पाठ 107 : वाचा की पुस्तक पाठ 1: गुलाम और महिलाओं के नियम
सीनै पर्वत पर काले बादलों और जलती हुई आग के भीतर से परमेश्वर किआवाज़ ने दस आज्ञाओं कि घोषणा की। इस्राएलियों ने उसे उसकी महिमा और पवित्रता के बीच सुना। वे बहुत भयभीत हुए। वे बहुत व्याकुल हुए, और वे दबाव में आकर झुक गए। तब लोगों ने मूसा से कहा, “'यदि तुम हम लोगों से कुछ कहना चाहोगे तो हम लोग सुनेंगे। किन्तु परमेश्वर को हम लोगों से बात न करने दो। यदि यह होगा तो हम लोग मर जाएंगे।'” तब मूसा ने लोगों से कहा, “'डरो मत! यहोवा यह प्रमाणित करने आया है कि वह तुमसे प्रेम करता है।'” मूसा उन्हें बता रहा था की उनका यहोवा के प्रति यह भय अच्छा था। यह उन्हें पाप ना करने का चुनाव करने में मदद करेगा! यह पाप से उन्हें स्वतंत्रता देगा!
सीनै पर्वत से परमेश्वर को सुनने से इस्राएलियों को यह समझने में मदद हुई की परमेश्वर कितना बड़ा और महान और शक्तिशाली है। जब वे पाप प्रलोभन में पड़ेंगे, तो उन्हें परमेश्वर की महानता और पराक्रम याद आएगी और इससे वे सही सिद्ध विकल्प बना सकेंगे।
परमेश्वर किशक्ति से भयभीत होकर वे पहाड़ी से दूर रहे। वे चाहते थे कि मूसा उनके और इस परमेश्वर के बीच मध्यस्थ करे। अब से वही उनका बिचवई होगा। जिस आवाज़ ने दस आज्ञाओं को घोषित किया था, वही अब मूसा के माध्यम से अपने लोगों को अपने संदेश को देगा।मूसा परमेश्वर के साथ बात करने के लिए उस गहरे अंधेरे में ऊपर चढ़ गया।
तब यहोवा ने मूसा से इस्राएलियों को बताने के लिए ये बातें कहीं: “तुम लोगों ने देखा कि मैंने तुमसे आकाश से बातें की। (निर्गमन 20: 23-23: 33) । तब परमेश्वर ने दस आज्ञाएं दीं। दस आज्ञाओं के ये नियम बताते हैं की किस प्रकार ये जीवन के हर दिन में काम करते हैं।
दूसरा नियम जो वाचा किपुस्तक में है वह ग़ुलामों के साथ करने वाले वयवहार के विषय में है। उन दिनों में, लोग इतने गरीब थे की वे भूखमरी से मर सकते थे। उनके पास कोई काम नहीं था और अक्सर कोई घर भी नहीं थे। वे हताश थे। काम करने के लिए वे अपने आप को एक अन्य परिवार को बेच देते थे। परिवार अपने नए दास के लिए भोजन और अक्सर एक घर प्रदान करता था। वे उन्हें घर में या खेत या अन्य कामों में लगा देते थे। वे दास के लिए सुरक्षा प्रदान करते थे। अब हम इस प्रकार की गुलामी को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन उन दिनों में यह जीवन का एक आवश्यक और अक्सर अनुग्राही हिस्सा था।
ग़ुलाम को खरीदने के लिए मालिक अक्सर पैसे देता था, और उसके रहने का भुगतान भी करता था। वे उनके लिए सब कुछ प्रदान करते थे। यह एक ग़ुलाम की देखभाल के लिए एक बहुत बड़ा फ़ैसला था। यदि ग़ुलाम एक चोर या आलसी या झूठा होता है, तो यह जीवन को बहुत कठिन बना सकता है। परमेश्वर जानता था की मनुष्य पापी है। वह जानता था कि मालिक बहुत पापी होते हैं, और ग़ुलाम भी पापी हो सकता है।
यहोवा पूरे राष्ट्र का परमेश्वर था। उसे ग़ुलाम और उन परिवारों कि चिंता थी जिनके लिए वे काम करते थे। इसीलिए उसने ऐसे नियम बनाये ताकि राष्ट्र के न्यायधीश सबकी रक्षा न्याय के साथ कर सके। यदि कोई मालिक अपने ग़ुलाम की पिटाई करता है और उस ग़ुलाम की पिटाई से मृत्यु हो जाती है, तो मालिक मौत के लिए दंडित किया जाएगा। यदि मालिक ग़ुलाम को इस प्रकार दण्ड देता है जिससे वह फिर ठीक नहीं हो सकता, तो उसे उस ग़ुलाम को स्वतन्त्र कर देना होगा। उदाहरण के लिए, यदि ग़ुलाम की आंख क्षतिग्रस्त हो जाती है या उसके दांत टूट जाते हैं, तो उस ग़ुलाम पर मालिक का कोई अधिकार नहीं रह जाता है और उसे जाने देना होगा। चाहे उस ग़ुलाम के लिए उसने कितना भी भुगतान किया हो, ग़ुलाम का शरीर मूल्यवान है और मालिक को उस पर किसी प्रकार का नमसन करने का कोई अधिकार नहीं रह जाता। यदि ग़ुलाम को मारते समय उसे कोई चोट नहीं पहुंचती है और वह अगले दिन फिर से ठीक होकर काम पर लग जाता है, तो मालिक को कोई दण्ड नहीं मिलेगा। मालिक को ग़ुलाम को अनुशासन करने का अधिकार था। कितने ध्यान से और बुद्धिमानी से यहोवा अपने लोगों पर शासन करता था! मालिक और ग़ुलाम दोनों बराबर से संरक्षण प्राप्त करते थे।
इस्राएल के देश में विनम्र और गरीब किरक्षा के लिए परमेश्वर ने और कानून दिए। हर सात साल में, इस्राएल में हर एक हिब्रू ग़ुलाम मुक्त किया जाता था। यदि वह खुद से उस परिवार में रुकना चाहता था तो वही एक समय था की एक ग़ुलाम एक परिवार में लंबे समय तक रह सकता था। यदि एक ग़ुलाम चाहता है की वह उस परिवार में हमेशा के लिए रहे, तो वचनबद्ध के आधार पर वह ऐसा कर सकता था। यह उसका निर्णय होता, लेकिन वह जब चाहे तब वैसा नहीं कर सकता था। परमेश्वर परिवार की भी रक्षा करता था। जब आज़ादी के सात साल हो जाते थे, तब दोनों पक्षों को एक दूसरे को जीवन भर के लिए चुनना होता था!
हर सात साल में ग़ुलामों के मालिक को पुरुष ग़ुलाम को इच्छा अनुसार छोड़ सकते थे। (निर्गमन 21 : 7-11) हालांकि, परमेश्वर ने इस्राएल कि महिला ग़ुलाम के लिए विशेष संरक्षण बनाये। उनके लिए, काम ढूंढना और भी अधिक कठिन था। महिलाओं की भूमिकाएं भिन्न थीं। एक पत्नी या बहन या बेटी होते हुए, उन्हें घरेलू काम करने होते थे। खेत के कठिन शारीरिक श्रम घर के बाहर सबसे आम काम था, और महिलाएं पुरुषों के समान इतनी ताक़तवर नहीं होती हैं। उन दिनों में, पुरुष और स्त्रियां एक दूसरे से एक विशेष दूरी रखते थे। एक मुख्य कारण था की बुरे पुरुषों से महिलाओं कि रक्षा के लिए ऐसा किया गया था। पति और पिता चाहते थे किउनकी स्त्रियां सुरक्षित रहें क्यूंकि वे जानते थे की दूसरे पुरुष कितने पापी थे।
कभी कभी एक परिवार इतना ग़रीबी में चला जाता था की वे अपने बच्चों किपरवरिश ठीक से नहीं कर पाते थे। जीने के लिए उन्हें बहुत कठिन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता था। कभी कभी उन्हें ग़ुलामी करने के लिए अपने बच्चों को बेचना पड़ता था। यह अपने बच्चों के जीवन को सुनिश्चित करने का एक रास्ता था, और यह उन्हें एक स्थायी काम दे देता था। इससे उन्हें जीने के लिए कुछ पैसे भी मिल जाते थे। यदि एक पिता अपनी बेटी को ग़ुलाम होने के लिए बेच देता था, तो उसे एक सुरक्षित परिवार मिल जाता था। परन्तु यदि वह परिवार उसे जाने देता है, तो यह उसके लिए ख़तरा पैदा कर सकता था। एक सुरक्षा के रूप में, यहोवा ने आज्ञा दी किपरिवार को उसकी रक्षा सुनिश्चित करनी होगी। वे उसे किसी अन्य इस्राएली परिवार द्वारा मुक्त करवा सकते थे, लेकिन वे विदेशियों को उसे बेच नहीं सकते थे। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता था की वह यहोवा के न्यायियों और अदालतों के परिवार में संरक्षित रहे।
परिवार के लिए एक अन्य विकल्प यह था कि अपने स्वयं के बेटों में से एक के साथ उस ग़ुलाम लड़की का विवाह करा दें। इस्राएल में, और आज दुनिया के कई देशों में, एक जवान पुरुष और स्त्री का विवाह उनके माता पिता के माध्यम से होता है। एक पिता और माँ अपने बेटे या बेटी के लिए एक अच्छे वर के लिए दूसरे माता पिता से बात करते थे। इस्राएल में, पुत्र के परिवार को दुल्हन के परिवार को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती थी। यह एक दहेज कहलाता था। लेकिन एक परिवार अपने पुत्र का विवाह अपने स्वयं की ग़ुलाम लड़की के साथ विवाह कर देते हैं, तो उसका पहले से ही भुगतान हो जाता था जिस समय उसे खरीदा गया था। लेकिन उस लड़की के लिए यह खतरनाक हो सकता था। क्या यदि उसके उनके बेटे से विवाह हो जाने के बाद भी वे उसे एक ग़ुलाम की तरह रखते हैं? क्या यदि बेटा एक और पत्नी ले आता है और उसे अस्वीकार कर देता है? परमेश्वर अपने देश किमहिलाओं के साथ ऐसे व्यवहार किअनुमति नहीं दे सकता था। एक बार एक ग़ुलाम एक पत्नी बन जाती है, तो उसे परिवार का एक सदस्य होने के सारे अधिकार मिलने होंगे। उन्हें उसे वह सब सम्मान देना होगा जो दूसरी पत्नी को दिया जाता है। यदि उसे उन चीजों को नहीं दिया जाता है, तो वह मदद के लिए इस्राएल के न्यायाधीशों के पास जा सकती थी। परमेश्वर का नियम कहता है कि ऐसी स्त्री बगैर किसी भुगतान दिए मुक्त हो कर जा सकती थी।
शायद इन नियमों की सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि वे परमेश्वर कि भव्य दया, सुरक्षा, और दया को दिखाते हैं। उस समय अधिकांश देशों में, ग़ुलामों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता था जैसे किउनका कोई मूल्य नहीं है। वे कुत्तों कि तरह थे। उनके जीवन का कोई मोल नहीं था। कोई भी मानव अदालत या परमेश्वर उन्हें रक्षा नहीं दे पाता था। यह अक्सर गरीबों के साथ ही होता था। अमीरों के साथ अच्छा व्यवहार होता था, जबकि भेद्य और नम्र लोगों को सताया जाता था। दूसरे देशों के कानून उनके विरुद्ध में जाते थे, और अमीर और ताकतवर की रक्षा करते थे। उन्हीं देशों में, महिलाओं और लड़कियों के साथ भी बुरा व्यवहार होता था। केवल पुरुषों और लड़कों किकीमत थी। लेकिन परमेश्वर के पवित्र देश में, कमज़ोर और भेद्य लोगों को वही न्याय और अच्छी देखभाल मिलनी होती थी जो और किसी को मिलती थी। महिलाओं और बच्चों और ग़रीबों को यह विश्वास था की परमेश्वर उन्हें देखता है और वह उनके लिए न्याय करेगा। वे जानते थे कियदि उन नियमों को नहीं माना गया जो उनकी सुरक्षा के लिए बनाये गए थे, तो परमेश्वर क्रोधित होगा और वे मदद के लिए न्यायाधीशों के पास जा सकते थे। एक स्त्री या एक ग़ुलाम के लिए इस्राएल में रहना और किसी देश से कितना भिन्न था।
बेशक, परमेश्वर कि निष्कलंक दुनिया में, गरीब और कमज़ोर किरक्षा के लिए इन कानूनों की ज़रूरत कभी नहीं होगी। आदम और हव्वा के पाप से मिले उस भयानक अभिशाप के कारण ही ग़ुलामी जैसी चीज़ें दुनिया में आयीं। अदन की वाटिका में, इस सब कि कोई भी आवश्यक नहीं होती। लेकिन परमेश्वर मानवता को आशीर्वाद देना चाहता था, और इसलिए उसने अपने पवित्र राष्ट्र को पवित्रता में रहने के लिए एक कीमती और पवित्र नियम दिया। वे दूसरे देशों को यह दिखा सकें की वाटिका में ऐसा जीवन जो दुनिया ने कभी नहीं देखा है, वे उससे परमेश्वर कि महिमा कर सकते थे।