कहानी १०४: मार्था और मरियम
मार्था उसके लिए सब कुछ उत्तम करना चाहती थी! लेकिन इसके बहुत कार्य करना था। जहां कहीं भी यीशु जाते थे उनके साथ उनके बारह चेले साथ होते थे। अगर मार्था एक अच्छी मेज़बान बनना चाहती थी तो उसे उन सब कि अच्छी खातिदारी करनी होगी। बहुत सारी सफाई और खाना बनाने के लिए सारे काम थे। उसके परिवार कि इज़ज़त अब दाव पर लगी थी। उन्हें इस मनुष्य के लिए कुछ सबसे बढ़कर करना था।
उधर तरह तरह की तैयारियों में लगी मार्था व्याकुल होने लग गई। वह यीशु के क़दमों पर बैठ कर क्या कर रही थी? वह उसकी मदद क्यूँ नहीं कर रही थी? आख़िरकार, मार्था यीशु के पास गई। यह सच था कि वह मरियम के इस स्वार्थ को ले लेकर मंज़ूर नहीं था। वह बोली,“हे प्रभु, क्या तुझे चिंता नहीं है कि मेरी बहन ने सारा काम बस मुझ ही पर डाल दिया है? इसलिए उससे मेरी सहायता करने को कह।”
आपको क्या लगता है कि यीशु ने क्या कहा होगा? क्या वह मरियम को डांटेगा और उसे मार्था कि सहायता करने के लिए बोलेगा?
प्रभु ने उसे उत्तर दिया,“'मार्था, हे मार्था, तू बहुत सी बातों के लिये चिंतित और व्याकुल रहती है।किन्तु बस एक ही बात आवश्यक है, और मरियम ने क्योंकि अपने लिये उसी उत्तम अंश को चुन लिया है, सो वह उससे नहीं छीना जायेगा।'”
सारी सेवकाई के बीच मार्था एक सबसे महत्वपूर्ण बात को भूल गयी थी, केवल यीशु ही एक मात्र आवश्यकता है! वो महान शिक्षक उस गाव में आ गया था, और मार्था उसे सुनने के लिए बहुत व्यस्त हो गयी थी। वह यीशु के साथ जीवन को बिताने का अवसर खो रही थी। यीशु मार्था के कामों से अधिक उसके साथ समय को चाहते थे। उसके साथ वह प्रेम भरा रिश्ता और उस पर निर्भर रहना ही सबसे बड़ा खज़ाना था ना कि जो वह कर रही थी। मरियम ने सही चुना था! वह उसके चेहरे को ताकना चाहती थी और सच्चाई को सुनना चाहती थी!
यह कितना दिलचस्प है कि यह कहानी अच्छे सामरी के बाद ही आती है। उस कहानी में, परमेश्वर यह सिखाते हैं कि हर एक व्यक्ति कितना बहुमूल्य है, और किस तरह हमें भी दूसरों को वैसा ही प्रेम दिखाना है जैसा कि हैम अपने स्वयं के साथ करते हैं! यह कितना उदारता से किया हुआ प्रेम है और इसे करने में कितना समय और ताक़त जाती है। यीशु के पीछे चलने वालों के लिए यह कितना आसान होगा कि वे पहले उसके लिए दूसरों से प्रेम करें और फिर उस पहले दी हुई आज्ञा को भूल जाएं जो यह कहती है कि परमेश्वर को अपने सारे ह्रदय और जान और बल से प्रेम करना है। मार्था ने परमेश्वर से प्रेम करने के बजाय उसकि सेवा करने के कार्य को अधिक महत्व दिया। मरियम ने यीशु से प्रेम करने को सबसे महत्वपूर्ण बनाया। जो प्रेम हमारे अंदर यीशु के लिए है वही प्रेम हमें दूसरों को भी दिखाना चाहिए। अच्छे सामरी कि कहानी में, उस पादरी और लेवी ने उस लहूलुहान व्यक्ति पर ध्यान नहीं देकर उस आज्ञा को तोड़ा जो कहती है कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना। इस कहानी में मार्था ने पहले नियम का उलंघन किया क्यूंकि उसने परमेश्वर से प्रेम करने के बजाय उसकी सेवा करना अधिक उचित समझा।
अद्भुद बात यह है कि यीशु ने मार्था को मरियम के विषय में बताया। जब हम यीशु को पहला स्थान देते हैं, वह वायदा करता है कि हमसे वो प्रेम कभी नहीं लिया जाएगा। जब हम उसे जिसने यह सृष्टि बनाई, उसे अपनी पहली भक्ति देते हैं तो उसका ह्रदय प्रेम से भर जाता है। परमेश्वर हमारे प्रेम कि परवाह करता है। यीशु और उसके चुने हुओं के बीच का सामर्थी प्रेम इतना सुरक्षित है कि दुनिया कि कोई भी ताक़त उसे तोड़ नहीं सकता है। उसे कभी नहीं लिया जाएगा। वह युगानुयुग का प्रेम है।
यह यीशु के पीछे चलने वालों के लिए बहुत ही महवपूर्ण सन्देश चाहे वे किसी भी युग के क्यूँ ना हों। हम जो परमेश्वर के लिए करते हैं उसमें हम मूल्य को अधिक जान सकते हैं बजाय इसके कि यीशु और हमारे बीच प्रेम के।