पाठ 109 : वाचा की पुस्तक: पर्व

वाचा किपुस्तक में, परमेश्वर ने इस्राएल के न्यायाधीशों के लिए ऐसे नियम दिए जो उन्हें लोगों की समस्याओं के लिए निर्णय लेने में मदद करेंगे। किताब इस्त्राएलियों को उन बातों को भी सिखाती है जो उन्हें परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए अच्छे शालीन व्यवहार करने में मदद करेगी। परमेश्वर ने उन्हें आज्ञा दी थी की वे विदेशियों या अनाथ या विधवाओं के साथ बुरा व्यवहार ना करें। उसने कहा की यदि कोई विधवा या अनाथ उसको मदद के लिए पुकारते हैं, तो वह निश्चित रूप से उन्हें उनसे बचाएगा जो उन्हें चोट पहुंचाना चाहते हैं। यदि वे किसी इस्राएली को पैसे उधार में देते हैं, तो वे उनसे अतिरिक्त पैसा नहीं ले सकते थे। उन्हें एक दूसरे के साथ उदारता से पेश होना चाहिए। वे रिश्वत नहीं स्वीकार कर सकते थे या गरीबों को न्याय देने से इनकार नहीं कर सकते थे। वे गलत करने वालों के पीछे नहीं जा सकते थे। इस्राएल के लोगों को इन्हीं सब बातों के द्वारा अपने देश के कमज़ोरों की देखभाल करनी थी। यह उस परमेश्वर को प्रसन्न करने का एक तरीका था, जो करुणा से भरा हुआ है। 

वाचा कि पुस्तक सब्त और धार्मिक पर्वों का सम्मान करने के विषय में वर्णन करती है की, किस प्रकार इस्राएलियों को उन पर्वों को मनाना है जो यहोवा ने उन्हें दिए थे। सब्त का दिन सभी इस्राएलियों और उनके पशुओं के लिए विश्राम का दिन ठहराया गया था। और हर सात साल में, पूरी भूमि को सब्त का एक पूरा वर्ष विश्राम के लिए देना था। वे ना तो फ़सलें उगा सकते थे और ना ही उन्हें काट सकते थे। वे पेड़ों से फल नहीं तोड़ सकते थे। केवल ग़रीब इस्राएल के खेतों और बागों पर जाकर प्राकृतिक और जंगली उगने वाली चीज़ों को इकट्ठा कर सकते थे। जिस राष्ट्र का राजा परमेश्वर था, ग़रीब को अपने स्वयं के हर सात साल के लिए सारी भूमि दी जाती थी। 

इस्राएल के राष्ट्र को इकट्ठा होकर तीन महान पर्वों को मनाना था। इस्राएल के सभी पुरुषों को उस स्थान पर यात्रा करनी थी जहां परमेश्वर ने उन पवित्र दिनों को मनाने के लिए एक मंदिर को स्थापित किया था। अक्सर, वे उनके परिवारों को भी लाते थे। इस लंबी यात्रा के लिए खाना बनाना और सभी तैयारियां करती हुईं उन माताओं और पत्नियों और बहनों की कल्पना कीजिये। सोचिये कैसे माता-पिता अपने बच्चों को इन पर्वों के विषय में बता रहे होंगे किउन्हें किस प्रकार मनाया जाता है, जिस समय वे जाने कि तैयारियां कर रहे होंगे। सोचिये सभी सड़कें लोगों से कितनी व्यस्थ हो गयीं होंगी जब वे पर्व की यात्रा करने के लिए निकले होंगे! 

साल का पहला पर्व अखमीरी रोटी का पर्व, या फ़सह था। यह इस बात को स्मरण करने के लिए था जब परमेश्वर ने मिस्र के फिरौन से इस्राएल को छुड़ाया था। दूसरा फ़सल का पर्व था। इसे तब मनाया जाता था जब गेहूं किपहली फ़सल को इकट्ठा किया जाता था। हर साल अच्छी फ़सल के लिए यह परमेश्वर को आभार प्रकट करने का तरीका था। पूरा राष्ट्र कटाई के पर्व को मनाने के लिए फिर से इकट्ठा होता था। यह वर्ष की अंतिम फ़सल के अंत में किया जाता था। पूरे सालभर किफ़सल के लिए इस्राएली आनंद मनाते थे। प्रत्येक वर्ष के आरम्भ से लेकर अंत तक, उन्हें यहोवा के प्रति पूरी तरह समर्पित होना था। उन्हें यह स्मरण रखना था कि जो कुछ उन्हें प्राप्त हुआ, वह सब कुछ परमेश्वर किओर से उन्हें मिला है। 

परमेश्वर के पवित्र अभयारण्य के लिए इस्राएली परिवारों के तीर्थों कि कल्पना कीजिए! उस स्वादिष्ट भोजन और मदिरा के महान दावतों किकल्पना कीजिए! कल्पना कीजिये कि कैसे वे जश्न मना रहे होंगे। एक साल में तीन बार, इस्राएल के किसान, व्यापारी और कारीगर अपने कामों को छोड़ कर परमेश्वर के उज्ज्वल उम्मीद में एक साथ शामिल होते थे। 

इन महान त्योहारों को एक राष्ट्रिय पर्व मान कर इन्हें परमेश्वर के लोगों को इकट्ठा करने का एक अवसर होता था। उनकी उपासना एक गहरी और शक्तिशाली राष्ट्रीय पहचान के साथ उन्हें एक साथ बांधती थी। वे जानेंगे किवे अन्य देशों से कितने अलग थे। सारी दुनिया उन्हें जश्न मनाते देखेगी की वे किस तरह कितने उल्हास के साथ इन पर्व को मनाते हैं। क्यूंकि उनसे ज़बरदस्ती घिनौने काम करवाये गए, इसीलिए कोई भी पर्व को अनदेखा या अपमानित नहीं कर सकता था। नशे के कारण हुईं गलतियों और गरीब विकल्प के कारण लोग और अधिक अपमानित नहीं हो सके। वे जोश के साथ पर्व को मनाते रहे और धार्मिकता बनी रही। वे एक दूसरे के साथ पवित्रता और अच्छाई में बंधे रहे। जिस उच्च सम्मान को वे आपस में बाँट रहे थे, उन्हें वह खींच लाया। वे परमेश्वर कि अनमोल संपत्ति थे। 

कितना एक भव्य वादा परमेश्वर ने इन लोगों को दिया था। जब उसने उन्हें एक महान राष्ट्र बनाने का वादा किया था, तो उसने पहले से ही इसकी योजना बना ली थी। राष्ट्र की समृद्ध संस्कृति और सबसे उच्चतम नियम देखने लायक होंगे। उसने पहले से ही उनके बसने के लिए जगह तैयार कर रखी थी। केवल समस्या यह थी की, वहां पहले से ही लोग निवास कर रहे थे। जितने समय इस्राएल मिस्र में था, वहां सात कनानी राष्ट्र रह चुके थे। इब्राहीम उन्हें जानता था, और उन्होंने यहोवा के विषय में सुना हुआ था। उनके पास अवसर था की वे इब्राहीम के परमेश्वर के पास आएं, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया था।

परमेश्वर का प्रकोप प्रत्येक राष्ट्र के विरुद्ध उंडेलता जा रहा था, क्यूंकि वे अधिक से अधिक पाप करते जा रहे थे। परमेश्वर इस्राएल के राष्ट्र को इस भूमि को स्वच्छ करने के लिए उपयोग करेगा जिन्होंने अपने पापों के कारण इसे प्रदूषित कर दिया था। वह अपने पवित्र राष्ट्र को यह देश देने जा रहा था, जो सब देशों के लिए एक प्रकाश के समान चमकेगा।