पाठ 105 : अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करना

यदि इस्राएल के लोग परमेश्वर के चरित्र को सही मायने में दुनिया को दिखाना चाहते थे, उन्हें परमेश्वर किओर सही रीती से चलने का सही रास्ता दिखाना होगा। पहली चार आज्ञाएँ इसी पर आधारित हैं। उन्होंने उन्हें सब देवताओं के ऊपर सबसे पहले परमेश्वर से प्रेम करना सिखाया। वह उनकी सम्पूर्ण आराधना के योग्य था। वास्तव में, केवल यही करना सही था। उन्हें किसी भी तस्वीर, यहां तक की उसकी भी तस्वीर के आगे प्रार्थना नहीं करनी थी। परमेश्वर के प्रति उनकी श्रद्धा और उनका परमेश्वर के लिए भय इतना गहरा था की वे उसके नाम को भी सचेत होकर लेते थे। उसके प्रति उनका प्रेम इतना महान था की जो कुछ भी वे करते थे वह उसी के लिए था। वे अपने परमेश्वर को यह दिखाने के लिए एक दिन को अलग करते थे ताकि उसकी उपासना एक पूरे दिन कर सकें। 

 

इस्राएलियों को मिलकर परमेश्वर को अपना प्रेम प्रकट करना था। सब्त के दिन उन्हें अपने परिवारों और समुदाय के एक समूह के रूप में उसकी आराधना करनी थी। प्रत्येक को अपने हृदय से प्रभु को प्रेम करना था, और राष्ट्र के सामूहिक प्रभाव से अन्य राष्ट्रों के लिए उज्ज्वल और पवित्र होकर चमकना था। 

 

यह महत्वपूर्ण था कि परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को केवल उस तरह नहीं दिखाना था जिस तरह वे करते थे। उन्हें एक दूसरे के प्रति अपने व्यवहार को दिखा कर उसे प्रकट करना था। एक दूसरे को प्रेम दिखाना एक उपासना और परमेश्वर के आज्ञाकारी बनने का दूसरा तरीका था। परमेश्वर प्रेमी और दयालु है, और उससे प्रेम करने वालों को इसी रीती से रहना चाहिए। परमेश्वर ने इस्राएल को अपने अनुबंध में छह और आज्ञाएँ दीं, और वे उन बातों से सम्बंधित थे की कैसे लोग एक दूसरे के साथ व्यवहार करते हैं। वह चाहता था कि वे एक दूसरे से वैसे ही प्रेम करें जैसे कि वे अपने आप से करते हैं। ये अंतिम छह आज्ञाएँ हैं: 

 

पांचवी आज्ञा: "'अपने माता और अपने पिता का आदर करो। यह इसलिए करो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा जिस धरती को तुम्हें दे रहा है, उसमें तुम दीर्घ जीवन बिता सको।'”

 

यह पहली आज्ञा इस्राएलियों के सबसे निकटतम और अधिक महत्वपूर्ण मानवीय रिश्तों के बारे में है, और वह है: परिवार। परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया ताकि वे उनके माता पिता द्वारा पाले जाएं, बढ़ें और फिर माता-पिता बनें। यही उसकी योजना थी, और यह एक उद्देश्य से किया गया था। उसे उस तरह करने की आवश्यकता नहीं थी। परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को बनाया, और वे विवाह नहीं करते हैं और ना ही उनके बच्चे होते हैं। परमेश्वर मनुष्य को अलग ढंग से बनाना चाहता था। उसकी विशेषता यह थी की उसने माता-पिता को अधिकार दिया था। उसने उन्हें एक महत्वपूर्ण काम दिया। परमेश्वर चाहता था कि परिवारों के माध्यम से उसकी पवित्र सच्चाई पारित की जाये। 

 

प्रत्येक परिवार को अपने बच्चों को सिखाना था किअपने जीवन के हर एक क्षेत्र में परमेश्वर के लिए कैसे जीना है। माता-पिता को अपने बच्चों को अनुशासन सिखाना और परमेश्वर को सब चीज़ों से बढ़कर प्रेम करना सीखना था। यह एक बहुत बड़ी और पवित्र ज़िम्मेदारी है! परमेश्वर ही यह तय करता है किकौन सा बच्चा किस माँ बाप के पास जाएगा। माता-पिता का सम्मान करना परमेश्वर किइच्छा को सम्मान देना है!

 

इस्राएल के राष्ट्र में, यह माता पिता का काम था की वे नियमों को अपने बच्चों पर पारित करें। इन्हीं प्रत्येक परिवार के माध्यम से यह वाचा सैकड़ों वर्ष तक दूसरी पीढ़ियों में पारित होगी। यदि एक पीढ़ी के माता-पिता अपने बच्चों में वाचा को पारित करने में विफल रहते हैं, तो वे नियमों को रखने में विफल हो जाएंगे। वही पीढ़ी यहोवा के साथ उस महान इस्राएल के वाचा को तोड़ देगा! यह इस्राएल के बच्चों के लिए महत्वपूर्ण था कि वे वाचा के अनुसार जीवन जियें और अपने माता पिता के आदेशों का सम्मान करें। 

 

माता-पिता का सम्मान करने का दूसरा कारण यह था कि यह उन्हें सभी अधिकारीयों को सम्मान करना सिखाता है। जो बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, वे अन्य प्राधिकरण का भी सम्मान करना जानते हैं। इस्राएल के लिए, यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण होने जा रहा था। परमेश्वर राष्ट्र के लिए न्यायाधीशों और नबियों और राजाओं को देने जा रहा था। परमेश्वर ने उन अधिकारियों को उस जगह रखा था, और लोगों को यदि एक पवित्र राष्ट्र बनना था तो उन्हें उनका सम्मान करना था!

 

छठी आज्ञा: '''तुम्हें किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करनी चाहिए।'"

 

यह आज्ञा प्रत्येक इस्राएल के जीवन का एक संरक्षण था। प्रत्येक इस्राएल यहोवा का एक सेवक और बच्चा था। राजा के एक दास के प्राण को ले लेना दूसरे इस्राएली के लिए एक भयानक पाप था! प्रत्येक के जीवन का हर दिन और समय परमेश्वर के हाथों में था। उन्हें एक दूसरे के जीवन को संरक्षित करना था और ना की उसे नष्ट करना। यह आज्ञा उनके लिए थी जो द्वेष के साथ किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को छीन लेते हैं। परमेश्वर युद्ध में जाने के लिए इस्राएल को आदेश देगा और उन्हें दुश्मन को मार गिराना होगा। ऐसे भी नियम थे की, जो भी इन नियमों को तोड़ता है, उसे मार दिया जाना चाहिए। उन स्थितियों में, परमेश्वर ही किसी के जीवन को कम कर देता था। और कभी कभी दुर्घटना के कारण एक जीवन गलती से चला जाता है। ग़लती से किसी की जान ले लेना कितना भयानक है। परमेश्वर न्याय करने वाला परमेश्वर है, और वह इन सब बातों को देखता है और उसने उनके लिए विशेष नियम तैयार किये हैं। यह छठी आज्ञा, लोगों को सचेत करने के लिए है कि वे क्रोध में आकर हत्या ना करें।