पाठ 104 : सब्त का विश्राम
चौथी आज्ञा बहुत अनमोल है क्यूंकि यह परमेश्वर के लोगों के प्रति उसके प्रेम को दर्शाती है कि, वह उसे अपने लोगों के साथ रहने में कितना आनंद मिलता है।
चौथी आज्ञा: "सब्त को एक विशेष दिन के रूप में मानने का ध्यान रखना।सप्ताह में तुम छः दिन अपना कार्य कर सकते हो। किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा कि प्रतिष्ठा में आराम का दिन है। इसलिए उस दिन कोई व्यक्ति काम नहीं करेंगे …”
परमेश्वर ने सृष्टि कि रचना सात दिन में की थी। सांतवे दिन उसने विश्राम किया। अब, परमेश्वर ही पूरे ब्रह्मांड को चलाता है। हम इसीलिए जीवित रह पाते हैं क्योंकि परमेश्वर निरंतर सब कुछ बनाये रखता है। लेकिन सातवें दिन, परमेश्वर ने सब बंद कर दिया। उसने नई चीजें बनानी बंद की, और उसने विश्राम किया।
परमेश्वर ने मनुष्य को अपने रूप में बनाया। उन्हें उसके समान होना था। फिर भी आदम और हव्वा के विद्रोह के बाद, हर इंसान पाप में गिरा और पापी था। वे परमेश्वर के रूप को ठीक से नहीं समझ पाये, क्यूंकि वे टूट चुके थे।
इस्राएल का राष्ट्र परमेश्वर के लोग थे, और उन्हें दुनिया के सामने परमेश्वर किछवि को दिखाना था। वह राष्ट्र के माध्यम से सृष्टि के एक नए काम को कर रहा था। वे परमेश्वर कि उस योजना के भाग थे जो पाप और मृत्यु के भयानक अभिशाप को भलाई कर के मानवता को बहाल करने के लिए था। जिस प्रकार परमेश्वर ने सृष्टि की रचना करने के बाद सांतवे दिन विश्राम किया था, उसी प्रकार उन्हें हर सात दिन पश्चात सब काम छोड़ कर विश्राम करना था। हर हफ़्ते उन्हें परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को प्रकट करने के लिए सब कामों से समय निकालना था। और उन्हें उस परमेश्वर किउपासना एक साथ इकट्ठा होकर करना था जो सब कुछ अपने नियन्त्रण में रखता है। वे अपने सभी पीढ़ियों को अधिक से अधिक, प्रत्येक सप्ताह अपने यहोवा के महत्व को दिखा सकेंगे।
परमेश्वर को इस प्रकार समय देकर, उसे बहुत से तरीकों के द्वारा उसके प्रति भक्ति को दिखा सकते हैं। इससे यह दर्शाता है की इस्राएली जानते थे की यह उनकी दुनिया नहीं है।यह परमेश्वर की है। यह उसे सुनिश्चित करना था कि वे कुशल से हैं। उन्हें अपनी फसलों के लिए और अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करनी थी, लेकिन सप्ताह में एक दिन काम ना कर के उन्हें परमेश्वर पर भरोसा करना था की वह उनके लिए सब कुछ कर देगा। सप्ताह में किये सभी कामों को संगठित करके यह सुनिश्चित करना होता था किवे सब्त के दिन विश्राम कर सकें। एक मायने में, उनका सारा समय परमेश्वर को देना था क्यूंकि सब कुछ उसके विशेष दिन के लिए योजनाबद्ध था। और उनका परमेश्वर के लिए सप्ताह का एक दिन सबसे अच्छा दिन है, जो एक उत्सव और एक आराम का दिन था।
इस्राएल के समय में मूर्तियां और धर्म लोगों से उनकी वस्तुओं किमांग करते थे। उनमें से कुछ उनके बच्चों का बलिदान या वेश्या पूजा के साथ विवाह के पवित्र वाचा का उल्लंघन करने किमांग करते थे। लेकिन यहोवा, इस्राएल के पवित्र परमेश्वर ने जीवन और विवाह किरक्षा की। वह चाहता था कि उसके लोग विश्राम करें और इकट्ठा होकर उसकी आराधना प्रेम के साथ करें।
पहली चार आज्ञाएँ यह सिखाती हैं कि परमेश्वर के लोगों को अपने प्रभु के प्रति किस तरह प्रेम को दिखाना है। वह उनका पहला था, उनका एक मात्र, उसका नाम पवित्र था, और उनका समय उसका था! यहोवा की पवित्र उपस्थिति इस्राएलियों के साथ ऐसी थी जैसी और किसी राष्ट्र के साथ नहीं थी। वह उनके निकट रहेगा और उनसे ऐसा प्रेम करेगा जैसा उसने कभी और किसी के साथ नहीं किया है। स्वर्ग का महान राजा उनके पास होने के लिए नीचे आया था! वाह! केवल वही एक परमेश्वर था, और वह चाहता था की इस्राएल उसकी चुनी हुई प्रजा बन कर रहे।
यह कितना भयानक होगा यदि इस्राएलियों ने इस विशेषाधिकार को अस्वीकार कर दिया? सारे ब्रह्मांड के लिए यह कितनी शर्मनाक बात होती यदि वे इस अद्भुत परमेश्वर से ज्यादा और किसी चीज़ से प्रेम करते? परमेश्वर सम्पूर्ण आराधना के योग्य परमेश्वर है। सीनै पर्वत पर परमेश्वर ने इस्राएलियों को उनके भयानक बड़बड़ाने के बीच अपनी महान महिमा को प्रकट किया। वह इस्राएलियों को दर्शा रहा था की उसको छोड़ और किसी की उपासना करना कितनी मूर्खता थी। पहली चार आज्ञाओं को मानना यह दर्शाता है कि वह उनके लिए कितना अनमोल और महत्वपूर्ण है। यह उनकी उस परमेश्वर के प्रति भक्ति को दिखाता है जो पूरी सृष्टि के ऊपर महान उच्च राजा है।