पाठ 154 : मूसा, एक अद्भुतमध्यस्थ

गिनती 13-14

पूरा इस्राएल का डेरा अराजकता कि स्थिति में था। यह सुनकर किकनान देश में पहले से ही महान राष्ट्र रहते हैं, वे भयभीत हो गए, और इस्राएली पूर्ण रूप से विद्रोही होने लगे थे। वे परमप्रधान परमेश्वर किभलाई के विरुद्ध अपराधी बनने जा रहे थे।

 

मूसा और हारून इस्राएलियों के बीच में गए जहाँ उथलपुथल मची हुई थी, और उनके सामने मुँह के बल गिर गए। वे लोगों से अपने पूरे तन और मन से विनती कर रहे थे। कालेब और यहोशू ने, लोगों की विश्वासघाती प्रतिक्रिया पर अपने

दु: ख और पीड़ा को प्रकट करने के लिए अपने कपड़े फाड़ डाले। उन्होंने घोषणा की;

 

"'जिस प्रदेश को हम लोगों ने देखा है वह बहुत अच्छा है। और यदि यहोवा हम लोगों से प्रसन्न है तो वह हम लोगों को उस प्रदेश में ले चलेगा। वह प्रदेश सम्पन्न है, ऐसा है जैसे वहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हों और यहोवा उस प्रदेश को हम लोगों को देने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग करेगा। किन्तु हम लोगों को यहोवा के विरुद्ध नहीं जाना चाहिए। हम लोगों को उस प्रदेश के लोगों से डरना नहीं चाहिए। हम लोग उन्हें सरलता से हरा देंगे। उनके पास कोई सुरक्षा नहीं है, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। किन्तु हम लोगों के साथ यहोवा है। इसलिए इन लोगों से डरो मत!'” 

गिनती 14: 7 बी -9

 

लोगों ने कालेब की बात नहीं सुनी। बल्कि, वे अपने अगुवों पर पत्थरवाह करने के बारे में बात कर रहे थे। वे अपने दुख के लिए बदला लेना चाहता था। वे चाहते थे की उनके अगुवे मर जाएं और उनका रास्ता साफ़ हो जाये। पत्थर उठाते समय उनकी दुश्मनी और तनाव की ताक़त किकल्पना कीजिये। अचानक, परमेश्वर की महिमा मिलापवाले तम्बू के चारों ओर एक सुरक्षात्मक क्रोध के रूप में चमकी।परमेश्वर कितीव्र और उज्ज्वल उपस्थिति को देख कर लोग दंग रह गए होंगे। क्या वे उसके गुस्से के तनाव को समझ सकते थे?

 

मूसा के साथ उसकी बातों को सुनिए जो वह इस्त्राएलियों को पूरी तरह से मिटा देने के विषय में कह रहा था। एक बार फिर, मूसा लोगों और परमेश्वर के क्रोध के बीच खड़ा था। चाहे वे उसे मार देना चाहते थे, फिर भी वह उनके लिए एक वफ़ादार मध्यस्थ की तरह था!

 

"'ये लोग इस प्रकार मुझसे कब तक घृणा करते रहेंगे? वे प्रकट कर रहे हैं कि वे मुझ पर बिश्वास नहीं करते। वे दिखाते हैं कि उन्हें मेरी शक्ति पर बिश्वास नहीं। वे मुझ पर बिश्वास करने से तब भी इन्कार करते हैं जबकि मैंने उन्हें बहुत से शक्तिशाली चिन्ह दिखाये हैं। मैंने उनके बीच अनेक बड़ी चीजें की हैं। मैं उन्हें नष्ट कर दूँगा और तुम्हारा उपयोग दूसरा राष्ट्र बनाने के लिए करूँगा और तुम्हारा राष्ट्र इन लोगों से अधिक बड़ा और अधिक शक्तिशाली होगा।'”

गिनती 14: 11-12

 

एक बार फिर, परमेश्वर ने मूसा को एक अद्भुत प्रस्ताव दिया। वह इन विश्वासघाती लोगों के नेतृत्व करने के भारी बोझ से छुटकारा पा सकता था। वह एक बार फिर से शुरू कर सकता था और राष्ट्र का पिता हो सकता था!

 

लेकिन मूसा को केवल परमेश्वर किप्रतिष्ठा के बारे में अधिक चिंता थी। मूसा ने स्पष्ट किया कि यदि परमेश्वर इस्राएलियों को नष्ट करता है, तो मिस्र के लोगों के लिए यह एक सबक होगा। वे कहेंगे कि परमेश्वर विफल रहा। लेकिन यदि इस्राएली रहते हैं, तो वे उस देश में जाकर परमेश्वर के अद्भुत कामों के विषय में वर्णन करेंगे जो उसने किये थे। 

 

मूसा ने परमेश्वर को स्मरण दिलाया की कनानी राष्ट्रों ने इस्राएल के परमेश्वर के बारे में सुना हुआ था। वे जान चुके थे कियह अद्भुत परमेश्वर आमने सामने देखा गया था। वे दिन के बादल और रात को आग के बारे में जान चुके थे, और वे पहले से ही चकित थे। जिन लोगों को परमेश्वर इतनी दूर तक ले आया था, वह अब कैसे रुक सकता था? परमेश्वर कि स्वयं किप्रतिष्ठा इस्राएल से बंधी हुई थी, और मूसा परमेश्वर के कामों के लिए उसे सम्मानित होते देखना चाहता था। वह नहीं चाहता था किदूसरे देश के लोग यह कहें कियहोवा अपने लोगों को मरुभूमि से लाने में सक्षम नहीं था। उसने परमेश्वर से कहा;

 

"'इसलिए तुझे अपनी शक्ति दिखानी चाहिए। तुझे इसे वैसे ही दिखाना चाहिए जैसा दिखाने की घोषणा तूने की है। तूने कहा था, ‘यहोवा क्रोधित होने में सहनशील है। यहोवा प्रेम से परिपूर्ण है। यहोवा पाप को क्षमा करता है और उन लोगों को क्षमा करता है जो उसके विरुद्ध भी हो जाते हैं। किन्तु यहोवा उन लोगों को अवश्य दण्ड देगा जो अपराधी हैं। यहोवा तो बच्चों को, उनके पितामह और प्रपितामह के पापों के लिए भी दण्ड देता है! इसलिए इन लोगों को अपना महान प्रेम दिखा। उनके पाप को क्षमा कर। उनको उसी प्रकार क्षमा कर जिस, प्रकार तू उनको मिस्र छोड़ने के समय से अब तक क्षमा करता रहा है।'”

गिनती 14: 12-19

 

यह सुनना कितना दिलचस्प है किमूसा ने परमेश्वर का वर्णन किस प्रकार किया। मूसा बहुत कुछ परमेश्वर के समान हो रहा था। चाहे लोग उसे पत्थर मारने को तैयार थे, फिर भी वह परमेश्वर के प्रकोप और उनके बीच खड़ा रहा! उसके विलंभ से क्रोध करना और बहुतायत का प्रेम दिखाने के बारे में कहा जा सकता है। मूसा ने अपने प्रभु किसेवा बहुत ईमानदारी से की, और यह उसे बदल रहा था। परमेश्वर ने अपने सेवक को सुना और वह उससे प्रसन्न था। उसने कहा;

 

"'मैंने लोगों को तुम्हारे कहे अनुसार क्षमा कर दिया है। किन्तु मैं तुमसे यह सत्य कहता हूँ, क्योंकि मैं शाशवत हूँ और मेरी शक्ति इस सारी पृथ्वी पर फैली है। अतः मैं तुमको यह वचन दूँगा। उन लोगों में से कोई भी व्यक्ति जिसे मैं मिस्र से बाहर लाया, उस देश को कभी नहीं देखेगा। उन लोगों ने मिस्र में मेरे तेज और मेरे महान संकेतो को देखा है और उन लोगों ने उन महान कार्यों को देखा जो मैंने मरुभूमि में किए। किन्तु उन्होंने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया और दस बार मेरी परीक्षा ली। मैंने उनके पूर्वर्जों को वचन दिया था। मैंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं उनको एक महान देश दूँगा। किन्तु उनमें से कोई भी व्यक्ति जो मेरे विरुद्ध में हो चुका है उस देश में प्रवेश नहीं करेगा। किन्तु मेरा सेवक कालेब इनसे भिन्न है। वह पूरी तरह मेरा अनुसरण करता है। इसलिए मैं उसे उस देश में ले जाऊँगा जिसे उसने पहले देखा है और उसके लोग प्रदेश प्राप्त करेगें।'" 

गिनती 14: 20-24

 

तब परमेश्वर ने कहा;

 

"'इसलिए इनसे कहो, ‘यहोवा कहता है कि वह निश्चय ही सभी काम करेगा जिनके बारे में तुम लोगों की शिकायत है। तुम लोगों को यह सब होगाः तुम लोगों के शरीर इस मरुभूमि में मरे हुए गिरेंगे। हर एक व्यक्ति जो बीस वर्ष में या अधिक उम्र का था हमारे लोंगों के सदस्य के रुप गिना गया और तुम लोगों में से हर एक ने मेरे अर्थात् यहोवा के विरुद्ध शिकायत की। इसलिए तुम लोगों में से हर एक मरुभूमि में मरेगा। तुम लोगों में से कोई भी कभी उस देश में प्रवेश नहीं करेगा जिसे मैंने तुमको देने का वचन दिया था। केवल यपुन्ने का पुत्र कालेब और नून का पुत्र यहोशू उस देश में प्रवेश करेंगे। तुम लोग डर गए थे और तुम लोगों ने शिकायत की कि उस नये देश में तुम्हारे शत्रु तुम्हारे बच्चों को तुमसे छीन लेंगे। किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं उन बच्चों को उस देश में ले जाऊँगा। वे उन चीज़ों का भोग करेंगे जिनका भोग करना तुमने स्वीकार नहीं किया। जहाँ तक तुम लोगों की बात है, तुम्हारे शरीर इस मरुभूमि में गिर जाएंगे। तुम्हारे बच्चे यहाँ मरुभूमि में चालीस वर्ष तक गड़ेरिए रहेंगे। उनको यह कष्ट होगा क्योंकि तुम लोगों ने विश्वास नहीं किया। वे इस मरुभूमि में तब तक रहेंगे जब तक तुम सभी यहाँ मर नहीं जाओगे। तब तुम सबके शरीर इस मरुभूमि में दफन हो जाएंगे। तुम लोग अपने पाप के लिए चालीस वर्ष तक कष्ट भोगोगे। तुम लोगों ने इस देश की छानबीन में जो चालीस दिन लागए उसके प्रत्येक दिन के लिए एक वर्ष होगा। तुम लोग जानोगे कि मेरा तुम लोगों के विरुद्ध होना कितना भयानक है।'"

गिनती 14: 28-35

 

वाह। परमेश्वर जब ये बातें कह चुका, उसने एक विपत्ति भेजी और उन सब को नष्ट किया जिन्होंने वापस आकर एक विश्वासघाती रिपोर्ट दी। बारह में से, केवल यहोशू और कालेब को जीने की अनुमति दी गई थी। परमेश्वर का न्याय उन धोखा देने वाले पुरुषों पर गिरा, और उसका आशीर्वाद उन दो पुरुषों पर उंडेल दिया गया जिन्होंने यहोवा पर विश्वास रखा था।

 

हर इंसान का दिल इन दो पुरुषों के समूहों के बीच खड़ा है। हर इंसान के दिल को फैसला करना है। उन्हें उस सृष्टिकर्ता और विश्वासघाती अवज्ञा के विश्वासघात के बीच निर्णय लेना था। इस्राएलियों ने एक गलत चुनाव किया था।

 

मूसा परमेश्वर के न्याय के साथ लोगों के पास गया। वे हज़ारों लोग और उनका परिवार वादे के देश में जाने से काट दिया गया। वे कभी नहीं प्रवेश कर सकते थे। अपने समय में वहाँ तक पहुँचने की सारी उनकी उम्मीदें ख़त्म हो गयी थीं। उनके कूच करने का सपना उनके बच्चों पर पारित होगा। वे जीवनभर मरुभूमि में ही घूमते रहेंगे। उनके जवान बच्चों का जीवन भी वहां घूमने में बर्बाद हो जाएगा। जब उनकी पीढ़ी का अंतिम व्यक्ति रह जाएगा, तब परमेश्वर उस राष्ट्र को वापस वादे के देश में ले जाएगा। इसके लिए और अड़तीस साल लगेंगे।

 

इस्राएल के लोग परमेश्वर के फैसले से बहुत दुखी थे। अचानक उन्हें एहसास हुआ की उनके पाप कितने गंभीर थे, और उन्होंने पछतावा किया। उनमें से बहुत से लोग परमेश्वर को दिखाने के लिए कि उनके दिल परिवर्तित हो गए हैं, वे वादे के देश की ओर जाने के लिए शोर मचाने लगे। वे अब तैयार थे। वे ज़रूर जाते। आक्रमण करने के लिए वे तैयारी करने लगे। लेकिन एक बार फिर, वे परमेश्वर की इच्छा को अनदेखा कर रहे थे! उन्होंने परमेश्वर द्वारा दिए उन लक्ष्यों को अपने तरीके से करने की कोशिश की। उन्होंने फैसला कर लिया कि वे परमेश्वर कि इच्छा को उसके अनुसार पूरी नहीं करेंगे। उन्हें मूसा कि सुननी चाहिए थी! मूसा ने उन्हें यह संदेश दिया;

 

'''तुम लोग यहोवा के आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हो? तूम लोग सफल नहीं हो सकोगे। उस देश में प्रवेश न करो।यहोवा तूम लोगों के साथ नहीं है। तुम लोग सरलता से अपने शत्रुओं से हार जाओगे। अमालेकी और कनानी लोग वहाँ तुम्हारे विरुद्ध लड़ेंगे। तुम लोग यहोवा से विमुख हुए हो। इसलिए वह तुम लोगों के साथ नहीं होगा जब तुम लोग उनसे लड़ोगे और तुम सभी उनकी तलवार से मारे जाओगे।”'

गिनती 14: 41-43

 

लेकिन जिद्दी इस्राएली अभी भी बात नहीं सुनना चाहते थे। शायद सैकड़ों विद्रोही लोग पहाड़ी देश के पास पहुंचे और परमेश्वर की इच्छा के विरुद्ध वादे के देश को जीतने के लिए तैयार हो गए। उस देश में जाने के लिए उन्होंने उसके वचन पर विश्वास नहीं किया, और अब उस पर चढ़ाई करने के लिए भी वे उस पर भरोसा नहीं कर रहे थे। वे अभिमानी थे, और इसके लिए उन्हें भुगतना पड़ेगा। अमालेकियों और पहाड़ी देश के काननियों ने इस्राएलियों के विद्रोही पुरुषों पर हमला किया। उन्होंने उन पर आक्रमण किया, और उन्हें नष्ट कर दिया। क्या इस्राएली कभी अपने परमेश्वर की सुनेंगे?