व्यवस्थाविवरण: वाचा नवीकरण की पुस्तक - मोआब के मैदानों में मूसा और उसके लोग

# 1 व्यवस्था 1-3 सिनाई से मोआब के मैदानों का इतिहास- मूसा के उपदेश  

यहोवा जो इस्राएल का महान राजा है, अपने लोगों का उसने मोआब के मैदानों के लिए नेतृत्व किया। वे वादे के देश की सीमा पर पहुंच गए थे। वे अपनी आँखों से देख सकते थे। यरदन नदी के सामने इस्राएल का डेरा था। नदी के उस पार पहाड़ियों के साथ खुली, सूखी ज़मीन थी। उनके बाईं तरफ़ मृत सागर पर धूप टिमटिमा रही थी। उनके ठीक सामने, वे यरीहो की ऊंची दीवारों को देख सकते थे। 

 

इस्राएल का डेरा बहुत बड़ा था। दो लाख से भी अधिक लोग थे! उनके तम्बू और बच्चों और भेड़ और बकरी और पशुओं के साथ उनकी कल्पना कीजिये। हमेशा कितरह, उस महान राष्ट्र के साथ उनके बीच उनका मंदिर था, जो परमेश्वर किउपस्थिति का विशेष रूप था। उस मंदिर के तम्बू के ऊपर एक बादल था, जो लोगों को यह दिखाता था किउनका परमेश्वर यहोवा हमेशा उनके साथ था। हर दिन प्रत्येक इस्राएली और प्रत्येक परिवार को इस बात का ध्यान करना था किवह यहोवा की उपस्थिति में पवित्रता का जीवन कैसे जिएंगे क्यूंकि परमेश्वर की उपस्थिति उनके साथ थी। वे उन नियमों के विषय में सोच सकते थे जिन्हें यहोवा ने उन्हें सीनै पर्वत पर दिए थे, और उन्हें सोचना होगा की वे उन आज्ञाओं का पालन कैसे करेंगे। 

 

इस्त्राएलियों की आज्ञाकारिता किसी पवित्र और उच्च चीज़ का भाग थे। यह एक राष्ट्र और परमेश्वर के बीच एक वाचा थी। सारी सृष्टि के परमेश्वर ने इन लोगों को वादे के साथ खुद को बाध्य किया था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था! यह वादा सदा के लिए था! यह एक पूर्ण सुरक्षा थी। महान राजा उनके पक्ष में था! और वे महिमा के परमेश्वर के सम्मानित सेवक थे!

 

कानून एक खूबसूरत उपहार था। इससे वे सीख पाये की परमेश्वर को किस प्रकार खुश करना है। उसने उन्हें अपनी प्रजा के रूप में विशेषरूप से चुन लिया था। और इस शानदार उपहार किप्रतिक्रिया एक आभारी आज्ञाकारिता के रूप में ही की जा सकती थी! एक सच्चे चेले का हृदय शुद्ध और पवित्र होना चाहिए था क्यूंकि वे उससे प्यार करते थे, और वह शुद्ध और पवित्र है। उसने उन्हें मिस्र कि ग़ुलामी से अपने उद्धार के हाथों से छुड़ाया था। भक्ति और कृतज्ञता के अलावा बाकि सब मुड़ और गलत था! कानून ने उन्हें उसके साथ एक करीबी रिश्ता बनाने में मदद की। उन्हें सही निर्णय लेने में मदद हो रही थी। इससे वे अपने जीवन में पाप और शर्म की बातों से बचे रह सकते थे। जब वे पाप करते थे, तो परमेश्वर उन्हें उनकी गलती दिखाता था ताकि वे उसके लिए पश्चाताप कर सकें। उसने उन्हें पश्चाताप करने का रास्ता दिखाया। 

 

हर दिन, वफ़ादार इस्त्राएलियों को परमेश्वर के प्रति उनकी अनाज्ञाकारिता का एहसास होता था। वे जानते थे किकानून उस पाप के लिए जो कुछ भी चाहता था की वे करें, उन्हें करना होता था। यहोवा ने शुद्धिकरण के लिए एक तरीका प्रदान किया था। कुछ पापों के लिए, इस्राएलियों को पूरे दिन के लिए अशुद्ध रहना होता था। सूर्यास्त तक हर वस्तु जिसे वे छूते थे अशुद्ध रहती थी। अन्य पापों के लिए, शुद्धिकरण के लिए एक पशु की बलि ज़रूरी थी। वे अपने जानवर के झुण्ड में उस पशु को ढूंढते थे जो उनके लिए उनके पापों के अपराध को सहेगा। वे उस पशु को तम्बू और याजक तक लेकर जाते थे। हर दिन मंदिर में इस्राएलियों के पछतावे के बलिदानों को चढ़ाने में वे व्यस्त रहते थे। हर दिन इस्राएली मंदिर से शुद्ध होने के बाद वहां से नए तरीके से जीवन जीने के लिए चले जाते थे। और परमेश्वर उनके दिल से प्रसन्न था।

 

यहोवा कितना अच्छा और दयालु था! ना केवल उसने अपने लोगों को जीने का रास्ता दिखाया, परन्तु उसने उन्हें वह रास्ता दिखाया जिससे वे गलत करने पर अपने आप को शुद्ध कर सकते थे। वे बलिदान चढ़ाके बाहरी रूप से पश्चाताप कर सकते थे, और वे अपने दिल में पश्चाताप कर के फिर से शुद्ध और स्वच्छ हो सकते थे। इस्राएल के डेरे में जब प्रत्येक व्यक्ति ने उस पवित्र आज्ञाकारिता को सीख लिया, पूरे देश कि पवित्रता की वृद्धि हुई। उनकी संस्कृति एक नैतिक अच्छाई में बदल गयी जिससे वो सारी चीज़ें दूसरे देशों कि तुलना में साफ़ और सुरक्षित और शुद्ध हो गयीं। महिलाओं और बच्चों को दुष्ट पुरुषों की अभिलाषाओं से संरक्षित किया जाता था, रोगों को फैलने से रोका जाता था, और गरीब का विशेष ध्यान रखा जाता था। 

 

मूसा ने इस्राएल के लोगों को याद दिलाया की किस प्रकार उन्होंने एक राष्ट्र के रूप में कई मील की दूरी पर कूच किया था। उन्होंने चालीस साल तक हर मौसम में मरुभूमि में कूच किया था। अब वे वादे के देश की सीमा पर आ गए थे। चालीस साल भटकने के बाद, वे अंत में अपने लक्ष्य तक पहुँच गए थे। ऐसा करने के लिए इतना लम्बा समय नहीं लगना चाहिए था। वास्तव में, सीनै पर्वत से वादे के देश तक पहुंचने के लिए केवल ग्यारह दिन ही लग सकते थे। लेकिन इस्राएल के लोगों ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया था। अड़तीस साल पहले, यहोवा पहली बार इस्राएल के राष्ट्र को वादे के देश की सीमा पर लाया था। इस्राएलियों को लाल सागर के माध्यम से मिस्रवासियों से इस्त्राएलियों को सहेजने के बाद, यहोवा उन्हें सीनै पर्वत पर ले गया, जहां उसने मूसा को नियमों की किताब दी और उन्हें तम्बू का निर्माण करना सिखाया। इस्राएलियों ने सीनै में एक साल तक कानून और परमेश्वर के लिए बलिदान चढ़ाना सीखा। तब परमेश्वर ने उन्हें कहा किअब समय आ गया था कि वे उस देश में प्रवेश करें जिसे यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने का वादा किया था। 

 

लेकिन जब वे वहाँ पहुंचे, तो किसी चीज़ ने उनका रास्ता रोका। भूमि सुंदर थी, वहां की ज़मीन फल और अनाज के लिए बहुत उपजाऊ थी। दूसरे देशों ने पहले से मदिरा के लिए अंगूर के बागों को लगाया हुआ था, लेकिन कुछ शक्तिशाली उनके रास्ते में खड़ा था। यह कोई पहाड़ या एक सागर नहीं था। यह कोई सेना नहीं थी। यह एक तूफान नहीं था। इस्राएलियों के मार्ग को अवरुद्ध करने वाला उनका अपना स्वयं का डर था। उन्हें परमेश्वर पर भरोसा नहीं था। इसके बजाय की वे विश्वास में आनन्द मनाते, वे कांपते और बलवा करते रहे।

 

मूसा ने भूमि किखोज करने के लिए बारह पुरुषों को भेजा था। उन्हें आकर इस नई मातृभूमि के विषय में खबर देनी थी। जब वे लोग लौटे, वे अद्भुत रिपोर्ट साथ ले कर आये। भूमि खूबसूरत थी। खेतों में खाने के लिए अच्छे फल और सब्ज़ियाँ और सभी प्रकार के अद्भुत फ़सलें थीं। लेकिन उन लोगों ने उन महान राष्ट्रों के बारे में बताया जो वादे के देश में पहले से थे। वे देश इस्राएल से बड़े थे, और उनके पास सेनाएं थीं। इस्त्राएलियों को वह भूमि लेने के लिए उनसे लड़ना होगा।

 

अब, युद्ध के लिए जाना एक बहुत डरावनी बात है। यह खतरनाक है। लेकिन यह कोई साधारण युद्ध नहीं था। वे परमेश्वर कि आज्ञाकारिता में वादे के देश के लिए लड़ने जा रहे थे। उसने उन्हें जाने की आज्ञा दी थी, और उसने उन्हें विजय देने का वादा किया था। यह याद रखना ज़रूरी है कियह वही परमेश्वर है जिसने लाल सागर को दो भागों में बांटा था और मिस्र किसेना से इस्त्राएलियों को छुड़ाया था। इस्राएलियों ने अपनी आँखों से यहोवा की शक्ति और पराक्रम को देखा था। ये वही परिवार थे जो समुद्र के बीच से निकल कर आये थे। उन्होंने उसे फिरौन की सेना पर ध्वंस होते देखा था! दो साल पहले इस्त्राएलियों का वादे के देश की सीमाओं पर आना पहली बार था। उन्हें वास्तव में परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए था!

 

जब इस्त्राएलियों ने जाना कि उन्हें उन राष्ट्रों को जीतना है, वे परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से विश्वासघात बन गए। इसके बजाय कि वे उस परमेश्वर पर विश्वास करते जो उन के लिए विपत्तियों को लाया और समुद्र को दो भागों में बांटा और सीनै पर्वत पर आग के साथ आया था, इस्राएली शिकायत करने लगे और गुस्से में थे। उन्होंने कहा की परमेश्वर अपने बच्चों को मारे जाने की अनुमति दे रहा है! उन्होंने कहा कियहोवा ने उन्हें मिस्र से इसीलिए बाहर निकाला क्योंकि वह उनसे नफ़रत करता था। वे भूल गए थे कियहोवा ने उनको गुलामी से छुड़ाया था। मूसा ने उनके साथ बिनती करने कि कोशिश की। उन्होंने कहा,

 

"'घबराओ नहीं! उन लोगों से डरो नहीं! यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे सामने जायेगा और तुम्हारे लिए लड़ेगा। वह यह वैसे ही करेगा जैसे उसने मिस्र में किया। तुम लोगों ने वहाँ अपने सामने उसको मरुभूमि में जाते देखा। तुमने देखा कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें वैसे ले आया जैसे कोई व्यक्ति अपने पुत्र को लाता है। यहोवा न पूरे रास्ते तुम लोगों की रक्षा करते हुए तुम्हें यहाँ पहुँचाया है।’"(व्यवस्था 1: 29-31)।

 

लेकिन इस्राएलियों ने नहीं सुनी। भले ही परमेश्वर उनके साथ दिन में बादल में रहा और रात को आग में, और उनके लिए समुद्र को दो भागों में बांटा था, फिर भी उन्होंने उस पर भरोसा नहीं किया। इससे परमेश्वर बहुत क्रोधित हुआ। उसने उनसे कहा कि क्योंकि उनके विश्वास कि कमी थी, वे अब वादे के देश में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। उसने मूसा के द्वारा सन्देश भेजा की वे वापस मरुभूमि में फिरेंगे और चालीस साल के लिए वहाँ रहेंगे। केवल उनके बच्चों को वहां प्रवेश करने की अनुमति थी, और केवल तब जब वे सभी लोग जिन्होंने विद्रोह किया था मर नहीं जाते। केवल यहोशू और कालेब की पीढ़ी को वादे के देश में प्रवेश करने की अनुमति दी गयी थी, और वो भी इसीलिए क्योंकि उन्होंने यहोवा पर भरोसा किया था।

अब वह पूरी पीढ़ी समाप्त हो चुकी थी। केवल मूसा और यहोशू और कालेब ही जीवित बचे थे। वादे के देश की सीमा पर खड़े केवल उन परिवारों के बीस लाख बच्चे थे जिन्हें परमेश्वर ने मिस्र से बाहर निकाला था। दूसरी पीढ़ी को एक निर्णय लेना था। क्या वे अपने माता-पिता की तरह होंगे? क्या वे परमेश्वर के वादे के साथ विद्रोह करेंगे? या फिर वे परमेश्वर के प्रति वफ़ादार होंगे और देश में प्रवेश करने के लिए उसकी शक्ति और संरक्षण में विश्वास करेंगे?