पाठ 188: छठी आज्ञा-जीवन का सम्मान
मूसा जब अपने लोगों से बात कर रहा था, वह सभी मानव जीवन के मूल्य के बारे में उनसे बात कर रहा था। छठी आज्ञा यह है:
"तुम्हें किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करनी चाहिए”
दूसरे शब्दों में, सभी इस्राएलियों को दूसरों के जीवन का सम्मान और रक्षा करनी थी। फिर भी हम पढ़ते हैं की यहोवा ने आदेश दिया था की जो भी मूर्तिपूजा करता है या अपनी पत्नी या पति से धोखा करता है, उसे मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए। यह हत्या क्यूँ नहीं थी? मूसा ने समझाया कि किस प्रकार इस्राएल के लोगों को उन लोगों के जीवन का सम्मान करना है जिन्हें परमेश्वर दुनिया में लाया।
मूसा ने परमेश्वर कि एक नई, विशेष आज्ञा को समझाया। जब परमेश्वर ने इस्राएलियों को भूमि में जीत दिलाई, तो उन्हें तीन बहुत विशेष शहरों का निर्माण करना था। उन्हें शरण का शहर कहा जाता था। जनजातियों को इन शहरों के यातायात के लिए अच्छे और ठोस सड़कें बनानी थीं। इन सड़कों को बनाने का कारण परमेश्वर के अद्भुत कामों का दिखाना था। वे उसकी महान दया और करुणा को दिखाते हैं जो वह दोषी और भयभीत लोगों को दिखाता है।
शरण के शहर ऐसे स्थान थे जहां वो व्यक्ति भाग कर जा सकता था जिसने खून किया हो। कभी कभी लोग एक दूसरे से इतनी नफ़रत करते थे कि वे द्वेष के कारण एक दूसरे का खून कर देते थे। लेकिन यह एक खतरनाक दुनिया है। कभी कभी दुघटनाएं भी हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने एक व्यक्ति के बारे में कहानी सुनाई कि वह अपने दोस्त के साथ जंगल में चला गया। वे पेड़ों को काटने जा रहे थे। जब वह व्यक्ति पेड़ के तने में अपनी भारी कुल्हाड़ी मारने जा रहा था, तो लोहे कि कुल्हाड़ी उसके कुंडे से अलग हो गयी। वह उड़ कर उसके दोस्त को लग गया। उसकी मौत हो गयी। यह दोनों पुरुषों के लिए कितना भयानक है!
कल्पना कीजिये कि आप घर जाते हैं और लोगों को बताते हैं कि आपने गलती से किसी की जान ले ली है। सोचिये यह आपके जीवन को कैसे बदल के रख देगा। सोचिये जिस व्यक्ति कि आपने जान ले ली है उसका परिवार कितना क्रोधित और दुखी होगा। कोई कैसे जानेगा की आपने यह जान बूझकर किया है या नहीं? यह एक दर्दनाक और कठिन स्थिति है। लेकिन वास्तव में ऐसा जीवन में कभी-कभी होता है। परमेश्वर यह जानता था, और वह इससे छिपा नहीं था। इसके बजाय, उसके पास एक योजना थी।
परमेश्वर जानता था कि जब किसी को मार डाला जाता है, तो उसका परिवार और दोस्त क्रोधित हो जाते हैं। वे हमेशा स्पष्ट रूप से नहीं सोचते हैं, और गुस्से में आकर वे गलतियां करते हैं। वे उस व्यक्ति कि जान लेना चाहेंगे जिसने उनके प्रियजन की जान ली है। तो यह परमेश्वर की योजना थी की वह उस व्यक्ति के लिए एक सुरक्षित जगह प्रदान करे जिसने एक अन्य इस्राएली की जान ले ली है। उसने इस्राएल को आदेश दिया की वह तीन शहरों का निर्माण करे ताकि निर्दोष व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए वहां जा सके। इस तरह, जिस परिवार को चोट पहुंची है या क्रोधित है, वह उस व्यक्ति से बदला नहीं ले पाएगा जो शायद निर्दोष है।
तो भी, यदि कोई जानबूझकर खून करता है, तो उसे मृत्युदंड दिया जाना था। यदि वे शरण के एक शहर में भाग कर जाते हैं, तो उन पर मुकदमा होगा। उनके लिए दो या दो से अधिक लोग उनके अपराध का प्रमाण देखर गवाही देंगे की वे हत्या के दोषी हैं। एक गवाह पर्याप्त नहीं था ... क्या यदि वह व्यक्ति कहानी बना रहा हो? कभी कभी लोग दुष्ट भी होते हैं। वे दूसरे को मुसीबत में डालने के लिए झूठ बोल देते हैं। ऐसे में लोग कैसे जानेंगे की कौन सच बोल रहा है? इसीलिए जो भी दूसरे के लिए झूठी गवाही देता है उसके विरुद्ध ठोस कानून थे। न्यायाधीश इस पर बड़ी सावधानी से विचार करेंगे। वे पूरी तरह से छानबीन करेंगे। यदि उन्हें मालूम होता है की उनमें से एक झूठ बोल रहा है, तो उस व्यक्ति को वही सज़ा भुगतनी होगी जो वह दूसरे पर लाने की कोशिश कर रहा था। एक निर्दोष पर झूठा आरोप लगाना परमेश्वर की नज़र में बहुत बुरा था। यदि एक झूठा अभियोक्ता गंभीर रूप से दंडित किया जाता है, तो वह जान जाएगा की दूसरों ने भी इसके बारे में सुना होगा। दुबारा वही पाप करने के लिए उन्हें डर होगा।
यदि कोई किसी कि हत्या जान बूझकर करता है और दिखाता है कि वह एक दुर्घटना थी, तो उन पर दोष लगाने का उन्हें प्रमाण देना होगा। यदि एक शहर के बुज़ुर्ग समय से पहले उस व्यक्ति की हत्या की योजना बना लेते हैं, तो दुर्भावनापूर्ण कातिल के विरुद्ध उचित न्याय किया जाएगा। उन्हें खून का बदला लेने वाले को सौंप दिया जाएगा और मार दिया जाएगा। परमेश्वर ने कहा;
"'तुम आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर लो।'"
इसका मतलब, यदि कोई जानबूझकर और निर्दयतापूर्वक किसी और कि जान लेता है, तो सज़ा के तौर पर उन्हें मरना होगा। यदि कोई किसी अन्य व्यक्ति कि आंख ले लेता है, तो उसे स्वयं कि आंख देनी होगी। यह कठोर लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह दयालु और सिद्ध था। जितना नुकसान एक व्यक्ति दूसरे के प्रति करता है, उस हिसाब से उसकी सज़ा बहुत सिमित होती है। यदि आप किसी का दांत तोड़ देते हैं तो आपको मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। लेकिन इसके अलावा, यदि कोई आपके परिवार के सदस्य को मार डालता है, तो वह ऐसा जीवन नहीं जी सकता जैसे की उसने कुछ किया ही नहीं है। उन्हें उसी से हाथ धोना होगा जो उन्होंने लिया है।