पाठ 156 : कोरह का विद्रोह भाग 1

मानव जाति बहुत पापी है। एक उच्च और पवित्र परमेश्वर है जो आशीर्वाद देना चाहता है, और फिर भी जिस मनुष्य को उसने बनाया वह अपने ऊपर शाप लाता रहा। यहां तक की जिस राष्ट्र पर परमेश्वर ने अपने कीमती वादे बाध्य किये थे, वे भी पाप और विद्रोहकिही समस्या में पड़े हुए थे। समय समय पर, जो परमेश्वर के पवित्र याजक होने के लिए बुलाये गए थे, उन्होंने भी परमेश्वर के रास्तों को अस्वीकार कर दिया। ठीक आदम और हव्वा की तरह, और नूह के बाढ़ के समय और बाबेल में उन लोगों की तरह जो परमेश्वर से भी महान होना चाहते थे। यहोवा ने इब्राहीम के साथ वाचा बांधी थी, और उसका परमेश्वर पर विश्वास उसके लिये धार्मिकता थी। लेकिन इब्राहीम के बच्चों ने अक्सर अपने पूर्वजों के विश्वास का आदर नहीं किया था। इस्राएल का राष्ट्र मरुभूमि के कष्टों से गुज़रता रहा, यह जानते हुए किउनके विद्रोह के कारण उनका वंश वहाँ मर जाएगा। और मूसा उनके ज़िद्दी पाप के बावजूद उनका नेतृत्व करता रहा। 

 

परमेश्वर के धैर्य कि कल्पना कीजिये जो उसने अपने लोगों के प्रति दिखाया। मिस्र से उन्हें बचाने पर भी वे पूरे समय शिकायत करते रहे! सीनै पर्वत तक वे शिकायत करते रहे और बड़बड़ाते रहे। वे उसकी गौरवशाली उपस्थिति के पास पर्वत के निकट जाने से मना करते रहे! उसकी भयंकर महिमा के सामने भी, उन्होंने एक स्वर्ण बछड़ा बनाया! जिस दिन परमेश्वर उन्हें सबसे बड़े सम्मान के साथ उन्हें आयोजित कर रहा था, हारून के पुत्रों ने उसकी पवित्र प्रणाली को ललकारा! उन्होंने दो बार परमेश्वर द्वारा दिए चमत्कारी उपहार, मन्ना, के विरुद्ध बलवा किया। यहां तक ​​कि हारून और मरियम ने भी मूसा को, जो परमेश्वर द्वारा चुना हुआ अगुवा था, उसे अस्वीकार किया। जब परमेश्वर वफ़ादारी से अपने लोगों को वादे के देश कि सीमा पर ले आया, तो लोगों ने उसमें प्रवेश करने से मना कर दिया! तब उन्होंने परमेश्वर के निर्णय को अस्वीकार किया और वादे के देश में जाने किकोशिश की! पूरे समय उन्होंने परमेश्वर के वफ़ादार सेवकों के साथ अवमानना ​​और विद्रोह के साथ व्यवहार किया। उन्होंने मूसा के नेतृत्व पर सवाल उठाये, और कालेब और यहोशू के ज्ञान को अस्वीकार कर दिया! वे उन पर पत्थरवा करना चाहते थे। 

 

और फिर भी, उनके दिल के विचारों और विद्रोह को जानते हुए भी, परमेश्वर उन्हें उस बुलाहट के महान उपहार को देना चाहता था। उसने पर्वत पर और मंदिर में अपनी महिमा को उनके सामने प्रकट किया। वह बादल और आग में हो कर हर पल उन्हें निर्देशित करता रहा। उसने अपने आप को और अपनी प्रतिष्ठा को उनके लिए बांधा, और उन्हें मानक और अनुष्ठान के साथ एक राष्ट्र बनने के लिए आदेश दिया। उसने उनके समाज को ऐसा बनाया की वे सुरक्षित रहे, और उन्हें स्वयं की एक ख़ूबसूरत भूमि देने का वादा किया। जब उन्होंने उद्दंड अहंकार और विश्वास कि कमी दिखा कर उसे पूर्ण रूप से अस्वीकार किया, तौभी वह उनके साथ लगा रहा। वह उनके साथ मरुभूमि में और अड़तीस वर्ष रहेगा, और फिर वह अपने बच्चों को कनानियों पर विजय देने जा रहा था। वह अपने बच्चों को, उनके विश्वास ना करने पर भी, वो भूमि को देगा। कितना दयालू और सब्र करने वाला परमेश्वर है!

 

जिस समय इस्राएली मरुभूमि में फिर रहे थे, उन्होंने एक बार फिर परमेश्वर से बलवा किया। लगभग ढाई सौ इस्राएली मूसा के विरुद्ध खड़े हो गए। कोरह, दातान, और अबीराम उनके अगुवे थे। ये काले रंग के पट्टे वाले विद्रोही नहीं थे, वे देश के सबसे सम्मानित लोगों में से थे। वे परिषद के नियुक्त सदस्यों का एक हिस्सा थे। और वे लेवी थे! वे परमेश्वर के मंदिर में सेवा करते थे। 

 

वे सब एक समूह के रूप में मूसा और हारून का सामना करने के लिए आये। उन्होंने कहा, "'हम उससे सहमत नहीं जो तुमने किया है। इस्राएली समूह के सभी लोग पवित्र हैं। यहोवा उनके साथ है। तुम अपने को सभी लोगों से ऊँचे स्थान पर क्यों रख रहे हो'"    (गिनती 16: 3)।

 

जब मूसा ने यह सुना, वह मुँह के बल गिर गया। मूसा जान गया किक्या चल रहा था। ये लोग स्वयं के लिए और अपनी जनजाति के लिए, सत्ता में रुचि रखते थे। उन्हें परमेश्वर किबातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी। कोरह ने हारून से उसके याजक के पद को छीनने के लिए लोगों में हड़कंप मचा दी! मूसा ने उनसे कहा;

 

''लेविवंशियो! मेरी बात सुनो। तुम लोगों को प्रसन्न होना चाहिए कि इस्राएल के परमेश्वर ने तुम लोगों को अलग और विशेष बनाया है। तुम लोग बाकी इस्राएली लोगों से भिन्न हो। यहोवा ने तुम्हें अपने समीप लिया जिससे तुम यहोवा की उपासना में इस्राएल के लोगों की सहायता के लिए यहोवा के पवित्र तम्बू में विशेष कार्य कर सको। क्या यह पर्याप्त नहीं है? यहोवा ने तुम्हें और अन्य सभी लेवीवंश के लोगों को अपने समीप लिया है। किन्तु अब तुम याजक भी बनना चाहते हो। तुम और तुम्हारे अनुयायी परस्पर एकत्र होकर यहोवा के विरोध में आए हो। क्या हारून ने कुछ बुरा किया है? नहीं। तो फिर उसके विरुद्ध शिकायत करने क्यों आए हो?”

गिनती 16: 8-11

 

वाह। लेकिन मूसा ने उन्हें एक रास्ता दिखाया जिससे मालूम होगा किकौन वास्तव में परमेश्वर किइच्छा का सम्मान करता है। उसने कोरह और अन्य लोगों से यह कहा;

 

'''कल सवेरे यहोवा दिखाएगा कि कौन व्यक्ति सचमुच उसका है। यहोवा दिखाएगा कि कौन व्यक्ति सचमुच पवित्र है और यहोवा उसे अपने समीप ले जाएगा। यहोवा उस व्यक्ति को चुनेगा और यहोवा उस व्यक्ति को अपने निकट लेगा। इसलिए कोरह, तुम्हें और तुम्हारे सभी अनुयायियों को यह करना चाहिएः किसी विशेष अग्निपात्र में आग और सुगन्धित धूप रखो। तब उन पात्रों को यहोवा के सामने लाओ। यहोवा एक पुरुष को चुनेगा जो सचमुच पवित्र होगा। किन्तु मुझे डर है कि तुमने और तुम्हारे लेवीवंशी भाईयों ने सीमा का अतिक्रमण किया है।'”

गिनती 16: 5-7

 

एक तसलीम होने जा रहा था! लेवी कोयले और धूप के साथ छोटी वेदियों के रूप में परमेश्वर किपवित्र धूपदानी को लेकर आएंगे। वे उन्हें परमेश्वर के आगे रखेंगे। यह खतरनाक था। आपको याद है की हारून के पुत्र के साथ क्या हुआ था? उन्होंने धूपदानी में परमेश्वर के लिए अनुचित भेंटें पेश की थीं। परमेश्वर के आगे एक विद्रोही भावना के साथ आना एक बहुत खतरनाक बात है। मूसा जानता था की उसे इन लोगों के साथ बहस नहीं करनी है। वह परमेश्वर किओर घूम सकता था और पूरे राष्ट्र को दिखा सकता था की वह किसकी तरफ़ है। वह जानता था कि परमेश्वर का आशीर्वाद हारून पर था।