियों को जाने दिया था तब से एक साल बीत गया था। उसने अपना पुत्र खो दिया था क्यूंकि उसने अपने दिल को पराक्रमी परमेश्वर की इच्छा के खिलाफ कठोर कर लिया था। लेकिन परमेश्वर ने इस्राएलियों के बेटों को बख्शा।

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पाठ 151 : सत्तर अगुवे, आत्मा, और बटेर

इस्राएलियों का एक समूह उस मन्ना की जगह, जो परमेश्वर इतने चमत्कारी ढंग से उन्हें प्रदान कर रहा था, अन्य चीज़ों की इच्छा करने लगे। उनकी शिकायतें अन्य इस्त्राएलियों में फैलने लगी, और बहुत जल्द वे ये बातें कहने लगे;

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पाठ 153 : भूमि का पुरुषों द्वारा सन्वेषण करना

इस्राएल का राष्ट्र पारान मरुभूमि में डेरा डाले हुए था। उन्होंने सीनै से वादे के देश कूच किया था। बाकी दुनिया के लिए, वह कनान कहलाता था। जो लोग वहां पहले से रहते थे वे कनानी कहलाये जाते थे। वे क्या सोच रहे होंगे जब उन्हें यह मालूम हुआ होगा की दो लाख इस्राएली उनके देश के किनारों पर डेरा डाले हुए थे? समय नज़दीक आ रहा था।

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पाठ 154 : मूसा, एक अद्भुतमध्यस्थ

पूरा इस्राएल का डेरा अराजकता कि स्थिति में था। यह सुनकर किकनान देश में पहले से ही महान राष्ट्र रहते हैं, वे भयभीत हो गए, और इस्राएली पूर्ण रूप से विद्रोही होने लगे थे। वे परमप्रधान परमेश्वर किभलाई के विरुद्ध अपराधी बनने जा रहे थे।

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पाठ 156 : कोरह का विद्रोह भाग 1

मानव जाति बहुत पापी है। एक उच्च और पवित्र परमेश्वर है जो आशीर्वाद देना चाहता है, और फिर भी जिस मनुष्य को उसने बनाया वह अपने ऊपर शाप लाता रहा। यहां तक की जिस राष्ट्र पर परमेश्वर ने अपने कीमती वादे बाध्य किये थे, वे भी पाप और विद्रोहकिही समस्या में पड़े हुए थे।

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पाठ 157 : कोरह का विद्रोह भाग 2

मूसा ने कोरह और उसके साथ के लोगों को उनकी धूपदानी को लेकर मंदिर में आने को कहा। वे स्वयं परमेश्वर से जान जाएंगे किकौन इस्राएल का महायाजक होने के लिए बुलाया गया था।

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पाठ 169 : एक स्त्री का महत्व

जिस समय इस्राएली एक समुदाय के रूप में एक साथ रह रहे थे, उनके पास उलझन में डालने वाले नए मामले अदालत में आ रहे थे। न्यायाधीश के लिए सही बात करना कठिन होगा क्यूंकि कानून सही उत्तर नहीं दे पाएगा।

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व्यवस्थाविवरण: वाचा नवीकरण की पुस्तक - मोआब के मैदानों में मूसा और उसके लोग

यहोवा जो इस्राएल का महान राजा है, अपने लोगों का उसने मोआब के मैदानों के लिए नेतृत्व किया। वे वादे के देश की सीमा पर पहुंच गए थे। वे अपनी आँखों से देख सकते थे। यरदन नदी के सामने इस्राएल का डेरा था। नदी के उस पार पहाड़ियों के साथ खुली, सूखी ज़मीन थी।

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पाठ 175 : # 4 दस आज्ञाएं

सीनै पर्वत पर परमेश्वर किआवाज़ को सुनना इस्राएल के लोगों के लिए एक महान पल था। इतिहास में किसी भी देश ने कभी भी परमेश्वर के साथ इस तरह से सामना नहीं किया होगा।यह इसीलिए था क्यूंकि इस्राएल को इतिहास में एक बहुत ही खास भूमिका के लिए चुना गया था।

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पाठ 176 : # 5 पहली आज्ञा के निहितार्थ

वाचा यदि इस्राएलियों की प्रत्येक पीढ़ी के लिए था, तो उन्हें उसे वास्तव में गहराई से समझना ज़रूरी था। सो मूसा दुबारा से दूसरी पीढ़ी को दस आज्ञाएं सिखाने लगा।

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पाठ 177 : # 6 पहली आज्ञा के निहितार्थ

पहला नियम जो यहोवा ने अपने लोगों को दिया वह था की, "तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।" इसका मतलब था की इस्राएली किसी और झूठे देवता किमूर्तियों की पूजा नहीं कर सकते थे। इसका मतलब यह भी था की उन्हें उस भूमि को उन मूर्तिपूजक राष्ट्रों से साफ़ करना था जो सैकड़ों वर्षों से वहां रह रहे थे।

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पाठ 181 : #10 मूसा का चौथी आज्ञा की अतिरिक्त टिप्पणियाँ

जब परमेश्वर ने हर सप्ताह के सातवें दिन सब्त के दिन को मनाने की आज्ञा दी, उसने कहा की वह चाहता था की उसके लोग इसका सम्मान करके उसके प्रति अपनी वफ़ादारी को दिखाएँ।

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पाठ 189: छठी आज्ञा-युद्ध के दौरान जीवन का सम्मान

छठे आज्ञा में, यहोवा ने लोगों को हत्या ना करने कि आज्ञा दी। जब एक व्यक्ति किसी दूसरे की जान लेता है तो वह हत्या कहलाता है। यदि इस्राएली किसी को बिना उद्देश्य मारते हैं, तो फिर कैसे वे युद्ध में जा सकते थे? वादे के देश में जाकर कैसे वे कनानियों के विरुद्ध युद्ध करेंगे?

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पाठ 190: छठी आज्ञा-जीवन का सम्मान

एक इस्राएल के जीवन का सम्मान तब तक महत्वपूर्ण नहीं था जब तक वह जीवित रहता है। वह उनके मरने के बाद भी महत्वपूर्ण था! यदि एक व्यक्ति मृत पाया गया है, और यह स्पष्ट होता है की उसकी हत्या की गई है, तो यह एक भयानक बात थी। यदि इसका कोई न्याय नहीं किया जाता है तो यह उनके लिए अनादर की बात होती, लेकिन कभी कभी एक हत्या का समाधान करना असंभव होता है।

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पाठ 191: सातवीं आज्ञा-विवाह का सम्मान

सातवीं आज्ञा दिखाती है कि परमेश्वर के लिए विवाह कितना महत्वपूर्ण है। यह बहुत ही सरल है:

"तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए”

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