पाठ 140

पवित्रता का नियमसंग्रह यह भी सिखाता है किइस्राएल के लोगों को एक अलग समुदाय होना है। यह वो जगह थी जहां परमेश्वर ने अपने लोगों को एक दूसरे से प्रेम करने और एक दूसरे का ध्यान रखने के लिए बुलाया था। यदि कोई दूसरे के विरुद्ध पाप करता है, तो उन्हें घृणा और क्षमा ना करने की अनुमति नहीं थी। इस्राएल के राष्ट्र के लोग वो होंगे जो, यहोवा कितरह, एक दूसरे को माफ़ करेंगे। यदि कोई पाप करता जाता है, तो यह दूसरे इस्राएली का काम था की ईमानदारी से उसे फटकार दे। अपने पाप को देखने के लिए वे एक दूसरे को मदद करने के लिए जिम्मेदार थे। परमेश्वर ने ऐसा कहा;

 

"'तुम्हें अपने हृदय में अपने भाईयों से घृणा नहीं करनी चाहिए। यदि तुम्हारा पड़ोसी कुछ बुरा करता है तो इसके बारे में उसे समझाओ। किन्तु उसे क्षमा करो! लोग, जो तुम्हारा बुरा करें, उसे भूल जाओ। उससे बदला लेने का प्रयत्न न करो। अपने पड़ोसी से वैसे ही प्रेम करो जैसे अपने आप से करते हो। मैं यहोव हूँ!'''

लैव्यव्यवस्था 19: 17-18

 

उनका प्रेम और सम्मान दिखाने का अलग तरीका था। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने कहा, "बूढ़े लोगों का सम्मान करो। जब वे कमरे में आएँ तो खड़े हो जाओ। अपने परमेश्वर का सम्मान करो। मैं यहोवा हूँ!” (लैव्यव्यवस्था 19:32)। वे बाज़ारों में अपने बेईमान तरीकों का उपयोग नहीं कर सकते थे। उन्हें लोगों से उचित मूल्य के साथ पैसा लेना था। और जब एक परदेशी उनके देश में आकर रहता है, उन्हें वही प्रेम उन्हें भी दिखाना होगा जो वे एक दूसरे को दिखाते हैं। 

परमेश्वर ने कहा: 

 

"'अपने देश में रहने वाले विदेशियों के साथ बुरा व्यवहार मत करो! तुम्हें विदेशियों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा तुम अपने नागरिकों के साथ करते हो। तुम विदेशियों से वैसा प्यार करो जैसा अपने से करते हो। क्यों? क्योंकि तुम भी एक समय मिस्र में विदेशी थे। मैं तुम्हारा परमेशवर यहोवा हूँ!'"                                                         लैव्यव्यवस्था 19: 33-34

 

लैव्यव्यवस्था में पवित्रता का नियमसंग्रह पर्वों के उस विवरण से समाप्त होता है जो परमेश्वर ने उन्हें दिए थे, की हर साल एक राष्ट्र के रूप में मनाना होगा। एक दूसरे के प्रति व्यवहार दिखा कर इस्राएली परमेश्वर को अपनी भक्ति दिखाएंगे। अपने समय को संगठित करके वे अपनी भक्ति को दिखाएंगे। समय ही पवित्र था। हर सप्ताह, सब्त का दिन उन्हें परमेश्वर को देना था। हर साल उन्हें फसह का पर्व, पहले फल का पर्व, सप्ताह का पर्व, और तुरहियों के पर्व को परमेश्वर को देना था। प्रायश्चित के दिन को उन्हें विलाप और पश्चताप के साथ बिताना था।हर सात साल, इस्राएल के राष्ट्र को एक बहुत ही खास वर्ष जो सब्त वर्ष कहलाता है, उसे मनाना था। यह अपने लोगों के लिए परमेश्वर से एक आकर्षक उपहार था।

 

परमेश्वर के सामर्थी हाथों के द्वारा इस्राएली ग़ुलामी से छुड़ाए गए। अब वे सीनै पर्वत के नीचे थे, जहां वे परमेश्वर के तरीकों को सीख रहे थे।वे मरुभूमि में पथिक थे। वे बगैर भूमि या घर के खानाबदोश थे, लेकिन वे वादा के देश किओर जा रहे थे। एक बार वे वहां पहुंच जाते हैं, उनके पास विशाल वर्गों में भूमि और जंगल और नदियां होंगी। उनके पास शहर और घर होंगे। इस्राएल की बारहवीं जनजाति, लेवी, को ज़मीन नहीं दी जाएगी। वे राष्ट्र के याजक के रूप में सेवक होंगे। लेकिन बाकि किजनजातियों को स्वयं किभूमि दी जाएगी। उन्हें प्रत्येक को अपने स्वयं के खेत मिलेंगे। वो भूमि सभी पीढ़ियों के परिवारों के लिए संबंधित होगी। 

 

परिवार स्वयं कि फ़सलें उगा कर उन्हें बेचेंगे। और यदि वे परमेश्वर की आज्ञा को सम्मानित करते हैं और उसकी उपासना करते हैं, तब वह उनके खेतों को आशीर्वाद देगा। यहां बहुतायत से भोजन होगा और उनके पास उनकी आवश्यकता के अनुसार सब कुछ मिलेगा। उनमें से एक आज्ञा यह थी किउन्हें एक पूरे वर्ष के लिए अपनी ज़मीन को छोड़ना होगा। हर सात साल, इस्राएलियों को बोना, और फसल काटना और काम करना बंद करना होगा। ज़मीन को एक पूरे वर्ष के लिए आराम देना होगा। ग़रीबों को अनुमति दी जाएगी की वे खेतों में जाकर वो सब कुछ लें जो वहां उग रहा था। उन पौधों के द्वारा उन्हें भोजन मिल पाएगा जो भूखे हैं। और परमेश्वर ने वादा किया था की छ: साल इतना अधिक होगा की किसान और उनके परिवार सब्त वर्ष में भूखे नहीं होंगे। वाह। यह देखने लायक कितना एक अद्भुत चमत्कार होगा।  

 

परमेश्वर उन्हें जयंती का वर्ष देकर उनके समय को संगठित कर रहा था। इस्त्राएलियों को सात सब्त वर्षों को जाने देना था। ये उनचास साल होंगे। पचासवें साल पर, वे पर्व मनाएंगे। इन वर्षों में, किसान और परिवार अन्य परिवारों को अपने खेत और ज़मीन बेच सकते थे। पर्व के वर्ष में, भूमि पहले वाले परिवार को वापस दे दी जाएगी। प्रायश्चित के दिन, हर परिवार को अपनी ज़मीन वापस मिल जाती थी, और हर परिवार फिर से अपनी ज़मीन पर काम शुरू कर सकता था। परमेश्वर ने कहा की ज़मीन को स्थायी रूप से नहीं बेचा जा सकता था क्यूंकि वह उसकी थी! वह उन्हें उधार में दे रहा था, और उनका राजा होने के रूप में, वह यह सुनिश्चित करना चाहता था किउसके देश के गरीब हमेशा आशा में जीयें। चाहे वे कितने भी ग़रीब क्यूँ ना हों, वे पर्व के वर्ष के लिए उत्साहित रह सकते थे। 

 

ऐसे देश में रहना कितना सुंदर होगा। क्या इस्राएली परमेश्वर के इन अद्भुत अच्छे तरीकों का पालन करेंगे? क्या वे पीढ़ी दर पीढ़ी उसका सम्मान करेंगे? क्या वे मानवता के विद्रोह से उभरकर परमेश्वर के आज्ञाकारी होंगे? क्या वे इतने घिनौने पाप में गिरेंगे की देश उन्हें कनानियों की तरह उन्हें उलट देंगे? या फिर वे परमेश्वर को अपने पवित्र जीवन से सम्मान देंगे?