पाठ 153 : भूमि का पुरुषों द्वारा सन्वेषण करना

इस्राएल का राष्ट्र पारान मरुभूमि में डेरा डाले हुए था। उन्होंने सीनै से वादे के देश कूच किया था। बाकी दुनिया के लिए, वह कनान कहलाता था। जो लोग वहां पहले से रहते थे वे कनानी कहलाये जाते थे। वे क्या सोच रहे होंगे जब उन्हें यह मालूम हुआ होगा की दो लाख इस्राएली उनके देश के किनारों पर डेरा डाले हुए थे? समय नज़दीक आ रहा था।

 

परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह वादे के देश में छानबीन करने के लिए कुछ पुरुषों को भेजे। उसने मूसा से कहा, लेवियों को छोड़, प्रत्येक गोत्र से एक व्यक्ति को चुने। उन्हें मंदिर में काम करना था। मूसा ने उन पुरुषों को इकट्ठा किया और उन्हें, पहाड़ी देश सहित कनान के पूरे क्षेत्र की छानबीन करने को कहा। उन्हें पता लगाना था किवह देश कैसा है। क्या वहां के लोग मज़बूत और स्वस्थ लग रहे थे? क्या उन्हें जीतना मुश्किल होगा? क्या भूमि अच्छी थी? वहां के शहर कैसे थे? क्या उनके खेतों में अच्छी फसलें पैदा होती थीं? क्या वहां पर बहुत से फलों के बगीचे और पेड़ थे? क्या मदिरा किअच्छी दाख की बारियां थीं?

 

उन लोगों ने उस भूमि किछानबीन की, और वास्तव में, वह अच्छी थी। तब वे लोग एश्कोल की घाटी में आये उन व्यक्तियों ने अंगूर की बेल कि एक शाखा काटी। उन्हें अनार और अंजीर के फल भी मिले। इसका मतलब था की वहां अच्छे फलों के पेड़ थे, जिन्हें बढ़ने में सालों साल लग जाते हैं, और वे वहां पहले से ही अच्छे रूप में थे। इस्राएलियों को मरुभूमि में इन फलों की कितनी कमी थी। यह जानना कितना अद्भुत था कि वह अद्भुत देश उनके सामने था, और परमेश्वर उन्हें उसे लेने के लिए सामर्थ देगा। 

 

चालीस दिनों के बाद, वे पुरुष अपनी यात्रा से लौट आए। खबर सुनने के लिए पूरे राष्ट्र को बुलाया गया। उन्होंने मूसा को बताया;

 

"'हम लोग उस प्रदेश में गए जहाँ आपने हमें भजा। वह प्रदेश अत्यधिक अच्छा है यहाँ दूध और मधु की नदियाँ बह रही हैं! ये वे कुछ फल हैं जिन्हें हम लोगों ने वहाँ पाया किन्तु वहाँ जो लोग रहते हैं, वे बहुत शक्तिशाली और मजबूत हैं। उनके नगर मजबूती के साथ सुरक्षित हैं और उनके नगर बहूत विशाल हैं। हम लोगों ने वहाँ उनके परिवार के कुछ लोगों को देखा भी। अमालेकी लोग नेगेव की घाटी में रहते हैं। हित्ती, यबूसी और एमोरी पहाड़ी प्रदेशों में रहते हैं। कनानी लोग समुद्र के किनारे और यरदन नदी के किनारे रहते हैं।'” 

गिनती 13: 27-29

 

वाह। यह एक अद्भुत जगह की तरह लगती है, लेकिन वहाँ पहले से ही बहुत लोग थे। जब कालेब ने, जो उनमें से एक था, उन्हें वहां के बारे में बताया, तो लोग बड़बड़ाने लगे। जो वह बता रहा था, उस पर विश्वास किया जा सकता था। तब कालेब ने मूसा के समीप के लोगों को शान्त होने को कहा। कालेब ने कहा, “हम लोगों को वहाँ जाना चाहिए और उस प्रदेश को अपने लिए लेना चाहिए। हम लोग उस प्रदेश को सरलता से ले सकते हैं।” गिनती 13: 30b 

 

लेकिन अन्य लोग जो गए थे डरे हुए थे। वे उन महान शहरों और किलों को देख कर घबरा गए। इस्राएल का देश कैसे उस देश को जीत सकता है जो सैकड़ों वर्ष से वहां बसा हुआ है? उन्होंने कहा, "'हम लोग उन लोगों के विरुद्ध लड़ नहीं सकते। वे हम लोगों की तुलना में अधिक शक्तिशाली हैं।'” वे भूल गए थे की इस्राएली अकेले लड़ाई करने नहीं जा रहे थे। जिस तरह उसने फिरौन के साथ किया था, वैसे ही वह स्वयं उनके आगे चलेगा और उन्हें जीत दिलाएगा। 

 

ये बदगुमान लोग सब के पास जा जाकर यह बता रहे थे कियह सब कितना निराशाजनक है। उन्होंने कहा की वह भूमि अच्छी नहीं है, और वहां के लोग राक्षसों के समान विशाल थे। उन्होंने कहा की इस्राएली उन कनानियों की तुलना में टिड्डे की तरह दिखते हैं। 

 

इस्राएल के लोगों ने घनघोर रिपोर्टों को सुना और भयभीत हो गए। उस रात वे एक बार फिर मूसा और हारून के खिलाफ शिकायत करने लगे और विलाप करने लगे। उन्होंने कहा कि इससे बेहतर तो वे मिस्र में ही मर जाते। वे परमेश्वर को उस वादे के देश में लाकर दुश्मन की तलवार से मरने के लिए दोष लगाने लगे। वे चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उनकी पत्नियों और बच्चों को विदेशी सेनाओं द्वारा मार दिया जाएगा। वे मूसा को छोड़ और किसी अगुवे किबात करने लगे जिसे वे अपना नया अगुवा ठहराएंगे, और जो उन्हें वापस मिस्र में ले जाएगा। पूरे डेरे में भय और गड़बड़ी फ़ैल गयी। 

 

यहाँ कुछ बातों को याद करना महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, एक अन्य राष्ट्र पर आक्रमण करना कठिन और भयानक हो सकता है। युद्ध खतरनाक है, और कई पुरुष मर जाएंगे। लेकिन एक वर्ष पहले, इस्राएलियों ने परमेश्वर को दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र को नष्ट करते देखा था। उन्होंने उसकी सामर्थ को सीनै पर्वत पर देखा था। वह उनके साथ दिन में आग के खम्भे में, और रात को बादल के खम्भे में होकर रहता था। उसके बारे में सोचिये! यह अद्भुत परमेश्वर खम्बे को हर बारह घंटे में बदलता था, ताकि वे जानें की वह उनके साथ दिन और रात रहता है। वह उनके लिए हर सुबह मन्ना प्रदान करता था! उन्होंने उसे समुद्र को दो भाग में बाटते देखा था! कब वे इस शक्तिशाली और वफ़ादार परमेश्वर पर भरोसा करना सीखेंगे? कैसे वे दूसरे देशों को उस पर विश्वास करना दिखाएंगे? यदि वे उसे स्वयं उस पर भरोसा करने से इनकार करेंगे, तो वे कैसे दिखाएंगे की वह कितना योग्य है? यह विद्रोह एक गंभीर समस्या थी। परमेश्वर इन विश्वासघाती, भयभीत लोगों के बारे में क्या करेगा?