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पाठ 136 : प्रायश्चित का दिन - भाग 1: हारून के पुत्र के पापों और मंदिर का संदूषण

परमेश्वर के पवित्र याजक के पद के समन्वय के आठवें दिन, हारून के दोनों बेटे परमेश्वर की आग से ख़त्म हो गए। उन्होंने एक पवित्र दिन के बीच में परमेश्वर के पवित्र आदेश के विरुद्ध पाप किया था। यह एक दुर्घटना नहीं थी। वे जानते थे की वे क्या कर रहे थे।

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पाठ 137 : प्रायश्चित का दिन भाग 2: अनुष्ठान

प्रायश्चित के दिन पर परमेश्वर कि सेवा करने के लिए, हारून को पूरे अपने याजक के वस्त्र पहनने थे। लेकिन पहले उसे तैयारी के लिए अपने पूरे शरीर को धोना होगा। वह अति पवित्र स्थान में कोई गंदगी नहीं ला सकता था।

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पाठ 138 : प्रायश्चित का दिन भाग 3: बलि का बकरा

महायाजक ने दाव के आधार पर बलिदान के लिए एक बकरी को चुना। लेकिन परमेश्वर ने प्रायश्चित के दिन के लिए आंगन में दो बकरियों के लिए उन्हें आज्ञा दी थी। दूसरी बकरी को एक बहुत ही दिलचस्प काम करना था।

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पाठ 139 : पवित्रता का नियमसंग्रह

प्रायश्चित के दिन के जो निर्देश परमेश्वर ने महायाजक को दिए थे, उन्हें तब तक जारी रखना था जब तक इस्राएल एक राष्ट्र था। यह पवित्र दिन अति पवित्र को इस्राएलियों के पापों से हर साल शुद्ध करता था। परमेश्वर ने जो बलिदान दिए थे वे उन्हें शुद्ध करने के लिए थे क्यूंकि परमेश्वर जानता था किवे पूरी पवित्रता में नहीं रह सकेंगे।

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पाठ 140

पवित्रता का नियमसंग्रह यह भी सिखाता है किइस्राएल के लोगों को एक अलग समुदाय होना है। यह वो जगह थी जहां परमेश्वर ने अपने लोगों को एक दूसरे से प्रेम करने और एक दूसरे का ध्यान रखने के लिए बुलाया था। यदि कोई दूसरे के विरुद्ध पाप करता है, तो उन्हें घृणा और क्षमा ना करने की अनुमति नहीं थी।

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पाठ 142

इस्राएली सबसे कठिन बातों में भी परमेश्वर किआज्ञा मानना सीख रहे थे। किसी अन्य व्यक्ति की जान ले लेना परमेश्वर के न्याय का एक कठिन हिस्सा था, लेकिन यह न्यायपूर्ण भी था। परमेश्वर ऐसे लोगों को चाहता था जो उसके प्रति वफ़ादार हों।

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पाठ 143 : पुरुषों की जनगणना

जब इस्राएल देश सीनै कि मरुभूमि में था, तब परमेश्वर ने मूसा को सभी नियम और आदेश सौंप दिए थे। उसने मूसा को पर्वत पर मंदिर को बनाने के विषय में दर्शन दिया। उनके याजकों को विस्तृत निर्देश दिये की किस प्रकार प्रत्येक बलिदान को देना है।

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पाठ 144 : लेवी

एक गोत्र था जिसे परमेश्वर ने मूसा को गिनने से मना किया। एक गोत्र था जिसके पुत्र और पिता युद्ध में नहीं जाएंगे। वह लेवियों का गोत्र था। उन्हें परमेश्वर के पवित्र याजक होने के लिए अलग किया गया था। उन्हें मंदिर के काम को हारून और उसके पुत्रों के साथ करना था।

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पाठ 146 : विवाह के संकल्प की पवित्रता में रहना - राहेल का दु: ख और जीत भाग 1

गिनती 5 में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को अपने लोगों के बीच विवाह की पवित्रता की रक्षा के लिए एक आदेश दिया था। इतने सारे लोगों के एक बड़े राष्ट्र में, समस्याओं का होना बाध्य था। विवाह को अलग करने वाली पवित्र दिवार जो प्रत्येक पति और पत्नी को एक दूसरे के प्रति समर्पित रहने के लिए मज़बूत करती है, वह बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकती है।

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पाठ 147 : राहेल के दु: ख और जीत भाग 2

मेरे पति का परिवार एक सत्ता और प्रतिष्ठा का परिवार था। उन्हें विशेष आदर और सम्मान मिलता था। वे यह मान कर चलते थे की वे महत्वपूर्ण हैं और उन्हें दूसरों से ज़्यादा ग्रहण किया जाता है। मैं सोचती हूँ वह क्षणिक मुस्कान उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा से अधिक मूल्य थी। उसके उग्र क्रोध की मैं पहले कभी कल्पना नहीं कर सकती थी।

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पाठ 148 : नज़रानी शपथ

परमेश्वर के लोग जिस समय सीनै पर्वत से जाने की तैयारी में थे, मूसा ने उन्हें परमेश्वर के प्रति विशेष भक्ति को दिखने का रास्ता दिखाया। परमेश्वर ने इस्राएलियों को विशेष समय की विशेष अवधि के लिए अलग निर्देश दिये। इस्राएल में एक पुरुष और स्त्री नाज़ीर के नाम से शपथ ले सकते थे।

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पाठ 149 :आशीर्वाद और लेवियों का अलग किया जाना

मूसा ने मंदिर के निर्माण के पराक्रमी काम को समाप्त किया। पूरा इस्राएल समुदाय उनके बहुतायत के धन में एक साथ शामिल हो गया था। परमेश्वर के सिंहासन को बनाने के लिए बहुत सारा सोना दिया गया और करूबों के साथ पर्दे सिले गए और उन्हें बड़ी सावधानी से लटका दिए गए।

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पाठ 150

जब से फिरौन ने इस्राएलियों को जाने दिया था तब से एक साल बीत गया था। उसने अपना पुत्र खो दिया था क्यूंकि उसने अपने दिल को पराक्रमी परमेश्वर की इच्छा के खिलाफ कठोर कर लिया था। लेकिन परमेश्वर ने इस्राएलियों के बेटों को बख्शा।

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पाठ 151 : सत्तर अगुवे, आत्मा, और बटेर

इस्राएलियों का एक समूह उस मन्ना की जगह, जो परमेश्वर इतने चमत्कारी ढंग से उन्हें प्रदान कर रहा था, अन्य चीज़ों की इच्छा करने लगे। उनकी शिकायतें अन्य इस्त्राएलियों में फैलने लगी, और बहुत जल्द वे ये बातें कहने लगे;

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पाठ 152

वाह, इस्राएल के राष्ट्र ने फिर से विद्रोह कर दिया था! उन्होंने परमेश्वर के द्वारा दिए अगुवे मूसा के विरुद्ध में लड़ाई की थी, और उन्होंने उसके द्वारा दिए अद्भुत उपहार, मन्ना का विद्रोह किया था। परन्तु परमेश्वर अच्छाई को इनके द्वारा ले कर आया था।

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पाठ 153 : भूमि का पुरुषों द्वारा सन्वेषण करना

इस्राएल का राष्ट्र पारान मरुभूमि में डेरा डाले हुए था। उन्होंने सीनै से वादे के देश कूच किया था। बाकी दुनिया के लिए, वह कनान कहलाता था। जो लोग वहां पहले से रहते थे वे कनानी कहलाये जाते थे। वे क्या सोच रहे होंगे जब उन्हें यह मालूम हुआ होगा की दो लाख इस्राएली उनके देश के किनारों पर डेरा डाले हुए थे? समय नज़दीक आ रहा था।

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पाठ 154 : मूसा, एक अद्भुतमध्यस्थ

पूरा इस्राएल का डेरा अराजकता कि स्थिति में था। यह सुनकर किकनान देश में पहले से ही महान राष्ट्र रहते हैं, वे भयभीत हो गए, और इस्राएली पूर्ण रूप से विद्रोही होने लगे थे। वे परमप्रधान परमेश्वर किभलाई के विरुद्ध अपराधी बनने जा रहे थे।

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पाठ 155 : नीले गुच्छे

इस्राएल के देश के भयानक और हतोत्साहित घटनाओं के बीच में, परमेश्वर वादा करने कि आशा देता रहा। उसने उनके साथ उस दिन के बारे में बात की जब वे उस देश में प्रवेश करेंगे। उसने अगली पीढ़ी के बच्चों से जीवन के विषय में बातें कीं, की किस प्रकार उन्हें अपने जीवन को जीना है।

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पाठ 156 : कोरह का विद्रोह भाग 1

मानव जाति बहुत पापी है। एक उच्च और पवित्र परमेश्वर है जो आशीर्वाद देना चाहता है, और फिर भी जिस मनुष्य को उसने बनाया वह अपने ऊपर शाप लाता रहा। यहां तक की जिस राष्ट्र पर परमेश्वर ने अपने कीमती वादे बाध्य किये थे, वे भी पाप और विद्रोहकिही समस्या में पड़े हुए थे।

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पाठ 157 : कोरह का विद्रोह भाग 2

मूसा ने कोरह और उसके साथ के लोगों को उनकी धूपदानी को लेकर मंदिर में आने को कहा। वे स्वयं परमेश्वर से जान जाएंगे किकौन इस्राएल का महायाजक होने के लिए बुलाया गया था।

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