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पाठ 104 : सब्त का विश्राम

चौथी आज्ञा बहुत अनमोल है क्यूंकि यह परमेश्वर के लोगों के प्रति उसके प्रेम को दर्शाती है कि, वह उसे अपने लोगों के साथ रहने में कितना आनंद मिलता है।

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पाठ 105 : अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना

यदि इस्राएल के लोग परमेश्वर के चरित्र को सही मायने में दुनिया को दिखाना चाहते थे, उन्हें परमेश्वर किओर सही रीती से चलने का सही रास्ता दिखाना होगा। पहली चार आज्ञाएँ इसी पर आधारित हैं।

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पाठ 106 : अंतिम आज्ञाएं

अंतिम तीन आज्ञाएं यह सिखाती हैं की परमेश्वर के लोगों का व्यवहार एक दूसरे के साथ कैसा होना चाहिए। सांतवी आज्ञा बताती है कि परमेश्वर चाहता था की विवाह कि वाचा की पवित्रता और अच्छाई का सम्मान हो।

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पाठ 107 : वाचा की पुस्तक पाठ 1: गुलाम और महिलाओं के नियम

सीनै पर्वत पर काले बादलों और जलती हुई आग के भीतर से परमेश्वर किआवाज़ ने दस आज्ञाओं कि घोषणा की। इस्राएलियों ने उसे उसकी महिमा और पवित्रता के बीच सुना। वे बहुत भयभीत हुए। वे बहुत व्याकुल हुए, और वे दबाव में आकर झुक गए।

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पाठ 108 : वाचा की पुस्तक पाठ 2: परमेश्वर के मानव जीवन के नुकसान के बारे में "यदि"

वाचा किपुस्तक में, परमेश्वर इस्त्राएलियों को हर एक बुरी बात के लिए जो लोगों के बीच होती थी, यह नहीं बताता था किउन्हें क्या करना चाहिए।

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पाठ 109 : वाचा की पुस्तक: पर्व

वाचा किपुस्तक में, परमेश्वर ने इस्राएल के न्यायाधीशों के लिए ऐसे नियम दिए जो उन्हें लोगों की समस्याओं के लिए निर्णय लेने में मदद करेंगे। किताब इस्त्राएलियों को उन बातों को भी सिखाती है जो उन्हें परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए अच्छे शालीन व्यवहार करने में मदद करेगी।

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पाठ 110 : देश का प्राप्त करना

परमेश्वर अपने लोगों के राष्ट्र का निर्माण कर रहा था जो उसके अनमोल संपत्ति थे। उसने मूसा के ससुर 'यित्रो' का उपयोग एक अदालत प्रणाली को बनाने में किया। जिन बुज़ुर्गों को उन्होंने चुना था, वे यह तय करेंगे की किसे संरक्षण दिया जाये और किसे सज़ा दी जाये।

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पाठ 111 : वाचा की पुष्टि

अगली सुबह, यहोवा से वाचा किपुस्तक प्राप्त करने के बाद, मूसा जल्दी से उठकर पर्वत के पास गया। उसने एक वेदी बनाई और इसके चारों ओर पत्थर के बारह खंभे बनाये। प्रत्येक स्तंभ इस्राएल के बारह जनजातियों का प्रतीक था। वेदी परमेश्वर की उपस्थिति का संकेत था।

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पाठ 112 : सन्दूक: परमेश्वर का स्वर्ण सिंहासन

आप सोच सकते हैं कि मूसा के लिए वापस सीनै पर्वत पर उन सामर्थी बादलों में परमेश्वर से भेंट करना कैसा होगा? पूरा देश पर्वत के पास आने से डर रहा था! और परमेश्वर ने उन्हें आगे आने से मना किया था! बुज़ुर्गों को आधे रास्ते तक आने की अनुमति दी गई थी, और परमेश्वर ने उनके साथ विशेष रूप से भेंट की।

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पाठ 113 : पवित्र स्थान के स्वर्ण सामग्री से लेकर कांस्य से बना संदूक

परमेश्वर ने तम्बू बनाने के लिए साज-सामान के निर्देश दिये। सन्दूक को सबसे पवित्र स्थान में रखना था। यह परमेश्वर का सिंहासन था, यह पृथ्वी पर सबसे पवित्र जगह थी। यह एक अत्यंत पवित्र स्थान था। परमेश्वर ने मूसा को उसके साज-सामान के विषय में वर्णन दिया। जो वर्णन उसने सन्दूक के लिए दिया था वैसा ही वर्णन उसने दिए।

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पाठ 114 : नियम और मन्दिर

परमेश्वर हर तरह से अपने लोगों को आगे बढ़ा रहा था। अपने वाचा के लोगों को आशीर्वाद देने के लिए वह कितना उत्साहित था! दस आज्ञाओं और वाचा की पुस्तक के साथ, परमेश्वर ने उसके पीछे चलने के लिए अपने लोगों को एक रास्ता दिखा दिया था। वे समझ सकते थे की परमेश्वर में पवित्र जीवन बिताना क्या मायने रखता था।

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पाठ 115 : याजकों के वस्त्र: एपोद और निर्णय का कवच

अपने लोगों के बीच परमेश्वर किपवित्र उपस्थिति का स्थान उसका मंदिर था। लेकिन वह कैसे उन के बीच रह सकता था? उनके पाप का ज़हर विषाक्त था, और उसकी पवित्रता बुराई कि हर ताकत को नष्ट कर देगी। सीनै पर्वत पर उसकी भयानक शक्ति को देख कर लोगों का कांपना सही था।

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पाठ 116 : हारून और उसके पुत्रों की नियुक्ति

परमेश्वर ने मूसा को उसके विशेष मंदिर के निर्माण और उन याजकों के वस्त्रों के विषय निर्देश दिए जो उसकी सेवा करेंगे। याजक परमेश्वर और उसके लोगों के बीच रहकर एक विशेष अंतरंगता में काम करेंगे। परमेश्वर ने उसे बताया कि कैसे मंदिर के बन जाने के बाद उसे याजकों को पवित्र करना है।

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पाठ 117 : अविच्छिन्नित: नियुक्ति की मेढ़

दूसरी मेढ़ नियुक्ति किमेढ़ थी। मूसा को उसे उसी प्रकार वध करना था जिस प्रकार उसने पहले किया था। जिस समय मूसा उसको वध कर रहा था हारून और उसके पुत्रों को उसके सिर पर अपने हाथ रखने थे। फिर कुछ खून लेकर हारून और उसके पुत्रों के दाएं कान के निचले भाग में लगाना था।

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पाठ 118 : धूप जलाने की वेदी और अभिषेक का तेल

जब मूसा परमेश्वर के साथ सीनै पर्वत पर बात कर रहा था, परमेश्वर ने उसे एक और बहुत ही विशेष वेदी बनाने के निर्देश दिये। बबूल कि लकड़ी किएक वेदी बनाकर उसे वर्गाकार अट्ठारह इंच लम्बी और अट्ठारह इंच चौड़ी बनानी थी।

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पाठ 120 : अपने लोगों के लिए यहोवा के सेवक द्वारा मध्यस्थता

यह विद्रोह अत्यधिक था। यह उनका परमेश्वर के प्रति कुल, पूर्ण अविश्वास था। मूसा जब पर्वत पर गया, वह हारून और बुज़ुर्गों को आदेश देकर गया कि वे लोगों की देखभाल करें। उन्हें परमेश्वर के नियमों का सम्मान करना था और लोगों के बीच शांति बनाए रखनी थी।

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पाठ 121

परमेश्वर और मूसाजब पर्वत पर एक साथ थे, परमेश्वर ने मूसा को लोगों के भयानक विद्रोह के बारे में बताया था। मूसा ने दया के लिए परमेश्वर से बिनती की थी। तब मूसा पर्वत से नीचे गया और स्वयं उनके महान विद्रोह को देखा।

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पाठ 122 : मूसा और उसका प्रभु

मूसा मिलाप वाले तम्बू को डेरे के बाहर लगाएगा। वह लोगों से कुछ दूर जाकर परमेश्वर से प्रार्थना करेगा और उसकी पवित्र इच्छा को जानेगा। जब भी लोग उसे जाते देखते, वे तम्बू के बाहर खड़े होकर उसे देखते थे।

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पाठ 123 : सीनै में एलीमेलेक

शालोम! यह फिर से एलीमेलेक है। हमने कुछ समय से बात नहीं की है, और मेरे पास आपको बताने के लिए बहुत कुछ है। मैंने ज़रूर से आपको बताया होगा की किस प्रकार हमारे यहोवा ने मिस्र की ग़ुलामी से अपने लोगों को बचाया था।

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