पाठ 174 : # 3 भूमि में वाचा को निभाना

इस्राएल का राष्ट्र जिस समय वादे के देश की सीमा पर एक पक्षी कि तरह बैठा हुआ था, मूसा उपदेशों और नियमों के माध्यम से उन्हें उपदेश देता रहा। उसने उन्हें परमेश्वर के साथ बनाये उन महान वाचाओं को याद दिलाया, और उन्हें उन वादों को निभाना सिखाया। वह उन्हें अंतिम बार इन बातों को सिखा पाएगा। 

 

इस्राएलियों ने चालीस साल उसके नेतृत्व का पालन किया था। परमेश्वर ने उसकी लाठी का प्रयोग करके लाल सागर को दो हिस्सों में बांटा था। वही था जो सीनै पर्वत पर आग के बादल में प्रकट हुआ था। उसी ने उन्हें यहोवा के कीमती वाचा के बारे में सिखाया था। जल्द ही वह चला जाएगा। वे अपने वफ़ादार अगुवे को खो देंगे। ये उसके लोगों के लिए उसका वचन था जब वे अपने जीवन के लक्ष्य तक पहुँच रहे थे। 

 

अपने महान भाषण में, मूसा ने इस्राएलियों को याद दिलाया कि किस प्रकार परमेश्वर ने उन्हें दो सेनाओं को हराने के लिए उन्हें शक्ति दी थी। वे अपने स्वयं के बल से नहीं जीते थे। यह उनके पक्ष में परमेश्वर किशक्ति थी! वह योद्धा राजा था! उन्होंने हेशबोन और ओग के एमोरी राष्ट्रों पर विजय प्राप्त किथी। देश के महान वर्गों को जीतने के लिए उसने उन्हें ताक़तवर बनाया था। मूसा ने उन्हें याद दिलाया की किस प्रकार ये भूमि इस्राएल की तीन जनजातियों को दी गयीं थीं। रूबेन, गाद और मनश्शे की जनजातियां उन स्थानों में बस गए जो उन्हें दी गयीं थीं, उनके लिए वादे को देश में अपने स्थायी घर होंगे। वे अपने परिवारों को यहां बड़ा करेंगे और सैकड़ों वर्षों के लिए खेतों को संयंत्र करेंगे। 

 

मूसा ने समझाया कि इन तीन जनजातियों के लोगों को अभी भी एक काम करना था। भले ही उनकी पत्नियां और परिवार और भेड़-बकरियां उस देश में बस रहे थे जिस पर उन्होंने विजय प्राप्त की थी, पुरुषों को तभी भी इस्राएल कि सेना के साथ लड़ाई लड़नी थी। देश को अभी भी यरदन नदी पार कर के कनानी राष्ट्रों को जीतना था जो वहां पर पहले से बसे हुए थे। उन्हें इस्राएल किजनजातियों के सब पुरुष मदद के लिए चाहिए थे। 

 

मूसा ने उन जीत की घोषणा इस्राएलियों से कि जिन्हें परमेश्वर ने उन्हें दीं थीं। वे अतीत में की गयीं उन सब बातों को देख सकते हैं जो परमेश्वर ने उनके लिए कीं थीं ताकि वे विश्वास कर सकें कि वह कितना शक्तिशाली है और अब उन्हें मदद करने में सक्षम था। वह वो सब करेगा जो उसने वादा किया था। लेकिन क्यूंकि मूसा उस देश में उनके साथ नहीं जा रहा था, उसकी जगह उन्हें एक अन्य अगुवे कि ज़रुरत होगी। जब मूसा मोआब के मैदानों पर इस्राएलियों से बात कर रहा था, उसने उन्हें याद दिलाया की किस प्रकार परमेश्वर ने इस्राएल के लिए एक नए अगुवे के रूप में यहोशू को दिया था। उस समय, मूसा ने यहोशू से कहा था;

 

"'तुमने वह सब देखा है। जो यहोवा, तुम्हारे परमेश्वर ने इन दो राजाओं के साथ किया है। यहोवा ऐसा ही उन सभी राजाओं के साथ करेगा जिनके राज्य में तुम प्रवेश करोगे। इन देशों के राजाओं से डरो मत, क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हारे लिए लड़ेगा।’"(व्यवस्था 3: 21-22)।

 

यहोशू चालीस साल से इस्राएल का अगुवा होने के लिए प्रशिक्षण ले रहा था। वह मूसा का दास था। उसने सीनै पर्वत पर चढ़ाई की थी। वह परमेश्वर कि पवित्र उपस्थिति में मिलापवाले तम्बू में रहा। यहोशू ने ओग और हेशबोन कि लड़ाई को जितवाया था। यहोशू और बाकि के लोग यहोवा पर वादे के देश की जीत के लिए भरोसा कर सकते थे। 

 

इस्राएलियों को जिन लोगों को जीतना था वे कनानी कहलाते थे। वे बहुत पापी लोग थे। वे मूर्तियों की पूजा करते थे और नैतिक रूप से गन्दा जीवन जीते थे। उनके धार्मिक स्थलों में झूठे देवताओं की पूजा होती थी, मंदिर में वेश्यावृत्ति, और मृत्यु के बलिदान के लिए वे अपने बच्चों की बलि चढ़ाते थे। मोलक के दुष्ट मंदिर में, संगीत को इतना तेज़ बजाया जाता था ताकि बच्चों कि चीखें आग में डालते समय सुनाई ना पड़ें। 

 

परमेश्वर नहीं चाहता था कि उसके लोग कनानियों की तरह हों। वह चाहता था किवे शुद्ध और पवित्र हों, और केवल यहोवा के पीछे चलें। मूसा जानता था कि यदि इस्राएली उस देश में गए, तो वे कनानी धर्म का पालन कर सकते हैं। यह परमेश्वर के उच्च अच्छाई की तुलना में एक आसान रास्ता था। वे पाप विलास का जीवन जीना चाहते थे। लेकिन उस पाप से ज़्यादा कुछ और खतरनाक था जो एक व्यक्ति या एक राष्ट्र करता है। सबसे बड़ा खतरा यह था कि वे यहोवा के साथ उसकी वाचा को तोड़ेंगे। सो इस्राएलियों को यहोवा कि महान वफ़ादारी को याद दिलाने के बाद, सीनै पर्वत से लेकर मोआब के मैदानों तक, मूसा ने उन्हें परमेश्वर के साथ बनाई वाचा को उन्हें याद दिलाया। 

 

व्यवस्थाविवरण कि पुस्तक उसके लोगों के लिए मूसा का अंतिम सन्देश है। जो कुछ भी उसने कहा था वह सब बहुत महत्वपूर्ण रहा होगा। यहोवा और उसके लोगों के प्रति उसका प्रेम बहुत बड़ा होगा। जो कुछ हमने उसमें पढ़ा, वो सब उनके और हमारे लिए सीखने के लिए होगा। अधिकतर सन्देश जो मूसा ने लोगों को दिए थे, वे उनके यहोवा के साथ बनाये वाचा के विषय में थे जिन्हें वह उन्हें याद दिला रहा था। इस वाचा का केंद्र दस आज्ञाएं थीं। वे परमेश्वर के लिए इतने कीमती थे की उन्हें सोने के संदूक के अंदर रखा गया था, जिसे हमेशा अति पवित्र स्थान में रखा जाता था। सन्दूक के आवरण को दया का सिंघासन कहा जाता था। यह परमेश्वर के दो करूबों के पंखों से घिरा हुआ था।परमेश्वर किउपस्थिति मंदिर में इस दया के सिंघासन पर रहती थी। हर साल, पश्चाताप के दिन के बलिदान लोगों के दिलों को शुद्ध और पवित्र करते थे, जहां उनके पाप का अपराध इकट्ठा होता था। इस शुद्धिकरण से परमेश्वर अपने लोगों के पास रह सकता था। और यहोवा कि पवित्र उपस्थिति के दिल में, सन्दूक के भीतर, परमेश्वर ने आज्ञा दी की उसके लोग उन दस विशेष आज्ञाओं का पालन पूरे तन मन से करें। 

 

नियमों के द्वारा इस्राएल के लोगों ने, जो एक चुनी हुई प्रजा थी, अपनी पवित्रता को बनाय रखना सीखा। जब वे उस देश में प्रवेश करेंगे, कोई परिवर्तन नहीं होगा। मूसा चाहता था की जब वे उस देश में रहें, तब उन्हें नियमों के अनुसार जीना सीखना होगा। दस आज्ञाएं एक लघु संस्करण थे। व्यवस्थाविवरण में, मूसा लंबे संस्करण देता है। उसने समझाया कि किस प्रकार प्रत्येक नियम को अपने दैनिक जीवन में लागू करना है। यह मूसा के वचनों का एक हिस्सा है;

 

"इस्राएल, अब उन नियमों और आदेशों को सुनो जिनका उपदेश मैं दे रहा हूँ। उनका पालन करो। तब तुम जीवित रहोगे और जा सकोगे तथा उस प्रदेश को ले सकोगे जिसे यहोवा तुम्हारे पूर्वजों का परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। जो मैं आदेश देता हूँ उसमें और कुछ जोड़ना नहीं। तुम्हें उसमें से कुछ घटाना भी नहीं चाहिए। तुम्हें अपने यहोवा परमेश्वर के उन आदेशों का पालन करना चाहिए जिन्हें मैंने तुम्हें दिये हैं।"(व्यवस्था 4: 1-2)।

 

वाह। जो वचन मूसा ने इस्राएलियों को दिए थे, वे उसे परमेश्वर द्वारा दिए गए शब्द थे। इस्राएलियों को इन पवित्र वचनों को बड़ा आदर और सम्मान देना होगा। यह नहीं बदला है। हमें भी उनका सम्मान करना है। परमेश्वर का वचन, बाइबल, हमारी पवित्र पुस्तक है। आगे मूसा कहता है; 

 

'''इन नियमों का सावधानी से पालन करो। यह अन्य राष्ट्रों को सूचित करेगा कि तुम बुद्धि और समझ रखते हो। जब उन देशों के लोग इन नियमों के बारे में सुनेंगे तो वे कहेंगे कि, सचमुच इस महान राष्ट्र के लोग बुद्धिमान और समझदार हैं। किसी राष्ट्र का कोई देवता उनके साथ उतना निकट नहीं रहता जिस तरह हमारा परमेश्वर यहोवा जो हम लोगों के पास रहता है, जब हम उसे पुकारते हैं और कोई दूसरा राष्ट्र इतना महान नहीं कि उसके पास वे अच्छे विधि और नियम हों जिनका उपदेश मैं आज कर रहा हूँ।''' (व्यवस्था 4: 6-8)

 

वाह। परमेश्वर कि उपस्थिति केवल मंदिर में इस्राएल के राष्ट्र के नज़दीक नहीं थी। जितनी बार वे प्रार्थना करते थे, परमेश्वर उनके पास होता था। और वह केवल उनकी प्रार्थना ही नहीं सुनता था! वह उन्हें जवाब देना चाहता था। 

 

जब परमेश्वर ने उन्हें इन आदेशों को दिया, तब मूसा ने उन्हें उस परिस्थिति कि गंभीरता को याद दिलाया। यह उस कांपते हुए पर्वत पर आग से था! सीनै पर्वत गरज के साथ गड़गड़ाया जब मूसा उस अँधेरे में गया। सारी सृष्टि का कर्ता उससे मिलने नीचे आया, और प्रकृति अपने पराक्रम का आतंक प्रदर्शित कर रही थी! वह एक पूरे नए तरीके से खुद को प्रकट कर रहा था। परमेश्वर प्रेमी और दयालू है, लेकिन वह शक्तिशाली और भयभीत और पराक्रमी है! परमेश्वर की महानता को जानना कितना एक महान सम्मान और विशेषाधिकार है। परमेश्वर कि नज़दीकी और उसके आशीर्वाद का मतलब है कि इस्राएल के देश को उस उच्च उम्मीद के तहत जीना होगा। यहोवा ने पर्वत पर मूसा से कहा;

 

"'मैं जो कुछ कहता हूँ, उसे सुनने के लिए लोगों को इकट्ठा करो। तब वे मेरा सम्मान सदा करना सीखेंगे जब तक वे घरती पर रहेंगे। और वे ये उपदेश अपने बच्चों को भी देंगे। तुम समीप आए और पर्वत के तले खड़े हुए। पर्वत में आग लग गई और वह आकाश छूने लगी। घने काले बादल और अंधकार उठे। तब यहोवा ने आग में से तुम लोगों से बातें कीं। तुमने किसी बोलने वाले की आवाज सुनी। किन्तु तुमने कोई रुप नहीं देखा। केवल आवाज सुनाई पड़ रही थी। यहोवा ने तुम्हें यह साक्षी पत्र दिया। उसने दस आदेश दिए और उन्हें पालन करने का आदेश दिया। यहोवा ने साक्षीपत्र के नियमों को दो पत्थर की शिलाओं पर लिखा। उस समय यहोवा ने मुझे भी आदेश दिया कि मैं तुम्हें इन विधियों और नियमों का उपदेश दूँ। ये वे नियम व विधि हैं जिनका पालन तुम्हें उस देश में करना चाहिए जिसे तुम लेने और जिसमें रहने तुम जा रहे हो।'" (व्यवस्था 4 : 10b-11) 

सीनै पर्वत के उन महान क्षणों को अड़तीस साल बीत चुके थे। मूसा अपने लोगों के साथ मोआब के मैदानों पर खड़ा था और दस आज्ञाओं को एक बार फिर सुनाया।