पाठ 129 : यहोवा बलिदान सिखाता है - भाग 4: दोषबलि (हानीपूर्ति)

परमेश्वर ने मिलापवाले तम्बू से मूसा को जो अंतिम भेंट के विषय में बताया वह दोषबलि था। इसे हानिपूर्ति भी कहा जाता था।परमेश्वर की पवित्र चीजों के विरुद्ध किये पाप के लिए यह दिया जाता था। इस्राएल में, परमेश्वर ने बहुत चीज़ो को पवित्र ठहराया था। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कियहोवा ही सारी सृष्टि का रचने वाला है। उसने वचन देकर सब चीज़ बनाई। जो भी वह बोलता था वह हो जाती थी। इसलिए जब परमेश्वर किसी चीज़ को पवित्र कहता है, तो वह केवल उसका वर्णन नहीं दे रहा है। वह उसे घोषित कर रहा है और उसकी रचना कर रहा है। जब वह कहता है कुछ पवित्र है, और उसे अलग करता था, तो वह उसी समान निश्चित है जिस प्रकार सूरज उगता है। यह एक शक्तिशाली और बहुत ही वास्तविक परिवर्तन था। यह साधारण से पवित्र किओर हो गया, जिसे पवित्र और अलग ठहराया गया। 

उदाहरण के लिए, इस्राएली कई कांस्य वेदियां बना सकते थे। शायद उस समय दूसरे देशों में सोने और चांदी की वेदियां होती थीं। तब भी परमेश्वर के मंदिर में वेदी कहीं अधिक मूलयवान थी। यह जीवित परमेश्वर का सच्चा मंदिर था। यह प्रभु के वचन द्वारा से शुद्ध और पवित्र घोषित किया गया था। कोई भी चीज़ जो शुद्ध और पवित्र नहीं थी, वह वेदी के विरुद्ध एक बहुत बड़ा पाप था। 

परमेश्वर के लिए यह महत्वपूर्ण था कि इस्राएली साधारण और पवित्र के बीच के अन्तर को जानें। लैव्यव्यवस्था किपुस्तक में परमेश्वर ने कहा था,"'तुम्हें, जो चीज़ें पवित्र हैं तथा जो पवित्र नहीं हैं, जो शुद्ध हैं और जो शुद्ध नहीं हैं उनमें अन्तर करना चाहिए।'"(लैव्यव्यवस्था 10:10)। जब परमेश्वर किसी चीज़ को पवित्र ठहराता था, तो उसका हुलिया बदल जाता था। एक सोने की थाली एक बहुत ही खास उद्देश्य के साथ पवित्र हो जाती थी। उसे अलग ढंग से लिया जाता था। मंदिर में सोने की थाली को तेल से मसा किया जाता था। यह एक साधारण चीज़ से परमेश्वर के लिए पवित्र ठहराई जाती थी। 

जब पशुओं का बलिदान मंदिर में लाया जाता था, उसका कुछ भाग जो पवित्र ठहराया जाता था, याजक द्वारा उसे खाया जाता था। यदि एक आम इस्राएली उसे खा लेता था, तो वह परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करता था। वे उसे लेते थे जो पवित्र किया गया था और उसे साधारण बना देते थे। वह मांस पवित्र किया गया था! उसे याजकों के लिए तैयार किया गया था! याजक अपने परिवारों और अपने ग़ुलामों के साथ उस मांस को खा सकते थे। यह परमेश्वर की ओर से उसके जीवन के लिए प्रबंध था। लेकिन उनके घर के आलावा और कोई उसे नहीं खा सकता था। यदि वे खा लेते थे, तो वे परमेश्वर के आदेश का उल्लंघन करते थे। लैव्यव्यवस्था 22:10-16 बताता है कि यदि इस्राएली उस पवित्र भोजन को खा लेते थे, तो उन्हें परमेश्वर के आगे दोषबलि चढ़ाना होता था। 

यह भेंट मंदिर में तब भी लायी जाती थी जब एक व्यक्ति दूसरे के विरुद्ध पाप करता था। यह तब किया जाता था जब दो लोगों के बीच कुछ बिगड़ गया है और उसे ठीक करने कि ज़रुरत है। 

अपने पड़ोसी से झूठ बोलना, चोरी करना, परमेश्वर के लिए ये पाप बहुत गंभीर थे। अदालत में किसी न्यायाधीश के सामने झूठ बोलना बहुत गंभीर बात होती थी। यदि कोई इस्राएली अदालत में शपथ लेते समय झूठ बोलता है, तो वे बहुत भयानक पाप के दोषी होते थे। उन्हें इसके लिए पापबलि लाना होता था। इस्राएल में किसी को भी झूठ बोलने का अधिकार नहीं था, क्यूंकि यह पवित्र परमेश्वर के नाम के विरुद्ध उल्लंघन था। चाहे हो न हो, एक न्यायाधीश बता सकता था कि कोई झूठ बोल रहा है, और जो इस्राएली सच्च में परमेश्वर से डरता था वह जानता था की परमेश्वर सुन रहा है, और यह उसके लिए मायने रखता था। यदि इस्राएल के लोग परमेश्वर के प्रति वफ़ादार रहते हैं, तो उनकी अदालत प्रणाली में ईमानदारी और निष्ठा बनी रहेगी। लोग नियमों के तहत संरक्षित रहेंगे, और देश में न्याय होगा।

हानिपूर्ति के लिए, या दोषबलि के लिए, एक निर्दोष मेढ़ को मंदिर में लाना होता था। अशुद्ध किये पवित्र वस्तु के लिए उन्हें उसके भुगतान के लिए चांदी और उसकी लागत का पांचवा भाग लाना होता था। उसकी लागत पांच शेकेल थी, सो उन्हें पांच शेकेल में एक और जोड़ कर देना होता था। एक बार इस दंड का भुगतान करने के बाद और याजक द्वारा मेढ़ का बलिदान हो जाने के बाद, उन्हें क्षमा मिल जाती थी। उसके बाद वे दोषी नहीं ठहरेंगे, और अपने जीवन को शांति के साथ चला सकते थे यह जानते हुए की उन्हें परमेश्वर कि ओर से शांति मिल गयी है। 

इन बलिदानों का उद्देश्य यह था कि प्रत्येक इस्राएली को दुनिया के सामने यह दिखाना था किउनके दिल में कुछ चल रहा है। पहले तीन बलिदान अनिवार्य नहीं थे। यहोवा के लिए उन्हें इच्छापूर्वक लाया जा सकता था, और वे कृतज्ञता और प्रेम को दिखाते थे। पिछले दो बलिदान, जो शुद्धि और हानिपूर्ति थे, वे अनिवार्य थे और उस समय देने होते जब कोई इस्राएली पाप करता था और उसको उसके लिए प्रायश्चित करना होता था। जब वे परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारी होते थे, तो उन्हें अपने दुःख को प्रकट करने का बहुत सरल और व्यावहारिक रास्ता दिखता था। कुछ बुरा करके उन्हें भय में जीना नहीं पड़ता था। वे परमेश्वर कि वेदी को शुद्ध कर सकते थे, और उनके पापों द्वारा गन्दगी को अपने ऊपर से हटा सकते थे। परमेश्वर ने उन्हें उसके साथ शांति के साथ रहने का एक रास्ता प्रदान किया था। 

सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि परमेश्वर एक आभारी हृदय को ढूंढ रहा था। सैकड़ों वर्ष बाद, दाऊद राजा ने इसके विषय में भजन संहिता 51 में लिखा;

"जो बलियाँ तुझे नहीं भाती सो मुझे चढ़ानी नहीं है।

वे बलियाँ तुझे वाँछित तक नहीं हैं।
हे परमेश्वर, मेरी टूटी आत्मा ही तेरे लिए मेरी बलि हैं।
हे परमेश्वर, तू एक कुचले और टूटे हृदय से कभी मुख नहीं मोड़ेगा।

भजन 51: 6-17

परमेश्वर ने बलिदान करने कि आज्ञा दी, लेकिन आज्ञाकारिता का हिस्सा है यह भी था कि उन्हें प्रायश्चित का चिन्ह होना चाहिए था। यदि वे विनम्रता के बिना एक बलिदान को लाते हैं, तो यह खाली हाथ आने से बहतर होता। बगैर एक प्रायश्चित हृदय के साथ आना उसी तरह था जिस प्रकार परमेश्वर के आगे झूठा दिखावा करना। यह कितना अनुचित है!