पाठ 175 : # 4 दस आज्ञाएं

सीनै पर्वत पर परमेश्वर किआवाज़ को सुनना इस्राएल के लोगों के लिए एक महान पल था। इतिहास में किसी भी देश ने कभी भी परमेश्वर के साथ इस तरह से सामना नहीं किया होगा।यह इसीलिए था क्यूंकि इस्राएल को इतिहास में एक बहुत ही खास भूमिका के लिए चुना गया था। वे परमेश्वर कि क़ीमती अमानत थे। परमेश्वर के साथ उनका प्यार और आज्ञाकारी रिश्ता यह दिखाने के लिए था की किस प्रकार संसार में पापी मानवता को ब्रह्मांड के परमेश्वर के साथ एक सही रिश्ता बनाना चाहिए।

दस आज्ञाएं यहोवा के साथ कि, महान पवित्र और भयानक भेंट से आयीं। परमेश्वर ने स्वयं पत्थर की पट्टियों पर अपनी आज्ञाओं को लिखा। इसीलिए वे इतने महत्वपूर्ण हैं। ये आज्ञाएं केवल उनके पालन करने के लिए नहीं हैं। वे यहोवा के साथ बनाई वाचा के एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

परमेश्वर ने अपने लोगों को महान स्वतंत्रता दी थी। उसने उन्हें मिस्र कि कठोर ग़ुलामी से मुक्त किया था! दस आज्ञाओं के साथ, उसने उन्हें एक अलग तरह की स्वतंत्रता दी। उसने उन्हें पाप से स्वतन्त्र रहने का मार्ग दिया। उन्हें जीवन के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में परमेश्वर कि अच्छाई के साथ जीना सिखा कर, वे जान गए थे की परमेश्वर को कैसे प्रसन्न करना है। और जब वे विफल हुए, उसने उन्हें पश्चाताप करने के लिए बलिदानों को सिखाया ताकि वे फिर से शुद्ध हो सकें। 

मूसा ने ऐसा कहा;

 

"'इस्राएल के लोगो, आज जिन नियम व विधियों को मैं बता रहा हूँ उन्हें सुनो। इन नियमों को सीखो और दृढ़ता से उनका पालन करो। यहोवा, हम लोगों के परमेश्वर ने होरेब पर्वत पर हमारे साथ वाचा की थी। यहोवा ने यह वाचा हम लोगों के पू्र्वजों के साथ नहीं की थी, अपितु हम लोगों के साथ की थी। हाँ, हम लोगों के साथ जो यहाँ आज जीवित हैं। यहोवा ने पर्वत पर तुमसे आमने—सामने बातें कीं। उसने तुम से आग में से बातें कीं।'"(व्यवस्था 5: 1a -4)।

 

अब, क्या यह सच है? मोआब के मैदानों पर क्या ये वही लोग थे जो सीनै पर्वत पर भी थे? नहीं! वो तो चालीस साल पहले था! जो मूसा कह रहा है वह यह हैकिचाहे इस्राएली वादे के देश में प्रवेश कर रहे थे, वे वो नहीं थे जो सीनै पर्वत पर थे, क्यूंकि वाचा अभी भी उनकी ही थी। वह उनके बच्चों और पोतों, और भविषय में इस्राएल के सभी लोगों के लिए था। यह ऐसा था मानो जो वाचा सीनै पर्वत पर बनाई गयी थी, वो सबके लिए थी। यहोवा के वादे जो उन लोगों के लिए जो सीनै पर्वत पर थे, वही इस्राएल की इस पीढ़ी के लिए भी थे। मूसा यह सुनिश्चित करना चाहता था की उन्होंने यहोवा के साथ के उस अनमोल रिश्ते को समझ लिया है।

 

नियमों की आज्ञाकारिता इस्राएलियों के लिए कोई मुक्ति का रास्ता नहीं था। वे इसे कमा नहीं सकते थे। परमेश्वर ने उन्हें स्वतंत्र रूप से चुना था और मिस्र देश से निकाल लिया था! जिस शक्ति के द्वारा लाल समुन्दर दो भाग में बटा था, इस्राएलियों को कोई लेना देना नहीं था! वह सब यहोवा के काम थे। इस्राएल के लोगों को अपने पूरे तन और मन से परमेश्वर से प्रेम करना था। वह ऊंचा और पवित्र था, और वह निरंतर आराधना के योग्य है! परमेश्वर ने उन्हें नियमों में सिखाया की किस प्रकार उन्हें अपने रोज़ के जीवन में उससे कैसे प्रेम करना है। उसने उन्हें सिखाया किजिस प्रकार वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उसी प्रकार उन्हें एक दूसरे के साथ व्यवहार करना है। उसने उन्हें सिखाया की किस प्रकार वे अपनी बातचीत में भी उसे प्रेम दिखा सकते थे और किस प्रकार उन्हें अपने पैसे और चीज़ों को इस्तेमाल करना है। वह अपने लोगों के साथ एक शक्तिशाली और लगातार चलने वाला रिश्ता रखना चाहता था। वह उन्हें पूरे समय अपने ध्यान में रखना चाहता था।

 

इस्त्राएलियों किआज्ञाकारिता, परमेश्वर के प्रति उनके बहुतायत के प्रेम और भक्ति को दिखाता था। जब वे इनकार या विद्रोह करते थे, तो यह दिखाता था की उनके दिल उसके प्रति कठोर थे। वे प्रेम की वाचा को तोड़ रहे थे! परमेश्वर में विश्वास और भरोसा दिल का एक तरीका था! लेकिन जो कुछ हम बाहरी रूप से करते हैं, वही हमारे दिल को दिखाता है। आमतौर पर, जिससे आप प्रेम करते हैं, उसे आप मारते नहीं हैं। आप उन्हें गले लगाते हैं। एक शक्तिशाली पवित्र परमेश्वर के प्रति सच्चा प्यार उसके नियमों के प्रति आज्ञाकारिता को दिखाता है। धार्मिकता कोई बाहर से करने वाला काम नहीं है। यह परमेश्वर के प्रेम को दिल की गहराई से करने का बाहरी रूप है। परमेश्वर को ऐसे ही प्रेम की खोज थी। यही धार्मिकता है जो इस्राएल के राष्ट्र के लिए ज़रूरी थी ताकि वे वास्तव में याजकों का देश हो सकें। उसके प्रति उनकी भक्ति और प्रेम ही से वे दुनिया को यहोवा के लिए आशीष दे सकते थे।  (Vanhoozer, 79)।