पाठ 116 : हारून और उसके पुत्रों की नियुक्ति

परमेश्वर ने मूसा को उसके विशेष मंदिर के निर्माण और उन याजकों के वस्त्रों के विषय निर्देश दिए जो उसकी सेवा करेंगे। याजक परमेश्वर और उसके लोगों के बीच रहकर एक विशेष अंतरंगता में काम करेंगे। परमेश्वर ने उसे बताया कि कैसे मंदिर के बन जाने के बाद उसे याजकों को पवित्र करना है। उसने मूसा से कहा की वह सात दिन के रस्मों की धर्मक्रिया करे जो हारून और उसके पुत्रों को, लोगों के बलिदानों को चढ़ाने के कठिन कार्यों को करने के लिए अलग किया गया है। उस समय से, उन्हें वेदी को लगातार शुद्ध करना है और लोगों के बीच परमेश्वर की उपस्थिति को बनाए रखना है। 

परमेश्वर ने मूसा को सात दिन तक चलने वाली पवित्रता किअनुष्ठान रस्म को दिया। तैयारी में, मूसा को एक दोष रहित बछड़ा और दो दोष रहित मेढ़े लाने थे। जिसमें खमीर न मिलाया गया हो ऐसा महीन आटा लेकर और उससे तीन तरह की रोटीयाँ बनाकर आटा लाना था।  

तब मूसा को हारून और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार के सामने लेकर उन्हें पानी से नहलाना था। हारून की विशेष पोशाक उसे पहनना था, लबादा, चोगा और एपोद से जोड़ कर। फिर उस पर सीनाबन्द, फिर विशेष पटुका बाँधो और फिर पगड़ी उसके सिर पर बांधकर सोने कि पट्टी को जो एक विशेष मुकुट के जैसी है पगड़ी के चारों ओर बांधकर 

हारून का अभिषेक किया जाना था। उसके अभिषेक के बाद, मूसा को अपने पुत्रों को उस स्थान पर ले कर उन्हें चोंगे पहनाने थे। तब उनकी कमर के चारों ओर पटुके बांधने थे। ये सब पवित्र रस्म का हिस्सा था जो इस्राएल के राजसी अनुष्ठान को दिखाता था।  

याजकों के पवित्र वस्त्रों किसजावट के बाद, मूसा एक बड़े बैल को ले आया। यह परमेश्वर के पवित्र स्थान यानि मिलाप वाले तम्बू के प्रवेश द्वार पर याजकों के लिए पाप बलि था। जिस समय मूसा परमेश्वरकिउपस्थिति में उस जानवर कि बलि दे रहा था, हारून और उसके पुत्रों को उसके हाथ पर अपना सर रखना था। तब मूसा को अपनी ऊँगली पापबलि के खून में डुबा कर वेदी के सींग पर लगाना था। बाकि के लहू को वेदी के आधार पर लगाना था। 

बैल की चर्बी और उसके गुर्दे को वेदी पर पूरी तरह से जला देना था। अवशेष के बाकी हिस्से को, परमेश्वर किउपस्थिति से दूर, डेरे से बाहर ले जा कर जला देना था। यह पाप बलि थी, और लहू उन सारी अशुद्धता को साफ़ करेगा जो याजक अतीत में किये अशुद्ध कामों को वेदी पर लाते थे। 

तब मूसा को, हारून और उसके पुत्रों से मेढ़े के सिर पर हाथ रख कर उस मेढ़े को मार कर उसके खून को वेदी के चारों ओर छिड़कना था।तब मेढ़े को कई टुकड़ों में काट कर उसके भीतर के सभी अंगो और पैरों को धोना था। तब मूसा को मेढ़े के अन्य टुकड़ों वेदी पर जलाना था। 

याजकों के लिए पापबलि और होमबलि शुद्धिकरण के लिए खून बहाना था। जो अनुष्ठान मूसा ने उनके लिए किये, उन्हें अपने जीवनभर उन्हें करना होगा। पीढ़ी दर पीढ़ी तक ये परमेश्वर के पवित्र स्थान के उच्च और पवित्र गतिविधि थीं जो उन्हें करते रहना होगा। सारे काम बहुत ज़्यादा लगते होंगे। राष्ट्रों ने ये सब क्यूँ बंद किया, ये बलिदान, पवित्र वस्त्र, याजकों और लेवियों का अलग किया जाना? क्यों नियम और आज्ञाएं इतनी भस्म करने वाली थीं? परमेश्वर के वचन के इतने सारे अध्याय इसके विषय में क्यूँ सिखाते हैं? खैर, यह सबसे महत्वपूर्ण सबक सिखाता है। मनुष्य के अस्तित्व का मुख्य कारण परमेश्वर कि महिमा देना है। इस्राएल के राष्ट्र का पूरा उद्देश्य परमेश्वर को महिमा देने के लिए था। मंदिर की उपासना उसका विशेष केंद्र था। बाइबिल विस्तार से इनका वर्णन करती है क्यूंकि यह ज़रूरी है। परमेश्वर की नज़दीकी सबसे ज़रूरी है, और इस्राएली सीनै पर्वत से बाहर निकल कर इस सबक को सीख रहे थे।