पाठ 134 : शुद्ध और अशुद्ध भाग 2: चर्म रोग और फफूंदी
परमेश्वर शुद्ध और अशुद्ध के विषय में अपने लोगों को और नियम देना चाहता था। उनमें से कुछ चर्म रोग के बारे में थे। त्वचा पर कुछ चमकते और धब्बे खतरनाक थे, और कुछ हानिरहित थे। परमेश्वर ने उनमें अंतर करना लोगों को सिखाया था। याजक उन्हें बताते थे जब त्वचा पर कुछ दिखाई पड़ता था। जिस व्यक्ति को चर्म रोग की समस्या थी वह व्यक्ति अशुद्ध माना जाता था। वे अपने परिवार और राष्ट्र को संक्रमित कर सकते थे! वे परमेश्वर के पवित्र लोगों के डेरे को भी दूषित कर देते थे! उन्हें डेरे से तब तक बाहर रहना होता था जब तक वे ठीक नहीं हो जाते थे।
याजक डेरे के बाहर जाकर उन पुरुषों और महिलाओं को जांचता था जिनको चर्म रोग था। परमेश्वर उन्हें यह बताने के लिए निर्देश देता था की कौन चंगा हो गया है और वापस डेरे में आ सकता था। यदि वे साफ़ थे, तो याजक को दो पक्षियों को पकड़ना था। वह पहले पक्षी को मार कर उसके खून को सात बार उस व्यक्ति पर छिड़कता था जो चंगा हो जाता था। फिर दूसरे पक्षी को बाहर ले जाकर छोड़ देता था। यह एक सुंदर छवि थी। पतन के अभिशाप के कारण, किसी को मरना था। रोग दुनिया में है। लेकिन परमेश्वर के अनुग्रह के कारण, स्वतंत्रता भी है। कुछ उड़ जाएगा।
जो व्यक्ति रोगग्रस्त था और साफ़ हो गया था, उसे अपने आप को धोना था और अपने सिर को मूड़वाना था। फिर उसे डेरे में वापस जाने की अनुमति थी, लेकिन वह और सात दिनों के लिए अपने स्वयं के तम्बू में वापस नहीं जा सकता था। सातवें दिन उसे फिर से अपने आप को धोना था और अपने सारे बालों को मूड़वाना था, यहां तक की अपनी भौहें और दाढ़ी भी। फिर आठवें दिन पर, उसे दो एक वर्ष की भेड़ों को, जो निष्कलंक थीं, मंदिर में ले जाना था। फिर जो याजक उसे स्वच्छ घोषित करता है, वह उसके शुद्धिकरण की भेंट को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर परमेश्वर कि पीतल की वेदी पर ले जाएगा। चंगाई पाया हुआ व्यक्ति पृथ्वी पर परमेश्वर के निवास स्थान पर जाएगा और उसके सिंहासन के सामने बलिदान चढ़ाएगा। तब याजक कुछ तेल ले कर तम्बू के सामने सात बार छिड़केगा, और फिर उसे कान पर और दाहिने अंगूठे, और पैर के अंगूठे पर लगाएगा। याजक फिर बाकी तेल को उस व्यक्ति के सिर पर डाल देगा। उस क्षण से, वे शुद्ध हो जाते थे और जाने के लिए स्वतंत्र थे। उन्हें अपने परिवार से अलग करने वाला अब कोई कलंक या अभिशाप नहीं था, और अब उनके जीवन सामान्य हो जाएंगे।
परमेश्वर मूसा को शुद्ध और अशुद्ध के बीच के अंतर को समझाते रहे। उसने आदेश दिया की वे फफूंदी के विभिन्न प्रकार के बीच के अंतर करें जो उनके घरों कि दीवारों पर या उनके कंबल और कपड़े में बढ़ सकते हैं। कुछ फफूंदी विनाशकारी थे। वे कपड़े खा जाते थे या दीवारों को उखाड़ देते थे। वे हवा में धूल लाते थे और सबके स्वास्थ्य के लिए खतरा थे। परमेश्वर ने याजकों को सिखाया की उनकी जांच कैसे की जाये और प्रत्येक फफूंदी को जाँचें की वे अशुद्ध हैं या नहीं। वे अपने कपड़े को बचाने की कोशिश करते थे, लेकिन यदि उनके विषय में कुछ नहीं कर सकते थे, तो उन्हें जला दिया जाता था।
परमेश्वर आगे कि सोच रहा था। इस्राएल के लोग वादे किभूमि को स्थानांतरित करने जा रहे थे। वे दीवारों और दरवाजों वाले घरों में जाने वाले थे। कभी-कभी उन दीवारों में फफूंदी और कवक हो जाते थे। तो परमेश्वर उनके विषय में दिशा-निर्देश देते थे। सबसे पहले, याजक आदेश देता था घर की सभी वस्तुएं बाहर निकाल ली जाएं ताकि वे सब संक्रमित ना हों। फिर वह सात दिनों के लिए घर को बंद कर देता था यह देखने के लिए कुछ संक्रमित हुआ है या नहीं। यदि हां, तो वे साफ़ ईंटों और पत्थरों से पुरानी ईंटों और पत्थरों से उन्हें हटाएगा। फिर वे सब भीतरी दीवारों को परिमार्जन करके नए प्लास्टर को लगाएंगे। इस सब के बाद भी, यदि फफूंदी वापस आई और फलती रही, तो उन्हें पूरे घर को जलाना होगा।