पाठ 108 : वाचा की पुस्तक पाठ 2: परमेश्वर के मानव जीवन के नुकसान के बारे में "यदि"
वाचा किपुस्तक में, परमेश्वर इस्त्राएलियों को हर एक बुरी बात के लिए जो लोगों के बीच होती थी, यह नहीं बताता था किउन्हें क्या करना चाहिए। यह एक बहुत लम्बी किताब हो जाती! परमेश्वर ने कुछ उदहारण दिए, जैसे ग़ुलामों के विषय में, जिन्हें इस्राएल के न्यायाधीश एक नमूने या उदाहरण के रूप में उपयोग कर सकते थे। यह उन पापों के लिए सज़ा भी बताते थे जो कुछ पापों के लिए ठहराए गए थे। मूसा ने कुछ बुद्धिमान लोगों को न्यायाधीश चुना, और उन पर अदालत के फ़ैसलों के लिए भरोसा किया जा सकता था की वे परमेश्वर का सम्मान करेंगे। परमेश्वर के नियमों का आदर करने का एक भाग यह भी था किउन न्यायधीशों का सम्मान करना जिन्हें परमेश्वर ने ठहराया था।
वाचा कि पुस्तक का दूसरा उदाहरण उस नियम के विषय में है जो जीवन के बारे में है। छठी आज्ञा है "'तू हत्या नहीं करेगा।" वाचा की पुस्तक में, परमेश्वर आज्ञा देता है की जो कोई हत्या करता है उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए। लेकिन हिंसा की हर बुराई अधिनियम मृत्यु नहीं है। यदि एक व्यक्ति दूसरे को पत्थर से मारता है और वह मरता नहीं है, तो क्या उसे दण्ड मिलना चाहिए? इन सवालों का परमेश्वर ने यह उत्तर दिया: "..., तुम आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर लो। जले के बदले जलाओ, खरोंच के बदले खरोंच करो और घाव के बदले घाव।" (निर्गमन 21:25)।परमेश्वर सच्चे न्याय में बहुत दिलचस्पी रखता था। वह नहीं चाहता था की कोई भी कड़ी सज़ा पाये। यदि वे किसी को केवल एक खरोंच देते हैं, तो उसे मृत्युदण्ड नहीं मिलना चाहिए। पर यदि वे किसी किआंख को नष्ट कर देते हैं, तो उनकी सज़ा केवल एक खरोंच पाने किनहीं होनी चाहिए! सज़ा पाप के अनुसार होनी चाहिए!
परमेश्वर के न्यायकिएक सुंदरता यह थी कि सब को बराबर से न्याय मिलता था। एक शक्तिशाली व्यक्ति एक गरीब आदमी का दुरुपयोग कर के उससे बच नहीं सकता था। यह परमेश्वर के नियम के खिलाफ़ था। और एक गरीब व्यक्ति किसी और को आहत करने के लिए अपनी ग़रीबी का उपयोग नहीं कर सकता था। हर किसी को एक ही उच्च और सम्मानजनक मानक था, और प्रत्येक संरक्षित था!
हत्या और चोरी के इन नियमों के बारे में सोचना कठिन बात है, लेकिन वे वास्तविक समस्याएं थीं। इस्राएल देश में दो लाख लोग थे, और वे पापी थे। ये बातें हुईं, और वे देश के लिए गंभीर और महत्वपूर्ण सवाल थे। परमेश्वर यह सुनिश्चित करना चाहता था की उसके लोग जीवन के इन कठिन भागों को सिद्ध और सही तरीके से उनका नेतृत्व करें।
यह कितना अद्भुत है कि परमेश्वर इन कठिन चीजों के बारे में कितना सही और निष्पक्ष है। उदाहरण के लिए, दसवीं आज्ञा कहती है "तू हत्या नहीं करेगा।" लेकिन क्या यदि आपका कोई जानवर किसी को मार डालाता है? उदाहरण के लिए, एक बड़ा बैल गुस्से में एक व्यक्ति को मार देता है, तो क्या होना चाहिए? क्या बैल के मालिक को सज़ा होनी चाहिए? यदि बैल किगलती थी, तो शायद कुछ भी नहीं होना चाहिए! लेकिन उस व्यक्ति के लिए जिसकी मृत्यु हो गई है और उसके प्रियजनों के लिए यह अन्याय है। सही क्या है? यहोवा ने उन्हें बताया था।
यदि अतीत में भी बैल क्रोधित हुआ है और लोगों पर आक्रमण किया है, और दोबारा वह किसी को मार देता है, तो उसके मालिक को मालूम होना चाहिए था की वह एक खतरनाक जानवर था। वे लापरवाही के बहुत गंभीर पाप के दोषी होंगे। वे इस्राएलियों के जीवन की रक्षा नहीं कर रहे थे। बैल को पत्थरवाह किया जाएगा और मालिक को मृत्युदण्ड दिया जाएगा। परन्तु यदि वह मालिक उस परिवार का भुगतान कर देता है, तो वह बचाया जा सकता है।
परन्तु यदि बैल ने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं किया हो, तो उसका मालिक निर्दोष होगा। उन्हें फिर भी उस खतरनाक बैल को मारना होगा, जो उस परिवार के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है। एक बैल महंगा होता है, और यह उनके झुंड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। लेकिन मालिक को मृत्युदण्ड नहीं दिया जाएगा और न ही उसे अपने जीवन को बचाने के लिए भुगतान करना होगा। जिस परिवार ने अपने प्रिया को खोया है, वह जान लेगा की बैल मर गया था, और वे स्वतंत्र रूप से अपने नुकसान का शोक कर सकते थे।
आपने देखा कि किस प्रकार परमेश्वर ने एक ऐसी उलझी हुई समस्या को एक सीधा और सिद्ध रास्ता दिखाया? उसने ऐसी स्थिति में हर किसी को न्याय दिखाया। वह कितना एक अच्छा और अनुग्रहकारी परमेश्वर है!