पाठ 114 : नियम और मन्दिर

परमेश्वर हर तरह से अपने लोगों को आगे बढ़ा रहा था। अपने वाचा के लोगों को आशीर्वाद देने के लिए वह कितना उत्साहित था! दस आज्ञाओं और वाचा की पुस्तक के साथ, परमेश्वर ने उसके पीछे चलने के लिए अपने लोगों को एक रास्ता दिखा दिया था। वे समझ सकते थे की परमेश्वर में पवित्र जीवन बिताना क्या मायने रखता था। लेकिन परमेश्वर प्रत्येक इस्राएली को जानता था। वह जानता था की उनमें से प्रत्येक पाप को करना चाहता था। वह जानता था कि उनमें से एक भी सिद्ध जीवन नहीं जी पाएगा। केवल परमेश्वर ऐसा कर सकता है! और पाप के प्रति परमेश्वर का प्रकोप साधारण मनुष्य को भस्म कर देगा। इसलिए उसने एक अद्भुत समाधान निकाला। उनके चुने हुए लोगों के बीच यह खूबसूरत मंदिर रहेगा। यह उसका पवित्र स्थान था, और यहां से वह लोगों के पापों से निपटेगा। उनके पाप कि गंदगी और अशुद्धता वेदी पर चढ़ाये जाते थे। अपने पापों के कारण परमेश्वर से दूर जाने के बजाय, उन्हें मदद के लिए परमेश्वर के पास छुटकारा पाने के लिए आना था। 

जब एक इस्राएली यह देखता था कि उसने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया है, तो वह पश्चाताप के लिए परमेश्वर के पास आता था। उनकी वफ़ादारी परमेश्वर के प्रति थी। परमेश्वर इसे दिल का खतना कहता है। यह उन चीजों को काट कर दूर कर देता था जो परमेश्वर नहीं चाहता था की हों। यह चिन्हित करता था की वह व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर का एक बच्चा था। किसी भी तरह का पाप, ज़हर के समान था। वे एक गन्दे पाप की तरह उसे दूषित कर देते थे। वे गंद की तरह चिपक जाते थे जिन्हें धोया नहीं जा सकता था। परमेश्वर ने एक रास्ता दिखाया जो हृदय किगहरायी तक जाता है। 

इस्त्राएलियों किशुद्धि बलिदान के रूप में आती थी। पाप का सही परिणाम मृत्यु है, और इसलिए एक सही और सिद्ध परमेश्वर के लिए पाप कि सज़ा मृत्यु है। परमेश्वर ने मौत कि सज़ा को हस्तांतरित करने कि अनुमति दी। प्रत्येक इस्राएली अपने पाप के लिए बलिदान को मंदिर में चढ़ाने के लिए लाएगा। परमेश्वर ने कहा कि एक प्राणी का खून उस का जीवन है। यह ऐसा था मानो, खून ने पाप को अपने ऊपर ले लिया। वेदी पर खून को बहाकर, पाप किकीमत चुका दी गयी और वेदी शुद्ध की गयी है। परमेश्वर का क्रोध इस्राएल के पाप के विरुद्ध संतुष्ट था।

परमेश्वर ने इस्राएलियों के लिए पश्चाताप कि यह प्रक्रिया दी, और उन्हें सिखाया की उनके पाप कि एक असली कीमत थी। पशु मूल्यवान थे, और अपने पाप के लिए एक पशु का वध होना उनके लिए बहुत मायने रखता था। इससे इस्राएलियों को अपने दैनिक जीवन के बारे में ध्यान रखना था। उन्हें सोचना था कि यदि वे पाप करते हैं तो उन्हें क्या करना होगा। उन्हें अपने कामों पर ध्यान करना होता था क्यूंकि उन्हें सोचना होता था कि कौन सा बलिदान उन्हें अपने पाप के लिए चढ़ाना होगा। वे जैसा भी चाहें वैसा जीवन नहीं जी सकते थे। यहां तक कि उनके दिल के विचारों को परमेश्वर देखता था!

बलिदान भी परमेश्वर के भव्य अनुग्रह का एक अद्भुत चिन्ह था। वे बलिदान इसीलिए लाते थे क्यूंकि उन्होंने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया था। उनके पाप और बुराई करने के कारण दुनिया में पाप आया। फिर भी, एक बार बलिदान देने के बाद, वे पूरी तरह से मुक्त थे। वे सुनिश्चित हो सकते थे कि परमेश्वर उनके विरुद्ध नहीं था। वे विश्वास कर सकते थे कि उन्हें क्षमा दे दी गयी है। वाह।

लेकिन इस्राएलियों के बलिदान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि यह संसार को और किसी बात के लिए तैयार कर रहा था। अंत में, हम जानते हैं कि यीशु मसीह का खून, जो क्रूस पर बहाया गया है, उसी के द्वारा मनुष्य के पाप की कीमत चुकाई गयी है। इस्राएल में उन सभी वर्षों में पशुओं का खून लोगों को परमेश्वर के पास आने का और उसकी शुद्धता पाने का एक रास्ता था। मंदिर में बलिदान उस वास्तविक बलिदान के समान था जिस के द्वारा परमेश्वर पर विश्वास करने से अनंत जीवन मिलेगा। परमेश्वर पिता अपने बेटे को भेजेगा, और उसका क्रूस पर बलिदान होना मानवता को मुक्ति दिलाएगा। इस्राएली उस मुक्ति के लिए रुके थे जो उनका मसीहा लेकर आएगा। हम मसीह के कामों को देखते हैं और यीशु में विश्वास के द्वारा अपने उद्धार में आनन्दित होते हैं।