पाठ 148 : नज़रानी शपथ

परमेश्वर के लोग जिस समय सीनै पर्वत से जाने की तैयारी में थे, मूसा ने उन्हें परमेश्वर के प्रति विशेष भक्ति को दिखने का रास्ता दिखाया। परमेश्वर ने इस्राएलियों को विशेष समय की विशेष अवधि के लिए अलग निर्देश दिये। इस्राएल में एक पुरुष और स्त्री नाज़ीर के नाम से शपथ ले सकते थे। यह परमेश्वर के लिए कुछ विशेष या असाधारण करने का एक रास्ता था। यह एक बहुत ही उच्च सम्मान था। कुछ लोग जैसे यूसुफ, जो याकूब का आदर्श पुत्र था, परमेश्वर के प्रति अति वफ़ादार रहते थे। यह बहुत मुश्किल भी था। 

 

"'यहोवा ने मूसा से कहा,“ये बातें इस्राएल के लोगों से कहोः कोई पुरुष या स्त्री कुछ समय के लिए किन्हीं अन्य लोगों से अलग रहना चाह सकता है। इस अलगाव का उद्देश्य यह हो कि वह व्यक्ति पूरी तरह अपने को उस समय के लिए यहोवा को समर्पित कर सके। वह व्यक्ति नाज़ीर कहलाएगा। उस काल में व्यक्ति को कोई दाखमधु या कोई अधिक नशीली चीज़ नहीं पीनी चाहिए। व्यक्ति को सिरका जो दाखमधु से बना हो या किसी अधिक नशीले पेय को नहीं पीना चाहिए... उस अलगाव के काल में उस व्यक्ति को अपने बाल नहीं काटने चाहिए। उस व्यक्ति को उस समय तक पवित्र रहना चाहिए जब तक अलगाव का समय समाप्त न हो... इस अलगाव के काल में नाज़ीर को किसी शव के पास नही जाना चाहिए। क्यों क्योंकि उस व्यक्ति ने अपने को पूरी तरह यहोवा को समर्पित कर दिया है।'" 

गिनती 6: 2-3a; 5a-6

 

ये नियम दिखाते हैं किपरमेश्वर के द्वारा इन शपथ को लेना एक उच्च सम्मान था। उनके इस अलगाव के विशेष और पवित्र समय के दौरान, उन्हें कुछ विशेष नियमों का पालन करना था। उन्हें बहुत ऊंची पवित्रता के स्तर में रहना था। वे किसी मृत शरीर को नहीं छू सकते थे और ना ही उसी कमरे में जा सकते थे जिसमें निधन हुआ हो। वे किसी भी प्रकार की दाखमधु नहीं पी सकते थे और ना ही अपने बालों को काट सकते थे। ये नियम बहुत अजीब लग सकते हैं, लेकिन उस समय वे सही लगते थे। प्रत्येक नियम दिखाता था की किस प्रकार एक व्यक्ति पूरी तरह से इस्राएल के परमेश्वर के प्रति समर्पित था और अन्य किसी भी प्रकार की उपासना से अलग था। उन दिनों में, दूसरे देशों में कई लोग मृतक की पूजा करते थे यदि वे देवता था। एक नासरी का मृतकों की उपस्थिति में ना होना यह दर्शाता था किवह किसी भी प्रकार से मूर्तिपूजा में शामिल नहीं है, और यह की वे पूर्णरूप से परमेश्वर पर निर्भर थे। और उन दिनों में, अंगूर से मदिरा बनाना भी एक प्रकार की पंथ पूजा थी। वे यह मानते थे किइसे खाने से या पीने से उन्हें औलाद होने में मदद होगी। पीने से इंकार करके एक नासरी परमेश्वर के प्रति  पूर्ण निर्भरता को दिखाता था। और उन दिनों, जादूगर और डायन अपने जादू के लिए बालों जैसी चीज़ों का भी इस्तमाल करते थे। अपने बालों को ना कटवा के, उन्होंने दिखाया की दुष्ट कामों के बजाय उन्होंने यहोवा किशक्ति पर निर्भर किया। 

 

जो व्यक्ति इस नाज़ीर किशपथ ले लेता है, वह एक विशेष अवधि के लिए इन बातों से अलग रहता है। यह पवित्रता का एक बहुत ही उच्च और कठोर मानक था। केवल एक महायाजक ही इस पवित्रता के ऐसे एक उच्च स्तर पर खरा उतर सकता था। पूरे इस्राएल में, केवल एक महायाजक और एक नाज़ीर परिवार को मृत शरीर को छूने की अनुमति नहीं थी। कुछ मायनों में,एक नाज़ीर को महायाजक से भी बढ़कर कुछ उच्च नियमों के अनुसार जीना था। एक नाज़ीर मदिरा नहीं छू सकता था। (Cartledge, "क्या नासरी किप्रतिज्ञा बिना शर्त के थीं?", पृष्ठ 51)।

 

जब एक नाज़ीर के जुदाई का समय खत्म हो जाता था, तब उन्हें मंदिर में विशेष, पवित्र भेंट को चढ़ाना होता था। यह इस बात को चिन्हित करता था की परमेश्वर के साथ का पवित्र समय समाप्त हो गया है, और अब वे इस्राएल के डेरे में दैनिक जीवन के एक सामान्य प्रवाह में प्रवेश कर रहे थे। उन्हें मंदिर में याजक के सामने होमबलि, पापबलि, अन्नबलि और तेल को भेंट के रूप में लाना था। उन्हें अपने बालों को काट कर परमेश्वर के आगे वेदी पर जलाना था। जब उनके बलिदान और भेंट पूरे हो जाते थे, उन्हें फिर से मदिरा को पीना होता था। 

 

इन कसमों को हल्के में नहीं लिया जा सकता था। उनके महान गरिमा और सम्मान का एक हिस्सा यह था की वे सबसे उच्च परमेश्वर के लिए पवित्र और उच्च वादे थे। इन्हें बहुत ही गंभीरता से लिया जाना था। यदि एक नाज़ीर गलती से भी एक मृत शरीर के पास होता था, तो ये कसमें अपवित्र हो जाती थीं। उन्हें परमेश्वर के आगे कबूतरों की एक भेंट लानी होती थी। उन्हें फिर से शपथ शरुआत से लेनी होती थी। और परमेश्वर ने चेतावनी दी थी की उन्हें शपथ को पूरा करना है। एक बार प्रतिबद्धता बना ली जाती थी, परमेश्वर उसे बहुत गंभीरता से लेता था। 

 

इस्राएली इस शपथ के माध्यम से परमेश्वर से मदद ले सकते थे। कोई एक व्यक्ति संकट के समय में परमेश्वर से कुछ मांग कर रहा था। यह भक्ति के वादा में परमेश्वर से कुछ पूछ रहा था। याकूब ने, जो इस्राएल का महान पिता था, ऐसी प्रार्थना उत्पत्ति 28: 20-22 में की;

 

"तब याकूब ने एक वचन दिया। उसने कहा, “यदि परमेश्वर मेरे साथ रहेगा और अगर परमेश्वर, जहाँ भी मैं जाता हूँ, वहाँ मेरी रक्षा करेगा, अगर परमेश्वर मुझे खाने को भोजन और पहनने को वस्त्र देगा। अगर मैं अपने पिता के पास शान्ति से लौटूँगा, यदि परमेश्वर ये सभी चीजें करेगा, तो यहोवा मेरा परमेश्वर होगा। इस जगह, जहाँ मैंने यह पत्थर खड़ा किया है, परमेश्वर का पवित्र स्थान होगा और परमेश्वर जो कुछ तू मुझे देगा उसका दशमांश मैं तुझे दूँगा।”'

 

एक साधक परमेश्वर के पास अपनी ज़रुरत को लेकर आता है, इस वादे के साथ की एक बार परमेश्वर उन्हें दे देता है वह एक नाज़ीर की शपथ को पूरा करेगा। यदि परमेश्वर इतने अनुग्रह और दया के साथ उनकी पुकार सुनता है, तो एक इस्राएली के लिए यह महत्वपूर था की वह उस शपथ को पूरा करे। यदि वादे के साथ विश्वासघात किया जाता है, तो यह एक बहुत बड़ा और भयानक पाप होगा। लेकिन वफ़ादारी और पूरी शुद्धता के साथ इन शपथ को पूरा किया जाता है, तो यह यहोवा परमेश्वर के साथ एक कीमती समय और संगति को बांधता है।