पाठ 132 : भाग 2

परमेश्वर ने हारून के बाकि के परिवार वालों को शोक मनाने दिया, ताकि वे इन दो पुरुषों को सम्मान दे सकें जिन्होंने ऐसे उच्च क्षण में ऐसी घातक ग़लती की। उन्होंने गंभीरता से उस पवित्र क्षण को नहीं लिया था, और परमेश्वर के वचन की अवहेलना की थी। यह बरदाश्त नहीं किया जा सकता था। उनका परिवार का वंश यहोवा के याजक होंगे। परमेश्वर ने हारून से कहा;  

“'तुम्हें और तम्हारे पुत्रों को दाखमधु या मध उस समय नहीं पीनी चाहिए जब तुम लोग मिलापवाले तम्बू में आओ। यदि तुम ऐसा करोगे तो मर जाओगे! यह नियम तुम्हारी पीढ़ियों में सदा चलता रहेगा। तुम्हें, जो चीज़ें पवित्र हैं तथा जो पवित्र नहीं हैं, जो शुद्ध हैं और जो शुद्ध नहीं हैं उनमें अन्तर करना चाहिए। यहोवा ने मूसा को अपने नियम दिए और मूसा ने उन नियमों को लोगों को दिया। “हारून तुम्हें उन सभी नियमों की शिक्षा लोगों को देना चाहिए।'”

लैव्यव्यवस्था 10: 9-11

बाइबिल के इन पदों को कभी-कभी "पवित्र कम्पास" भी कहा जाता है। एक कम्पास एक यात्री को दिशा दिखाता हैकिकिस ओर उत्तर है। एक बार उन्हें यह मालूम हो जाता है, तो वे जान जाते हैं की दक्षिण कहां है। वे पूरब और पश्चिम की दिशाओं को जान जाते हैं। परमेश्वर से इन वचनों ने हारून को सिखाया की एक सिद्ध जीवन कैसे व्यतीत करना है, और कैसे इस्राएल के देश का नेतृत्व करना है। याजकों को पवित्र होने के लिए अलग किया जाता था, और उन्हें यह जानना ज़रूरी था की क्या पवित्र है और क्या सामान्य है। वे सामान्य बातों के भागी नहीं हो सकते थे। यह एक याजक होने का विशेषाधिकार था!

हारून के पुत्रों ने ऐसा नहीं किया था। उन्होंने धूपदानी को परमेश्वर के पवित्र वेदी के रूप में माना। उन्हें शुद्ध और अशुद्ध के बीच का अन्तर जानना ज़रूरी था। हम लैव्यव्यवस्था की पुस्तक के माध्यम से इन के विषय में और पढ़ेंगे। लेकिन याजकों को इस्राएल के लोगों को यह समझना ज़रूरी था की वे अब सामान्य लोग नहीं थे। वे खून के अभिषेक से और परमेश्वर के वचन के द्वारा पवित्र किए गए थे! वे एक सामान्य व्यक्ति की तरह व्यवहार नहीं कर सकते थे, और उनका इस बात का एहसास ना होना उनके लिए खतरनाक हो सकता था। यह हारून का काम था की वह इस्राएलियों को परमेश्वर के नियम और आज्ञाएं सिखाये। उस भयानक दिन की परमेश्वर की आग द्वारा इस्राएल के दो याजक मरे, परमेश्वर की पिवत्रता से लोग एक बार फिर अवगत हुए। 

उस दिन हारून और उसके दो अन्य पुत्रों ने बलिदान चढ़ाने के कार्य को पूरा किया। पापबलि के लिए वे एक बकरी लाये। उन्होंने परमेश्वर के नियमों को बहुत वफ़ादारी से निभाया। लेकिन जिस मांस के भाग को हारून को खाना चाहिए था, उसने नहीं किया। न ही उसके पुत्रों ने किया। मूसा क्रोधित हुआ। रस्म तभी पूरी होती थी जब याजक उस मांस को खा लेते थे। यह इस्राएल के लोगों से दोष को दूर करता था और उन्हें पवित्र करता था। यह उस बात का प्रतीक था किअब अशुद्धता दूर हो गयी है। यह ऐसा था मानो वे अपने काम को नहीं करना चाहते थे। 

हारून, जो चुपचाप दुःख मना रहा था, मूसा कि ओर मुड़ा। उसने अपने भाई को उस बड़े पाप के विषय में बताया जो उस दिन मंदिर में हुआ था और उसके पुत्रों के शव वहां रखे थे। उनके शरीर अशुद्ध थे और इसलिए जो कुछ उन्हें छूएगा, वह भी अशुद्ध हो जाएगा। उन्होंने मंदिर को दूषित कर दिया था। यदि पापबलि अशुद्धता को अपने अंदर ले लेता है, तो यदि हारून और उसके पुत्र उसे खा लेते हैं तो वे मर सकते हैं। यह बहुत विषाक्त था! और भोजन को खाना परमेश्वर के साथ जश्न मनाना और संगती करने का प्रतीक था। जिस दिन ये घटनाएं हुईं, उस दिन जश्न मनाना गलत होगा। हारून ने कहा कि यदि वे मांस को खाएंगे, तो परमेश्वर प्रसन्न नहीं होगा। जब मूसा ने हारून कि बात को सुना, तो उसने उसकी बात को स्वीकार कर लिया।

मंदिर में परमेश्वर की उपस्थिति कि निकटता एक बहुत बड़ा विशेषाधिकार है जो एक देश को मिलता है। यह एक पवित्र खतरा भी था। कई सालों बाद, इस्राएल के महान नबियों में से एक बताएगा की परमेश्वर के बुलाये हुए देश के लोग पापी और विद्रोही थे; "'सिय्योन में पापी डरे हुए हैं। वे लोग जो बुरे काम किया करते हैं, डर से थर—थऱ काँप रहे हैं। वे कहते हैं, “'क्या इस विनाशकारी आग से हम में से कोई बच सकता है कौन रह सकता है इस आग के निकट जो सदा—सदा के लिये जलती रहती है'”(यशायाह 33:14)। लेकिन वे जो परमेश्वर के पीछे चलते थे, उन्होंने एक अलग गीत गाया। यह गीत कई वर्षों बाद इस्राएल के इतिहास के विषय में लिखा जाएगा, की किस प्रकार वे परमप्रधान परमेश्वर किउपस्थिति में रहते थे: 

"'मैं यहोवा को सदा धन्य कहूँगा।

मेरे होठों पर सदा उसकी स्तुति रहती है।
हे नम्र लोगों, सुनो और प्रसन्न होओ।
मेरी आत्मा यहोवा पर गर्व करती है।
मेरे साथ यहोवा की गरिमा का गुणगान करो।
आओ, हम उसके नाम का अभिनन्दन करें।
मैं परमेश्वर के पास सहायता माँगने गया।
उसने मेरी सुनी।
उसने मुझे उन सभी बातों से बचाया जिनसे मैं डरता हूँ।'"

भजन संहिता 34: 1-4

यह गीत शायद हारून के नियुक्त होने के पांच सौ साल बाद लिखा गया होगा। आप ने देखा की मंदिर के शुरू के दिन कितने महत्वपूर्ण थे? हारून और उसके पुत्रों की नियुक्ति किसी पवित्रता को स्थापित कर रही थी, जो सालों साल के लिए रहेगी। मंदिर का आशीर्वाद जीवित परमेश्वर की उपस्थिति लोगों के लिए एक नमूना था। यह उसके स्वर्ग के सिंहासन का नमूना था। यह लोगों को सिखाएगा की किस प्रकार अपने सृष्टिकर्ता के साथ रहना है। जब हम इन वचनों को पढ़ते हैं, परमेश्वर लगातार मूसा और हारून और इस्राएल के गीतकारों का उपयोग कर रहा है। पैंतीस सौ वर्षों से भी ज़्यादा उनके वचन जारी रहे हैं। हम उनके शानदार और गौरवशाली विरासत का एक हिस्सा हैं।