कहनी ११५: अच्छा चरवाहा--भाग २ 

यूहन्ना १०:११-१८

यीशु अपने चेलों को समझा रहे थे कि इस्राएल के देश में क्या हो रहा था। यदि यीशु ही मसीहा है, तो उसके और धार्मिक अगुवों के बीच क्यूँ ऐसा युद्ध था? क्या उन्हें एक साथ मिलकर काम नहीं करना चाहिए? यीशु ने समझाया कि, वे जो उसके हैं और अपने स्वर्गीय पिता कि आवाज़ को सुनते हैं, तो उन्हें पश्चाताप करके उसके पीछे चलना चाहिए। सात सौ साल पहले यीशु के इस पृथ्वी पर आने के पहले, इस्राएल के अगुवे भयंकर पाप करते थे। परमेश्वर ने उन्हें अपने लोगों के बुरे चरवाहा घोषित करके उन्हें फटकारा। यिर्मयाह के द्वारा परमेश्वर ने कहा:

“'यहूदा के गडरियों के लिये यह बहुत बुरा होगा। वे गडेरिये भेड़ों को नष्ट कर रहें हैं। वे भेड़ों को मेरी चरागाह से चारों ओर भगा रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। वे गडेरिये मेरे लोगों के लिये उत्तरदायी हैं, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा उन गडेरियों से यह कहता है,“गडेरियों, तुमने मेरी भेड़ों को चारों ओर भगाया है। तुमने उन्हें चले जाने को विवश किया है। तुमने उनकी देखभाल नहीं रखी है। किन्तु मैं तुम लोगों को देखूँगा, मैं तुम्हें उन बुरे कामों के लिये दण्ड दूँगा जो तुमने किये हैं।” यह सन्देश यहोवा के यहाँ से है। “मैंने अपनी भेड़ों  को विभिन्न देशों में भेजा। किन्तु मैं अपनी उन भेड़ों को एक साथ इकट्ठी करुँगा जो बची रह गई हैं और मैं उन्हें उनकी चरागाह  में लाऊँगा। जब मेरी भेड़ें अपनी चरागाह में वापस आएंगी तो उनके बहुत बच्चे होंगे और उनकी संख्या बढ़ जाएगी। मैं अपनी भेड़ों के लिये नये गडेरिये रखूँगा वे गडेरिये मेरी भेड़ों  की देखभाल करेंगे और मेरी भेड़ें  भयभीत या डरेंगी नहीं। मेरी भेड़ों में से कोई खोएगी नहीं।” यह सन्देश यहोवा का है।'" --यिर्मयाह २३:१-४  

यीशु यह घोषित कर रहे थे कि इस्राएल के अगुवे पुराने समय के भयानक चरवाहों के समान थे। वह यह घोषित कर रहे थे कि उनका पक्ष लेने का मतलब है परमेश्वर के दुश्मनो का पक्ष लेना। वह इस बात को साबित कर रहे थे कि जो उसके पीछे चलते हैं वे यहूदी इतिहास के महान वीरों के समान है जो परमेश्वर के लिए वफादार खड़े रहते हैं चाहे उनके चारों ओर कितना भी झूठ क्यूँ न चल रहा हो!

यीशु समझा रहे थे कि एक अच्छा चरवाहा कैसा होता है। ना केवल वह चोरों और लुटेरों के विरुद्ध सच्चाई बताता है, वह एक उत्तम और हानिकर प्रेम से प्रेम करता है। उसकी भेड़ उसकी है, और वह उनके लिए कुछ भी करने को तैयार है, चाहे उनके लिए जान भी देनी पड़े!

उसने कहा,“'अच्छा चरवाहा मैं हूँ! अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपनी जान दे देता है। किन्तु किराये का मज़दूर क्योंकि वह चरवाहा नहीं होता, भेड़ें उसकी अपनी नहीं होतीं, जब भेड़िये को आते देखता है, भेडों को छोड़कर भाग जाता है। और भेड़िया उन पर हमला करके उन्हें तितर-बितर कर देता है। किराये का मज़दूर, इसलिये भाग जाता है क्योंकि वह दैनिक मज़दूरी का आदमी है और इसीलिए भेड़ों की परवाह नहीं करता।'" --यूहन्ना १०:११-१३

इस कहानी में, भेड़िया स्वयं शैतान है। ऐसे लोग भी हैं जो भेड़ों के लिए किराय के चरवाहा बनके आते हैं। उनके ह्रदय में भेड़ के लिए प्रेम नहीं है, वे केवल धन कमाने के लिए हैं। जब कभी वास्तव में दुश्मन के आने कि आशंका होती है तो वे किराय के टट्टू भाग निकलते हैं। उनके अंदर जानवरों के लिए कोई भक्ति या दया नहीं है। लेकिन यीशु बिलकुल भिन्न है। वह उनके लिए अपनी जान देने को तैयार है! उसने कहा:

“'अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अपनी भेड़ों को मैं जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे वैसे ही जानती हैं जैसे परम पिता मुझे जानता है और मैं परम पिता को जानता हूँ। अपनी भेड़ों के लिए मैं अपना जीवन देता हूँ। मेरी और भेड़ें भी हैं जो इस बाड़े की नहीं हैं। मुझे उन्हें भी लाना होगा। वे भी मेरी आवाज सुनेगीं और इसी बाड़े में आकर एक हो जायेंगी। फिर सबका एक ही चरवाहा होगा। परम पिता मुझसे इसीलिये प्रेम करता है कि मैं अपना जीवन देता हूँ। मैं अपना जीवन देता हूँ ताकि मैं उसे फिर वापस ले सकूँ। इसे मुझसे कोई लेता नहीं है। बल्कि मैं अपने आप अपनी इच्छा से इसे देता हूँ। मुझे इसे देने का अधिकार है। यह आदेश मुझे मेरे परम पिता से मिला है।'” --यूहन्ना १०:१४-१८

क्या आपने यीशु कि वाणी को सुना ? क्या आप उसका अर्थ समझते हैं?

यीशु कि वाणी को सुनने का मतलब है कि जो कुछ सत्य वह कहता है आप उस पर विश्वास करते हैं। उस अंधे व्यक्ति ने यीशु कि वाणी को सुना और उसकी आँखों को चंगा करते महसूस किया। पतरस, याकूब और यूहन्ना ने भी यीशु को कहते सुना,“'मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम्हें मनुष्य का पकड़ने वाला बनाऊंगा।'" जब हमारे माँ बाप और दोस्त हमें उसके सामर्थी प्रेम के विषय में बताते हैं तब हम उससे सुन पाते हैं। जब हम अपनी बाइबिल को पढ़ते हैं तब उसको सुन पाते हैं। और जब हम प्रार्थना के लिए अपने मानों को शांत करते हैं तब हम उसे सुनते हैं। इस तरह से यीशु कि आत्मा हमारे पास आकर हमें सिखाती है। प्रेरित पतरस ने हमारे विषय में एक पत्री में लिखा। उसने कहा,"यद्यपि तुमने उसे देखा नहीं है, फिर भी तुम उसे प्रेम करते हो। यद्यपि तुम अभी उसे देख नहीं पा रहे हो, किन्तु फिर भी उसमें विश्वास रखते हो और एक ऐसे आनन्द से भरे हुए हो जो अकथनीय एवं महिमामय है।और तुम अपने विश्वास के परिणामस्वरूप अपनी आत्मा का उद्धार कर रहे हो।"(१पतरस १: ८-९)

इतिहास में जितनो ने भी उसकी आवाज़ को सुना और उसके पीछे चलने का निर्णय लिया वे उसके बुलाये हुए थे। जो भेड़ उसके पीछे नहीं चलती वे कभी भी उसके थे ही नहीं। यह उनके लिए बहुत बड़ी दुःख कि बात है, सबसे बड़ी त्रासदी। यदि हम ऐसे किसी को जानते हैं जो यीशु के पीछे नहीं चलता, तो हमें उसके लिए अफ़सोस करना चाहिए, क्यूंकि उनका बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है। उनके पास उद्धारकर्ता नहीं है, और उनके पास उसका उद्धार भी नहीं है! लेकिन हम उन्हें उसके बारे में बता सकते हैं और हम यह प्रार्थना कर सकते हैं कि वे भी उसकी वाणी को सुनें।

यीशु का क्या अर्थ था जब उसने कहा कि "ये मेरे बाड़े कि भेड़ें नहीं हैं "? इस "बाड़े कि भेड़ें" का मतलब ही क्या है? यह इस्राएल देश है! परमेश्वर ने इस्राएल देश को अपने कीमती खज़ाना कह कर पुकारा था, और उस बाड़े कि भेड़ें उसके लिए बहुत कीमती थी। लेकिन अब, परमेश्वर इस बात का ऐलान कर रहे थे कि उद्धार यहूदी लोगों से और बढ़कर है। वह भेड़ों को अन्य देशों से भी लाएगा। वास्तव में, दुनिए के दूसरे कौम, राष्ट्र और भाषाओँ से भेड़ों को लाया जाएगा! यीशु ने अपननी जान उन सब के लिए दी जिन्होंने उसकी वाणी को सुना और आने वाले विश्वास कि प्रतिक्रिया की!

अब हमें थोड़ा रुक कर सोचने कि ज़रुरत है। यीशु ने ऐसा कुछ कहा जो केवल एक वाक्य कि तरह है। लेकिन यदि हमें एहसास होगा, तो हमें हैरानी होगी। वह हमें रोने और उसको दंडवत करने के लिए घुटनों पर आने पर मजबूर करेगा। यदि हम उस वाक्य कि भव्यता को समझेंगे, हम उसके चरणों को श्रद्धापूर्वक और विनम्रतापूर्वक चूमना चाहेंगे। उसने ऐसा कहना शुरू किया कि उसका स्वर्गीय पिता उससे बहुत प्यार करता है क्यूंकि वह उसके लिए अपनी जान देगा और फिर उसे ऊपर उठा भी लेगा। वह अपने मृत्यु और जी उठने के विषय में बात कर रहा है। यह काफी विशाल है! लेकिन उसने ऐसा कुछ कहा जिससे कि हमारी सांस ही रुक जाये। उसने कहा, "इसे मुझसे कोई लेता नहीं है। बल्कि मैं अपने आप अपनी इच्छा से इसे देता हूँ।"

यीशु जब इस श्रापित दुनिया में पापियों के साथ रहा, उन्हें चंगा किया, उनसे प्रेम किया और सच्चाई के विषय में सिखाता रहा, वह लगातार क्रूस कि ओर जाने के लिए तैयार रहा। वह समझ गया था जिस देश के लोगों के लिए वह उद्धार को स्वीकार करने के लिए प्रार्थना करता रहा, वे ही उसे मरवा देंगे। वह उनके झूठ के साथ जीता रहा, उनके बच्चों को चंगा किया, बहुत महीनों और सालों तक वह उनको स्वर्ग राज्य के सन्देश को देता रहा। पूरे समय, वह उनके पाप और लज्जा के बोझ को उठाय रहा। वह लोगों कि सज़ा के अत्यधिक पीड़ा को परमेश्वर के क्रोध के अनंतकाल के न्याय के नीचे लाने कि तैयारी कर रहा था। अपनी भेड़ों को बचने के उपाय के साथ आया था, और ना केवल अपनी जान को देने कि सामर्थ उसमें बल्कि उसे वापस जिलाने कि भी शक्ति थी। और यह सब उसके पिता के पूर्ण आज्ञाकारिता में होकर था।