पाठ 161 : अमोरियों को बाहर निकालनाभाग 1: राजा सीहोन

वादे के देश तक पहुँचने के लिए इस्राएली अपनी खोज में कूच करते रहे। मरुभूमि में कई साल भटकने के बाद, वे ऐसे क्षेत्रों में जा रहे थे जहां और अधिक शहर और कसबे, और लोग थे। वे ऐसे देशों में पहुंचे जहां सैकड़ों वर्षों से लोग बेस हुए थे। उन देशों के राजा इस्राएलियों के बारे में चिंता कर रहे थे जो मरुभूमि में फिर रहे थे। ये कौन लोग थे जिनके परमेश्वर ने मिस्र पर शक्तिशाली विजय प्राप्त की और उनकी ओर आ रहा था? 

 

अन्य सभी राष्ट्रों ने देखा किइस्राएलियों ने मरुभूमि में फिरना बंद किया और कनान के लिए एक रास्ता बनाया। उन्होंने इस देश के विषय में सुना था की उनका परमेश्वर बादल और आग में उनके साथ रहता था, और वे सभी चालीस साल उन पर एक नज़र रखे हुए थे। अब वे मरुभूमि से जा रहे थे, और यह एक खतरे वाली बात थी। उनके राजा शाही सलाहकारों के साथ मिल रहे थे। जब इस्राएली लोग पहुंचे, तब वे क्या करेंगे? उनकी सेनाएं राजा के आदेश का इंतज़ार कर रही थीं। 

 

कहानी के इस भाग में, इस्राएली एक सड़क के माध्यम से यात्रा कर रहे थे। अराद के कनानी लोगों ने सुना की ये विशाल समूह रास्ते में ही था। उनका राजा युद्ध के लिए तैयार था।

 

वह अपने सैनिकों को बाहर लाया और इस्राएलियों पर हमला कर के उन पर कब्ज़ा कर लिया। इस्राएल के डेरे में हुई हलचल की कल्पना कीजिये। उनके कुछ भाइयों को कनानियों ने क़ैद कर लिया था। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था! लोगों को जोश आ गया। उन्होंने यहोवा के सामने शपथ ली। उन्होंने घोषित किया की यदि परमेश्वर कनानियों को उनके हाथों में नहीं दे देता है, तो वे उनके शहरों में जाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देंगे। उनके देश की सभी कीमती चीज़ों को ले लिया जाएगा और परमेश्वर के भवन के लिए समर्पित कर दी जाएंगी। 

 

वाह! इस्राएलियों का दृष्टिकोण पहले की तुलना में अब बहुत अलग था। अब कोई रोना और शिकायत करना नहीं था! कुछ भी करने से पहले, उन्होंने परमेश्वर से बिनती की। उन्होंने दिखाया किउन्हें कनानियों पर विजय पाने के लिए उन्हें उसकी सामर्थ की ज़रुरत है, और वे उनके साथ युद्ध करने के लिए तैयार थे। उन्होंने वादा किया यह सब परमेश्वर की महिमा के लिए ही होगा। परमेश्वर ने उनके अनुरोध को सुना। इस्राएली गए और कनानियों के साथ युद्ध किया। यही देश थे जिन्हें परमेश्वर ने उनके भीषण पापों का न्याय करने के लिए बुलाया था। इस्राएलियों ने पूरी तरह से उनके शहरों और कस्बों को नष्ट कर दिया था। और इसीलिए उस जगह का नाम "होर्मा" रखा गया क्यूंकि उसका अर्थ है "विनाश।"

 

इस्त्राएलियों किअगली पीढ़ी अपना साहस दिखाना शुरू कर रही थी। वे कनानी के डर से हिचकिचाये नहीं, और युद्ध में जाने से पहले उन्होंने परमेश्वर से अपील की थी। उन्होंने परमेश्वरकिइच्छा को ध्यान में रखा, और उसने उनकी मदद की। पलायन की दूसरी पीढ़ी क्या पहली पीढ़ी से अलग थी? क्या उन्होंने अपने माता-पिता की गलतियों से कुछ सीखा? क्या परमेश्वर के नियमों के तहत रहना और मंदिर के आशीर्वाद ने उन्हें एक पवित्र राष्ट्र में तब्दील किया था?

 

जब लोगों ने एदोम के देश के चारों ओर होते हुए होर पर्वत से यात्रा की, वे एक बार फिर एक राष्ट्र के रूप में बड़बड़ाने लगे। वे भोजन से थक चुके थे, वे पानी की कमी के रहने से थक चुके थे। उन्होंने कहा की काश उन्होंने मिस्र कभी नहीं छोड़ा होता। उन्होंने मूसा और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत करनी शुरू की।

 

इस्राएलियों के लिए शिकायत करना इतनी भयानक बात क्यूँ थी? यह इसीलिए है, क्यूंकि उन्होंने वास्तव में सबसे महत्वपूर्ण सबक नहीं सीखा था। परमेश्वर ने उनके लिए बहुत कुछ किया था, और वह उन्हें सबसे बड़ी सच्चाई सिखा रहा था। उन्हें इस दुनिया में केवल उस पर भरोसा और विश्वास रखना था। वह सिखा रहा था की चाहे पृथ्वी पर कुछ भी होता रहे, वह पूरी तरह से शक्तिशाली और संप्रभु था। जीवन में हर एक बात परमेश्वर की ओर से थी, और हर बात उसे बेहतर जानने के लिए होती थी। मन्ना को एक चमत्कार की तरह देखने के बजाय, उन्होंने परमेश्वर की वफ़ादारी को अवमानना ​​के साथ देखा। मिस्र के लोगों ने उन्हें ग़ुलाम बना दिया था और उनके बच्चों को मार डाला था, लेकिन इस्त्राएलियों ने कहा की वे यहोवा की तुलना में बेहतर थे!

 

परमेश्वर ने उनके लिए इतिहास रचा था जिससे यह स्पष्ट हो गया था की उनके जीवित रहने का कारण परमेश्वर ही था जिसने यह उनके लिए संभव किया। उनका उस पर विश्वास करने के लिए वह चालीस साल के लिए उनके इतिहास को रोक रहा था, और तभी भी वे नहीं समझ रहे थे। 

 

परमेश्वर उनकी नवीनतम कपट से क्रोधित था। उसने डेरे में लोगों को काटने के लिए ज़हरीले सांप भेज दिए। कई मर रहे थे, और बाकी खतरनाक सरीसृप के डर में रह रहे थे। लोग जानते थे की वास्तव में क्या हो रहा था। वे जानते थे की यहोवा और उसके वफ़ादार दास के विरुद्ध उनके शब्दों का यह उनके लिए परमेश्वर का न्याय था। वे मूसा के पास गए और उनकी ओर से प्रार्थना करने के लिए उस से कहा।

 

मूसा ने परमेश्वर से प्रार्थना की, और उसने उसे जवाब दे दिया। उसने मूसा से एक पीतल का सांप बनाकर एक खम्बे पर टांगने के लिए कहा। जो भी एक ज़हरीले सांप के द्वारा काटे गए वे उस पीतल के सांप को देख कर चंगाई पा सकते थे। उन्हें जीवित रहने के लिए ऊपर देखना होगा। 

 

यहोवा कितना अच्छा और अनुग्रहकारी परमेश्वर है, जो क्रोध करने में विलंभ करता है और भरपूर प्रेम करता है। उसने कितनी जल्दी अपने लोगों के प्रति दया दिखाई। उनकी अनाज्ञाकारिता के सामने उसका प्रेम कितना निष्ठावान था। उनके पापों के कारण उन्हें घाव को चंगा करने के लिए उसने चंगाई का एक रास्ता प्रदान किया। 

 

इस्राएली लगातार वादे के देश किओर कूच कर रहे थे। उन्होंने ओबोत और ईय्ये अबीराम नामक स्थान पर डेरा डाला। तब उन्होंने बैर की यात्रा की, जहां मूल्यवान पानी का कुआँ था, और वहां से मत्ताना की ओर गए। वहां से, वे यात्रा करते हुए मोआब की घाटी पर पहुंचे। वे वादे के देश के करीब पहुंच रहे थे, लेकिन वे एमोरी के लोगों के देश के पास आ रहे थे। 

 

एक बार फिर, इस्राएलियों को उस देश किभूमि से गुज़रने के लिए अनुमति लेनी थी या फिर युद्ध का सामना करना होगा। उन्होंने एमोरी के राजा सीहोन के पास सन्देश भेजा किवह उसकी भूमि से उन्हें जाने की अनुमति दे दे। एक बार फिर, उन्होंने वादा किया की वे उनके खेतों को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और ना ही उनका पानी पिएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि आक्रमण करने कि उनकी कोई इच्छा नहीं थी। वे केवल राजा के राजमार्ग के माध्यम से गुज़रना चाहते थे। 

 

लेकिन राजा सीहोन को यह मंज़ूर नहीं था। वह तो केवल युद्ध करना चाहता था। उसने अपनी सारी सेना को बुलाया और इस्राएलियों से युद्ध करने के लिए मरुभूमि की ओर निकल पड़ा। सोचिये इस्राएल के परिवारों और जनजातियों को यह कैसा लगा होगा। जब वे दिन में राजमार्ग पर चल रहे थे या अपने डेरे में शाम के समय बैठे होंगे, एक सेना उनकी ओर आ रही थी। 

 

एमोरी राजा के पास मोआब के लोगों के खिलाफ अपने अतीत की जीत के विषय में एक गीत था। वह उत्साहित था और उसी खूनी तरीके से वह इस्राएलियों पर विजय पाना चाहता था। उसने बेटों और भगोड़ों और बेटियों को साथ ले जाने का गीत गाया। उसने पराभव और विध्वंस का गीत गाया। इस्राएलियों के पास इसके विषय में ख़बर पहुंची, लेकिन वे डरे नहीं। उन्होंने युद्ध के लिए मैदान पर राजा सीहोन और उसकी सेना का सामना किया, और उन्हें हराया। उन्होंने हेशबोन, जो राजा सीहोन का निवास्थान था, एमोरी शहरों समेत उस पर कब्ज़ा कर लिया।यह यरूशलेम के शहर से लगभग पचास मील पूर्व में था। इस्राएलियों ने यरदन नदी के पूर्वी क्षेत्र पर भी कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने उसमें प्रवेश किया, और शहरों और उनकी इमारतों पर कब्ज़ा किया। यह आक्रमण शुरू हो गया था!