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पाठ 70 : मिस्र में वाचा के परिवार का प्रवेश

याकूब और उसका घराना जब मिस्र की ओर यात्रा को निकले, उसने यहूदा को यूसुफ़ के पास पहले भेजा। परिवार की आवश्यकता थी कि कोई उन्हें गोशेन जाने के लिए दिशा-निर्देश करे और भव्य पुनर्मिलन के लिए तैयार करे।

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पाठ 71 : याकूब का अपने पुत्रों को आशीर्वाद देना

इस्राएल कि ताकत निरंतर कम होती चली गयी। यूसुफ को मालूम हुआ कि वह भयंकर रूप से बीमार होता जा रहा था। उनके दादा से मिलाने के लिए वह गोशेन में उसके दोनों पुत्र मनश्शे और एप्रैम को ले आया।

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पाठ 72 : शाप के रूप में याकूब का आशीर्वाद

एक बार याकूब ने यूसुफ के पुत्रों पर इन विस्तृत और शक्तिशाली आशीर्वाद को देने के बाद, उसने अपने सभी पुत्रों को बुलवाया। उसने कहा, "''मेरे सभी पुत्रो, यहाँ मेरे पास आओ। मैं तुम्हें बताऊँगा कि भविष्य में क्या होगा।'" तब याकूब ने प्रत्येक पुत्र को, बड़े से छोटे को, परमेश्वर कि दृष्टि में जो कुछ होने जा रहा है उसके विषय में बताया।

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पाठ 73 : यहूदा का शाही आशीर्वाद

दूसरे पुत्र को परमेश्वर का दिया आशीर्वाद रूबेन, शिमोन, और लेवी से बिलकुल भिन्न था। यह पुत्र यहूदा था। हम इसके विषय में पढ़ेंगे की किस प्रकार उसका विस्तृत आशीर्वाद इस्राएल और दुनिया के देश को बदल देगा। ये उल्लेखनीय आशीर्वाद अनंत काल तक जारी रहेंगे!

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पाठ 74 : बिल्हा और जिल्पा द्वारा जनजाति पर आशीर्वाद

यह कितना दिलचस्प है किउत्पत्ति कि पुस्तक दुनिया के निर्माण के साथ शुरू हुई। परमेश्वर ने अपने शक्तिशाली शब्द से शून्य से पूरे ब्रह्मांड को बनाया। अब, उत्पत्ति के अंत में, याकूब अपने पुत्रों को आशीर्वाद दे रहा है। ये आशीर्वाद भी, परमेश्वर के वचन हैं।

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पाठ 75 : राहेल की धन्य औलाद

याकूब ने अगला आशीर्वाद अपने पुत्र यूसुफ के लिए दिया। यूसुफ के पुत्र एप्रैम और मनश्शे पहले से ही धन्य हो गए थे, और उनमें से प्रत्येक याकूब के बेटे और उनके जनजाति बराबर माने जाएंगे। क्यूंकि यूसुफ को अपने पिता से विरासत के दो भाग प्राप्त हुए, इसीलिए उसे दो में गिना जाएगा।

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पाठ 99 : पिता यित्रो की मुलाक़ात

इस्राएलियों किसमुन्द्र के माध्यम से शानदार मुक्ति के कुछ महीनों बाद, वे मिस्र से दूर मिद्यान को यात्रा करते हुए उस जगह पहुंचे जहाँ मूसा और उसकी पत्नी चालीस साल तक रहे। वे वापस उसी जगह जा रहे थे जहां मूसा ने अपने झुंड को चराया था।

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पाठ 109 : वाचा की पुस्तक: पर्व

वाचा किपुस्तक में, परमेश्वर ने इस्राएल के न्यायाधीशों के लिए ऐसे नियम दिए जो उन्हें लोगों की समस्याओं के लिए निर्णय लेने में मदद करेंगे। किताब इस्त्राएलियों को उन बातों को भी सिखाती है जो उन्हें परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए अच्छे शालीन व्यवहार करने में मदद करेगी।

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पाठ 116 : हारून और उसके पुत्रों की नियुक्ति

परमेश्वर ने मूसा को उसके विशेष मंदिर के निर्माण और उन याजकों के वस्त्रों के विषय निर्देश दिए जो उसकी सेवा करेंगे। याजक परमेश्वर और उसके लोगों के बीच रहकर एक विशेष अंतरंगता में काम करेंगे। परमेश्वर ने उसे बताया कि कैसे मंदिर के बन जाने के बाद उसे याजकों को पवित्र करना है।

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पाठ 120 : अपने लोगों के लिए यहोवा के सेवक द्वारा मध्यस्थता

यह विद्रोह अत्यधिक था। यह उनका परमेश्वर के प्रति कुल, पूर्ण अविश्वास था। मूसा जब पर्वत पर गया, वह हारून और बुज़ुर्गों को आदेश देकर गया कि वे लोगों की देखभाल करें। उन्हें परमेश्वर के नियमों का सम्मान करना था और लोगों के बीच शांति बनाए रखनी थी।

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पाठ 121

परमेश्वर और मूसाजब पर्वत पर एक साथ थे, परमेश्वर ने मूसा को लोगों के भयानक विद्रोह के बारे में बताया था। मूसा ने दया के लिए परमेश्वर से बिनती की थी। तब मूसा पर्वत से नीचे गया और स्वयं उनके महान विद्रोह को देखा।

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पाठ 122 : मूसा और उसका प्रभु

मूसा मिलाप वाले तम्बू को डेरे के बाहर लगाएगा। वह लोगों से कुछ दूर जाकर परमेश्वर से प्रार्थना करेगा और उसकी पवित्र इच्छा को जानेगा। जब भी लोग उसे जाते देखते, वे तम्बू के बाहर खड़े होकर उसे देखते थे।

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पाठ 123 : सीनै में एलीमेलेक

शालोम! यह फिर से एलीमेलेक है। हमने कुछ समय से बात नहीं की है, और मेरे पास आपको बताने के लिए बहुत कुछ है। मैंने ज़रूर से आपको बताया होगा की किस प्रकार हमारे यहोवा ने मिस्र की ग़ुलामी से अपने लोगों को बचाया था।

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पाठ 125 : वापस योजना की ओर

अपने लोगों के साथ परमेश्वर कि वाचा एक बड़े संकट से गुज़रा। पूरे ब्रह्मांड का गौरवशाली सृष्टिकर्ता मूसा से भेंट करने के लिए पर्वत पर उतर आया। इस बीच, उसके लोगों ने सोने से जानवरों की मूर्तियां बना कर उनकी पूजा अनैतिकता में की।

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पाठ 127 : भाग 2: सहभागिता और मेलबलि

यहोवा ने दूसरी भेंट के विषय में जो मूसा को बताया वह था अन्नबलि। जब कोई व्यक्ति यहोवा को अन्नबलि चढ़ाये तो उसकी भेंट महीन आटे की होनी चाहिए। वह व्यक्ति तेल और लोबान से मिला हुआ एक मुट्ठी महीन आटा ले तब योजक वेदी पर स्मृतिभेंट के रूप में आटे को आग में जलाए।

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पाठ 129 : यहोवा बलिदान सिखाता है - भाग 4: दोषबलि (हानीपूर्ति)

परमेश्वर ने मिलापवाले तम्बू से मूसा को जो अंतिम भेंट के विषय में बताया वह दोषबलि था। इसे हानिपूर्ति भी कहा जाता था।परमेश्वर की पवित्र चीजों के विरुद्ध किये पाप के लिए यह दिया जाता था।

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पाठ 130 : हारून और उसके पुत्रों की नियुक्ति

मंदिर के निर्माण के लिए इस्राएली सोने और चांदी और कपड़े इत्यादि, ले आये। वे इतना ले आये की उन्हें और लाने से मूसा ने मना कर दिया। तब जो कुशल लोग थे, उन्होंने मंदिर के काम के लिए धातु अंकित कर के उसका काम पूरा किया।

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पाठ 167 : आक्रमण की तैयारी और मिद्यानियों पर कब्ज़ा

गिनती किकिताब के शुरुआत में, परमेश्वर ने बीस साल के ऊपर के पुरुषों की गिनती लेने के लिए मूसा और हारून से कहा। प्रत्येक जनजाति को उनके नाम और उम्र का पता मूसा को देना था, जो युद्ध में लड़ने में सक्षम होंगे। 603,550 वे पुरुष थे जो लड़ सकते थे। इन लोगों को परमेश्वर की सेना होना था जो, कनान पर हमला कर सकते थे।

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पाठ 171 : यरदन के पार जनजातियां -मूसा के डर

यदि तुम उन लोगों को अपने देश में ठहरने दोगे तो वे तुम्हारे लिए बहुत परेशानियाँ उत्पन्न करेंगे। वे तुम्हारी आँखों में काँटे या तुम्हारी बगल के कील की तरह होंगे। वे उस देश पर बहुत विपत्तियाँ लाएंगे जहाँ तुम रहोगे। मैंने तुम लोगों को समझा दिया जो मुझे उनके साथ करना है और मैं तुम्हारे साथ वही करूँगा यदि तुम लोग उन लोगों को अपने देश में रहने दोगे।”

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