पाठ 173 : # 2 मोआब के मैदानों में - युद्धक्षेत्र पर यहोवा की वफ़ादारी को याद करना
मूसा परमेश्वर के लोगों के दिलों के डर को जानता था। वादे के देश में प्रवेश करना एक बड़ी चुनौती थी। यह डरावना था! लेकिन परमेश्वर अपने लोगों को वफ़ादारी से यहां तक ले आया था। चार सौ साल पहले, उसने इब्राहीम से एक वादा किया था। उसने उससे कहा कि एक दिन, वह इब्राहिम को एक महान राष्ट्र बनाएगा। वे दुनिया के एक ऐसे याजक होंगे जो यहोवा के चरित्र और अच्छाई को पूरी दुनिया को दिखाएंगे। उसने वादा किया की इब्राहिम का वंश आकाश के सितारों कि तरह होंगे।
अब वहाँ 2,000,000 वंशज थे, और वे उस भूमि कि सीमा पर खड़े थे जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से वादा किया था। अब समय आ गया था कि परमेश्वर अपने वादे को पूरा करे। इस पीढ़ी को एक विकल्प करना था। क्या वे उस देश में प्रवेश करेंगे? परमेश्वर सिद्ध और पवित्र है, और वह हमेशा अपने दिए वादे के अनुसार ही करता है। चाहे इस्राएलियों की यह पीढ़ी आज्ञाकारी होती है या नहीं, परमेश्वर अब्राहम के साथ बनाई वाचा का सम्मान करेगा। लेकिन उसने इस्राएलियों को एक विशेष मौका दिया था। वे परमेश्वर की अद्भुत योजना में शामिल हो सकते थे! यदि वे उस पर विश्वास करते हैं और आज्ञा का पालन करते हैं, तो वे वह पीढ़ी होगी जिसने अपने पूर्वजों के लिए परमेश्वर के वचन को पूरा किया है!
मूसा ने पहले भी इस्राएल के लोगों को ठीक उस समय परमेश्वर से दूर होते देखा था जब वे उस देश में प्रवेश करने जा रहे थे। उसे बहुत आशा थी की एक बार जब वे उस देश में प्रवेश कर लेंगे, वे उसके नियमों का पालन कर पाएंगे। इससे पहले, जब इस्राएलियों ने पाप किया था, मूसा राष्ट्र और परमेश्वर के क्रोध के बीच खड़ा हुआ था। वह उनका मध्यस्थ बना। उसने उन्हें नष्ट करने से यहोवा को रोका था। उसने उन्हें पश्चाताप करने के लिए उनकी मदद की थी। मूसा ऐसा दोबारा नहीं करने देगा। मूसा उनके साथ वादे के देश में प्रवेश नहीं करेगा।परमेश्वर इसकी अनुमति नहीं देगा। मूसा जाना चाहता था, उसने जाने के लिए परमेश्वर से बिनती किऔर उसे पुकारा। और परमेश्वर ने मना किया। इस्राएलियों को उसके बग़ैर ही उस देश में प्रवेश करना होगा।
मूसा उनके आगे आने वाली लड़ाई को जानता था, और वह जानता था कि उन्हें मज़बूत होने कि ज़रूरत थी। लेकिन वे अपनी ताकत की शक्ति में काम नहीं कर सकते थे। उन्हें यह याद रखना था की उनके भविष्य की योजनाएं किसी मानव द्वारा नहीं बनायीं गयीं थीं। वे परमेश्वर की योजना थीं। वे परमेश्वर के पराक्रमी कामों के द्वारा ही इतनी दूर तक पहुंच पाये थे। उसने दिखाया की वह मानव के इतिहास में पूर्ण रूप से प्रभुता करता है क्यूंकि उसने मानव इतिहास को उनके लिए रचा था।
उसने मोआब के मैदानों पर, फिर से इस्राएलियों से बात किताकि वे वादे के देश में प्रवेश करने के लिए तैयार हो जाएं। उसने उन्हें उपदेश दिए ताकि वे परमेश्वर में सामर्थी रहें और उसके नियमों का पालन करें। व्यवस्थाविवरण कि पुस्तक में मूसा के वे उपदेश दर्ज हैं जो लोगों को देश में प्रवेश करने के लिए तैयार कर सकें। हम उनके बारे में सीखेंगे।
मूसा ने उन्हें इतिहास स्मरण दिला कर शुरू किया। उसने परमेश्वर कि वफ़दारियों को सीनै पर्वत से ही याद दिलाना शुरू कर दिया था। मूसा ने कहानी को इस प्रकार शुरू किया की कैसे परमेश्वर ने उन्हें सीनै से वादे के देश में भेजा था। उसने उन्हें याद दिलाया कि कैसे उनके माता-पिता की पीढ़ी के विद्रोह करने के कारण परमेश्वर ने उन्हें वापस मरुभूमि में भेजा था। उसने बताया की कैसे वे उस देश से पारित हुए थे जो परमेश्वर ने कालेब को दिया था। यहोवा ने बताया किइस्राएली उस देश से शांतिपूर्वक पार हो सकते थे क्यूंकि उसने उन्हें संरक्षित किया हुआ था। वे उन लोगों पर हमला नहीं कर सकते थे, और वे उस भूमि को नहीं प्राप्त कर सकते थे, क्यूंकि वह उनके लिए नहीं थी। फिर वे मोआबी के देश से पारित हुए, और उन्हें उनके साथ भी युद्ध नहीं करना था। परमेश्वर ने वो देश इस्राएलियों को नहीं दिया क्यूंकि वह लूत के वंश को दिया गया था। वह इब्राहीम का भतीजे था।
अपने उपदेश में मूसा ने बताया किकिस प्रकार यहोवा ने उनके लिए मन्ना प्रदान किया था। यहोवा ने उनके कपड़े फटने नहीं दिए। उसने उनके सब काम को आशीर्वाद दिया और उनका ध्यान रखा। मूसा ने वे अड़तीस साल याद दिलाये जो बीत गए, और किस प्रकार परमेश्वर प्रति दिन उनके साथ वफ़ादार रहा। फिर वो आवंटित समय आया। उन्हें वापस उस देश में जाना था।
यहोवा ने इस्राएल को एक विशेष और पवित्र राष्ट्र के रूप में चुना था। उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के रास्तों को पूरी दुनिया को दिखाने थे।लेकिन परमेश्वर सब जातियों पर परमेश्वर है। उसके पास हर एक के लिए योजना है। जिस प्रकार उसके पास एसाव और लूत के वंशजों के लिए योजना थी, उसके पास उन राष्ट्रों के लिए भी योजना थी जिनके बीच से इस्राएली पारित होंगे। जब मूसा अपने संदेश को दे रहा था, उसने उन्हें याद दिलाया किकिस प्रकार उन्हें एमोरी के देश से पारित करते समय उनके साथ युद्ध नहीं करना है। लेकिन परमेश्वर के पास दूसरी योजना थी जब इस्राएल का डेरा एमोरी के नज़दीक पहुंचेगा। यहोवा ने कहा की इस्राएल कि सेना को एमोरी की सेनाओं के साथ युद्ध करना होगा और उनके राजाओं को हराना होगा। और उन्होंने किया।
लेकिन पहले, वे विनम्र होने कि कोशिश कर रहे थे। जब इस्राएलियों को एमोरी के राजा सीहोन के देश से गुज़रना था, तो उन्होंने पहले अनुमति ली। उसने इनकार कर दिया। परमेश्वर ने उसके हृदय को कठोर कर दिया ताकि उसके राष्ट्र पर इस्राएली हमला कर सकें। परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी कि वह सीहोन के देश पर आक्रमण करे और उसे हतिया ले। इस्राएल की सेना को उनके शहरों को नष्ट करना था और हर एमोरी कि हत्या करनी थी, यहां तक कि महिलाओं और बच्चों को भी मारना था।
परमेश्वर ने इस युद्ध के लिए आदेश दिए थे। एमोरी पर यह परमेश्वर का इस्राएल द्वारा आक्रमण करके उसका न्याय था। क्यूँ? एमोरी के लोगों ने क्या किया था? क्या यह क्रूर और कठोर नहीं लगता है? परमेश्वर नहीं बताता कि अन्य देशों को संरक्षित कर के उसने उन लोगों को क्यूँ मार डाला। परमेश्वर को बताने की जरूरत नहीं है। वह परमेश्वर है, और उसे मनुष्यों को बताने कि ज़रुरत नहीं है।
इस्राएलियों ने बड़ी वफ़ादारी से मूसा के द्वारा यहोवा के स्पष्ट आदेशों का पालन किया। हेशबोन के राजा सीहोन की भूमि को नष्ट करने के बाद, वे एक और एमोरी राष्ट्र को जीतने के लिए आगे बढ़े। इस्त्राएलियों ने बाशान के राजा ओग के विरुद्ध युद्ध किया। यहोवा ने इस्राएलियों के हाथ में उन्हें देने का वादा किया। इसका मतलब परमेश्वर ने उन्हें लड़ाई में जीत दिलाने का वादा किया था। और उन्होंने किया। यह एक महान युद्ध था। साठ शहरों को जीतना था, और प्रत्येक उनके बचाव के लिए ऊंची दीवारें थीं और कई योद्धाओं से बचाव करना था। लेकिन परमेश्वर ने इस्राएल को जीत दिलाई, और उसने इस्राएल के लोगों को जानवरों और भोजन लेने की अनुमति दी। हेशबोन और ओग पर इन जीत के साथ, यहोवा ने अपने लोगों के माध्यम से राष्ट्रों पर अपनी शक्ति प्रकट की। अब ये विशाल देश इस्राएल के राष्ट्र के थे।