पाठ 123 : सीनै में एलीमेलेक

शालोम! यह फिर से एलीमेलेक है। हमने कुछ समय से बात नहीं की है, और मेरे पास आपको बताने के लिए बहुत कुछ है। मैंने ज़रूर से आपको बताया होगा की किस प्रकार हमारे यहोवा ने मिस्र की ग़ुलामी से अपने लोगों को बचाया था। लाल समुन्द्र से मेरे लोगों का पार होना, मेरे परमेश्वर की श्रद्धा से मेरे दिमाग़ में तस्वीर छा जाती है। इन शानदार किस्सों को जानकर, आप समझ रहे होंगे कि हम कितने सामर्थी परमेश्वर कि सेवा करते हैं। वह कितना महान और भयानक है।

 हमारे लोगों ने समुन्द्र को महान रेगिस्तान से कूच किया था। बादल और आग के खम्भे ने हमें कभी नहीं छोड़ा। यह हमें उस स्थान में लेकर गए जहां मूसा, जो हमारा महान अगुवा है, चालीस साल तक वहां रहा। मूसा के जीवन की कहानियां पूरे डेरे में फ़ैल गयी। आग के आस पास बैठ कर, हम मिस्र से उनके पलायन के विषय में बात करते थे, उसकी पत्नी सिप्पोरा, और जलती झाड़ी के सामने उसकी पुकार। मेरे पिता शांत श्रद्धा के साथ बात करते थे। परमेश्वर अपने ग़ुलामी में फंसे लोगों के लिए एक राह की तैयारी कर रहा था। एक हिब्रू, जो फिरौन के महल में पला बढ़ा, उसे भी मरुभूमि में एक बंजारे के रूप में कैसे जीना है, उसने सीखा। जब हम मिस्र के आराम से निकल कर यात्रा पर निकले, हमें एहसास हुआ की हमें मरुभूमि में रहना नहीं आता है। हमें आसमान के नीचे सोना और दिन कितपिश में रहना नहीं आता था। लेकिन मूसा ने किया।

 

वह हमें सीनै पर्वत के पास, उस जगह ले गया जो उसका घर हुआ करता था। अब हम खुद से जलती झाड़ी के पहाड़ को देख सकते थे। मूसा यहोवा को मिलने चला गया। जब वह लौटा, वह उन वचनों के साथ आया, जो हमें हमारी गुलामी से बचाने वाले उद्धारकर्ता के साथ जोड़ देगा। कैसे ये शब्द हमारे दिलों पर खोद दिए गए हैं। उसने कहा, "तुम लोगों ने देखा कि मैंने मिस्र के लोगों के साथ क्या किया। तुम ने देखा कि मैंने तुम को मिस्र से बाहर एक उकाब कि तरह पंखों पर बैठाकर निकाला। और यहाँ अपने समीप लाया। इसलिए अब मैं कहता हूँ तुम लोग मेरा आदेश मानो। मेरे साक्षीपत्र का पालन करो। यदि तुम मेरे आदेश मानोगे तो तुम मेरे विशेष लोग बनोगे। समस्त संसार मेरा है। तुम एक विशेष लोग और याजकों का राज्य बनोगे।’"(निर्गमन 19: 4-6)। कैसे हम परमेश्वर द्वारा कही हर बात को मानने के लिए तैयार रहते थे। 

परमेश्वर ने एक बार फिर से अपने आप को आग में प्रदर्शित किया, केवल इस बार वह सामर्थ और शक्ति से भरा हुआ था की हम डर कर काँप उठे। अब तक हमने, परमेश्वर के काम को एक हवा के समान देखा था। यह बहुत कोमलता के साथ आता है और हम उसके पत्तों को और शाखाओं को लहराते हुए देखते हैं। यह रोष के साथ आता है और तूफ़ान से यह नीचे हो जाता है। हमने परमेश्वर के कामों को विपत्तियों और सागर में देखा था। उसे हर सुबह देखा जब हमारे लिए मन्ना ऊपर से आता था। लेकिन जब परमेश्वर सीनै पर्वत पर आया, तो वह अपनी पूरी सामर्थ में आया। मिस्र में जो सामर्थी काम उसने कर के दिखाया, वह इस पर्वत पर उसके शक्तिशाली और महान काम की तुलना में कुछ भी नहीं था। यह उसकी अविश्वसनीय महिमा के कारण काँप उठा। पृथ्वी परमेश्वर के आगे काँप उठी। सीनै पर्वत पर काले बादल छाए, और तेज़ गर्जन हुई। यह ऐसा था मानो उसके आने से प्रकृति टूट गयी, और वह उसकी भव्यता को सहन नहीं कर सकी। यही है परमेश्वर जिसने सब कुछ बनाया, और वह हमारे निकट आ गया था। उसी पल मेरा हृदय लालसा से भर गया। मैं दिल की गहरायी से जानता था कि मैं परमेश्वर के योग्य नहीं था। 

 

हम अपने शक्तिशाली परमेश्वर कि उपस्थिति में कितने भयभीत और दयनीय लोग थे! अचानक हम इस सिद्ध जन के और अपने कमज़ोर शरीर के बीच उस अन्तर को देख सके, जो सभी के जीवन को नियंत्रण में रखता है। मुझे यह सोच के शर्म आती है की मैंने भी अपने पिता और मेरे लोगों के साथ मूसा के आगे आवाज़ उठाई। हम इस शक्तिशाली उपस्थिति के सामने नहीं टिक सकते थे। यह हमारे हज़ारों टुकड़े कर देगी। हमें किसी एक मध्यस्थ की ज़रुरत थी जो हमें इस ज़बरदस्त शक्ति से राहत दिलाय। यह परमेश्वर हमारी समझ से बाहर था। 

 

मूसा परमेश्वर के पास हमें लेकर गया, और यहोवा सहमत हुआ। मैं नहीं समझ सकता की मूसा ने कैसे उस उज्जवल पर्वत पर जाने की हिम्मत की। मूसा सीनै पर्वत पर चढ़ा और परमेश्वर के बादलों और आग में गायब हो गया और कई दिनों के लिए वापस नहीं आया था। बहुत से बेचैन होने लगे थे, यह सोच कर की अब हमें क्या करना चाहिए। उस समय, लोगों के सुझाव उचित लग रहे थे। वे हारून के पास गए और एक स्वर्ण बछड़े की मूर्ती की मांग की। यह एक माननीय सीट के समान था, जो परमेश्वर के रथ कि तरह था। हम पहाड़ पर यहोवा की उपासना करेंगे। 

 

जब जश्न शुरू हुआ, यह स्पष्ट हो गया की इन लोगों का इरादा उन लोगों से अलग था जो सच्चे दिल से उपासना करना चाहते थे। और जल्द ही, जश्न में मदिरा बटने लगी। पुरुषों और महिलाओं की हरकतों से पूरा देश शर्मिंदा हुआ। मेरे पिता और मेरे चाचा उनके मद्यपान और ऐयाशी को देख कर चकित रह गए। पाप इतना बुरा था की वे भी अपनी पत्नियों को नहीं बता सकते थे की वे क्यूँ इतने घृणित और क्रोधित हैं। मेरे पिता केवल इतना ही कह रहे थे की वे खुश थे की हमारा डेरा उस जश्न और उन दुष्ट लोगों के स्वर्ण बछड़े से दूर था। 

 

जब मूसा लौटा, तो उसका भी क्रोध हमारे डेरे के लोगों से कोई कम नहीं था। चालीस दिन परमेश्वर कि उपस्थिति में रहने के बाद, यह दृश्य कितना विद्रोही रहा होगा। मेरे पिता पछताय की वे भी मूसा और लेवियों के साथ परमेश्वर के लोगों का बदला लेने क्यूँ नहीं चले गए, जो लोगों के बीच पाप कि गंदगी को फैला रहे थे। 3000 लोग मर गए, और जब मेरे पिता ने इसके बारे में सुना, तो वे राहत के साथ रोने लगे। क्या अगर उन पुरुषों को शासन करने की अनुमति दी जाती? वे चतुर थे, और वे हारून के विरुद्ध गए। वे अपने पाप में फंस चुके थे, और परमेश्वर की उपस्थिति होने पर भी वे परमेश्वर के प्रति बेपरवाह थे। वे स्वयं शैतान के बीज की तरह थे। वे हमारे राष्ट्र को नष्ट कर सकते थे। 

 

मूसा वापस पर्वत पर और चालीस दिन के लिए चला गया। जब वह लौटा, वह हमारे लिए उन कीमती आज्ञाओं और वाचा किपुस्तक को ले आया।