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कहानी १०१: मिलापवाले तम्बू का पर्व: यीशु का अपने आप को प्रकट करना

यरूशलेम के मंदिर के आंगनों में जहां यीशु सिखा रहे थे, वहाँ लोगों ने उस पर विश्वास किया। उसने उनसे कहा,“'यदि तुम लोग मेरे उपदेशों पर चलोगे तो तुम वास्तव में मेरे अनुयायी बनोगे। और सत्य को जान लोगे। और सत्य तुम्हें मुक्त करेगा।'”

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कहानी १०२: सत्तर चेलों को नियुक्त करके भेजा जाना 

यीशु अपने चेलों के साथ यहूदिया में ही था। मिलापवाले तम्बू का पर्व समाप्त हो गया था परन्तु यीशु के प्रति विरोध बढ़ गया था। येरूशलेम के धार्मिक अगुवे गुस्से से उबल रहे थे। जो लोग आपस में नफ़रत करते थे वे अब एक जुट होकर यीशु के विरुद्ध साज़िश रच रहे थे। उसे रोका जाना ज़रूरी था। वे उसे मरवा देना चाहते थे।

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कहानी १०३: अच्छा सामरी

जब यीशु यहूदिया के शहर में प्रचार कर रहे थे, तब एक न्यायशास्त्री खड़ा हुआ और यीशु की परीक्षा लेने के लिये उससे सवाल करने लगा। वकील का दूसरा नाम शिक्षक भी है। ये लोग पुराने नियम कि व्यवस्था को पढ़ने में सारा जीवन व्यतीत कर देते थे।

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कहानी १०४: मार्था और मरियम

यीशु यहूदिया के गांवों और कस्बों से होते हुए अपनी यात्रा कर रहा था। वह बेथानी नामक गांव में पहुंचा जो यरूशलेम से लगभग दो मील की दूरी पर था। मार्था वहाँ अपने भाई और बहन के साथ रहती थी। उसने यीशु का उदारता के साथ उसका स्वागत सत्कार किया।

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कहानी १०५: शास्त्रियों और फरीसियों का वही रवैया 

यीशु परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार को सुनाने के लिए यहूदिया के क्षेत्र में जाते रहे। शास्त्री और फरीसी यीशु पर आरोप लगाते रहे कि वह शैतान कि ओर से आया है। उसके दुष्ट आत्माओं को निकालने और स्पष्ट रूप से संदेश को सीखाने के बावजूद उन लोगों ने पश्चाताप करने से इंकार कर दिया।

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कहानी १०६: यीशु का भय 

फरीसी और शास्त्रि जब यीशु के खिलाफ साजिश रच रहे थे और सवालों से उसे फंसाना चाहते थे, यीशु फिर भी प्रचार करते रहे।निश्चित रूप से चेले इस बात को समझते थे कि यीशु के साथ उनकी वफादारी उनके जीवन को जोखिम में डाल सकती है।

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कहानी १०७: शिष्यत्व की कीमत 

यीशु जब यहूदिया में उपदेश दे रहा था, वहीं एक आदमी उठ खड़ा हुआ और उससे एक सवाल पूछा। यह उसके माता पिता से विरासत में मिलने वाली सम्पत्ति के बारे में था। वह चाहता था कि उसके भाई उसके साथ बटवारा करे। आम तौर पर, यहूदी लोगों के लिए, इन प्रश्नों के इन प्रकार के उत्तर परमेश्वर की व्यवस्था के द्वारा दिए जाते थे।

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कहानी १०८: विशाल चेतावनियां - भाग १

जिस समय से यीशु ने अपनी सेवकाई शुरू कि और खानी में अब तक, ढाई साल से अधिक हो गए हैं। वह और उसके चेले स्वर्ग राज्य के सत्य का प्रचार और लुभावने चमत्कार और दया का दिल प्रतिपादन कृत्यों के माध्यम से सबसे उच्च परमेश्वर की शक्ति का प्रदर्शन, इस्राएल के शहरों और गांवों में जाकर किया।

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कहानी १०९: विशाल चेतावनियां: भाग II 

प्रभु यीशु ने अपने चेलों के लिए स्वर्ग के राज के लिए आशा दी थी। स्वर्ग का राजा चाहता है कि लोग उस पर पूर्ण रीति से भरोसा करें। यहां तक ​​कि उनकी सांसारिक संपत्ति को कम महत्व देते हुए परमेश्वर के कामों में इस पृथ्वी पर लगाना है।

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कहानी ११०: युद्ध

प्रभु का दिन आने वाला है, और जिस समय यीशु पृथ्वी पर चला करते था, वह उसकी अपेक्षा करते थे। वो दिन न्याय का दिन होगा और अविश्वास और विद्रोह के विरुद्ध में आग होगी। जो उस पर विश्वास करेंगे उनके लिए उद्धार का दिन होगा।

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कहनी १११: सुंदर सत्य, सुंदर चंगाई 

यीशु जब प्रचार करते जा रहे थे, वे उन भयानक विकृतियों और झूठ को खोलते जा रहे थे जिसने लोगों को भय और झूठे विश्वास में जकड़ा हुआ था। अपने स्वर्गीय पिता के विषय में झूठ सुनकर वह कितना अपमानित महसूस कर रहा होगा!

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कहनी ११२: समर्पण का पर्व:  यीशु द्वारा जन्म से अंधे आदमी कि चंगाई 

मिलापवाले तम्बू के पर्व के तीन महीने बीत चुके थे और अब समर्पण के पर्व का समय आ गया था।एक बार फिर, सभी तीर्थयात्त्री इस्राएल देश से यरूशलेम को यात्रा के लिए जाएंगे। पिछले पर्व की घटनाएं अभी भी लोगों के दिमाग में ताजा थीं।

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कहनी ११३: समर्पण का पर्व : जन्म से अँधा आदमी फरीसियों के साथ 

फिर उसके पड़ोसी और वे लोग जो उसे भीख माँगता देखने के आदी थे, उसे देख कर हैरान हुए। वह उस व्यक्ति के समान दिखता था जिसे वे हर रोज़ देखते थे लेकिन ऐसा कैसे हो सकता था? उन्होंने एक दूसरे से पुछा,“क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो बैठा हुआ भीख माँगा करता था?”

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कहनी ११४: अच्छा चरवाहा और चोर

यीशु ने तीन साल से फरीसियों और धार्मिक नेताओं का सामना किया था। यह और भी अधिक स्पष्ट होता जा रहा था कि उनके दिल विद्रोह और पाप में पक्के हो गए थे। परमेश्वर कि सच्चाई को सुनने के बाद उसको अस्वीकार कर देना ही बहुत खतरनाक बात है।

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कहनी ११५: अच्छा चरवाहा--भाग २ 

यीशु अपने चेलों को समझा रहे थे कि इस्राएल के देश में क्या हो रहा था। यदि यीशु ही मसीहा है, तो उसके और धार्मिक अगुवों के बीच क्यूँ ऐसा युद्ध था? क्या उन्हें एक साथ मिलकर काम नहीं करना चाहिए? यीशु ने समझाया कि, वे जो उसके हैं और अपने स्वर्गीय पिता कि आवाज़ को सुनते हैं, तो उन्हें पश्चाताप करके उसके पीछे चलना चाहिए।

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कहनी ११६: पुत्र को मारने की कोशिश

जब यीशु एक अच्छे चरवाहे के विषय में बोल रहा था, उसके सुनने वाले समझे कि वह इस बात का ऐलान कर रहा है कि वह मसीहा है। वे जानते थे कि वह अपनी उन भेड़ों के लिय अपनी जान देने का दावा कर रहा है जो उसकी सुनते हैं और विश्वास करते हैं।

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कहनी ११७: स्वर्ग राज्य में पहले और अंतिम

पेरा जाने के लिए यीशु येरूशलेम और यहूदी के क्षेत्र को छोड़ कर यात्रा पर निकल पड़े। समर्पण का पर्व खत्म हो चूका था, और साढ़े तीन महीने तक यीशु येरूशलेम को वापस नहीं आएगा। वहाँ बहुत अधिक खतरा था। यहूदी यीशु को मारना चाहते थे, और जो वक़्त परमेश्वर पिता ने यीशु को नियुक्त किया था जब उसे अपने प्राण देने होंगे, वो वक़्त अभी नहीं आया था।

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कहनी ११८: दो राजा

उस समय के आसपास, कुछ फरीसी यीशु के पास आये। उन्होंने उसे चेतावनी दी कि हेरोदेस राजा उसे मारना चाहता था। उन्होंने उसे उस क्षेत्र को छोड़कर जाने को कहा जहां वह रहता था और कहीं और चला जाये।

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कहनी ११९: राज्य पद 

फरीसी यीशु पर दोष लगाने के रास्ते ढूंढ रहे थे। वे इस ताक में थे कि वह ऐसा कुछ करे और वे उसके विरुद्ध में उस चीज़ को इस्तेमाल करें! बस उससे कोई नियम तुड़वा सकते। फिर वे उसे पूरे देश के सामने नीचा दिखाते और उसकी आवाज़ को शांत कर देते। सो उन्होंने साज़िश रची कि यीशु सबत के दिन आये।

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कहनी १२०: बड़ा भोज का पर्व

यीशु एक प्रभावशाली फरीसी के मेज़ पर बैठे थे। क्षेत्र के प्रभावशाली सम्मानित धार्मिक पुरुष भी उनके साथ शामिल हो गए थे। आम तौर पर, रात के खाने का निमंत्रण दोस्ती को दर्शाता है, लेकिन इस मामले में, यह काफी विपरीत था। इन लोगों ने यीशु को फंसाने के लिए उसे आमंत्रित किया था।

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