पाठ 120 : अपने लोगों के लिए यहोवा के सेवक द्वारा मध्यस्थता
यह विद्रोह अत्यधिक था। यह उनका परमेश्वर के प्रति कुल, पूर्ण अविश्वास था। मूसा जब पर्वत पर गया, वह हारून और बुज़ुर्गों को आदेश देकर गया कि वे लोगों की देखभाल करें। उन्हें परमेश्वर के नियमों का सम्मान करना था और लोगों के बीच शांति बनाए रखनी थी। इसके बजाय, उन्होंने उनके साथ मिलकर विद्रोह किया।
परमेश्वर सब कुछ जानता है। उसने वह सब देखा जो इस्राएली कर रहे थे, और अंत में मूसा से कहा;
"'इस पर्वत से नीचे उतरो। तुम्हारे लोग अर्थात् उन लोगों ने, जिन्हें तुम मिस्र से लाए हो, भयंकर पाप किया है। उन्होंने उन चीज़ों को करने से शीघ्रता से इन्कार कर दिया है जिन्हें करने का आदेश मैंने उन्हें दिया था। उन्होंने पिघले सोने से अपने लिए एक बछड़ा बनाया है। वे उस बछड़े की पूजा कर रहे हैं और उसे बलि भेंट कर रहे हैं। लोगों ने कहा है, ‘इस्राएल, ये देवता है जो तुम्हें मिस्र से बाहर लाए हैं।’”
यहोवा ने मूसा से कहा, “मैंने इन लोगों को देखा है। मैं जानता हूँ कि ये बड़े हठी लोग हैं जो सदा मेरे विरुद्ध जाएंगे। इसलिए अब मुझे इन्हें क्रोध करके नष्ट करने दो। तब मैं तुझसे एक महान राष्ट्र बनाऊँगा।'”
निर्गमन 32: 7-10
वाह। परमेश्वर बहुत क्रोधित हुआ। सीनै पर्वत पर उसकी महिमा देखने के कुछ ही दिनों के बाद, वे पाप में पड़ गए। अब परमेश्वर ने मूसा को एक अद्भुत और आश्चर्यजनक प्रस्ताव दिया। मूसा, नूह और इब्राहीम के समान बन सकता था। परमेश्वर इस्राएल के पूरे राष्ट्र को मिटा देगा और उसके साथ फिर से नयी शुरुआत करेगा! जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह के साथ मानव जाति की एक नयी शुरुआत की थी। जिस प्रकार परमेश्वर ने अब्राहम के साथ एक नयी वाचा बनायीं थी की वह उसके वंशजों को एक नयी प्रजा बनाएगा। परमेश्वर मूसा के साथ बनाई उस वाचा को अब्राहम के साथ फिर से शुरू करेगा।
अपने क्रोध में, परमेश्वर एक अकल्पनीय विशेषाधिकार मूसा को दे रहा था। लेकिन मूसा परमेश्वर का सच्चा सेवक था। उसे केवल परमेश्वर और उसके लोगों की प्रतिष्ठा की चिंता थी। उसने परमेश्वर से बिनती की कि वह उन पर तरस खाए जब की वे उसके लायक भी नहीं थे। उसने यहोवा से कहा:
"“हे यहोवा, तू अपने क्रोध को अपने लोगों को नष्ट न करने दे। तू अपार शक्ति और अपने बल से इन्हें मिस्र से बाहर ले आया।12 किन्तु यदि तू अपने लोगों को नष्ट करेगा तब मिस्र के लोग कह सकते हैं, ‘यहोवा ने अपने लोगों के साथ बुरा करने की योजना बनाई। यही कारण है कि उसने इनको मिस्र से बाहर निकाला। वह उन्हें पर्वतों में मार डालना चाहता था। वह अपने लोगों को धरती से मिटाना चाहता था।’ इसलिए तू लोगों पर क्रोधित न हो। अपना क्रोध त्याग दे। अपने लोगों को नष्ट न कर। तू अपने सेवक इब्राहीम, इसहाक और इस्राएत को याद कर। तूने अपने नाम का उपयोग किया और तूने उन लोगों को वचन दिया। तूने कहा, ‘मैं तुम्हारे लोगों कों उतना अनगिनत बनाऊँगा जितने आकाश में तारे हैं। मैं तुम्हारे लोगों को वह सारी धरती दूँगा जिसे मैंने उनको देने का वचन दिया है। यह धरती सदा के लिए उनकी होगी।’”
निर्गमन 32: 11-13
परमेश्वर ने मूसा किबात सुनी और उस विद्रोही राष्ट्र को नष्ट नहीं किया। वाह। उसके बारे में सोचिये। परमेश्वर ने मूसा किबात सुनी। मूसा ने अपने लोगों के लिए मध्यस्थता किऔर उन्हें बचाया!
मूसा ने परमेश्वर के हाथों से लिखी पट्टी को लिया। वह पर्वत से नीचे गया और यहोशू से मिला। यहोशू ने उनके मद्यपान और जश्न के बीच लोगों को सुना। कोलाहल इतना अधिक था किउसे लगा किकोई युद्ध हो रहा है। मूसा ने कहा;
"'यह सेना का विजय के लिये शोर नहीं है।
यह हार से चिल्लाने वाली सेना का शोर भी नहीं है।
मैं जो आवाज़ सुन रहा हूँ वह संगीत की है।'”
निर्गमन 32:18
मूसा जब डेरे के नज़दीक पहुंचा, तब उसने वह सब देखा जो इस्राएली कर रहे थे। उसने उन चीज़ों को देखा जिससे यहोवा क्रोधित होता है। अपने सामने लोगों के अविश्वास को देख कर वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने उस स्वर्ण बछड़े को और पी कर मतवाले होते लोगों को देख कर घृणा की। अभी अभी उसने चालीस दिन और चालीस रात परमेश्वर के साथ बिताये थे। यहोवा ने उसे एक उज्ज्वल और शुद्ध उपासना करने का दृश्य दिया था। उसने परमेश्वर के सामने एक सिद्ध और पवित्र सेवा की सुंदरता और व्यवस्था और पवित्रता को समझा था। ये विद्रोही लोग परमेश्वर के तोहफ़े के योग्य नहीं थे! उन्होंने उसके अनुबंध को तोड़ दिया था!
परमेश्वर ने अपनी उंगली से अंकित कर के मूसा को पत्थर किदो पट्टियां दीं। दूसरी आज्ञा जो उस पर थी वह थी किकोई भी मूर्ती ना बनाई जाये। परमेश्वर ने पर्वत के ऊपर से इस आज्ञा को दिया था, और लोगों ने तहे दिल से इस आज्ञा का पालन करने का वादा किया था।फिर भी उन्होंने एक स्वर्ण बछड़ा बना कर उसकी उपासना की। इस्राएल के राष्ट्र ने उस वाचा को उस समय तोड़ा जब वह परमेश्वर के पर्वत पर था।
मूसा ने उन पट्टियों को अपने हाथों में लिया और उन्हें तोड़ दिया। लोगों के द्वारा किये पाप का यह एक नष्ट करने का चिन्ह था। वाचा शुरू होने से पहले ही तोड़ दी गयी थी। फिर उसने उस स्वर्ण बछड़े की मूर्ती ली और उसे एक शक्तिशाली आग में जला दिया। उसने उसके सोने को पीसा और पानी में फेंक दिया ताकि इस्राएली उसका पानी पियें। फिर वह अपने भाई हारूनकि ओर मुड़ा। उसने पूछा की लोगों ने उससे ऐसा क्या कहा किउसने ऐसा घोर पाप किया।
हारून ने बिनती की कि मूसा उससे क्रोधित ना हो। उसने मूसा को बताया किलोग उससे ऐसे देवता की मांग कर रहे थे जो उनका नेतृत्व करे।इसके बजाय की वह लोगों को परमेश्वर के लिए आज्ञाकारी हो कर उसके पीछे चलने को कहता, उसने उनकी बात मानी और ऐसे घनघोर पाप में उन्हें ढकेल दिया। कुछ ही हफ्ते पहले, हारून ने परमेश्वर के साथ एक वाचा का अनुबंध किया था। उसने पर्वत पर चढ़ कर परमेश्वर के साथ संगती की थी जहां उसने परमेश्वर के आगे अपने आप को समर्पित किया था। और अब, कुछ ही हफ्ते बाद, उसने उस वाचा को तोड़ दिया और इस्त्राएलियों से भी वही कराया! यह विश्वास का एक महान और नीच विश्वासघात था!
मूसा लोगों को अपने मद्यपान में होते देख रहा था। वे पूरी तरह नियंत्रण से बाहर थे। उनके इस भयानक व्यवहार को देख कर दूसरे देश के लोग उन पर हस्ते थे। इस्राएली का राष्ट्र यहोवा किबताई बातों के बिलकुल विरुद्ध कर रहे थे। उन्हें परमेश्वर कि महिमा को प्रदर्शित करने और उसकी पवित्रता का नमूना बनना था। और अब वे इतने भ्रष्ट हो गए थे की दूसरे देश उनको देखकर हँसते थे। यहां तक की मूसा के पर्वत से नीचे आकर उस मूर्ती को नष्ट करना भी उन्हें अपने जंगली मद्यपान से नहीं रोक पाया।
मूसा एक कार्रवाई करने वाला व्यक्ति था। वह डेरे में गया और उसने पुकारा;
"'कोई व्यक्ति जो यहोवा का अनुसरण करना चाहता है मेरे पास आए” तब लेवी के परिवार के सभी लोग दौड़कर मूसा के पास आए। तब मूसा ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें बताऊँगा कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा क्या कहता है ‘हर व्यक्ति अपनी तलवार अवश्य उठा ले और डेरे के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाये। तुम लोग इन लोगों को अवश्य दण्ड दोगे चाहे किसी व्यक्ति को अपने भाई, मित्र और पड़ोसी को ही क्यों न मारना पड़े।’” लेवी के परिवार के लोगों ने मूसा का आदेश माना। उस दिन इस्राएल के लगभग तीन हज़ार लोग मरे। 29 तब मूसा ने कहा, “यहोवा ने आज तुम को ऐसे लोगों के रूप में चुना है जो अपने पुत्रों और भाईयों को आशीर्वाद देंगे।” '
निर्गमन 32: 26-29
लेवियों ने परमेश्वर के प्रति वह वफ़ादारी दिखाई जो हारून और बुज़ुर्ग नहीं दिखा पाये। उन्होंने मूसा के साथ खड़े हो कर परमेश्वर की ओर सिद्धता दिखाई। उनकी पहली भक्ति और निष्ठा परमेश्वर के प्रति थी, न कि उनके परिवार या दोस्तों या पड़ोसियों के लिए। धार्मिकता के प्रति उनकी वफ़ादारी परमेश्वर को भाती थी, और उनके कार्य एक अभिषेक की तरह थे। उन्हें विशेष रूप से परमेश्वर के लिए अलग किया गया था, और उन्होंने परमेश्वर कि ओर से एक विशेष आशीर्वाद को प्राप्त किया था।
जहां कुछ लोगों ने वफ़ादारी दिखाई थी, इस्राएल के कई लोगों ने विद्रोह किया था। यह मानवता के विद्रोह और धार्मिकता के खोजियों के बीच का युद्ध था, और यह परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र के बीच में हो रहा था! लोगों की कठोरता और कठोर हृदय को देख कर मूसा बहुत उदास हुआ। उसने कहा कि वह परमेश्वर के पास जाकर उनके भयानक पापों के लिए प्रायश्चित करेगा। क्या परमेश्वर अपने लोगों को एक और मौका देगा? उसके प्रति अपनी निष्ठा का वादा करने के कुछ ही हफ्तों के बाद वे पाप में गिर गए। क्या वह उन्हें शुद्ध करेगा?