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पाठ 104 : सब्त का विश्राम

चौथी आज्ञा बहुत अनमोल है क्यूंकि यह परमेश्वर के लोगों के प्रति उसके प्रेम को दर्शाती है कि, वह उसे अपने लोगों के साथ रहने में कितना आनंद मिलता है।

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पाठ 106 : अंतिम आज्ञाएं

अंतिम तीन आज्ञाएं यह सिखाती हैं की परमेश्वर के लोगों का व्यवहार एक दूसरे के साथ कैसा होना चाहिए। सांतवी आज्ञा बताती है कि परमेश्वर चाहता था की विवाह कि वाचा की पवित्रता और अच्छाई का सम्मान हो।

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पाठ 113 : पवित्र स्थान के स्वर्ण सामग्री से लेकर कांस्य से बना संदूक

परमेश्वर ने तम्बू बनाने के लिए साज-सामान के निर्देश दिये। सन्दूक को सबसे पवित्र स्थान में रखना था। यह परमेश्वर का सिंहासन था, यह पृथ्वी पर सबसे पवित्र जगह थी। यह एक अत्यंत पवित्र स्थान था। परमेश्वर ने मूसा को उसके साज-सामान के विषय में वर्णन दिया। जो वर्णन उसने सन्दूक के लिए दिया था वैसा ही वर्णन उसने दिए।

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पाठ 114 : नियम और मन्दिर

परमेश्वर हर तरह से अपने लोगों को आगे बढ़ा रहा था। अपने वाचा के लोगों को आशीर्वाद देने के लिए वह कितना उत्साहित था! दस आज्ञाओं और वाचा की पुस्तक के साथ, परमेश्वर ने उसके पीछे चलने के लिए अपने लोगों को एक रास्ता दिखा दिया था। वे समझ सकते थे की परमेश्वर में पवित्र जीवन बिताना क्या मायने रखता था।

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पाठ 117 : अविच्छिन्नित: नियुक्ति की मेढ़

दूसरी मेढ़ नियुक्ति किमेढ़ थी। मूसा को उसे उसी प्रकार वध करना था जिस प्रकार उसने पहले किया था। जिस समय मूसा उसको वध कर रहा था हारून और उसके पुत्रों को उसके सिर पर अपने हाथ रखने थे। फिर कुछ खून लेकर हारून और उसके पुत्रों के दाएं कान के निचले भाग में लगाना था।

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