पाठ 136 : प्रायश्चित का दिन - भाग 1: हारून के पुत्र के पापों और मंदिर का संदूषण

परमेश्वर के पवित्र याजक के पद के समन्वय के आठवें दिन, हारून के दोनों बेटे परमेश्वर की आग से ख़त्म हो गए। उन्होंने एक पवित्र दिन के बीच में परमेश्वर के पवित्र आदेश के विरुद्ध पाप किया था। यह एक दुर्घटना नहीं थी। वे जानते थे की वे क्या कर रहे थे। वे जानते थे कि वे परमेश्वर किआज्ञा का पालन नहीं कर रहे थे। यह एक गंभीर अपराध था, और यह मंदिर को उनकी अनाज्ञाकारिता और मरे हुए शवों के कारण दूषित कर रहा था। एक बार फिर, इस्राएल का नेतृत्व विफल रहा था। जिस प्रकार हारून ने सीनै पर्वत पर विद्रोह किया था, उसी प्रकार उन्होंने भी परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया। 

परमेश्वर अनुग्रहकारी और दयालू है, क्रोध करने में विलम्ब करता है, लेकिन उसके सामने आने में और उसकी अवज्ञा में, परमेश्वर की धार्मिकता के फैसले की स्पष्टता दृढ़ता के साथ होगी। जो दिन परमेश्वर की आराधना के लिए अलग किया गया था, उसे हारून के पुत्रों ने ग़लत तरीके से दिखाया। उन्होंने नई वेदियां बनाईं। क्या यदि लोग इन्हें देखते और अपनी ही वेदियां बना लेते? क्या यदि वे इन वेदियों को अपने घरों में ले जाकर वहां उपासना करते बजाय परमेश्वर के मंदिर में आकर जहां सब सृष्टि का परमेश्वर उनके साथ रहने के लिये आया था। दूसरे बुतपरस्त देशों कि तरह, क्या यदि वे अपनी ही बनाई मूर्तियिों की पूजा करने का निर्णय ले लेते? 

परमेश्वर ने हारून के पुत्रों को अपने याजक होने का एक अकल्पनीय विशेषाधिकार दिया था। लोगों को आज्ञाकारिता का शिक्षण ना देकर वे उसका अनादर कर रहे थे। वे जानते थे की परमेश्वर उनसे क्या चाहता है, और उन्होंने बेशर्मी और सार्वजनिक रूप से बात नहीं मानी। वे अपने पवित्र देश में सर्वोच्च पदों पर सेवा करने का दिखावा कर के परमेश्वर के लिए अवमानना दिखा रहे थे। यह अभिमानी और मूर्खता थी। उनकी मौत के द्वारा, पूरे देश ने एक कठिन और महत्वपूर्ण सबक सीखा। यहोवा एक मूर्ति की तरह नहीं था, वह वो परमेश्वर नहीं था जिसके साथ खेल सकें। वह जीवन का दाता है, और जीवन और मृत्यु उसके हाथ में हैं। उनके शब्द और उसके प्रति आज्ञाकारिता को बहुत गंभीरता से लेना है। उन्हें उसके द्वारा दी गईं आज्ञा के अनुसार ही देना है और ना की अपने अनुसार। परमेश्वर खेल नहीं खेलता है।  

हारून के पुत्रों ने अपने पापों से और मृत्युदण्ड के द्वारा मंदिर को दूषित कर दिया था। यह इतना गहरा था की यहोवा के सिंहासन तक प्रवेश कर गया। मंदिर को उसके अति पवित्र स्थान के भीतरी अभयारण्य तक शुद्ध करना था। एक बार फिर, परमेश्वर ने एक रास्ता दिखाया। और उसकी योजना देश में सबसे ज्यादा, पवित्र परंपरा बन जाएगी। परमेश्वर ने आग, मृत्यु, और आतंक से उस दिन को बचाया और बहाली और सौंदर्य के एक वार्षिक समय में बदल दिया।

परमेश्वर ने मूसा से कहा; 

"अपने भाई हारून से बात करो कि वह जब चाहे तब पर्दे के पीछे महापवित्र स्थान में नहीं जा सकता है। उस पर्दे के पीछे जो कमरा है उसमें पवित्र सन्दूक रखा है। उस पवित्र सन्दूक के ऊपर उसका विशेष ढक्कन लगा है। उस विशेष ढक्कन के ऊपर एक बादल में मैं प्रकट होता हूँ। यदि हारून उस कमरे में जाता है तो वह मर जायेगा!''

लैव्यव्यवस्था 16: 2

और परमेश्वर ने मूसा को बताया किहारून को साल में एक बार सबसे पवित्र स्थान में कैसे प्रवेश करना है। यह साल का सबसे पवित्र दिन होगा। यह प्रायश्चित का दिन था, और पूरा देश सब काम छोड़ कर उसका सम्मान करेगा। इस दिन पर, वे पिछले वर्ष को स्मरण करेंगे। वे अपने पापों को याद करेंगे और उनका शोक करेंगे। वे दुःख के साथ परमेश्वर किओर मुड़ेंगे। उनके विचार हारून किओर होंगे जो पूरे देश किओर से उनके बलिदानों को चढ़ाने में पूरा दिन परिश्रम करेगा। वह उस खून से अति पवित्र स्थान को शुद्ध करेगा जब पूरा देश प्रार्थना कर रहा होगा। 

परमेश्वर ने हारून को अपने नीले, बैंगनी, और लाल रंग के कपड़ों को और सुनहरे कवच को एक तरफ रखने को कहा। उसे केवल अपना अंगरखा, कमरबंद, पैंट, और पगड़ी ही पहननी थी। आज का दिन विशेष विनम्रता का दिन था। हारून जीवित परमेश्वर के सिंहासन के सामने खड़ा होगा। वह पर्दे के पीछे जाकर खून को प्रायश्चित के स्थान पर छिड़केगा, और उसे संदूषण से साफ़ करेगा। यह शुद्धिकरण उनके पवित्र याजक के पद और इस्राएल के राष्ट्र को शुद्ध करेगा। यह एक शोक का दिन था, लेकिन यह स्वतंत्रता और बड़ी खुशी को लाएगा।