कहनी १११: सुंदर सत्य, सुंदर चंगाई 

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यीशु जब प्रचार करते जा रहे थे,  वे उन भयानक विकृतियों और झूठ को खोलते जा रहे थे जिसने लोगों को भय और झूठे विश्वास में जकड़ा हुआ था। अपने स्वर्गीय पिता के विषय में झूठ सुनकर वह कितना अपमानित महसूस कर रहा होगा!

एक समय में, लोगों ने पेंतुस पीलातुस के विषय में यीशु को बताया कि उसने एक बहुत भयंकर बात करी है।पीलातुस पूरे येरूशलेम का रोमियो सरदर था, और यहूदी उससे घृणा करते थे। वह एक खुनी और दुष्ट आदमी था, और वह यहूदी धर्म का तिरस्कार करता था।  उसका विरोधी शासन मंदिर के सबसे भीतरी आंगनों तक पहुँच गया था। एक दिन, जब गलील के यहूदी परमेश्वर के आगे चढ़ा रहे थे, पिलातुस ने अपने कुछ सिपाहियों को अंदर भेज कर उन्हें मार देने आदेश दिया। बालियों का लहू गलीलियों के लहू के साथ मिलाया गया। परमेश्वर के मंदिर के भीतरी आंगनों में मौत और द्वेष का कितना दुष्ट आक्रमण था यह!

लोग यह आश्चर्य करने लगे कि ऐसा क्यूँ हुआ? उन्होंने सोचा कि शायद जिन लोगों को पिलातुस ने मारा उन्होंने कोई भयंकर पाप किया होगा। उन्होंने इस लायक कोई पाप किया होगा। सो यीशु ने उन से कहा,

“'तुम क्या सोचते हो कि ये गलीली दूसरे सभी गलीलियों से बुरे पापी थे क्योंकि उन्हें ये बातें भुगतनी पड़ीं? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ, यदि तुम मन नहीं, फिराओगे तो तुम सब भी वैसी ही मौत मरोगे जैसी वे मरे थे। या उन अट्ठारह व्यक्तियों के विषय में तुम क्या सोचते हो जिनके ऊपर शीलोह के बुर्ज ने गिर कर उन्हें मार डाला। क्या सोचते हो, वे यरूशलेम में रहने वाले दूसरे सभी व्यक्तियों से अधिक अपराधी थे? नहीं, मैं तुम्हें बताता हूँ कि यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी वैसे ही मरोगे।'”

यीशु ने जब उस छोटे से यहूदी झुण्ड को देखा कि कैसे उन पर यह भयंकर हादसा हुआ है, यह उस तस्वीर उसके समान होगी जब इस्राएल का देश मसीह के आने पर उसके विरुद्ध इंकार करेंगे। जो लोग बच गए थे उनकी हालत उनसे कुछ कम नहीं थी जो मर गए थे, और भविष्य एक चेतावनी थी। ऐसा ही यहूदी राष्ट्र के साथ होने जा रहा था और कोई भी उस भयंकर पीड़ा से बच नहीं पाएगा।

फिर उसने यह दृष्टान्त कथा कही:

“'किसी व्यक्ति ने अपनी दाख की बारी में अंजीर का एक पेड़ लगाया हुआ था सो वह उस पर फल खोजता आया पर उसे कुछ नहीं मिला। इस पर उसने माली से कहा,‘अब देख मैं तीन साल से अंजीर के इस पेड़ पर फल ढूँढ़ता आ रहा हूँ किन्तु मुझे एक भी फल नहीं मिला। सो इसे काट डाल। यह धरती को यूँ ही व्यर्थ क्यों करता रहे?’ माली ने उसे उत्तर दिया,‘हे स्वामी, इसे इस साल तब तक छोड़ दे, जब तक मैं इसके चारों तरफ गढ़ा खोद कर इसमें खाद लगाऊँ। फिर यदि यह अगले साल फल दे तो अच्छा है और यदि नहीं दे तो तू इसे काट सकता है।’” --लूका १३:६-९

इस कहानी में, मनुष्य परमेश्वर के समान है, और यहूदी लोग खजूर के पेड़ के समान हैं। तीन सालों से, यीशु ने लोगों को प्रचार किया, और उस खजूर पेड़ के समान, उनमें कोई फल नहीं आया। उनमें कोई विशेष पश्चाताप या विश्वास नहीं आया। परमेश्वर का न्याय का हाथ बहुत भयंकर था, लेकिन उनके विरुद्ध अभी उठा नहीं था। वह एक और साल के लिए रुक गया। सोचिये उस साल में क्या हुआ होगा। यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया होता। लोगों को उस भयंकर भूकम्प का सामना करना पड़ता। वे जान जाते कि कैसे मंदिर का पर्दा दो हिस्सों में बट गया था। फिर यीशु जी उठता। सैकड़ों यहूदी यीशु को देखते और उसके जी उठने और जीवित होने कि गवाही देते। और फिर उसके आसमान में उठाये जाने के विषय में पूरे इस्राएल में चर्चा होती। दस दिन बाद, पेन्तेकुस्त के महान भोज के समय, येरूशलेम कि सड़कों पर यीशु के लोग भर कर भिन्न भिन्न भाषाओँ में बोलते और स्वर्ग राज्य के सुसमाचार को सुनाते। परमेश्वर कि आत्मा उन पर उतर आती और हज़ारों लोग उस पर विश्वास लाते। पुराने नियम कि भविष्यवाणियां उनके सामने सच्च हो जाती और उन्हें ऐसे समझती जैसे कि पहले उन्होंने कभी नहीं सुना हो। इन सब के बाद भी, क्या यहूदी राष्ट्र परमेश्वर को इंकार करेगा?

कुछ चीज़ें इतनी सुंदर हैं कि उनकी अच्छाईयां बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हैं। इसे समझने कि आवश्यकता नहीं कि काले आकाश में तारे कैसे चमकते हुए दिखते हैं, और यह कि एक ग़ुलाब कि प्रतिकृति कितनी मनोहर है। जिस व्यक्ति ने कई सालों के बाद दुःख और तक़लीफ से अच्छी सेहत के साथ राहत पाई हो, तो यह अनुभव कितना गहरा होता है। यह बहुत स्पष्ट है। इन बातों में कुछ ऐसा है जो अनंतकाल कि अच्छाई को दर्शाता है और कोई भी चर्चा इसके विरुद्ध में बेकार हो जाती है। केवल वे जिनके ह्रदय उन लोगों के विरुद्ध में हैं उनके ऊपर इन चमत्कारों का कोई असर नहीं होगा।

सब्त के दिन, यीशु आराधनालय में उपदेश दे रहा था। एक दुष्ट आत्मा से अपंग वहां एक महिला आई। उसकी पीठ पर तुला हुआ था और वह सीधे ऊपर खड़ी नहीं हो सकता थी। वह अठारह साल से ऐसी ही स्थिति में थी। उसकी परेशानी और दु: ख की कल्पना कीजिये। वह अपने परिवार की मदद कैसे कर पाती होगी? कौन उसके दर्द में उसकी मदद कर सकता था?

यीशु ने उसे जब देखा तो उसे अपने पास बुलाया और कहा,“हे स्त्री, तुझे अपने रोग से छुटकारा मिला!” यह कहते हुए, उसके सिर पर अपने हाथ रख दिये। और वह तुरंत सीधी खड़ी हो गयी। वह परमेश्वर की स्तुति करने लगी।'"

सोचिये यदि यह छोटी सी टूटी हुई स्त्री आपकी पड़ोसन होती। आप सोच सकते हैं कि उसको ऐसे तक़लीफ़ में देखकर आप कितने दुखी होंगे जिसकी पीठ हर साल झुकती जा रही हो? उसके चारों ओर लोग कितने असहाय महसूस करते होंगे। लेकिन फिर, आपकी आंखों के सामने, यह यीशु, जिसके विषय में सभी अफवाहें फैली थीं उसी ने सब कुछ बदल डाला। एक पल में और एक शब्द के साथ, वह खड़ी होने में सक्षम हो गयी! क्या आप उसकी खुशी कि कल्पना कर सकते हैं? क्या आप यीशु के चेहरे पर मुस्कान की कल्पना कर सकते हैं? यदि आप में उस महिला के लिए कुछ प्यार होता तो अपनी खुशी की गहराई की कल्पना कर सकते हैं? क्या आप उस कमरे में बिजली के समान आये जीवन की कल्पना कर सकते हैं? आप क्या करते? क्या आप चिल्लाते, ताली बजाते या स्तुति करते? क्या आप नाचना नहीं चाहते?

आराधनालय के शासक को ऐसा महसूस नहीं हुआ। वह क्रोधित हुआ कि यीशु ने सब्त के दिन उसे चंगा किया। यह स्त्री शायद उसकी करीबी पड़ोसन थी, फिर भी उसकी चंगी उसके कठोर ह्रदय कि गहराई को नहीं छु पाया। नियमों के बंधन में रहने से उसके दूसरों के लिए कोई करुणा नहीं थी। उसने लोगों से कहा,“काम करने के लिए छः दिन होते हैं सो उन्हीं दिनों में आओ और अपने रोग दूर करवाओ पर सब्त के दिन निरोग होने मत आओ।”

यीशु को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया। और हर बार कि तरह वह निडर रहा। उसने उस शासक से कहा,“'ओ कपटियों!'"

क्या आप उसके क्रोध कि शक्ति को अपने ऊपर आते देख सकते हैं? यह देखने लायक दृश्य था! "'क्या तुममें से हर कोई सब्त के दिन अपने बैल या अपने गधे को बाड़े से निकाल कर पानी पिलाने कहीं नहीं ले जाता?'"

यीशु कि फटकार से उसके विरोधी बहुत अपमानित हुए। उनके निराशाजनक खेल को सब ने देख लिया था। उन्होंने उस ज़रूरतमंद स्त्री कि परवाह नहीं की। वे यह दर्शा रहे थे कि वे परमेश्वर कि व्यव्यस्था और सब्त के प्रति ज़यादा आवेशपूर्ण हैं, लेकिन वे व्यव्यथा को वास्तव में उस व्यक्ति को नष्ट करने के लिए उपयोग कर रहे थे जिससे उनको अपने पद के लिए खतरा था। यह कपट का सबसे ऊंचा दर था।

लेकिन वे लोग जिन्हें इन अगुवों के बुरे नेतृत्व में रहना था, वे यीशु के अद्भुद कामों से बहुत खुश थे जो वह करता था।