पाठ 122 : मूसा और उसका प्रभु
मूसा मिलाप वाले तम्बू को डेरे के बाहर लगाएगा। वह लोगों से कुछ दूर जाकर परमेश्वर से प्रार्थना करेगा और उसकी पवित्र इच्छा को जानेगा। जब भी लोग उसे जाते देखते, वे तम्बू के बाहर खड़े होकर उसे देखते थे। जब मूसा मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करता था, तो परमेश्वर की उपस्थिति तम्बू पर बादल बन कर उतर आती थी। इस्राएल के लोग उस बादल को देख कर अपने तम्बू के प्रवेश द्वार पर उपासना करते थे।
मूसा परमेश्वर से भेंट करेगा और उससे "इस प्रकार बात करेगा जिस प्रकार कोई व्यक्ति अपने मित्र से बात करता है।" (निर्गमन 33: 11b) परमेश्वर उसे अपने लोगों का नेतृत्व करने के लिए ज्ञान और मार्गदर्शन देगा, और फिर मूसा वापस डेरे में जाएगा। यहोशू, उसका वफ़ादार सहयोगी, मिलापवाले तम्बू में रहेगा।
अब मूसा संकट में फंस गया था। लोग विद्रोह कर रहे थे, और परमेश्वर ने कहा कि अब वह वादे के देश में उनके साथ नहीं जाएगा। बादल में उसकी विशेष उपस्थिति नहीं होगी, और परमेश्वर उनका नेतृत्व करने के लिए एक दूत को भेजेगा। लोग अपने पापों से दुखी थे और परमेश्वर से अपनी निकटता को खोने का उन्हें बेहद दुःख था। जो कुछ हो चुका था उसके विषय में मूसा मिलापवाले तम्बू में परमेश्वर से बात करने के लिए गया। परमेश्वर और उनके वफ़ादार सेवक के बीच उस अद्भुत बातचीत को सुनिए;
"'तूने मुझे इन लोगों को ले चलने को कहा। किन्तु तूने यह नहीं बताया कि मेरे साथ किसे भेजेगा। तूने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हें अच्छी तरह जानता हूँ और मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।’ यदि तुझे मैंने सचमुच प्रसन्न किया है तो अपने निर्णय मुझे बता। तुझे मैं सचमुच जानना चाहता हूँ। तब मैं तुझे लगातार प्रसन्न रख सकता हूँ। याद रख कि ये सभी तेरे लोग हैं।”
यहोवा ने कहा, “मैं स्वयं तुम्हारे साथ चलूँगा। मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।” तब मूसा ने उससे कहा, “यदि तू हम लोगों के साथ न चले तो तू इस स्थान से हम लोगों को दूर मत भेज। हम यह भी कैसे जानेंगे कि तू मुझसे और इन लोगों से प्रसन्न है? यदि तू साथ चलेगा तो हम लोग निश्चयपूर्वक यह जानेंगे। यदि तू हम लोगों के साथ नहीं जाता तो मैं और ये लोग धरती के अन्य दूसरे लोगों से भिन्न नहीं होंगे।” तब यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं वह करूँगा जो तू कहता है। मैं यह करूँगा क्योंकि मैं तुझसे प्रसन्न हूँ। मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूँ।”
वाह। कल्पना कीजिये। परमेश्वर का प्रेम अपने सेवक के प्रति बहुत महान था। वह इस इब्राहीम के पुत्र से बहुत प्रसन्न था, जिसने अपने लोगों के लिए अपने आप को दे दिया। यह सेवक जो परमेश्वर की उपस्थिति के बगैर कहीं नहीं जाता था, और दूसरे देशों में अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन किया, वह परमेश्वर का बहुत प्रिय था। परमेश्वर सब कुछ जानता है। वह प्रत्येक मनुष्य का नाम जानता है। लेकिन यहां, जब परमेश्वर कहता है की वह मूसा का नाम जानता है, तो इसमें एक बहुत ही विशेष अर्थ है। वह मूसा को जानता है और उसका उसके साथ एक अलग और विशेष रिश्ता है। यह परमेश्वर और उस मनुष्य के बीच एक अद्भुत दोस्ती थी। जब आप अपने किसी एक प्रिय परिवार के सदस्य या मित्र का नाम लेते हैं, फिर चाहे वही नाम किसी अजनबी का भी क्यूँ ना हो, वही नाम आप को सबसे अधिक भाता है। जब परमेश्वर ने कहा कि वह मूसा का नाम जानता है, उसका मतलब था की वह इस व्यक्ति के हर हिस्से को जानता है और उससे एक प्रिय मित्र की तरह प्रेम करता है। वाह।
"तब मूसा ने कहा, “अब कृपया मुझे अपनी महिमा दिखा।”
तब यहोवा ने उत्तर दिया, “मैं अपनी सम्पूर्ण भलाई को तुम तक जाने दूँगा। मैं यहोवा हूँ और मैं अपने नाम की घोषणा करूँगा जिससे तुम उसे सुन सको। मैं उन लोगों पर कृपा और प्रेम दिखाऊँगा जिन्हें मैं चुनूँगा। किन्तु तुम मेरा मुख नहीं देख सकते। कोई भी व्यक्ति मुझे देख नहीं सकता और यदि देख ले तो जीवित नहीं रह सकता है।'"
ये पद थोड़े भ्रमित लग सकते हैं। इससे पहले, यह लिखा था कि मूसा परमेश्वर से आमने सामने बात करेगा। अब परमेश्वर कह रहा है की कोई उसका चेहरा नहीं देख सकता। दोनों सही कैसे हो सकते हैं? खैर, किसी के साथ आमने सामने बात करना एक अलग बात है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि किसी विश्वसनीय दोस्त के साथ बात हो रही है। परमेश्वर मूसा के साथ खुला था और उसे कई महत्वपूर्ण कार्य दिए थे। परन्तु परमेश्वर बहुत महान और शक्तिशाली और ताकतवर है, जो मनुष्य की समझ से बाहर है। स्वर्ग से उसके सिंहासन से निकलने वाला प्रकाश इतना उज्जवल है, कि मनुष्य उसके नज़दीक भी नहीं जा सकता है। वे नीचे गिर जाते हैं और ज़मीन पर अपना चेहरा झुका लेते हैं। सो जब परमेश्वर अपने प्रिय दोस्त को मिलापवाले तम्बू में मिलने आया, उसे अपनी तेजस्वी महिमा से बचाना था। उसने अपने वफ़ादार सेवक से कहा:
"'मेरे समीप के स्थान पर एक चट्टान है। तुम उस चट्टान पर खड़े हो सकते हो। मेरी महिमा उस स्थान से होकर गुज़रेगी। उस चट्टान की बड़ी दरार में मैं तुम को रखूँगा और गुजरते समय मैं तुम्हें अपने हाथ से ढकूँगा। तब मैं अपना हाथ हटा लूँगा और तुम मेरी पीठ मात्र देखोगे। किन्तु तुम मेरा मुख नहीं देख पाओगे।'”
निर्गमन 33: 12-23
परमेश्वर ने मूसा से दो और पत्थर कि पट्टियां बना कर वापस सीनै पर्वत पर आने को कहा। परमेश्वर की उपस्थिति फिर से पूरी सामर्थ के साथ आएगी, और वह फिर से वाचा के अनुबंध को लिखेगा जो टूट गया था। इस्त्रााएलियों को पर्वत से दूर रहना था। मूसा जब परमेश्वर के साथ भेंट कर रहा था, उनकी भेड़ें और पशु भी वहाँ नहीं चर सकते थे।
अगली सुबह मूसा उन दो नई पट्टियों को लेकर गया। परमेश्वर अपनी महिमा में एक बादल में नीचे आया। वचन कहता है;
"यहोवा मूसा के सामने से गुज़रा था और उसने कहा, “यहोवा दयालु और कृपालु परमेश्वर है। यहोवा जल्दी क्रोधित नहीं होता। यहोवा महान, प्रेम से भरा है। यहोवा विश्वसनीय है। यहोवा हज़ारों पीढ़ियों पर कृपा करता है। यहोवा लोगों को उन गलतियों के लिए जो वे करते हैं क्षमा करता है। किन्तु यहोवा अपराधियों को दण्ड देना नहीं भूलता। यहोवा केवल अपराधी को ही दण्ड नहीं देगा अपितु उनके बच्चों, उनके पौत्रों और प्रपौत्रों को भी उस बुरी बात के लिये कष्ट सहना होगा जो वे लोग करते हैं।'”
निर्गमन 34: 5b -7
परमेश्वर कि उपस्थिति में, मूसा ज़मीन पर झुक गया। परमेश्वर ने अपनी सामर्थ में अपने आप को प्रकट किया। यह इतिहास में एक बहुत अद्भुत क्षण है। सारी सृष्टि का परमेश्वर जब अपने आप को वफ़ादार सेवक को प्रकट करना चाहता था, उसने क्या ज्ञात किया? क्या उसने मूसा को दिखाया कि उसने तारे कैसे बनाये थे? उसने यह नहीं समझाया कि दिल की धड़कन को वह कैसे बनाता है। उसने मूसा को यह नहीं बताया किक्यूँ उसने बाकि सब परिवारों को छोड़ इब्राहीम के परिवार को चुना। उसने यह नहीं समझाया कि खून में ऐसी कौन सी विशेष शक्ति है, सिवाय परमेश्वर कि पवित्र वस्तुओं को छोड़, सब कुछ साफ़ करता है।
परमेश्वर ने मूसा को जो दिखाया वह यह था किसभी मनुष्य उसके साथ एक सही रिश्ते में बंध जाएं। ब्रह्मांड में सबसे महत्वपूर्ण बात यही है। उसने दिखाया की, जो लोग अपने पापों के कारण टूट गए थे, वे उसके निकट आ सकते थे और उससे प्रेम कर सकते थे। क्या यह सुंदर नहीं है? वह उन्हें सिखा रहा था किकैसे वे उसके साथ संबंधित रह सकते थे और उसके पास आ सकते थे।
यहोवा असीम बुद्धिमान और सामर्थी है। वह अपने विषय में बहुत सी अनगिनित बातें प्रकट कर सकता था। लेकिन वह मूसा को अपनी महान दया और करुणा को दिखाना चाहता था। मनुष्य परमेश्वर को इसी प्रकार पहचानते हैं। उसने मनुष्य को अपने समान बनने के लिए अविश्वसनीय शक्यता दी, और वह उनके लिए कुछ भी इससे कम को स्वीकार नहीं करेगा। इसीलिए ब्रह्मांड में सबसे बड़े ख़ज़ाने को पाने के लिए, जो परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता है, उसने उन्हें सिखाया की उसकी पवित्रता में कैसे बढ़ना है। उन्हें निर्णय लेना था की या तो वे परमेश्वर किदया और कृपा को प्राप्त करें, या फिर वे पाप में जीना चाहते हैं, और उसे उसके न्याय और क्रोध के माध्यम से जानें। मूसा ने परमेश्वर कि महिमा कि शक्ति का अनुभव किया, और परमेश्वर किदया और पवित्रता ज्वलंत और वास्तविक थी।
"'यहोवा, यदि तू मुझसे प्रसन्न है तो मेरे साथ चल। मैं जानता हूँ कि ये लोग हठी हैं। किन्तु तू हमें उन पापों और अपराधों के लिए क्षमा कर जो हमने किए हैं। अपने लोगों के रूप में हमें स्वीकार कर।'"(निर्गमन 34: 8-9)
एक बार फिर, मूसा ने उस देश में जाने के लिए परमेश्वर से कहा। यहोवा ने उत्तर दिया, "'मैं तुम्हारे सभी लोगों के साथ यह साक्षीपत्र बना रहा हूँ। मैं ऐसे अद्भुत काम करूँगा जैसे इस धरती पर किसी भी दूसरे राष्ट्र के लिए पहले कभी नहीं किए। तुम्हारे साथ सभी लोग देखेंगे कि मैं यहोवा अत्यन्त महान हूँ। लोग उन अद्भुत कामों को देखेंगे जो मैं तुम्हारे लिए करूँगा। आज मैं जो आदेश देता हूँ उसका पालन करो और मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारा देश छोड़ने को विवश करूँगा। मैं एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी को बाहर निकल जाने को विवश करूँगा।'"
लोगों ने विद्रोह किया था, लेकिन उन्होंने पछतावा भी किया था। मूसा, जो लोगों का मध्यस्थ था, परमेश्वर के पास आया और महान वाचा के एक नवीकरण की मांग की, और परमेश्वर ने उसे दिया। वह उनके साथ जाएगा, और वे उसके लोग होंगे। उसकी उपस्थिति उनके साथ होगी। रिश्ता बहाल किया गया था।
परमेश्वर ने अपने लोगों को अपने कीमती वादों और नियमों को याद रखने का आश्वासन दिया। फिर उसने मूसा से उन्हें लिखने को कहा।मूसा इन शब्दों और कहानियों को लिखेगा जिनका वे हिस्सा थे। वे बाइबल किपहली पांच किताबें हैं, और वे वही कहानियों और शब्द हैं जिन्हें आज हम सीख रहे हैं! जब हम मूसा के बारे में पढ़ते हैं, हम उसके जीवन के विषय में पढ़ते हैं जो उसके जीवन में हुआ था।
मूसा फिर से सीनै पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात था। परमेश्वर ने उसे अपने ही हाथ से दस आज्ञाएं लिख कर दीं। अनुबंध पुनर्निर्माण किया गया था। संकट समाप्त हो गया था।
मूसा जब सीनै पर्वत के ढलान से नीचे आ रहा था, लोगों ने एक चमकता हुआ शरीर नीचे आते देखा। उसका चेहरा चमक रहा था क्यूंकि उसने परमेश्वर के साथ बात कि थी। परमेश्वर की उज्ज्वल पवित्र उपस्थिति इतनी चमक रही थी की हारून और लोग मूसा के करीब आने से डर रहे थे। लेकिन मूसा ने हारून और बुज़ुर्गों को अपने पास बुलाया। तब सब इस्राएली उसके पास आये, और मूसा ने परमेश्वर के द्वारा मिली आज्ञाओं को उन्हें बताया।
परमेश्वर के वचन को लोगों को देने के बाद, उसने परमेश्वर किचमक कि प्रतिभा को छुपाने के लिए अपने चेहरे को ढांप लिया। परमेश्वर के प्रति उसकी निकटता ने उसे लोगों से दूर रखा। परन्तु जब मूसा परमेश्वर के साथ मिलने के लिए गया, उसने अपने चेहरे से पर्दा हटाया और उससे आमने सामने बात की। जब वह लोगों के पास वापस जाता था, तो वह पर्दा कर के उन्हें परमेश्वरकिबातों को बताता था। जब तक वह फिर से अपने परमेश्वर के निकट नहीं जाता था, वह परदे में ही रहता था।