पाठ 127 : भाग 2: सहभागिता और मेलबलि
यहोवा ने दूसरी भेंट के विषय में जो मूसा को बताया वह था अन्नबलि। जब कोई व्यक्ति यहोवा को अन्नबलि चढ़ाये तो उसकी भेंट महीन आटे की होनी चाहिए। वह व्यक्ति तेल और लोबान से मिला हुआ एक मुट्ठी महीन आटा ले तब योजक वेदी पर स्मृतिभेंट के रूप में आटे को आग में जलाए। यह यहोवा के लिये सुगन्ध होगी। इस प्रकार, परमेश्वर उन याजकों के लिए प्रबंध करता था जो उसकी वेदी पर अपनी पूरी सेवा को लगा देते थे।
अन्नबलि परमेश्वर को उपहार और उत्सव का एक रूप था। इस्राएल के लोग स्वतंत्रता के साथ परमेश्वर को भेंट चढ़ा सकते थे। कभी कभी देश के गरीब एक अन्नबलि के बजाय एक होमबलि को लाते थे। हर सुबह और हर शाम, याजक दिन कि अनुष्ठान भक्ति को शुरू करने के लिए मेलबलि और अन्नबलि को चढ़ाता था। यह उनके परमेश्वर के प्रति एक दैनिक श्रद्धांजलि थी और उनके दिव्य परमेश्वर के लिए उनकी दैनिक भक्ति का प्रतीक था। भक्ति की बहुतायत लोगों के लगातार अपनी अन्नबलियों की भेंट को लाने से होती थी। परमेश्वर के पवित्र राष्ट्र के लोगों का लगातार मंदिर में परमेश्वर के लिए भेटों को लाते रहेंगे और पश्चाताप की भेटों का धुँआ उठता रहेगा। वेदी की जलती हुई आग कभी नहीं बुझेगी, ना ही रात को। परमेश्वर ने याजकों को आदेश दिया की शुद्धिकरण किप्रक्रिया कभी समाप्त नहीं होनी चाहिए। रात की भेंटों से जो राख रह जाता था, उसके लिए परमेश्वर ने विशेष निर्देश दिए थे।
परमेश्वर ने मूसा को आगे भेंट किबलि समझायी। यह भेंट बहुत कुछ होमबलि कितरह ही थी। इस्राएल के परिवार मंदिर के लिए पशु या एक भेड़ या बकरी को ला सकते थे। यह किसी दोषरहित नर या मादा कि भेंट होनी चाहिए। इस व्यक्ति को अपना हाथ पशु के सर पर रखना होगा, और उसे वध करना होगा, और याजक उसके खून को कांस्य वेदी पर छिड़केंगे। उसके भीतरी भागों को ढकने वाली और भीतरी भागों में रहने वाली चर्बी की भेंट चढ़ानी होगी। उस के दोनों गुर्दों पर की चर्बी और पुट्ठे किचर्बी भी भेंट में चढ़ानी होगी। पशु का मॉस दावत का हिस्सा होगा जो यहोवा और याजकों के साथ बांटा जाएगा। आमतौर पर, दाहिनी टांग याजक को दी जाती थी जो परमेश्वर के सम्मुख बलिदान को चढ़ाता था। बाकी का मॉस परिवार और दोस्तों में बटता था जो जश्न मनाने के लिए आते थे और परमेश्वर को धन्यवाद देते थे। आमतौर पर, परिवार होमबलि और अन्नबलि के बाद भेंट का बलिदान चढ़ाते थे। यह उनके पश्चाताप और परमेश्वर के साथ उनकी भेंट का अंतिम कार्य था, और यह एक शानदार भोजन के साथ समाप्त होता था। यह उनके परमेश्वर के साथ शांति का प्रतीक था। यह इस बात को भी दिखाता है कि उनके जीवन में परमेश्वर किओर से मिली शांति और आशा है।
परमेश्वर के आगे ये बलिदान महत्व रखते थे क्यूंकि इस्राएल के लोग अपनी संपत्ति को एक तरह से परमेश्वर के आगे भेंट के रूप में लाते थे।सब कुछ परमेश्वर के लिए एक भेंट थी! एक आध्यात्मिक दुनिया में वे जीवित चिन्ह थे। शारीरिक पशु आग में जलकर धुंए में परिवर्तित हो जाएगा। वे "परमेश्वर के लिए, नयी सृष्टि में तब्दील हो गए" (Schnittjer, 308)। अनुष्ठान आम चीजों का एक प्रतीक था जो पवित्र चीज़ों में बनाया जाता था और बलिदान के पहले वे बिलकुल भिन्न होते थे। वसा और गुर्दे वास्तविक्ता के एक और सुन्दर चिन्ह थे। उन दिनों में, गुर्दे एक व्यक्ति के जीवन का छुपा हुआ पवित्र स्थान था। यह बीच में था। यह वह स्थान था जहां से वे प्रेम और आशा और जीवन को जीते थे। यह आत्मा है, जो हर व्यक्ति के भीतर दूसरों से छुपा हुआ है सिवाय परमेश्वर के। यह इस बात को चिन्हित करता है की परमेश्वर अपने लिए अपने लोगों के सबसे भीतरी भाग को चाहता है। जब परमेश्वर ने गरीबों के लिए रास्ता निकाला की वे बैल या मेढ़ की जगह कबूतरों को ला सकते थे, उसने उन्हें सिखाया की प्रत्येक व्यक्ति का मूल्य है और उन्हें परमेश्वर के आगे ख़ाली हाथ आने की ज़रुरत नहीं थी।
परमेश्वर जब सीनै पर्वत से बात कर रहा था, वह अपने लोगों के माध्यम से पृथ्वी पर जीवन के नए आदेश का निर्माण कर रहा था, और मंदिर में बलिदान एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे। कुछ शिक्षण व्याख्यान और उपदेश या पढ़ने के माध्यम से मनुष्य के लिए आते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सबक अनुष्ठान के माध्यम से आते हैं। अपने बलिदानों को डेरे के बाहर से अति पवित्र स्थान में लाने की यात्रा लोगों को परमेश्वर के रास्तों को सिखाता था। पाप की शुद्धि के लिए एक जीवन का दे देना, वेदी किस्वछता के लिए उस पर लहू का बहाना, इस्राएलियों को यह पाप के भयंकर प्रायश्चित और पवित्रता के महत्व को सिखा रहा था। मिलापवाले तम्बू की उच्च और पवित्र पवित्रता ने उन्हें परमेश्वर किअकथ्य महानता के बारे में सिखाया। सीनै पर्वत की गड़गड़ाहट ने उन्हें परमेश्वर का भय सिखा दिया था, और उसकी उपस्थिति के शानदार बादल और आग ने उंन्हें सिखा दिया था की उसकी उपस्थिति उनका मार्गदर्शन करेगी। मंदिर की रचना और अनुष्ठानों के बलिदान और उपासना ने इस्राएलियों को शारीरिक और आर्थिक रूप से परमेश्वर की सेवा के लिए आगे आने के लिए रास्ता दिखाया, लेकिन यह उनके जीवन को लगातार सीखने वाली शिक्षा थी जो उन्हें लगातार जीवन के दर्शनशास्त्र को सिखा रहा था। डेरे के बीच मंदिर और यहोवा की उपस्थिति की स्थापना, हर रोज़ किये पापों के प्रायश्चित के लिए बलिदान, सब्त के लिए हफ्ते में एक दिन ठहराना, ये सब उस देश के लिए नियमित रूप से बन गया था जो परमेश्वर के लिए अलग किये गए थे!