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पाठ 151 : सत्तर अगुवे, आत्मा, और बटेर

इस्राएलियों का एक समूह उस मन्ना की जगह, जो परमेश्वर इतने चमत्कारी ढंग से उन्हें प्रदान कर रहा था, अन्य चीज़ों की इच्छा करने लगे। उनकी शिकायतें अन्य इस्त्राएलियों में फैलने लगी, और बहुत जल्द वे ये बातें कहने लगे;

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पाठ 161 : अमोरियों को बाहर निकालनाभाग 1: राजा सीहोन

वादे के देश तक पहुँचने के लिए इस्राएली अपनी खोज में कूच करते रहे। मरुभूमि में कई साल भटकने के बाद, वे ऐसे क्षेत्रों में जा रहे थे जहां और अधिक शहर और कसबे, और लोग थे। वे ऐसे देशों में पहुंचे जहां सैकड़ों वर्षों से लोग बेस हुए थे।

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पाठ 167 : आक्रमण की तैयारी और मिद्यानियों पर कब्ज़ा

गिनती किकिताब के शुरुआत में, परमेश्वर ने बीस साल के ऊपर के पुरुषों की गिनती लेने के लिए मूसा और हारून से कहा। प्रत्येक जनजाति को उनके नाम और उम्र का पता मूसा को देना था, जो युद्ध में लड़ने में सक्षम होंगे। 603,550 वे पुरुष थे जो लड़ सकते थे। इन लोगों को परमेश्वर की सेना होना था जो, कनान पर हमला कर सकते थे।

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पाठ 171 : यरदन के पार जनजातियां -मूसा के डर

यदि तुम उन लोगों को अपने देश में ठहरने दोगे तो वे तुम्हारे लिए बहुत परेशानियाँ उत्पन्न करेंगे। वे तुम्हारी आँखों में काँटे या तुम्हारी बगल के कील की तरह होंगे। वे उस देश पर बहुत विपत्तियाँ लाएंगे जहाँ तुम रहोगे। मैंने तुम लोगों को समझा दिया जो मुझे उनके साथ करना है और मैं तुम्हारे साथ वही करूँगा यदि तुम लोग उन लोगों को अपने देश में रहने दोगे।”

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व्यवस्थाविवरण: वाचा नवीकरण की पुस्तक - मोआब के मैदानों में मूसा और उसके लोग

यहोवा जो इस्राएल का महान राजा है, अपने लोगों का उसने मोआब के मैदानों के लिए नेतृत्व किया। वे वादे के देश की सीमा पर पहुंच गए थे। वे अपनी आँखों से देख सकते थे। यरदन नदी के सामने इस्राएल का डेरा था। नदी के उस पार पहाड़ियों के साथ खुली, सूखी ज़मीन थी।

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पाठ 173 : # 2 मोआब के मैदानों में - युद्धक्षेत्र पर यहोवा की वफ़ादारी को याद करना

मूसा परमेश्वर के लोगों के दिलों के डर को जानता था। वादे के देश में प्रवेश करना एक बड़ी चुनौती थी। यह डरावना था! लेकिन परमेश्वर अपने लोगों को वफ़ादारी से यहां तक ले आया था। चार सौ साल पहले, उसने इब्राहीम से एक वादा किया था।

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पाठ 174 : # 3 भूमि में वाचा को निभाना

इस्राएल का राष्ट्र जिस समय वादे के देश की सीमा पर एक पक्षी कि तरह बैठा हुआ था, मूसा उपदेशों और नियमों के माध्यम से उन्हें उपदेश देता रहा। उसने उन्हें परमेश्वर के साथ बनाये उन महान वाचाओं को याद दिलाया, और उन्हें उन वादों को निभाना सिखाया। वह उन्हें अंतिम बार इन बातों को सिखा पाएगा।

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पाठ 175 : # 4 दस आज्ञाएं

सीनै पर्वत पर परमेश्वर किआवाज़ को सुनना इस्राएल के लोगों के लिए एक महान पल था। इतिहास में किसी भी देश ने कभी भी परमेश्वर के साथ इस तरह से सामना नहीं किया होगा।यह इसीलिए था क्यूंकि इस्राएल को इतिहास में एक बहुत ही खास भूमिका के लिए चुना गया था।

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पाठ 176 : # 5 पहली आज्ञा के निहितार्थ

वाचा यदि इस्राएलियों की प्रत्येक पीढ़ी के लिए था, तो उन्हें उसे वास्तव में गहराई से समझना ज़रूरी था। सो मूसा दुबारा से दूसरी पीढ़ी को दस आज्ञाएं सिखाने लगा।

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पाठ 177 : # 6 पहली आज्ञा के निहितार्थ

पहला नियम जो यहोवा ने अपने लोगों को दिया वह था की, "तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।" इसका मतलब था की इस्राएली किसी और झूठे देवता किमूर्तियों की पूजा नहीं कर सकते थे। इसका मतलब यह भी था की उन्हें उस भूमि को उन मूर्तिपूजक राष्ट्रों से साफ़ करना था जो सैकड़ों वर्षों से वहां रह रहे थे।

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पाठ 179 : # 8 आज्ञा 3

पहली दो आज्ञाओं ने सिखाया की किस प्रकार उन्हें अपने धर्म और विश्वास के बारे में सोचना है। वे यहोवा के आगे और किसी अन्य देवता किपूजा नहीं कर सकते थे। वे किसी भी मूर्ती किपूजा नहीं कर सकते थे।

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पाठ 180 : # 9 चौथी आज्ञा

इस्राएली हिब्रू की भाषा बोलते थे। हिब्रू में, "सब्त" "आराम करना" या "रोकना" होता है। इसे "जश्न मनाना" भी कहते हैं।

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पाठ 181 : #10 मूसा का चौथी आज्ञा की अतिरिक्त टिप्पणियाँ

जब परमेश्वर ने हर सप्ताह के सातवें दिन सब्त के दिन को मनाने की आज्ञा दी, उसने कहा की वह चाहता था की उसके लोग इसका सम्मान करके उसके प्रति अपनी वफ़ादारी को दिखाएँ।

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पाठ 194: आशीर्वाद और शाप

मूसा जब लोगों से निवेदन कर रहा था कि वे परमेश्वर से प्रेम करें और उसकी आज्ञाओं का पालन करें, उसने उन्हें उनकी भक्ति दिखाने के विशेष तरीके बताये। उसने उन्हें पत्थर ले कर और उसे प्लास्टर करने को कहा।

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पाठ 195: पलायन का विपर्यय - रोग, विनाश, निर्वासन ... दास होने के लिए भी योग्य नहीं

इस्राएल का राष्ट्र फिर से इकट्ठा हुआ। हज़ारों लोगों कि कल्पना कीजिये कि किस प्रकार वे अपने महान अगुवे को खड़े सुन रहे थे। पति, पत्नी, बच्चे, और वे सभी विदेशी जो उनके बीच में रहते थे। मूसा उन्हें वाचा के नियम सुनाता रहा। उसने उन्हें दस आज्ञाओं को याद दिलाया और फिर प्रत्येक आज्ञा का पालन करने के कई तरीके सिखाये।

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पाठ 196: हृदय की सुन्नत के माध्यम से वाचा का नवीकरण

मूसा यरदन के पूर्व, मोआब में इस्राएल के राष्ट्र के सामने खड़ा था। लोगों के लिए अपने अंतिम सन्देश में, उसने देखा की वह राष्ट्र यहोवा की महान सच्चाई और महान विफलता, दोनों से गुज़रेगा।

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पाठ 197: यहोवा की यथार्थवादी आवश्यकताएं - सृष्टि द्वारा गवाही देना

परमेश्वर वास्तव में अपने लोगों के पूरे दिल और जान को चाहता था। वह उनकी पूरी भक्ति को चाहता था, और वह उनकी इच्छाओं और आशाओं को पूरी तरह से अपने ऊपर लेना चाहता था। और कमाल की बात यह है कि यह संभव हो सकता था। उनका अच्छा और पवित्र परमेश्वर उनसे कोई असंभव चीज़ की मांग नहीं करेगा।

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पाठ 198: मशाल को पार करना - मूसा से यहोशू को

यहोवा ने, जो इस्राएल का परमेश्वर है, मिस्र से उन सब लोगों को ग़ुलामी से बचाया जिनके साथ उसने सबसे पहले अपनी वाचा को बनाया था। अड़तीस साल बाद, मूसा ने मोआब के मैदानों पर इस्त्राएलियों की अगली पीढ़ी के साथ बात की। पूरा देश यरदन नदी के पास डेरा लगाया हुआ था। दूसरी तरफ वो देश था

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पाठ 199: पवित्र स्मरण का एक गीत

यहोवा ने मूसा से कहा,“'अब तुम्हारे मरने का समय निकट है। यहोशू को लो और मिलापवाले तम्बू में जाओ। मैं यहोशू को बताऊँगा कि वह क्या करे।'”

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पाठ 200: मूसा देश में प्रवेश नहीं करेगा

जिस दिन परमेश्वर ने मूसा को भविष्य के बारे में इस्राएल के लोगों के लिए गीत को दिया, उसने भविष्य के बारे में मूसा को निर्देश दिए। मूसा अबारीम पर्वत से नबो पर्वत पर गया। वहाँ से, वह कनान देश को और उसकी महिमा को देख पाएगा। मोआब में उस पर्वत से, मूसा पश्चिम की ओर यरदन घाटी में देख पाएगा।

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