पाठ 121
परमेश्वर और मूसाजब पर्वत पर एक साथ थे, परमेश्वर ने मूसा को लोगों के भयानक विद्रोह के बारे में बताया था। मूसा ने दया के लिए परमेश्वर से बिनती की थी। तब मूसा पर्वत से नीचे गया और स्वयं उनके महान विद्रोह को देखा। उनके इस बेहद अविश्वास को देख कर वह बहुत क्रोधित हुआ। लेवी मूसा कि ओर हो गए और उन दुष्ट लोगों पर सही न्याय किया।
लेवियों ने तलवार से तीन हज़ार लोगों को मार दिया, और यह सिद्ध था। क्या हमेशा एक पापी को मारना सही है? नहीं। इस्राएल का यह राष्ट्र परमेश्वर के विशेष नेतृत्व में था। आम तौर पर, जब किसी व्यक्ति के अपराध को सिद्ध किया जाता था तब उसकी जान लेना सही होता था। परमेश्वर ने आज्ञा दी थी की किसी को दोषी ठहराने के लिए दो गवाहों कि ज़रुरत होती है। परमेश्वर के नियम के आधार पर एक धर्मी न्यायाधीश सज़ा को तय कर सकता था। लेकिन इस कहानी में, परमेश्वर अपने पवित्र राष्ट्र पर महान राजा के शासनकाल की स्थापना कर रहा था। जिस समय उसकी उपस्थिति पर्वत पर थी, लोग उसके विरुद्ध विद्रोह कर रहे थे। यह एक बहुत उपेक्षापूर्ण पाप था! यह उसके विरुद्ध एक भयानक विद्रोह था!
परमेश्वर ही है जो हम में से प्रत्येक को जीवन देता है, और वही हमारे जीवन को हर पल चलाता है। उसे जीवन और मृत्यु पर पूरा अधिकार है। केवल उसे ही किसी के जीवन को कम या बढ़ाने का अधिकार है। कई बार, क्यूंकि वह एक भला परमेश्वर है, वह पाप में गिरे लोगों को जीने देता है, चाहे वे उसके द्वारा दिए जीवन को अपने तरीके से चलाते हैं। लेकिन कभी कभी वह उनके जीवन को कम कर देता है, और यह उसके लिए एक अच्छी और सिद्ध बात है!
जब लेवी मूसा के साथ खड़े हुए, वे अपनी वफ़ादारी परमप्रधान परमेश्वर के प्रति दिखा रहे थे। उनकी निष्ठा उन सब के लिए थी जो परमेश्वर को महिमा देते थे, और वे उन सब के दुश्मन थे जो उसके पवित्र देश में धार्मिकता को नष्ट करने की कोशिश करते थे। उनकी आज्ञाकारिता उपासना किउच्च और महिमा के योग्य थी। यह परमेश्वर के लिए महान गौरव और सम्मान था।
इस्राएलियों के पाप बहुत महान थे, इसलिए मूसा क्षमा मांगने वापस परमेश्वर के पास गया। उसने कहा, "'इन लोगों ने बहुत बुरा पाप किया है और सोने का एक देवता बनाया है। अब उन्हें इस पाप के लिये क्षमा कर। यदि तू क्षमा नहीं करेगा तो मेरा नाम उस किताब से मिटा दे जिसे तूने लिखा है।'” (निर्गमन 32: 31b)।
मूसा ने परमेश्वर से बिनती की। उसने उसके साथ सौदेबाजी की। वह राष्ट्र को बचाने के लिए अपने आप सज़ा भुगतने के लिए तैयार था। मूसा जानता था कि परमेश्वर के पास एक किताब थी जिसमें उसने अपने वफ़ादार बच्चों के नाम लिख रखे थे। मूसा ने अपने खुद के नाम को उस किताब से मिटाने को कहा ताकि परमेश्वर उसके लोगों को क्षमा कर दे। वह उनका असली मध्यस्थ था। कितना अद्भुत मध्यस्थ था। वह उसकी छवि था जो आने वाला है।
परमेश्वर ने कहा किजो पाप करते हैं उनके नाम उसकी पवित्र पुस्तक से निकाल दिए जाएंगे। मूसा को अपने लोगों को वादे के देश से लेकर जाना था। परन्तु परमेश्वर ने कहा कि जिस ने भी स्वर्ण बछड़े कि मूर्ती के साथ पाप किया था, वे सज़ा पाएंगे। उसने उनके ऊपर एक महान विपत्ति भेजी।
परमेश्वर ने मूसा से कहा किवह लोगों को वादे के देश में ले जाएगा, और वह उनके साथ अपने दूत को भेजेगा। दूत उनके आगे आगे जाएगा और जो दुश्मन पहले से उस देश में होंगे, वह उन्हें बाहर निकालेगा। लेकिन परमेश्वर ने कहा की वह अपनी योजना के अनुसार उनके साथ नहीं जाएगा। उसने कहा इस्राएलियों ने अपनी कठोरता साबित कर दी थी। वे अपने पाप और शर्मनाक व्यवहार में बहुत हठीले थे, और परमेश्वर के लिए यह बहुत प्रतिकारक और क्रोध दिलाने वाली बात थी। उसने कहा कि उसका उनके पास रहना खतरनाक हो सकता था, क्यूंकि वह जानता था किउसका क्रोध उनके ऊपर टूट पड़ेगा और वे नष्ट हो जाएंगे। जब लोगों को मालूम हुआ कि यहोवा उनके साथ नहीं जाएगा, वे निराश हो गए। अपने पश्चाताप को दिखाने के लिए उन्होंने सारी चीज़ों का त्याग करके प्रकट किया। उनके लिए यह नुक्सान बहुत बड़ा था। काश! परमेश्वर उन पर तरस खाए!