पाठ 151 : सत्तर अगुवे, आत्मा, और बटेर
इस्राएलियों का एक समूह उस मन्ना की जगह, जो परमेश्वर इतने चमत्कारी ढंग से उन्हें प्रदान कर रहा था, अन्य चीज़ों की इच्छा करने लगे। उनकी शिकायतें अन्य इस्त्राएलियों में फैलने लगी, और बहुत जल्द वे ये बातें कहने लगे;
"'हम माँस खाना चाहते हैं! हम लोग मिस्र में खायी गई मछलियों को याद करते हैं। उन मछलियों का कोई मुल्य नहीं देना पड़ता था। हम लोगों के पास बहुत सी सब्जियाँ थीं जैसे ककड़ियाँ, खरबूजे, गन्ने, पयाज और लहसुन। किन्तु अब हम अपनी शक्ति खो चुके हैं हम और कुछ भी नहीं खाते, इस मन्ने के अतिरिक्त!”
गिनती 11: 4b-6
हर सुबह, प्रति दिन, परमेश्वर अपने लोगों के लिए इस मन्ना को प्रदान कर रहा था। यह ज़मीन पर पड़ा होता था और वे इसे विभिन्न प्रकार की रोटियां बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करते थे। बाइबल बताती है की यह स्वर्ग से ओस की तरह नीचे आता था और ज़मीन पर आ कर गिरता था जहां से लोग आ कर इसे खाते थे। लेकिन अब यह उनके लिए पर्याप्त नहीं था।
जब मूसा ने उनको शिकायत करते सुना, तो वह बहुत क्रोधित हुआ। हर परिवार रो रहा था और शिकायत कर रहा था। मूसा क्रोध में परमेश्वर के पास गया। उसने उससे पूछा;
'' तूने अपने सेवक मुझ पर यह आपत्ति क्यों डाली है मैंने क्या किया है जो बुरा है। मैंने तुझे अप्रसन्न करने के लिए क्या किया है तूने मेरे ऊपर इन सभी लोगों का उत्तरदायित्व क्यों सौंपा है? तू जानता है कि मैं इन सभी लोगों का पिता नहीं हुँ। तू जानता है कि मैंने इनको पैदा नहीं किया है। किन्तु यह तो ऐसे हैं कि मैं इन्हें अपनी गोद में वैसे ही ले चलूँ जैले कोई धाय बच्चे को ले चलती है। तू हमें ऐसा करने को विवश क्यों करता है तू मुझे क्यों विवश करता है कि मैं इन्हें उस देश को ले जाऊँ जिसे देने का वचन तूने उनके पूर्वजों को दिया है मेरे पास इन लोगों के लिए पर्याप्त माँस नहीं है, किन्तु वे लगातार मुझसे शिकायत कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘हमें खाने के लिए माँस दो!’ मैं अकेले इन सभी लोगों की देखभाल नहीं कर सकता। यह बोझ मेरी बरदाश्त के बाहर है। यदि तू उनके कष्ट को मुझे देकर चलाते रहना चाहता है तो तू मुझे अभी मार डाल। यदि तू मुझे अपना सेवक मानता है तो अभी मुझे मर जाने दे। तब मेरे सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे!”
गिनती 11: 11-15
परमेश्वर के पास एक योजना थी। उसने मूसा से कहा;
"'मेरे पास इस्राएल के ऐसे सत्तर अग्रजों को लाओ, जो लोगों के अग्रज और अधिकारी हों। इन्हें मिलापवाले तम्बू में लाओ। वहाँ उन्हें अपने साथ खड़ा करो। तब मैं आऊँगा और तुमसे बातें करूँगा। अब तुम पर आत्मा आई है। किन्तु मैं उन्हें भी आत्मा का कुछ अंश दूँगा। तब वे लोगों की देखभाल करने में तुम्हारी सहायता करेंगे। इस प्रकार, तुमको अकेले इन लोगों के लिए उत्तरदायी नहीं होना पड़ेगा।'"
गिनती 11: 16-17
फिर परमेश्वर ने मूसा से पूरे देश को इकट्ठा करने के लिए कहा। वह उन्हें मांस देने जा रहा था, लेकिन उस तरह जिसकी उम्मीद उन्होंने नहीं की थी। उन्हें केवल एक या दो दिन या दिन में दो बार मांस नहीं मिलने वाला था। परमेश्वर उन्हें एक पूरे महीने के लिए उन्हें मांस खाने के लिए देने जा रहा था। उसने कहा कि उन्हें बहुतायत से मांस खाने को दिया जाएगा। वे उससे थक जाएंगे। लेकिन उनकी सारी शिकायत के बदले में यह बिलकुल सही था। मिस्र में नहीं होने के बारे में शिकायत नहीं करने कि कल्पना कीजिये। परमेश्वर ने उन्हें अच्छे के लिए बचाया और एक बेहतर जीवन दिया, और वे पूरे समय शिकायत ही कर रहे थे!
मूसा सोच रहा था किकी परमेश्वर कहाँ से मांस का प्रबंध करेगा। वे सारी भेड़ और बकरियों और पशुओं को तो नहीं मार सकते थे। उन्हें उनकी वादे के देश में ज़रुरत होगी। इस्राएलियों के डेरे में 600,000 से अधिक पुरुष थे, और इसमें महिलाएं और बच्चे शामिल नहीं हैं। यदि वे समुद्र से मछली भी पकड़ लेते हैं, तौ भी परमेश्वर इतने सारे लोगों को मांस कहाँ से खिलाएगा?
परमेश्वर के पास एक शानदार योजना थी, और वह इस तरह प्रबंध करने जा रहा था जिसका किसी ने भी अनुमान नहीं लगाया होगा। उसने मूसा से कहा, "'यहोवा की शक्ति को सीमित न करो। तुम देखोगे कि यदि मैं कहता हूँ कि मैं कुछ करूँगा तो उसे मैं कर सकता हूँ।'”
वाह। मूसा को विश्वास रखना था! लेकिन यह एक शक्तिशाली चमत्कार होगा। आप को क्या लगता है की परमेश्वर क्या करने जा रहा था?
मूसा गया और सत्तर पुरुषों को एकत्र किया। जब वे मिलापवाले तम्बू के आगे खड़े थे, बादल में परमेश्वर की उपस्थिति नीचे आई और परमेश्वर ने मूसा से बात की। उसने उस आत्मा को जो मूसा के ऊपर थी, लेकर उन अगुवों पर डाल दी। वे तुरंत भविष्यद्वाणी करने लगे। वे परमेश्वर किउपासना करने लगे। यह दिव्य आशीर्वाद का एक शक्तिशाली क्षण था। उन्हें राष्ट्र की सेवा के लिए अलग किया जा रहा था! वे पहले जैसे अब भविष्यद्वाणी नहीं करेंगे।
फिर कुछ आकर्षक हुआ। उनमें से दो अगुवे मिलापवाले तम्बू तक नहीं पहुंचे। उनके नाम एलदाद और मेदाद थे, और वे डेरे में ही रह गए।परन्तु परमेश्वर जानता था कि वे कहाँ हैं, और उसकी आत्मा उन पर आ गयी। वे भी बाकियों की तरह भविष्यद्वाणी करने लगे। एक युवक ने इन्हें भविष्यद्वाणी करते देखा और मूसा के पास भाग कर गया। यहोशू, जो मूसा का वफ़ादार सहयोगी था, इन सब से परेशान हो रहा था। उसने मूसा से कहा कि वह उन्हें रोके!
किन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “'क्या तुम्हें डर है कि लोग सोचेंगे कि अब मैं नेता नहीं हूँ मैं चाहता हूँ कि यहोवा के सभी लोग भविष्यवाणी करने योग्य हों। मैं चाहता हूँ कि यहोवा अपनी आत्मा उन सभी पर भेजे।'”
मूसा कितना एक शक्तिशाली और महान व्यक्ति था। जब परमेश्वर किशक्ति दूसरों पर काम कर रही थी, वह नहीं डरा। वह सारी शक्ति और ध्यान को अपने लिए नहीं बटोरना चाहता था। वह अपने लोगों के बीच परमेश्वर के काम को और अधिक से अधिक देखना चाहता था।परमेश्वर के लिए उनका आध्यात्मिक विकास और निकटता उसके लिए एक आशीष था, ना कि एक खतरा। यह यहोशू के लिए नेतृत्व में एक अद्भुत सबक था।
जब डेरे में यह सब हो रहा था, परमेश्वर का काम भी हर जगह चल रहा था। अपनी शक्ति के द्वारा, वह एक पवन को दूर इस्राएल के देश के ऊपर चला रहा था। समुद्र के ऊपर से, एक शक्तिशाली हवा के सहारे भूमि के ऊपर बटेर को भेजा। ये पूरे उस राष्ट्र के ऊपर जाएगा जो एक वक्रोक्ति और भविष्यद्वाणी करने वाला राष्ट्र था। हवा अंत में इस्राएल के डेरे में बटेर को ले आई और उन्हें वहां छोड़ दिया। वे हर दिशा में लगभग तीन फीट ऊंची तक भर गयी थीं। पूरा डेरा उनसे भर गया और लोगों के चारों ओर एक चक्र कि तरह बना दिया।
पूरे दिन और पूरी रात और पूरे अगले दिन तक, लोग बाहर जाकर बटेर एकत्र करते रहे। प्रत्येक परिवार ने लगभग 60 बुशेल बटेर एकत्र किये! तब भी ये पक्षियां परमेश्वर कि अप्रसन्नता का संकेत थीं। वे इसीलिए आयीं क्यूंकि लोग बहुत अकृत्यगता से शिकायत कर रहे थे। जब लोग उन पक्षियों को पका कर खा रहे थे, तब परमेश्वर ने उन पर एक महान विपत्ति भेजी। वह प्रत्येक का नाम जानता था जिसने भी विद्रोह किया था और ये सब मुसीबतों को बुलाया। वह जानता था की किसका मन वास्तव में विद्रोही था और कौन सारी समस्याओं का कारण था, और उसने उन्हें मार डाला। जिन लोगों ने परमेश्वर के कीमती मन्ना के अलावा अन्य भोजन की मांग की थी वे सब मरुभूमि में गाड़ दिए गए। क्या यह कहानी सुनी हुई लगती है? क्या आपने ऐसी कहानी सुनी हुई है? शुरू के दिनों में जब मूसा लोगों को लाल समुन्द्र से निकाल लाया, उन्होंने मरुभूमि में परमेश्वर के नेतृत्व का पीछा किया। पूरा इस्राएल समुदाय भूखा था और डरा हुआ था। वे शिकायत कर रहे थे और चाहते थे की वे वापस मिस्र को चले जाएं। उनकी शिकायत के बीच, परमेश्वर ने उनके लिए स्वर्ग से मन्ना भेजा। मन्ना के आने से पहले वाली शाम को, उसने लोगों को खिलाने के लिए बटेर भेजा। परमेश्वर कितना दयालु और अनुग्रहकारी था। यह इस कहानी से चालीस साल पहले हुआ था। इस्त्राएलियों ने उन सभी वर्षों में परमेश्वर को उन्हें प्रति दिन मन्ना खिलाते देखा था। यहोवा ने उन्हें नियम और आदेश दिए। वे चालीस साल तक उसकी उपस्थिति में चलते रहे। उन्हें बड़ी बड़ी चीज़ें दी गई थीं, और उनसे बड़े बड़े कामों की अपेक्षा कि गयी थी। वे यह नहीं दिखा सकते थे की वे परमेश्वर कि अच्छाई को नहीं पहचानते हैं। उस पर विश्वास करने के लिए उनके पास बहुत सारे कारण थे। इस कहानी में जो शिकायत थी, वह मरुभूमि में पहले कुछ महीनों की शिकायत से बदतर थी। उन्हें मालूम होना चाहिए था, और इसलिए उनके विरुद्ध बड़ा न्याय होगा।
वे किब्रोथत्तावा नामक स्थान पर थे। बादल उठा और उन्हें हसेरोत नामक स्थान पर ले गया।