पाठ 189: छठी आज्ञा-युद्ध के दौरान जीवन का सम्मान
छठे आज्ञा में, यहोवा ने लोगों को हत्या ना करने कि आज्ञा दी। जब एक व्यक्ति किसी दूसरे की जान लेता है तो वह हत्या कहलाता है। यदि इस्राएली किसी को बिना उद्देश्य मारते हैं, तो फिर कैसे वे युद्ध में जा सकते थे? वादे के देश में जाकर कैसे वे कनानियों के विरुद्ध युद्ध करेंगे? परमेश्वर ने उन से कहा;
"जब तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में जाओ, और अपनी सेना से अधिक घोड़े, रथ, व्यक्तियों को देखो, तो तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे साथ है और वही एक है जो तुम्हें मिस्र से बाहर निकाल लाया। जब तुम युद्ध के निकट पहुँचो, तब याजक को सैनिकों के पास जाना चाहिए और उनसे बात करनी चाहिए। याजक कहेगा, ‘इस्राएल के लोगो, मेरी बात सुनो! आज तुम लोग अपने शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में जा रहे हो। अपना साहस न छोड़ो! परेशान न हो या घबराहट में न पड़ो! शत्रु से डरो नहीं! क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर शत्रुओं के विरुद्ध लड़ने के लिये तुम्हारे साथ जा रहा है। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारी रक्षा करेगा!'" (व्यवस्था 20:1-4)
यहोवा स्वयं उनके आगे आगे चलेगा, वह उनका योद्धा राजा था! परमेश्वर ने युद्ध का आदेश दिया और उनके आगे आगे जाने का वादा किया।
युद्ध में जाने के लिए इस्राएली लोगों को विशेष संरक्षण दिया जाता था। युद्ध में जाना खतरनाक था, क्यूंकि कई मरते हैं। कई घर वापस कभी नहीं आते हैं। परमेश्वर दयालु और करुणामय है। वह अपने बच्चों के जीवन का मूल्य जानता था। यदि एक व्यक्ति अपने एक नए घर का निर्माण करता है या एक नयी दाख कि बारी लगाता है, तो उसे युद्ध में जाने कि ज़रुरत नहीं थी। परमेश्वर चाहता था कि वह अपने घर और दाख कि बारी में आनंदित रहे। वह चाहता था की वह अपनी कड़ी मेहनत के आशीर्वाद को प्राप्त करे। यदि एक व्यक्ति की एक लड़की के साथ सगाई हो जाती है, लेकिन विवाह नहीं किया है, तो उसे युद्ध में जाने कि ज़रुरत नहीं थी। वह घर पर रह कर उससे शादी कर सकता है। नहीं तो वह मर सकता है और वह किसी दूसरे आदमी कि हो जाएगी। यदि लड़ाई में जाने के लिए एक व्यक्ति डरा हुआ है, तो वह भी वापस अपने घर जा सकता था। योद्धाओं को निडर और शक्तिशाली होना ज़रूरी था। एक डरा हुआ व्यक्ति अपने डर को दूसरों पर फैला सकता था। वे भी निराश हो सकते हैं। सो यहोवा ने आज्ञा दी कि सेनापति योद्धाओं से युद्ध में जाने से पहले ऐसे सवाल पूछें:
"क्या आप में से किसी का नया घर या दाख की बारी है? क्या किसी की सगाई हुई है या डरे हुए हैं? यदि हां, तो घर जाओ!" और पुरुष युद्ध छोड़ कर यहोवा से मिली उन सब आशीषों का आनंद ले सकते थे।
जीवन के लिए सम्मान इस्राएल के पुरुषों के जीवन के साथ खत्म नहीं होती है। मूसा ने इस्राएल कि सेना के लिए निर्देश दिए की उन्हें एक शहर पर हमला कैसे करना है। जब वे ऊपर कि चढ़ाई करते हैं, तो उन्हें सबसे पहले एक प्रस्ताव रखना होगा। यदि शहर के लोग शांति से आत्मसमर्पण करते हैं, तो इस्राएल के लोग उन्हें मज़दूर के रूप में ले सकते थे। यदि वे शांति से आत्मसमर्पण नहीं करते हैं, तो फिर इस्राएल की सेना शहर का घेराबंदी करेगी। उन्हें अपने योद्धा पुरुषों के साथ समर्पण करना होगा, और उन्हें तब तक भूखे रखें जब तक यह निर्णय नहीं ले लेते कि उन्हें लड़ना चाहिए या समर्पण कर देना चाहिए। यदि पुरुष इस्राएल की सेना के साथ युद्ध करते हैं, तो उन्हें उनकी स्वयं कि तलवारों से घात कर देना होगा। अपने परिवारों को समृद्ध करने के लिए वे उनकी स्त्रियों, बच्चों, जानवरों और उन सब चीज़ों को जिन्हें वे लूट सकते थे, ले सकते थे। इस्राएल के राष्ट्र से दूर एक शहर पर आक्रमण करने का यह परमेश्वर का निर्देश था।
वादे के देश के लोगों के लिए, जहां पहले से ही कनानी जातियां बसी हुई थीं, उनके लिए दूसरे नियम थे। यह बहुत ठोस और गंभीर था। परमेश्वर इस आज्ञा के लिए बहुत स्पष्ट था। इन देशों पर, प्रभु परमेश्वर ने आज्ञा दी कि इस्राएल की सेना एक प्रतिबंध के साथ जो एक ज़बरदस्त शक्ति होती है, उसके साथ आगे बढ़े। हिब्रू में इसे "हरेम" कहते हैं। आमतौर पर परमेश्वर इसकी आज्ञा नहीं देता है, लेकिन जब देता है, तो वह किसी बहुत ही अच्छे उद्देश्य के साथ होता है। वह परमेश्वर है, और वह सब कामों को पूर्ण और सही करता है। एक हरेम, या प्रतिबंध, युद्ध का अत्यंत रूप है जिसमें इस्राएल की सेना दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध परमेश्वर के प्रकोप के हाथ और निर्णय का काम करती है। उन्हें उन देशों और शहरों और कस्बों में घुस कर उन पर आक्रमण करके उनके प्रत्येक जीव को नष्ट करना था। किसी को भी जीने की अनुमति नहीं थी। हर आदमी, स्त्री और बच्चे को मार दिया जाएगा, और हर जानवर को भी मार दिया जाएगा। कुछ भी लूट के रूप में सहेजा नहीं जाएगा। उनकी बुराई कि गंदगी ने संस्कृति को इतना संतृप्त कर दिया था कि उन्हें जीने नहीं दिया जाएगा।
परमेश्वर ने मूसा को बताया था की कौन से राष्ट्र को वह नष्ट करने जा रहा था, और इस्राएल के राष्ट्र को मालूम था की उन्हें किस प्रकार किस देश पर आक्रमण करना है। परमेश्वर ने अपने क्रोध को ऐसे समूहों पर सीमित कर दिया था जिनके पाप बहुत भयानक और प्रतिकारक थे, और समय आ गया था की उन सभ्यताओं का कुल विनाश हो। जिन सात राष्ट्रों को परमेश्वर कुल विस्मृति के लिए ठहरा रहा था, वे थे हित्ती, गिर्गाशी, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी।
ये सात राष्ट्र चार सौ साल से ज़्यादा कनानी लोगों का एक हिस्सा बने हुए थे, और वे सब इतने पापी थे की उनके विरुद्ध परमेश्वर का प्रकोप भर गया था। वे इतने भयानक हो गए थे की उन्होंने अपने ही बच्चों को इतना भ्रष्ट कर दिया था कि उनका छुटकारा नहीं हो सकता था। हम जानते हैं कि कनानियों की बहुत से घृणित प्रथाएं कई भीषण रोग कि ओर ले जाती हैं। परमेश्वर अपने लोगों के लिए ऐसा नहीं चाहता था। वह अपने चुने हुए राष्ट्र को इन अनैतिक संस्कृतियों की परीक्षा में नहीं पड़ने देगा ताकि वे उसके और एक दूसरे के विरुद्ध कोई ऐसा पाप ना करें। परमेश्वर को मनुष्य को बताने की आवश्यकता नहीं कि वह जो कुछ भी करता है वह क्यों करता है। वह परमेश्वर है। लेकिन इस मामले में, उसने अपने उद्देश्यों को अपने वचन में दे दिए। वह चाहता था कि हम सब यह जान लें कि वह एक धर्मी परमेश्वर है और चाहे वह अपने अनुग्रह से कितने भी वर्ष रुका रहे, न्याय का दिन आएगा।
जब यहोवा ने कनान के लोगों पर एक हरेम को बुलाया, उसने अपने विषय में दुनिया को वो महत्वपूर्ण बातें दिखाईं। यहोवा वो परमेश्वर है जो अपने वादों को रखता है। उसने इब्राहीम को भूमि देने का वादा किया था, और अब वह प्रकट होने जा रहा था। परमेश्वर ने यह आज्ञा दी कि उसकी पवित्रता इस्राएल के लोगों के बीच मज़बूती से रखी जाये। वादे के देश को उनके भयानक, सांस्कृतिक पापों से शुद्ध किया जाना था। वह स्वयं ही उन देशों को नष्ट कर सकता था। वह एक भूकंप या एक तूफ़ान को भेज सकता था। इसके बजाय, उसने इस्राएल कि सेना का इस्तेमाल किया। उस देश की गंदगी को दूर करने के लिए उन्हें परमेश्वर के हथियार बन कर जाना था। इस्राएलियों की आज्ञाकारिता के माध्यम से कनानियों कि अनाज्ञाकारिता को पृथ्वी से साफ़ कर देना था (डॉ वे, क्लास नोट्स, 14 मई, 2009)। परमेश्वर एक न्याय करने वाला परमेश्वर है। पाप को सज़ा मिलती है, अच्छाई लाने के लिए बुराई का अंत करना आवश्यकता है। वह पूर्ण रूप से भला है। चाहे कुछ भी कितना भी अच्छा हो, परमेश्वर के विरुद्ध जो भी होता है वह बुरा है। यह उससे घृणा करने का एक रूप है। वह पूरी आज्ञाकारिता का हकदार है। जो उससे घृणा करते हैं परमेश्वर उसका बदला लेता है। चाहे उसका वचन कितना भी कठोर हो, परमेश्वर अपने वचन को रखता है।