पाठ 181 : #10 मूसा का चौथी आज्ञा की अतिरिक्त टिप्पणियाँ

जब परमेश्वर ने हर सप्ताह के सातवें दिन सब्त के दिन को मनाने की आज्ञा दी, उसने कहा की वह चाहता था की उसके लोग इसका सम्मान करके उसके प्रति अपनी वफ़ादारी को दिखाएँ। यह प्यार और आज्ञाकारिता को दिखाता था। यह रिश्ता और परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता इतनी महत्वपूर्ण थी की यहोवा ने आदेश दिया कि जो कोई भी यह आज्ञा नहीं मानता है, उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। सब्त के दिन काम करना एक गंभीर अपराध था। यहोवा के साथ संबंध सबसे महत्वपूर्ण बात थी!

यहोवा ने उसकी वाचा को सम्मानित करने के लिए इस्राएलियों के लिए सब्त का दिन ठहराया था। उसने परमेश्वर की वाचा के प्रति प्रेम को दिखाने का समय भी निर्धारित किया था। आज्ञाकारिता का एक अन्य अधिनियम वार्षिक दशमांश था। हर साल, इस्राएल के लोगों को उनकी फसलों और फल, उनकी मदिरा और तेल और निवास के लिए अपने पालतू जानवर का दसवां लाना होता था। इसका मतलब था कि हर दस भेड़ों में से पहलौठा, हर दस अंजीर का पहला फल, और हर दस जैतून के तेल की बोतल में से एक बोतल। 

याजक वेदी पर इन सब चीज़ों को लोगों के लिए यहोवा को प्रदान करता था, और फिर एक महान दावत होती थी। वे भोजन के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते थे है और फिर उसकी मौजूदगी में उसे खाते थे। वे परमेश्वर को इस भव्य भोजन के लिए धन्यवाद करके अपने परिवारों को एक साथ साझा करते थे। 

जो इस्राएली मंदिर से बहुत दूर निवास करते थे, परमेश्वर ने उनके लिए एक अन्य रास्ता प्रदान किया था की वे भी अपनी फसलों और पशुओं का एक दसवां दे सकें। इन चीजों को बेच कर वे याजकों के पास इनके बजाय चांदी ला सकते थे। वे मंदिर से जानवर और भोजन खरीद सकते थे और परमेश्वर को एक आसान तरीके से भेंट चढ़ा सकते थे। क्या परमेश्वर विचारशील और दयालु नहीं है?

हर तीन वर्ष में, इस्राएल के लोगों को परमेश्वर की ओर से मिली वस्तुओं का दसवां हिस्सा देना होता था। मंदिर में लेजाने के बजाय, उन्हें उसे अपने ही शहर में इकट्ठा कर के रखना था। सभी किसानों को सब में से दसवां हिस्सा देना होता था और अगले तीन साल के लिए उसे गरीबों के लिए उपयोग किया जाता था। विधवाओं और उन बच्चों को जिनके पिता नहीं थे, उन्हें यह पारित किया जाता था। यह याजकों को भी बांटा जाता था जिनके पास स्वयं की कोई ज़मीन नहीं थी। क्या परमेश्वर अच्छा नहीं है? अपने देश के प्रति उसकी योजना में, हर एक को एक दूसरे का ध्यान रखना था, और सबसे शक्तिशाली शासक हर किसी के लिए योजना बनाएगा की वे कमज़ोरों का ध्यान रखें। 

यहोवा महान करुणामय परमेश्वर था। वह चाहता था कि उसके लोग उससे प्रेम करें और उसके जैसे बनें। इसका अर्थ है की वे एक दूसरे से भी प्रेम रखेंगे। उसने उन्हें कमज़ोरों और राष्ट्र के गरीब की रक्षा करने की एक और आज्ञा दी। हर सात साल के अंत में, इस्राएल में हर कर्ज स्वचालित रूप से रद्द कर दिया जाता था। वाह। जिस किसी का किसी भी कारण से पैसा बकाया है, तो उसे वह वापस भुगतान नहीं करना पड़ेगा। यदि सब यहोवा की इस योजना का अनुसरण करते हैं, तो देश में कोई गरीब नहीं होगा। अब आप शायद इससे खुश नहीं होंगे यदि किसी को आपका बहुत सारा पैसा बकाया करना है। वास्तव में, आप पांचवें या छठे वर्ष में किसी को भी पैसा उधार नहीं देंगे, यह जानते हुए की सांतवे वर्ष में आपको वो पैसा वापस नहीं मिलेगा। लेकिन यहोवा ने ऐसे विचार से चेतावनी दी थी। यहोवा ने कहा;

"जब तुम उस देश में रहोगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है तब तुम्हारे लोगों में कोई भी गरीब हो सकता है। तुम्हें स्वार्थी नहीं होना चाहिए। तुम्हें उस गरीब व्यक्ति को सहायता देने से इन्कार नहीं करना चाहिए। तुम्हें उसका हाथ बँटाने की इच्छा रखनी चाहिए। तुम्हें उस व्यक्ति को जितने ऋण की आवश्यकता हो, देना चाहिए।गरीब को तुम जितना दे सको, दो और उसे देने का बुरा न मानो। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परम्मेश्वर इस अच्छे काम के लिए तुम्हें आशीष देगा। वह तुम्हारे सभी कामों और जो कुछ तुम करोगे उसमें तुम्हारी सहायता करेगा।"
व्यवस्था 15:7-8, 10)।

उन दिनों में, जीवन बहुत कठिन था। कभी कभी लोग गरीबी के कारण दूसरे परिवार के दास बनने के लिए अपने आप को बेच देते थे। परिवार उन्हें अपना लेते थे। वे उस परिवार के घर में या उनके खेतों में काम किया करते थे। यह शायद कठिन काम था, लेकिन यह सुरक्षा की एक जगह थी। परिवार अपने नौकर, या दास का ध्यान रखते थे, और उनके घर और भोजन का पूरा ध्यान रखते थे। 

हर सात साल, यहोवा आज्ञा देता था किइस्राएल के लोग अपने नौकरों को मुक्त करें। इतना ही नहीं, यहोवा ने कहा कि जब एक नौकर छोड़ कर जाता है, उसे अपने झुण्ड में से भेड़ और फसलों से अनाज उसे उपहार के रूप में देना होगा। उन्हें अपने दाख की बारी से मदिरा देकर उसे विदा करना होगा। यहोवा ने इस्राएलियों को ऐसा करने किआज्ञा दी थी और उन्हें मिस्र में अपनी ग़ुलामी याद दिलाई। यहोवा ने ही उन्हें मुफ्त किया था। वही है जो उन्हें देश में लेकर आया, और उसी ने उन्हें फसलों और पशुओं के साथ आशीर्वाद दिया था। यहोवा चाहता था कि वे अपने नौकरों के साथ उतने ही उदारता के साथ दें जिस प्रकार उसने अपने लोगों को दिया था। 

कभी कभी जिस नौकर ने इतने वर्ष एक परिवार कि सेवा की हो, तो उसे उस परिवार से प्रेम हो जाता था। शायद वे कभी छोड़ कर ना जाना चाहते हों। सोचिये इतनी गरीबी के बाद ऐसे एक अद्भुत परिवार के साथ रहने को मिले जो आपका अच्छी तरह से ध्यान रखता हो। चाहे आप एक नौकर थे, यह एक बहुत अच्छी जगह हो सकती है। यहोवा ने कहा किएक नौकर सातवें वर्ष में उस परिवार के साथ रह सकता था जिसकी उसने सेवा की और उन्हें नहीं छोड़ना चाहता है। मालिक नौकर के कान छिदवा देगा, और वह उस परिवार का दास जीवन भर के लिए बन जाएगा। यहोवा के देश में केवल वही स्थायी नौकर होते थे जो खुश रहते थे और जिन्हें अपने मालिकों से प्रेम मिलता था। जब परमेश्वर प्रभार में है, सब कुछ बहुत पूर्ण और सुंदर हो जाता है!

यह सब समय जो यहोवा ने इस्राएल के राष्ट्र के लिए अलग ठहराया था वह उसके पवित्र लोगों को अलग करने के लिए था। हर सातवें दिन उन्हें विश्राम करना था, हर साल परमेश्वर को धन्यवाद देने के लिए उन्हें दसवां हिस्सा देना होता था, हर तीन साल वे गरीब और अनाथ को उन आशीषों में देते थे, और हर सात साल में उन्हें मौफ़ करने होते थे और हर ग़ुलाम को मुक्त करना होता था। इन खूबसूरत आदेशों से राष्ट्र में अच्छाई और पवित्रता आई। यह दिखाता था कि किस प्रकार उन्हें दूसरे देशों से अलग निर्धारित किया गया था। जीवन का हर हिस्सा यहोवा से जुड़ा हुआ था, उनकी फ़सलें, उनका पैसा, उनके नौकर, इत्यादि। और इन सब से उसे महान महिमा दी जाती थी!