कहनी ११६: पुत्र को मारने की कोशिश
जब यीशु एक अच्छे चरवाहे के विषय में बोल रहा था, उसके सुनने वाले समझे कि वह इस बात का ऐलान कर रहा है कि वह मसीहा है। वे जानते थे कि वह अपनी उन भेड़ों के लिय अपनी जान देने का दावा कर रहा है जो उसकी सुनते हैं और विश्वास करते हैं। और धार्मिक अगुवे यह समझते रहे कि उनके उस पर दोष लगाने और उसके विरुद्ध होने के कारण वे कहानी में वो चोर और लुटेरे बन गए हैं। और जब उसने परमेश्वर को अपना पिता कहा तो वह अपने आप को परमेश्वर कह रहा है।
ऐसी बात किसी भी इतिहास के लोगों को कहना बहुत ही मौलिक है। यदि वे सच्च होते, तो यह सबसे सत्य बात होती कहने के लिए। यदि यह सच्च नहीं होता, तो यीशु एक बहुत ही भयंकर झूठ बोलने वाला होता या पूर्ण रूप से विक्षिप्त होता। परमेश्वर के बहुत सी सच्ची भेड़ें इसका यकीन कर रही थीं। वे यह मानते थे कि जो यीशु कह रहा है वो है। परन्तु बाकि लोग निराशा में बड़बड़ाते रहे। उन्होंने कहा,“यह पागल हो गया है। इस पर दुष्टात्मा सवार है। तुम इसकी परवाह क्यों करते हो।”
दूसरे कहने लगे,“ये शब्द किसी ऐसे व्यक्ति के नहीं हो सकते जिस पर दुष्टात्मा सवार हो। निश्चय ही कोई दुष्टात्मा किसी अंधे को आँखें नहीं दे सकती।”
और ऐसे कर के राष्ट्र वाद विवाद होता रहा और लोगों में बटवारा हो गया। परमेश्वर के लोग अब क्या निर्णय लेंगे? क्या वे उस महान इनाम को स्वीकार करेंगे जो परमेश्वर के पुत्र ने उन्हें दिया है? क्या वे अपने पाप और विद्रोह का अंत करेंगे? परमेश्वर के लोग मसीहा को कब गले से लगाएंगे?
येरूशलेम में सर्द मौसम था, और समर्पण का पर्व का समय आ गया था। यह एक विशाल पर्व था जो पूरे राष्ट्र से यहूदी मंदिर को आते थे। यीशु भी वहाँ था, और मंदिर के आँगन में टहल रहा था, जो सुलेमान राह के बाद कहलाया गया था।तभी यहूदी नेताओं ने उसे घेर लिया और बोले,“तू हमें कब तक तंग करता रहेगा? यदि तू मसीह है, तो साफ-साफ बता।”
यीशु ने उत्तर दिया,“'मैं तुम्हें बता चुका हूँ और तुम विश्वास नहीं करते। वे काम जिन्हें मैं परम पिता के नाम पर कर रहा हूँ, स्वयं मेरी साक्षी हैं। किन्तु तुम लोग विश्वास नहीं करते। क्योंकि तुम मेरी भेड़ों में से नहीं हो।'"
अब यह उनके लिए बहुत ही स्पष्ट उत्तर था, है कि नहीं?
लेकिन कान नहीं थे सुनने के लिए। यीशु ने कहा: "'मेरी भेड़ें मेरी आवाज को जानती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ। वे मेरे पीछे चलती हैं और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। उनका कभी नाश नहीं होगा। और न कोई उन्हें मुझसे छीन पायेगा।'"
कितना अद्भुद है यह। यदि आप यीशु के प्रेम को जानते हैं, तो वह अनंकाल का है। उसका प्रेम आपके लिए पृथ्वी या तारों से ज़यादा लंबा चलेगा! कोई भी आपको उसके हाथों से छीन नहीं सकता!
धार्मिक अगुवों कि यीशु के प्रति नफ़रत इसलिए नहीं थी कि वह झूठ को फैला रहा है। वे उन लोगों कि वजह से जलन करते थे जो उसके पीछे चलते थे। उन्हें डर था कि वह अधिक से अधिक अधिकार पा लेगा और मंदिर कि आराधना को हासिल कर लेगा। वे जानते थे कि यदि यहूदी धर्म के ऊपर उसका नियंतरण हो गया तो वह उन्हें बाहर निकाल देगा! वे अपने बचाव के लिए सब कुछ करने कि कोशिश कर रहे थे, और ऐसा करने एक ही तरीका था कि शेष यहूदी राष्ट्र को उसके पीछे जाने से रोकना। यीशु ने स्पष्ट कर दिया था कि उनके पास कोई अधिकार नहीं था सच्चे विश्वासियों को रोकने का जो उसके पीछे चल रहे थे। वे ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते थे उनको उससे छीन कर ले जाने में। "'मुझे उन्हें सौंपने वाला मेरा परम पिता सबसे महान है। मेरे पिता से उन्हें कोई नहीं छीन सकता। मेरा पिता और मैं एक हैं।'”
जब यहूदियों ने यह सुना, वे जानते थे कि यीशु अपने आप को परमेश्वर कह रहा है। यह ईश्वर कि निंदा करना हुआ और इसकी सज़ा मृत्यु है। आखिरकार, उनके पास उसे दंड देने का एक कारण मिल गया। आखिरकार, इस निर्लज, उपद्रवी को वे मृत्युदंड दे सकते थे। वे उस पर पथराव काने को तैयार हो गए। कितना तनाव फ़ैल गया होगा। यीशु वहाँ खड़ा उन गुस्से से भरे लोगों का सामना कर रहा था। यीशु ने उनसे कहा,
“'पिता की ओर से मैंने तुम्हें अनेक अच्छे कार्य दिखाये हैं। उनमें से किस काम के लिए तुम मुझ पर पथराव करना चाहते हो?'”
यहूदी नेताओं ने उसे उत्तर दिया,“हम तुझ पर किसी अच्छे काम के लिए पथराव नहीं कर रहे हैं बल्कि इसलिए कर रहें है कि तूने परमेश्वर का अपमान किया है और तू, जो केवल एक मनुष्य है, अपने को परमेश्वर घोषित कर रहा है।”
यह सच्च था कि परमेश्वर के उच्च, शुद्ध और पवित्र व्यव्यस्था में, खुद को परमेश्वर कह कर दावा करना एक भयंकर अपराध था जिसका दंड मृत्यु है। और किसी भी साधारण मनुष्य के लिए, यह एक धार्मिक हुक्मनामा था। यह एक प्रतिकारक चीज़ थी कि एक व्यक्ति जिसे परमेश्वर कि ओर से जीवन का अद्भुद उपहार मिला हो, वह पलट कर अपने आप को परमेश्वर कहने का दावा करे। स्वयं को परमेश्वर कहकर दवा करना केवल नाम में जोड़ना नहीं है। यह अधिकार और दंडवत कराने के हक़क का भी दावा करता है। सोचिये कैसे साधारण, पापी लोग अपने स्वार्थ भरे इच्छाओं को पूरा करने के लिए लोगों को सताते हैं। कितना घिनौना झूठ एक पवित्र और अद्भुद परमेश्वर के लिए बोलना। यह कितना प्रतिकारक है उन लोगो के प्रति इस उपयोग करना जो परमेश्वर पर भरोसा करते हैं। इसीलिए यह अपराध का दंड मृत्यु ही है!
लेकिन आप देखिये, यदि झूठ होता है तो फिर परमेश्वर कह कर दावा करना गलत है। परमेश्वर का खुद को परमेश्वर कहना सत्य है! यीशु ने अपरिहार्य सबूत दिए थे कि परमेश्वर कि सामर्थ उसके भीतर से कार्य करती है। यदि वह अपने आप को परमेश्वर कह कर दावा करता है, तो वह है! लेकिन यीशु जानता था कि यह लोग सच्च में दिलचस्पी नहीं रखते हैं। वे खले खेल रहे थे। सो उसने उनके खेल के अनुसार उत्तर दिया:
“'क्या यह तुम्हारे विधान में नहीं लिखा है,‘मैंने कहा तुम सभी ईश्वर हो?’ क्या यहाँ ईश्वर उन्हीं लोगों के लिये नहीं कहा गया जिन्हें परम पिता का संदेश मिल चुका है? और धर्मशास्त्र का खंडन नहीं किया जा सकता। क्या तुम ‘तू परमेश्वर का अपमान कर रहा है’ यह उसके लिये कह रहे हो, जिसे परम पिता ने समर्पित कर इस जगत को भेजा है, केवल इसलिये कि मैंने कहा,‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ’? यदि मैं अपने परम पिता के ही कार्य नहीं कर रहा हूँ तो मेरा विश्वास मत करो किन्तु यदि मैं अपने परम पिता के ही कार्य कर रहा हूँ, तो, यदि तुम मुझ में विश्वास नहीं करते तो उन कार्यों में ही विश्वास करो जिससे तुम यह अनुभव कर सको और जान सको कि परम पिता मुझ में है और मैं परम पिता में।'” --यूहन्ना १०:३४-३९
इस पर यहूदियों ने उसे बंदी बनाने का प्रयत्न एक बार फिर किया। पर यीशु उनके हाथों से बच निकला। यह स्पष्ट था येरूशलेम अब सुरक्षित नहीं था। उसके दुश्मन उससे ढूंढ निकालेंगे, सो यीशु और उसके चेले फिर यर्दन नदी के पार उस स्थान पर चले गए।